अर्थशास्त्र

राजस्व का महत्व | आर्थिक क्षेत्र में महत्व | सामाजिक क्षेत्र में महत्त्व | राजनीतिक क्षेत्र में महत्व | लोक वित्त के महत्त्व

राजस्व का महत्व | आर्थिक क्षेत्र में महत्व | सामाजिक क्षेत्र में महत्त्व | राजनीतिक क्षेत्र में महत्व | लोक वित्त के महत्त्व

राजस्व का महत्व (Importance of Public Finance)-

(I) आर्थिक क्षेत्र में महत्व

(1) सरकार के बढ़ते हुये कार्यों की पूर्ति में सहायक- आधुनिक समय में सरकार की आर्थिक क्रियाओं में दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है। आर्थिक जीवन का कोई भी कोना सरकार के हाथ से मुक्त नहीं है। सरकार की आर्थिक क्रियाओं में राजस्व के सिद्धान्त अत्यधिक सहायता करते हैं।

(2) पूँजी निर्माण में सहायक- विकासशील देशों में पूँजी का अभाव होता है जिस कारण देश का आर्थिक विकास धीमी गति से होता है। इन देशों में पूँजी निर्माण की समस्या को तीन भागो में बाँटा जा सकता है-(1) कुछ महत्वपूर्ण कार्यों जैसे परिवहन, बिजली, जल-आपूर्ति, नहरों का निर्माण आदि में निजी क्षेत्र द्वारा धन लगाना सम्भव नहीं है। अतः इन कार्यों में धन का विनियोग सरकार द्वार किया जाता है (2) निजी क्षेत्र की योजनाओं में भी सरकार पूँजी के अभाव की पूर्ति करती है। (3)सरकार देश-विदेश के निजी विनियोक्ताओं को पूँजी विनियोग के लिये प्रोत्साहन देती है।

अतः सरकार का मुख्य उद्देश्य बचत को अधिकतम बनाना और उसे उत्पादक प्रयोग में लगाना होता है। कर नीतियों में उचित हेर-फेर करके सरकार बचत की मात्रा को बढ़ा सकत है। प्रायः बचत करने या पूँजी निर्माण के लिये सरकार द्वारा करों में छूट तथा आर्थिक सहायता दी जाती है। दूसरे, अतिरिक्त करों के द्वारा सरकार जनता से अधिक आय लेकर सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में लेगा सकती है। अतः अर्द्ध विकसित देशों में पूँजी निर्माण की समस्या के संदर्भ में राजस्व का एक नया महत्व बढ़ गया है।

(3) आर्थिक नियोजन में महत्त्व- आज प्रत्येक देश अपने तीव्र सन्तुलित और अधिक आर्थिक विकास के लिये नियोजन की नीति को अपना रहा है। राजस्व किसी देश के योजनाबद्ध आर्थिक विकास में बहुमूल्य सहायता प्रदान करता है। योजना द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति के लिये अपार धन की आवश्यकता होती है। यह धन कर, मुद्रा-स्फीति, ऋण तथा घाटे की अर्थव्यवस्था द्वारा ही प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार योजना के लिये धन की पूर्ति राजस्व द्वारा ही की जाती है। आज आर्थिक नियोजन भौतिक होने के साथ-साथ वित्तीय भी होता है। वित्तीय नियोजन की कुशलता राजकोषीय नीति पर ही निर्भर करती है।

(4) धन व सम्पत्ति के वितरण की विषमता को कम करने में सहायक- विकासशील देसों में न केवल आय-स्तर नीता होता है। वरन् आय के वितरण में भी बहुत असमानत पाई जाती है। एक ओर धनी वर्ग का रहन-सहन का स्तर बहुत ऊँचा होता है किन्तु दूसरी ओर निर्धन वर्ग की आवश्यक आवश्यकतायें भी पूरी नहीं हो पातीं। पूँजीवादी देशों में धन के वितरण की असमानता को कम करने में राजस्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सरकार धनी व्यक्तियों पर भारी कर लगाकर उससे प्राप्त आय को गरीबों के कल्याण पर व्यय करके आय की असमानता को कम कर सकती है।

(5) रोजगार की वृद्धि में सहायक- अल्पविकसित देशों में अधिक मात्रा में बेरोजगारी पाई जाती है। बेरोजगारी दूर करने के लिये राजस्व का सहारा लिया जाता है। सरकार दीर्घकालीन ऋण-पूँजी प्राप्त करके उसे शीघ्र फलदायक व्यवसायों व उद्योगों में लगा सकती है जिनमें अनेक लोगों को रोजगार मिल जाता है। दूसरे मन्दी काल में जनता को रोजगार देने के लिये सरकार सार्वजनिक निर्माण कार्यों में अधिक धन व्यय करती है तथा बेरोजगारों को भत्ता देती है।

(6) राष्ट्रीय आय की वृद्धि में सहायक- आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुये देशों में जनता की आय बहुत कम होती है और उनका रहन-सहन का स्तर भी नीचा होता है। लोगों की आय बढ़ाने के लिये उत्पादन और रोजगार में वृद्धि करना आवश्यक है। अतः सरकार विकास की नवीन योजनाएँ आरम्भ करती है और सम्पूर्ण पूँजी की व्यवस्था करती है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने के लिये सरकार राजस्व नीति द्वारा बचत को बढ़ाकर पूँजी निर्माण करती है। दूसरे, सार्वजनिक ऋण तथा सार्वजनिक व्यय का अधिकांश भाग उत्पादक कार्यों में लगाती है। इस प्रकार सरकार राजस्व को देश के विकास का उपकरण बनाकर राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने में समर्थ होती है।

(7) सार्वजनिक उद्योगों के संचालन में सहायक-  प्रत्येक देश में, चाहे वह पूँजीवादी है चाहे समाजवादी, कुछ सार्वजनिक उद्योग व सेवायें होती हैं जिनके संचालन के लिये भारी मात्रा में पूँजी जुटाने की आवश्यकता होती है। इस पूँजी की पूर्ति तथा सामाजिक हित में हानि पर चलने वाले सार्वजनिक उद्योगों की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति राजस्व द्वारा ही की जाती है।

(8) देश में संसाधनों का अनुकूलतम वितरण करने में सहायक- अविकसित देशों में प्रायः साधनों की कमी रहती है, अतः उनका विभिन्न कार्यों और प्रयोगों में प्रभावी ढंग से वितरण करना आवश्यक होता है। देश के साधनों में न केवल वित्तीय साधन वरन् प्राकृतिक और मानवीय साधन भी सम्मिलित होते हैं। इन संसाधनों का विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग और उनका सर्वोत्तम प्रयोग सरकार की उचित और प्रभावशाली मौद्रिक तथा राजस्व नीतियों से ही सम्भव है।

(9) क्षेत्रीय विकास में प्रोत्साहन- अविकसित देशों के विभिन्न क्षेत्रों के बीच विकास की असमानता पाई जाती है। प्रगतिशील क्षेत्रों में लोगों की आय अधिक होती है तथा रोजगार के अवसर भी अधिक होते हैं, जबकि अविकसित क्षेत्रों में लोगों की आय व रोजगार के अवसर कम होती हैं। सरकार पिछड़े क्षेत्रों में परिवहन, सिंचाई शक्ति आदि के साधनों का सार्वजनिक व्यय के द्वारा विकास कर सकती है और वहाँ निजी उद्योगों की स्थापना के लिये आर्थिक सहायता दे सकती है।

(10) आर्थिक स्थायित्व-1930 की विश्वव्यापी मंदी के पश्चात् यह सर्वत्र अनुभव किया गया कि अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्थायित्व बनाये रखने के लिये राजकीय हस्तक्षेप अर्थात् राजस्व नीति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सरकार अपनी करारोपण नीति, लोक व्यय नीति, लोक ऋण नीति के मध्य उचित समन्वय स्थापित करके मूल्य स्तर में स्थिरता ला सकती है।

(II) सामाजिक क्षेत्र में महत्त्व

सामाजिक कल्याण के कार्यों को संचालित करने, पिछड़े वर्गों का उत्थान करने, हानिकार वस्तुओं के उपभोग पर नियंत्रण करने के लिये राजस्व नीति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। दूसरे, सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन, शिक्षा का प्रचार, श्रम-कल्याण व सामाजिक सुरक्षा आदि कार्य भी राजस्व क्रियाओं पर निर्भर करते हैं।

(III) राजनीतिक क्षेत्र में महत्व

सरकार अपनी राजनीतिक नीतियों को तभी सुचारु रूप से लागू कर सकती है जबकि उसके पास पर्याप्त वित्तीय साधन हों। बाह्य आक्रमणों से देश की रक्षा करना, आन्तरिक शान्ति बनाये रखना, विदेशी तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों में अपने राजनीतिक पक्ष को सुदृढ़ रखने के लिये धन की बड़ी आवश्यकता होती है। ब्रिटिश शासनकाल में भारत के वित्तमंत्री जेम विलसन के अनुसार, “राजस्व एक मात्र अंकगणित ही नहीं है, सुदृढ़ वित्त के अभाव में सुदृढ़ सरकार सम्भव नहीं है, उसी प्रकार सुदृढ़ सरकार के अभाव में सुदृढ़ वित्त सम्भव नहीं है।” अतः राजनीतिक क्षेत्र में राजस्व का बड़ा भारी महत्व होता है।

निष्कर्ष :-

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आधुनिक युग में राजस्व विज्ञान ने एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है। उचित राजकोषीय नीति के बिना कोई भी देश अपनी उन्नति नहीं कर सकता। राजस्व की महत्ता का प्रतिपादन विभिन्न क्षेत्रों में उसके योगदान से निश्चित हो जाता है, जैसे- अर्थव्यवस्था के विकास, संसाधनों की गतिशीलता, संसाधनों का आबंटन, उत्पादन, रोजगार एवं कीमतों का निर्धारण तथा आय एवं सम्पत्ति का वितरण।

अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!