राजनीति विज्ञान

राजनीतिक दर्शन को लॉक की देन | लॉक का महत्त्व | Legacy of Locke to Political Thought in Hindi

राजनीतिक दर्शन को लॉक की देन | लॉक का महत्त्व | Legacy of Locke to Political Thought in Hindi

राजनीतिक दर्शन को लॉक की देन

(Legacy of Locke to Political Thought)

लॉक के विचारों में कुछ त्रुटियों और दोषों के होते हुए भी राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में कई महत्वपूर्ण देनों के कारण लॉक का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है :-

(1) व्यक्तिवाद का समर्थक-लॉक ने व्यक्तिवादी विचारों का प्रतिपादन किया | जनता को प्राकृतिक अधिकार तथा राज्य के विरुद्ध विद्रोह का अधिकार देकर उसने राज्य का उद्देश्य जनता की भलाई करना बतलाया है। यह उसकी महत्त्वपूर्ण देन है।

(2) स्वाभाविक अधिकारों का सिद्धान्त- दूसरी देन प्राकृतिक अधिकारों (Natural Rights) का सिद्धान्त है। उसने जीवन, स्वतन्त्रता और सम्पत्ति को मनुष्य के जन्मसिद्ध स्वाभाविक अधिकार मानते हुए यह कहा कि राज्य का कर्त्तव्य इनकी रक्षा करना है। राज्य किसी मनुष्य को इनसे वंचित नहीं कर सकता। यदि कोई शासक ऐसा करता है तो प्रजा को उसके विरुद्ध विद्रोह करने का अधिकार है। आजकल सभी देशों के संविधानों में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया जाता है। यह व्यवस्था वर्तमान लोकतन्त्र (Democracy) और उदारवाद (Liberalism) की आधारशिला है।

(3) संवैधानिक शासन का प्रतिपादक- लॉक ने जनता की सहमति पर आधारित वैधानिक शासन (Constitutional Government) के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। मैक्सी के शब्दों में उससे पहले किसी राजनैतिक विचारक ने इतने स्पष्ट और प्रभावशाली रूप में इस सिद्धान्त को मान्यता नहीं दी थी कि “यदि कोई शासन प्रजाजनों की सहमति पर आधारित न हो तो वह अवैध तथा निराधार होता है।” इससे पहले प्रतिनिधि संस्थाओं के माध्यम से बहुमत द्वारा शासन-संचालन की आवश्यकता और सम्भावनाओं को इतने जोरदार शब्दों में किसी अन्य विचारक ने अभिव्यक्त नहीं किया था। उसने स्पष्ट शब्दों में कहा कि कार्यपालिका तथा विधान सभा तभी तक अपने पद पर रह सकती हैं जब तक कि वे लोकहित की उपेक्षा नहीं करती। लॉक ने इस सिद्धान्त के द्वारा राजाओं के दैवी अधिकार (Divine Right) द्वारा शासन करने के सिद्धान्त का प्रबल खण्डन किया। 18वीं-19वीं शताब्दी के राजनीतिक सुधारकों के मुख्य प्रेरणास्रोत लॉक का सिद्धान्त वैधानिक शासन का दर्शत था। ये सुधार चाहे किसी वालपोल, जेफरसन, गैम्वेट्टा या काबूर ने किये हों, इनकी प्रेरणा लॉक की रचनाओं से मिलती-जुलती थी।”

(4) जनता की प्रभुसत्ता का प्रतिपादक- लॉक की एक अन्य महत्त्वपूर्ण देन यह है कि उसने ही सर्वप्रथम जनता की प्रभुसत्ता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। वह यह मानता था कि व्यक्ति राज्य को अपने अधिकार कुछ विशेष प्रयोजनों की पूर्ति के लिये ही सौंपते हैं, शेष अधिकार तथा प्रभुसत्ता जनता में ही बनी रहती है।

(5) शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त का प्रतिपादक-लॉक ने सरकार के तीनों अंगों के प्रथकत्व पर बल देकर शक्ति पृथक्करण (Separation of Powers) के सिद्धान्त का बीजारोपण किया। इस सिद्धान्त ने अमरीका की राजनीतिक संस्थाओं पर गहरा प्रभाव डाला । पोलिबियस के बाद लॉक ने ही इसका सुस्पष्ट और तर्कसंगत प्रतिपादन किया था। राजनीतिज्ञों और राजनीतिक विचारकों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। मांटेस्क्यू ने इसी सिद्धान्त पर अपने शासन-सम्बन्धी कार्यों के विवर्गीय विभाजन के सिद्धान्त का विकास किया और अमरीका के संविधान निर्माताओं ने लॉक तथा मान्टेस्क्यू के सिद्धान्तों के आधार पर अपने विधान का निर्माण किया।

(6) उपयोगितावाद का समर्थक- लॉक के विचारों में उपयोगितावाद (Utilitarianism) की झलक मिलती है। उसने यह कहा था कि मनुष्य का प्रत्येक कार्य सुखों की प्राप्ति और दुखों के निवारण के लिये होता है। मनुष्य नैतिक सिद्धांतों का अनुसरण इसलिये करता है क्योंकि इनसे उसे सुख व आनन्द की प्राप्ति होती है। जेरमी बेन्थम पर इन विचारों का बड़ा प्रभाव पड़ा।

लॉक का महत्त्व

लॉक के विचार अपने युग में बहुत विख्यात थे। उसके विचारों का महत्व इंगलैण्ड, फ्रांस अमेरिका आदि देशों पर पड़ा। अमेरिका की स्वतन्त्रता की घोषणा में भी उसका प्रभाव निहित है। उसके प्रभावों के आधार पर रूसो ने अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। भण्डारी महोदय ने इस सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा है:-

“After him his theories were developed by Rousseau into an extreme form of sovereignty of the people and was responsible for the outbreak of the French Revolution. Locke’s theory of separation of powers formed the basic principle of the Esp it des Lois of Lonte squien as well as influenced the American Constitution.”

–Prof. Bhandari

वास्तव में लॉक अनेक नवीन विचारों का जनक था। उसने राजा के दैवी अधिकारों के सिद्धान्त का खण्डन करके यह मत प्रतिपादित किया कि शासन जनता की सहमति पर आधारित होता है। उसने शासन में व्यक्ति के महत्त्व को स्वीकार किया। उसने लोकप्रिय प्रभुसत्ता का विचार रखा जिसे आगे चलकर रूसो ने विकसित किया। उसने व्यक्ति के स्वाभाविक अधिकारों को मान्यता दी जिन्हें आज के सभी सभ्य राज्य स्वीकार करते हैं। शक्ति- पृथक्करण के सिद्धान्त की भावना भी उसके विचारों में मिलती है। व्यवस्थापिका को सर्वोच्च अंग अस्वीकार करके उसने आधुनिक युग की संसदीय सरकार का विचार प्रस्तुत किया।

लॉक के व्यक्तिवाद, जनता की प्रभुसत्ता, व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों तथा वैध शासन के विचार बड़े लोकप्रिय हुये। बार्कर ने लिखा है कि “लॉक के राजनैतिक सिद्धान्त ने केवल इंग्लैंड को ही प्रभावित नहीं किया वह फ्रांस में प्रविष्ट हुआ, रूसो के माध्यम से फ्रांस की राजनीति में आया । यह उत्तरी अमेरिका की बस्तियों में प्रविष्ट हुआ और सेमुअल एइम्ज तथा थामस जेफरसन द्वारा अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा में भी इसका समावेश हुआ।” मैक्सी के शब्दों में “लॉक की गणना राजनीतिशास्त्र के अमर विचारकों में की जानी चाहिये।”

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Pankaja Singh

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