शिक्षाशास्त्र

प्रक्षेपण | फ्रायड के अनुसार प्रक्षेपण | प्रक्षेपण परीक्षणों की प्रकृति

प्रक्षेपण | फ्रायड के अनुसार प्रक्षेपण | प्रक्षेपण परीक्षणों की प्रकृति 

प्रक्षेपण का अर्थ

प्रक्षेपण शब्द की व्याख्या अनेक प्रकार से की गई है। प्रक्षेपण (Projection)— जब हमें किसी अग्राध्य भाव के कारण ठेस पहुँचती है तो हम अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करने के लिए अपना दोष किसी दूसरे के ऊपर मढ़ देते हैं या आरोपित कर देते हैं। यह कार्य हम दो प्रकार से करते हैं। प्रथम- हम अपना दोष या अपराध किसी दूसरे पर आरोपित करते हैं और अपने को दोष या अपराध से मुक्त समझते हैं। दूसरा ढंग यह है कि हमारे मनोभाव, झुकाव हमारे अचेतन मस्तिष्क में रहते हैं और जब हम कोई उन मनोभावों के अनुकूल सृजनात्मक कार्य करने लगते हैं तो वे चेतन मन में आ जाते हैं और हम सृजनात्मक उत्पादन या कार्य में अपना प्रभाव प्रदर्शित करने लगते हैं। उदाहरणार्थ, कोई छात्र अपनो काम-भावना या सौन्दर्यानुभूति के भाव को किसी परिस्थिति में छुपाए रखता है। परन्तु इन दमित भावनाओं का प्रष्टीकरण उसके कविता, कहानी, पत्र, चित्रांकन, संगीत आदि में हो सकता है। इसी को प्रक्षेपण कहते हैं।

प्रो० गुड ने ‘Dictionary of Education’ में प्रक्षेपण की निम्न परिभाषा दी है-“प्रक्षेपण का अर्थ है कि अपने मनोभावों एवं अन्तर्द्वन्द्रों को किसी दूसरे व्यक्ति में देखना जिससे उसकी अपनी स्थिति छिपी रहे।”

हीली, ब्रानर एवं बॉवरस (Healy, Brouner and Bours) के अनुसार, प्रक्षेपण सुखवाद सिद्धान्त के अन्तर्गत एक सुरक्षात्मक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से अहम् बाह्य जगत में अचेतन इच्छाओं एवं विचारों को फेंकता है जिन्हें यदि चेतन में प्रवेश करने दिया जाये तो वे अहम् के लिए दुखदायी हो जाते हैं।

वारेन (Warren) के अनुसार, यह बाह्य जगत् में दमित मानसिक प्रक्रियाओं का आरोपण करने की प्रवृत्ति है जिन्हें व्यक्तिगत स्रोत से उत्पन्न नहीं माना जाता तथा परिणामस्वरूप इन प्रक्रियाओं की विषय-वस्तु को बाह्य जगत में अनुभव करते हैं।

फ्रायड के अनुसार प्रक्षेपण

फ्रायड के अनुसार प्रक्षेपण की कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं-

(1) रोगी अन्य व्यक्तियों के विषय में ऐसी बातों का विश्वास कर लेता है जो सत्य नहीं है। उन बातों का ठोस आधार नहीं होता।

(2) प्रक्षेपण प्रक्षेपित वस्तु में ऐसी प्रवृत्ति आरोपित करता है जो या तो स्वयं अपने प्रति हो या अन्य किसी वस्तु के प्रति ।

(3) आरोपित करने की यह प्रवृत्ति प्रयोज्य के स्वयं के व्यक्तित्व का कोई पक्ष होती है।

(4) आरोपित तथ्य प्रक्षेपक को स्वीकार नहीं होते। अतः उसका दमन किया जाता है। प्रयोज्य स्वयं अपने आप में इसकी सत्ता से अवगत नहीं होता।

(5) प्रक्षेपी क्रिया का अर्थ अपराध की भावना से मुक्ति पाना होता है।

स्पष्ट है कि फ्रायड ने प्रक्षेपण को अस्वीकृत प्रवृत्तियों के दमन तक सीमित रखा है।

प्रक्षेपण परीक्षणों की प्रकृति

प्रक्षेपण परीक्षण व्यक्तित्व का मापन करते हैं। इसमें यह अध्ययन किया जाता है कि दिये हुए तथ्य का बोध करने में क्या परिवर्तन हुआ। प्रत्यक्षीकरण में रूपान्तर के अनेक कारण हो सकते हैं,

यथा-

(i) बौद्धिक योग्यता,

(ii) स्मरण तथा अनुभव को धारण करने की क्षमता और

(iii) पूर्व संवेगात्मक अनुभव तथा वर्तमान व्यक्तित्व रचना।

प्रक्षेपण विधि में स्मरण तथा अनुभव को धारण करने की क्षमता तथा पूर्व संवेगात्मक अनुभव तथा वर्तरगन व्यक्तित्व रचना के कारण वस्तु स्थिति में जो अन्तर होता है, उसका अध्ययन किया जाता है। इसी कारण ‘मरे’ (Murray) ने अपने परीक्षण का नाम बोध परीक्षण (Apperception Test) रखा है।

मनोविश्लेषणवादी प्रक्षेपण विधि से तात्पर्य यह रक्षात्मक पता रचना से करते हैं। इसका आशय यह है कि यह एक प्रकार की प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपनी अवदमित इच्छाओं को जो किसी परिस्थिति का सामना करने में असफलता के कारण अचेतन मन में चली जाती हैं, किसी नवीन वस्तु की ओर परिवर्तित करके प्रकट करता है। प्रक्षेपण विधि का आधार यह है कि कोई भी दो व्यक्ति एक वस्तु को एक ही प्रकार से नहीं देखते। दो व्यक्तियों के विचारों में अन्तर उसके व्यक्तित्व मेंकी भिन्नता के कारण होता है। प्रक्षेपण विधि में व्यक्ति अनजाने में अपने दोषों को अन्य व्यक्तियों के सिर मढ़ देता है। स्पष्ट है कि प्रक्षेपण अचेतन मन की सुरक्षा प्रक्रिया है।

गेट्स तथा अन्य (Gates and others) ने प्रक्षेपण का अर्थ इस प्रकार बताया है- Projection may be defined as ascribing to others (i) unacceptable impulses, thoughts, feelings and wishes arising in oneself and (ii) the responsibilities for such actions which one wishes to disclaim.”

फ्रैंक तथा फ्रीमैन (Frank and Freeman) ने प्रक्षेपण परीक्षण का अर्थ इस प्रकार बताया है -“A projective test then is one that provides the subject with a stimulus situation giving him an opportunity to imposes upon his our needs and his particular perceptions and interpretation.

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Pankaja Singh

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