शिक्षाशास्त्र

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की विशेषतायें | राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की विशेषतायें | राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 (National Policy of Education, 1986)

इसमें दो मत नहीं हैं कि शिक्षा ही एक ऐसा शक्तिशाली माध्यम है जिसके द्वारा राष्ट्रीय जीवन में सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक परिवर्तन लाये जा सकते हैं। यही वह साधन है जिसके द्वारा कोई भी देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकता है, किन्तु दुर्भाग्यवश हमें जो शिक्षा व्यवस्था विरासत में मिली वह निरुद्देश्य, निरर्थक और दोषपूर्ण थी तथा केवल ब्रिटिश सरकार का स्वार्थ सिद्ध करने वाली थी। आजादी के बाद लगभग तीन दशकों तक इसमें संशोधन और परिवर्तन पर गम्भीरता से चिंतन और मनन हुआ, कई कमेटियाँ और कमीशन नियुक्त हुये तथा उनके द्वारा सिफारिशें भी की गईं, किन्तु कुछ छुटपुट सुधारों को छोड़, शिक्षा में कोई आमूल-चूल परिवर्तन नहीं हुआ।

उस दूषित शिक्षा प्रणाली के फलस्वरूप युवा-वर्ग में शिक्षित बेरोजगारी,छात्रों में अनुशासनहीनता  ,शिक्षकों में कार्य के प्रति नकारात्मक मनोवृत्ति, बालकों में उदासीनता तथा सामान्य जनता में शिक्षा के प्रति अविश्वास की भावना बढ़ने लगी। सर्वत्र अराजकता, अनिश्चितता, अशान्ति की स्थिति निर्मित होने लगी। इन सबने न केवल हमारे सामाजिक ढाँचे को चरमराकर रख दिया वरन् हमारे राष्ट्रीय जीवन की जड़ों को हिला दिया। देश के शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों के सामने चुनौती भरी समस्यायें आ खड़ी हुई । स्थिति की गम्भीरता को देख देश का प्रशासन तंत्र भी सक्रिय हो उठा। लगभग एक वर्ष के विस्तृत विचार-विमर्श तथा गहन चिंतन-मनन के पश्चात् जिस शिक्षा नीति का निर्माण किया गया वह”नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986″ के रूप में आज हमारे सामने है।

किसी भी देश की राष्ट्रीय शिक्षा उस देश की आवश्यकताओं और माँगों के अनुकूल तथा राष्ट्र के उद्देश् एवं आदर्शों के अनुरूप होती है। भारतीय दृष्टिकोण से शिक्षा सबके लिये अत्यावश्यक है। यह हमारे सर्वांगीण भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास का मूल आधार है। देश के विकास में शिक्षा की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। यह हमारे विचारों एवं भावनाओं का परिष्कार करती है, जिससे राष्ट्रीय एकीकरण, वैज्ञानिक अभिवृत्ति तथा मन और आत्मा की मुक्ति को बल मिलता है। भारतीय संविधान में समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और जनतंत्र के लक्ष्यों का निर्धारण किया गया है। अतः भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा की परिकल्पना इन्हीं की प्राप्ति के संदर्भ में की गई है। भारत में राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था से तात्पर्य है कि सभी छात्रों को बिना किसी जाति, धर्म, स्थान अथवा लिंग भेद के एक निश्चित स्तर तक तुलनीय कोटि की शिक्षा प्रदान करना।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की विशेषतायें (Characteristics of National Policy of Education, 1986)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 की विशेषतायें निम्नलिखित हैं-

(1) शिक्षा का ढाँचा-

नई शिक्षा व्यवस्था में सारे देश के लिये एकसमान शैक्षिक ढाँचे की व्यवस्था की गई है। इसे 10+2+3 शैक्षिक ढाँचा कहते हैं। इसमें पहले 10 वर्ष तक की शिक्षा सभी के लिये समान रूप से है। इसे विभिन्न स्तरों में इस प्रकार विभाजित किया गया है-5 वर्ष का प्राथमिक स्तर,3 वर्ष का उच्च प्राथमिक स्तर तथा 2 वर्ष का माध्यमिक स्तर। इसके पश्चात् +2 के उच्चतर माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के व्यवसायीकरण की योजना बनाई गई है। इसके बाद 3 वर्ष की महाविद्यालयीय शिक्षा की व्यवस्था है।

(2) शिक्षा में समानता-

इससे तात्पर्य है-सभी को बिना किसी जाति, धर्म,वर्ग अथवा लिंग-भेद के समान रूप से शिक्षा के अवसर प्रदान करना । नई शिक्षा नीति इस बात पर जोर देती है कि शिक्षा में व्याप्त ‘असमानताओं को दूर किया जाये तथा एक निश्चित स्तर तक की शिक्षा सर्वसुलभ की जाये। यही कारण है। कि महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक, पिछड़े वर्ग के लोगों तथा विकलांगों की शिक्षा के लिये इसमें विशेष व्यवस्था की गई है ।

(3) राष्ट्रीय पाठ्यक्रम-

राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था सम्पूर्ण देश के लिये एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम के ढाँचे पर आधारित होगी। इसमें एकसमान कोर पाठ्यक्रम होगा,किन्तु आवश्यकतानुसार इसमें परिवर्तन किये जा सकेंगे। इसके अन्तर्गत भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का इतिहास, संविधान के प्रति कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्व तथा राष्ट्रीय पहचान से सम्बन्धित महत्वपूर्ण बातों का समावेश किया गया है, उदाहरण के लिये हमारी भारतीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों, लोकतन्त्र, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, पर्यावरण का महत्व, सीमित परिवार की आवश्यकता तथा वैज्ञानिक मनाकृति के विकास आदि के द्वारा छात्रों में न केवल अपने देश की संस्कृति के प्रति चेतना जागृत होगी वरन् उसमें राष्ट्रीय एकता का भी विकास होगा।

(4) शिक्षा का लोक व्यापीकरण-

संविधान में लिये गये निर्णय के बावजूद आज 37 वर्ष बीत जाने के बाद भी हम देश में शिक्षा का लोक व्यापीकरण नहीं कर पाये हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसे गम्भीरता से लिया गया है तथा इस बात का संकल्प लिया गया है कि सन् 1990 तक 6 से 11 वर्ष तक तथा 1995 तक 11 से 14 वर्ष तक की आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिये निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था कर दी जायेगी। यही नहीं नई शिक्षा नीति उन बच्चों के लिये जो बीच में पढ़ाई छोड़कर पाठशाला से चले जाते हैं पाठशाला में ठहराव को प्राथमिकता देती है तथा 14 वर्ष तक की शिक्षा को सफलतापूर्ण ग्रहण कराने के लिये प्रयास करती है

(5) रोजगारपरक शिक्षा-

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में + 2 स्तर पर कक्षा 11वीं और 12वीं में शिक्षा के व्यावसायीकरण की व्यवस्था है। दूसरे शब्दों में, यहाँ शिक्षा को रोजगार एवं काम से जोड़ने की व्यवस्था है। चूँकि इसमें मानव एवं संसाधन-दोनों की आवश्यकता होगी तथा इसमें अपेक्षतः अधिक धन की भी आवश्यकत होगी, अतः इसमें वर्तमान में बड़े और महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की योजना नहीं है। वास्तव में व्यावसायिक शिक्षा को सही ढंग से देने के लिये न केवल व्यावसायिक शिक्षा की सुविधाओं में वृद्धि करनी होगी वरन् औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों को बड़े पैमाने पर व्यावसायिक ढाँचे के अनुरूप बनाना होगा। अत: यह कार्य तो क्रमवार ही होगा।

(6) पिछड़े वर्गों की शिक्षा-

भारत में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की एक बहुत बड़ संख्या ऐसे लोगों की है जो अशिक्षा, गरीबी तथा अन्धविश्वास से ग्रस्त बहुत पिछड़े हुये हैं। इन्हें अन्य लोगों की बराबरी पर लेकर इनके लिये प्रगति के समस्त द्वार खोलने हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत इनके लिये नई योजनाओं के द्वारा हर तरह की शैक्षिक सुविधायें प्रदान किये जाने की व्यवस्था है। इनके लिये छात्रावास तथा आश्रमों की योजना के साथ-साथ निःशुल्क गणवेश,कॉपी,किताब,मध्याह्न भोजन तथा छात्रवृत्तियों की सुविधायें प्रदान की गई हैं।

(7) ‘ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड’-

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्राथमिक विद्यालयों को दी जाने वाली सुविधाओं के अन्तर्गत “ऑपरेशन ब्लेक बोर्ड” एक नये टर्म का प्रयोग किया गया है। सीधे-सादे अर्थ में इससे तात्पर्य है-“न्यूनतम शैक्षिक साधनों एवं उपकरणों का प्रावधान ।” इसके अन्तर्गत प्राथमिक शालाओं में कम से कम दो सामान्यतः बड़े आकार के कमरे, टाटपट्टी, नक्शे, चार्ट, श्यामपट तथा अन्य शैक्षिक सामग्री की व्यवस्था आवश्यक होगी। आरम्भ में हर विद्यालय में कम से कम दो शिक्षकों की व्यवस्था होगी तथा बाद में हर एक नई शिक्षा के साथ एक और शिक्षक बढ़ाया जायेगा। इसके लिये बड़ी संख्या में शिक्षकों की नियुक्ति करनी होगी। साथ ही उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था भी करनी होगी। इस “ऑपरेशन ब्लेक बोर्ड” की मुहिम में शासन, स्थानीय निकायों, स्वयंसेवी संस्थाओं तथा प्रभावशाली सम्पन्न व्यक्तियों को सम्मिलित किया जायेगा। प्राथमिकता के आधार पर जिन शालाओं के भवन नहीं हैं, उनके लिये पहले भवन निर्माण का कार्य किय जायेगा।

(8) महिला शिक्षा-

जहाँ एक बालक की शिक्षा एक व्यक्ति की शिक्षा होती है वहाँ एक बालिका की शिक्षा पर एक परिवार की शिक्षा होती है, इस कथन की महत्ता का अनुभव करते हुये तथा महिलाओं के स्तर को ऊँचा उठाने के उद्देश्य से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में महिला शिक्षा को बहुत प्रोत्साहन दिया गया है। विभिन्न स्तरों पर तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा में भी महिलाओं की भागीदारी पर जोर दिया जायेगा ताकि पुरुषों और महिलाओं के बीच किसी प्रकार के भेदभाव की स्थिति न रह जाये। पाठ्यक्रम तथा पुस्तकों में भी जो लिंग-भेद दिखाई देता है, नई शिक्षा नीति में उसे समाप्त किया जायेगा।

(9) प्रौढ़ शिक्षा-

15 से 35 वर्ष की आयु के प्रौढ़ों के लिये साक्षरता कार्यक्रम के साथ-साथ सतत् शिक्षा का एक व्यापक कार्यक्रम नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत निर्धारित किया गया है। इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में सतत् शिक्षा केन्द्रों की स्थापना, नियोक्ताओं द्वारा श्रमिकों की शिक्षा, पुस्तकों तथा वाचनालयों का विस्तार, रेडियो, दूरदर्शन तथा फिल्मों के माध्यम से शिक्षा, दूर-शिक्षण कार्यक्रम तथा आवश्यकता और रुचि पर आधारित व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा।

(10) नवोदय विद्यालय-

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत नवोदय विद्यालयों की स्थापना एक अभिनव कदम है। इन्हें ‘पेस सेटिंग स्कूल’ अथवा गति निर्धारक विद्यालय भी कहते हैं। कई बार ऐसा होता है कि कुछ छात्र आरम्भ से ही मेधावी और प्रतिभाशाली होते हैं, किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में अध्ययनरत रहने तथा आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उच्च कोटि की शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। इन बच्चों के लिये निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था के रूप में नवोदय विद्यालय की स्थापना की गई है। ये आवासीय विद्यालय रहेंगे तथा क्रमशः आरम्भ किये जायेंगे। प्रत्येक जिले में एक नवोदय विद्यालय खोलने की शासन की योजना है इसमें अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षण की व्यवस्था होगी। साथ ही इसके 20 प्रतिशत बच्चे एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जायेंगे जो राष्ट्रीय एकता व सद्भावना का विकास करने में सहायक होंगे।

(11) खुले विश्वविद्यालय और दूर अध्ययन-

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा के अन्तर्गत खुले विश्वविद्यालय एवं दूर अध्ययन की संकल्पना की गई है। इसका उद्देश्य उच्च शिक्षा के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करना तथा शिक्षा को लोकतांत्रिक बनाना है । सन 1985 में स्थापित “इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय खुले विश्वविद्यालय” को और विकसित किया जायेगा।

(12) परीक्षा सुधार तथा डिग्रियों को नौकरियों से अलग करना-

नई शिक्षा की राष्ट्रीय नीति के अन्तर्गत जहाँ एक ओर परीक्षा में सुधार की व्यवस्था की गई है, वहीं डिग्रियों को नौकरियों से अलग करने का भी प्रयास किया गया है। सतत् मूल्यांकन, जिसमें शिक्षा के अतिरिक्त गैर-शैक्षिक पक्षों को भी सम्मिलित करके पूरी शिक्षण अवधि में फैलाया जा सके, माध्यमिक स्तर से चरणबद्ध तरीके से सत्र-प्रणाली का आरम्भ तथा अंकों के स्थान पर ग्रेडों का प्रयोग परीक्षा सुधार के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु हैं।

(13) औपचारिकेत्तर शिक्षा-

9 से 14 वर्ष तक के ऐसे बच्चे जिन्होंने बीच में पाठशाला छोड़ दी या जो कामकाज में लग जाने के कारण पाठशाला नहीं जा पाये अथवा इसलिये पाठशाला नहीं गये कि जहाँ वे रहते थे वहाँ पाठशाला ही नहीं थी, नई शिक्षा नीति में औपचारिकेत्तर शिक्षा केन्द्रों के माध्यम से शिक्षित किये जायेंगे। इन्हें आधुनिक तकनीकी सामग्री की सहायता से स्थानीय योग्यता एवं निष्ठावान युवा पुरुष अथवा महिलाओं के द्वारा शिक्षा दी जायेगी। नई राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था में उदारतापूर्वक अनुदान देकर इन केन्द्रों को विकसित करने की योजना है।

जहाँ तक डिग्रियों को नौकरियों से अलग करने का प्रश्न है, कुछ चुने हुये क्षेत्रों में इसका प्रारम्भ किया जायेगा। कुछ व्यवसाय विशिष्ट पाठ्यक्रमों जैसे-अभियांत्रिकी, औषधि, विधि, शिक्षण इत्यादि में तो डिग्री की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार मानविकी, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान आदि में योग्यता प्राप्त कुछ विशेषज्ञों की सेवायें कुछ नौकरियों में आवश्यक होंगी। डिग्रियों को उन नौकरियों से अलग किया जायेगा जिनमें उनकी आवश्यकता नहीं रहती, उदाहरण के लिये-टाइपिंग से ट्रेण्ड किसी मेट्रिकुलेटेड को लिपिक के पद के लिये सिर्फ इसलिये अयोग्य करार नहीं दिया जा सकता,क्योंकि उसके पास स्नातक की डिग्री नहीं है। डिग्रियों को नौकरियों से अलग करने के लिये ‘राष्ट्रीय परीक्षण सेवा’ सरीखी व्यवस्था का निर्माण किया जायेगा जो विभिन्न नौकरियों के लिये उम्मीदवारों की उपयुक्तता निश्चित करने के लिये जाँच कार्य कर सके।

शिक्षाशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimere-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!