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प्रयोजना विधि | प्रयोजना विधि का अर्थ एवं परिभाषा | प्रायोजना विधि के सिद्धान्त | प्रायोजना के प्रकार | प्रायोजना विधि के गुण | प्रायोजना विधि के दोष | प्रायोजना विधि का सोपान

प्रयोजना विधि | प्रयोजना विधि का अर्थ एवं परिभाषा | प्रायोजना विधि के सिद्धान्त | प्रायोजना के प्रकार | प्रायोजना विधि के गुण | प्रायोजना विधि के दोष | प्रायोजना विधि का सोपान | Purpose Law in Hindi | Meaning and Definition of Purpose Law in Hindi | Principles of Project Law in Hindi | Type of Project in Hindi | Properties of Project Method in Hindi | Defects of project method in Hindi | stage of the project method in Hindi

प्रयोजना विधि (Project Method)

जॉन डीवी (John Dewey) के प्रयोजनवाद के सिद्धान्त पर आधारित प्रयोजन विधि डब्ल्यू.एच. किलपैट्रिक (W.H. Kilpatrich) द्वारा 1918ई. में प्रतिपादित की गई। इसलिए किलपैट्रिक को Father of project method कहते हैं। ‘महात्मा गांधी’ की ‘बुनियादी शिक्षण योजना’ में इसका स्वरूप मिलता है। इसमें यह कहा गया है कि बालक में किसी न किसी कौशल का विकास की जाने वाली शिक्षा प्रदान की जाये।

विलियम काबेट ने अपनी पुस्तक ‘Advice to young meant’ में स्वयं के बालकों के लिए ग्रामीण प्रायोजनाओं का वर्णन किया है।

इसका प्रयोग सर्वप्रथम व्यावसायिक क्षेत्र में किया गया। सामान्य शिक्षा के क्षेत्र में इसका प्रयोग सर्वप्रथम हार्वर्ड विश्वविद्यालय में किया गया।

प्रयोजना विधि का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definitions of Project Method)

प्रयोजना विधि का विभिन्न देशों में सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा रहा है। इस विधि से शिक्षण में स्वाभविकता एवं सजीवता आती है। यह विधि बालक को स्वाभाविक परिस्थितियाँ प्रदान करती है। जिसमें वह उद्देश्यपूर्ण किसी समस्या मूलक कार्य को सजीवता से पूर्ण करने में सफल होता है।

‘प्रोजेवट’ शब्द अभियंत्रण विज्ञान की देन है। किसी कार्य को प्रतिफल, कौशल अथवा मॉडल के रूप में बनाने से पूर्व उसकी Planning की जाती है उसे प्रोजेक्ट कहते हैं। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग मेसेच्यूसेट स्टेट के बोर्ड ऑफ एजूकेशन में 1908 में किया गया है। जिसमें बालकों को अपने घरों पर जानवर पालने व बागवानी करने का प्रावधान था।

इस विधि के अर्थ को और अधिक विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओं के अध्ययन से किया जा सकता है। विभिन्न विद्वानों ने प्रायोजना की निम्नलिखित परिभाषाएं दी हैं-

‘किलपैट्रिक’ (Killpatrick) के अनुसार, “प्रोजेक्ट सामाजिक वातावरण में पूर्ण संलग्नता से किया जाने वाला उद्देश्यपूर्ण कार्य है।”

उक्त परिभाषा ‘किलपैट्रिक (Kilpatrick) ने सितम्बर, 1918 में प्रस्तुत की थी, तत्पश्चात् 1927 में उपर्युक्त परिभाषा में संशोधन करते हुए लिखा था “प्रोजेक्ट सोद्देश्य अनुभव की किसी इकाई और सोद्देश्य क्रिया के उदहरण के रूप में परिभाषित किया जाता है। जहाँ पर आधिपत्य रखने वाला प्रयोजन एक अन्तर्निहित प्रकृति के रूप में (1) कार्य का उद्देश्य को निर्धारित करता है, (2) इसकी क्रिया को निर्देशित करता है, (3) इसकी आन्तरिक प्रेरणा, इसकी शक्ति की पूर्ति करता है।”

‘स्टीवेन्सन’ (Stevenson) के अनुसार, “प्रायोजना एक समस्यामूलक कार्य है जिनका समाधान प्राकृतिक पर्यावरण में रहते हुए किया जाता है।”

सी.बी. गुड (C. V. Good)- के अनुसार, “प्रायोजना क्रिया की वह महत्वपूर्ण इकाई है, जिसका शैक्षिक महत्व हो तथा जिसका लक्ष्य एक अथवा एक से अधिक प्रकार का निश्चित ज्ञान देना हो। प्रायोजना नियोजित होती है तथा इसकी पूर्ति का प्रयास अध्यापक तथा विद्यार्थियों के द्वारा प्राकृतिक जीवन की परिस्थितियों में किया जाता है।”

एस.सी. पार्कर (S.C. Parker) के अनुसार, “प्रायोजना कार्य की वह इकाई है जिसके अन्तर्गत छात्रों को कार्य की प्रायोजना और सम्पन्नता हेतु उत्तरदायी बनाया जाता है।”

“बैलाई’ (Ballard) के अनुसार, “प्रायोजना वास्तविक जीवन का एक छोटा सा अंश होता है, जिसे विद्यालय में सम्पादित किया जाता है।”

प्रो. त्यागी एवं डॉ. सिंह (Prof. Tyagi and Dr. Singh) के अनुसार, “प्रायोजना विधि एक ऐसी विधि है जिसमें प्रयोग करते हुए सीखने पर अधिक बल दिया जाता है, अध्यापक तो केवल मात्र मार्गदर्शक तथा सहायक का स्थान प्रहण करता है।

इस प्रकार इस विधि में विषय वस्तु एवं शिक्षण विधि का प्रमुख स्थान होता है। शिक्षक सहायक अथवा मार्गदर्शक की भूमिका में रहता है। इसमें विषय वस्तु एवं सहायक सामग्री के साथ- साथ शिक्षण विधि का विचार छात्र के दृष्टिकोण से किया जाता है। ‘करके सीखो’ की अपेक्षा प्रयोग करते हुए सीखने के निकट प्रायोजना विधि को पाते हैं।

प्रायोजना विधि के सिद्धान्त (Principles of Project Method)

प्रायोजना विधि के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-(1) उद्देश्यपूर्णता का सिद्धान्त, (2) क्रियाशीलता का सिद्धान्त, (3) उपयोगिता का सिद्धान्त

(4) वास्तविकता का सिद्धान्त, (5) अनुभव का सिद्धाना (6) स्वतंत्रता का सिद्धान्त या प्रजातांत्रिकता का सिद्धान्त, (7) सहसम्बन्ध का सिद्धान्त, (8) सामाजिकता का सिद्धान्त, (9) मितव्ययिता का सिद्धान्त, (10) समय का सिद्धान्त

प्रायोजना के प्रकार (Types of Project)

प्रायोजनाओं के सम्बन्ध में शिक्षाविदों के भिन्न-भिन्न विचार हैं लेकिन सामान्यतः ये दो प्रकार की होती है-

(1) व्यक्तिगत प्रायोजना, (2) सामूहिक प्रायोजना

लेकिन डब्ल्यू.एच. किलपैट्रिक (W. H. Kilpatrick) प्रायोजनाओं के चार प्रकारों का उल्लेख करते हुए बताते हैं-

(1) रचनात्मक योजनाएँ, (2) कलात्मक योजनाएं, (3) अभ्यासात्मक योजनाएँ, (4) समस्यात्मक योजनाएँ,

थॉमस एम. रिस्क (Thormas M. Risk) के अनुसार प्रयोजनाएँ तीन प्रकार की होती हैं-

(1) उत्पादक योजनाएँ (Productive Projects)

(2) सीखने से सम्बन्धित योजनाएँ (Learning Projects)

(3) बौद्धिक या समस्यात्मक योजनाएँ (Intellectual or Problematic Projects) – उपर्युक्त विभिन्न विद्वानों के द्वारा प्रतिपादित प्रायोजनाओं के प्रकारों का अध्ययन करने के पश्चात् यह कहा जा सकता है कि प्रायोजन के निम्न प्रकार होते हैं-

(अ) व्यक्ति की दृष्टि से

  • व्यक्तिगत प्रायोजनाएँ
  • सामाजिक प्रायोजनाएँ

(ब) विषय की दृष्टि से

  • उत्पादक प्रायोजनाएँ
  • उपभोक्ता प्रायोजनाएँ
  • समस्यात्मक प्रायोजनाएं
  • अभ्यासात्मक प्रायोजनाएँ

प्रायोजना विधि के गुण (Merits of Projects Method)-

प्रायोजना विधि के निम्नलिखित गुण हैं-

(1) प्रयोग पर आधारित होने के कारण प्रायोजना के द्वारा छात्रों को स्थायी ज्ञान की प्राप्ति होती है।

(2) मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त ‘सीखने का सिद्धान्त’ पर आधारित होने के कारण वास्तविक रूपक्षसे कार्य करके प्रभावपूर्ण एवं वास्तविक ज्ञान प्राप्त करते हैं।

(3) किसी भी प्रायोजना पर कार्य करने हेतु छात्रों को प्रजातांत्रिक माहौल मुहैया कराया जाता ताकि छात्र स्वतंत्रतापूर्वक कार्य का सम्पादन कर सके एवं इससे छात्रों में सहयोग, सहानुभूति, सहिष्णुता, पारस्परिक प्रेम आदि प्रजातांत्रिक गुणों का विकास होता है।

(4) बाल केन्द्रित होने के कारण प्रायोजना विधि छात्रों को वास्तविक लाभ पहुंचाती है।

(5) इसमें छात्र मानसिक व शारीरिक रूप से सक्रिय रहते हैं जिससे छात्र का सर्वांगीण विकास सम्भव है।

(6) यह विधि व्यक्तिगत भिन्नता पर आधारित है जिससे सभी प्रकार के मानसिक स्तर के छात्रों को सीखने के अवसर मिलते हैं।

(7) इससे छात्रों में आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता एवं आत्मबलिदान के गुणों का विकास होता है।

(8) यह मनोवैज्ञानिक विधि है क्योंकि इसमें शिक्षण सिद्धान्तों एवं शिक्षण सूत्रों का उपयोग किया जाता है।

(9) यह विधि विद्यालय की शिक्षा को व्यावहारिक जीवन से सम्बन्धित करती है।

(10) यह विधि छात्रों में श्रम के प्रति प्रेम उत्पन्न करती है।

(11) बालकों को मानसिक थकान इस विधि से नहीं आती।

प्रायोजना विधि के दोष (Demerits of Project Method)-

प्रायोजना विधि के निम्नलिखित दोष हैं-

(1) प्रायोज़ना विधि के क्रियान्वयन में समय एवं शक्ति का अपव्यय होता है।

(2) प्रायोजना विधि के द्वारा शिक्षण कार्य क्रमानुसार एवं व्यवस्थित ढंग से नहीं हो पाता है।

(3) यदि इस विधि से पाठ्यक्रम के सभी प्रकरणों का ज्ञान दिया जाये तो पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण करना असम्भव है एवं समी प्रकरणों को प्रोजेक्ट के आधार पर पढ़ांना भी अनुचित रहेगा।

(4) इस विधि के द्वारा छात्रों में लेखन क्षमता विकसित नहीं हो पाती क्योंकि इसमें लेखन कार्य को बहुत कम स्थान दिया गया है।

(5) प्रायोजना में कार्य का पुनर्परीक्षण भी भली-भाँति नहीं हो पाता।

(6) इसमें प्रत्येक समस्या का शिक्षक को दिशा निर्देश देने होते हैं जिसके कारण शिक्षक पर अधिक कार्यभार हो जाता है।

(7) यह विधि प्राथमिक कक्षाओं हेतु उपयोगी नहीं, इस स्तर पर छात्र महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट चुनने में असमर्थ रहते हैं।

(8) इस विधि का उपयोग करने से विद्यालय के अन्य समस्त क्रिया कलाप अस्तव्यस्त हो जाते है।

(9) प्रायोजना किसी भी विषय का क्रमबद्ध ज्ञान प्रदान करने में असमर्थ है क्योंकि वह विभिन्न विषयों के विभिन्न अंगों का अध्ययन अपनी इच्छा से करता है।

(10) यह विधि सभी विषयों हेतु उपयोगी नहीं है।

प्रायोजना विधि का सोपान (Steps of Project Method):

प्रायोजना विधि के निम्नलिखित सोपान हैं-

  1. परिस्थिति का निर्माण करना (Creating the situation)
  2. प्रायोजना/समस्या का चयन करना (Choosing of the project)
  3. प्रायोजना का कार्यक्रम बनाना (Planning of the project)
  4. प्रायोजना का क्रियावन्यन (Executing the project)
  5. प्रायोजना का मूल्यांकन (Evaluation of the project)
  6. प्रायोजना का लेख करना (Recording of the project)
  7. सुझाव (Suggestions) ।
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