शिक्षाशास्त्र

प्रक्षेपण विधियाँ | Projection Methods in Hindi

प्रक्षेपण विधियाँ | Projection Methods in Hindi

प्रक्षेपण विधियाँ

“प्रक्षेपण परीक्षण मुख्यतः असंरचनशील (unstructured) होते हैं। इसके निर्देश सामान्य होते हैं, और उत्तरदाता उत्तर देने के लिए हाँ या नहीं शब्दों का प्रयोग नहीं करता। उसे यह पूर्ण अवसर प्रदान किया जाता है कि वह अपनी कल्पना शक्ति के आधार पर अपना उत्तर दे।”

प्रक्षेपी विधियाँ

कुछ मुख्य प्रक्षेपण विधियाँ इस प्रकार हैं-

(1) रोर्शा परीक्षण (Rorschach Test)- हरमन रोर्शा (Herman Rorchach) नामक मनोवैज्ञानिक ने व्यक्तित्व के मापन को इस विधि को आरम्भ किया। वह स्याही के धब्बों के माध्यम से वस्तु प्रत्यक्षीकरण का कल्पनात्मक मापन करना चहता था। उसने स्याही के धब्बों के द्वारा व्यक्तित्व का मापन किया था। वह यद्यपि प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में इस क्षेत्र का प्रथम व्यक्ति न था। परन्तु उसने विस्तृत रूप से स्याहों के धब्बों के माध्यम से व्यक्तित्व का नैदानिक अध्ययन किया। इस परीक्षण में 10 कार्ड होते हैं। इन कार्डो पर स्याही के धब्बे छपे होते हैं। इन धब्बों का आकार अनियमित होता है। इसी कारण प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने ढंग से इन धब्बों की व्याख्या करता है। धब्बे विभिन्न रंगों के होते हैं। स्याही के इन धब्दों के रूप तथा आकार से अनेक वस्तुओं का बोध होता है। ये वस्तुएँ पर्वत, पक्षी या पशु हो सकते हैं।

ये कार्ड अलग-अलग करके दिखाये जाते हैं। परीक्षार्थी से यह पूछा जाता है कि कार्ड का चित्र क्या हो सकता है? कार्ड को आकृति देखकर कैसा लगता है? इस प्रकार के अनेक प्रश्न पूछे जाते हैं। परोक्षण करने वाला व्यक्ति, परोक्षार्थी की प्रतिक्रियाओं को लिख लेता है और उन्हीं के आधार पर वह निष्कर्ष निकालता है।

रोर्शा फलांकन विधि (Method of Scoring Rorschach’s Method)

इस विधि में फलांकन के निम्नलिखित आधार हैं-

(अ) निरीक्षण क्षेत्र (Location)— यह ज्ञात किया जाता है कि परोक्षार्थी सम्पूर्ण धब्बा देखता है अथवा उसका आधा भाग अथवा उसका असाधारण विस्तार देखता है।

(ब) निर्धारक (Determinants)- यह देखा जाता है कि प्रतिक्रिया धब्बे के आकार के प्रति है अथवा रंग के प्रति

(स) विषय-वस्तु (Conient)- यह देखा जाता है कि क्या प्रतिक्रिया मानव, पशु, पौधे व दृश्य आदि पर है। यह प्रतिक्रिया मानवीय अथवा मानव अंश अथवा वस्त्र आदि है।

परीक्षण की व्याख्या (Interpretation of the Test)

विषयों की संवेगात्मक प्रकृति उसकी धव्वों के प्रति हुई प्रतिक्रिया से जानी जाती है। इसी आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। फलाकों को दिन प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर की जाती है। विषयों की कल्पना तथा रचनात्मक प्रवृत्ति का ज्ञान गति प्रतिक्रियाओं से किया जाता है। समस्त धब्बा देखना बौद्धिक संगठन को स्पष्ट करता है।

रोर्शा विधि की वैधता तथा विश्वसनीयता (Validity and Reliability of Rorschach Method)

रोशां परीक्षा की विश्वसनीयता की ठीक से जानकारी नहीं की जा सकती है। कुछ विधियों के आधार पर जैसे अर्द्ध विच्छेद विधि, परीक्षण विधि, पुनर्परीक्षण विधि के आधार पर जो सह- सम्बन्ध (Correlation) निकाला गया, वह 6 से 9 तक था।

इस विधि की वैधता दो विधियों द्वारा ज्ञात की जा सकती है। ये निम्नलिखित हैं-

(1) रोर्शा विधि से मापन किये हुए परिणामों की अन्य परीक्षणों के परिणामों से तुलना की जानी चाहिए।

(2) मानसिक रोगियों पर परीक्षण करके परिणामों की उन व्यक्तियों के परीक्षण परिणामों से तुलना की जानी चाहिए जिनका मनोवैज्ञानिक को पूर्ण ज्ञान है।

रोर्शा परीक्षण के उपयोग (Use of Rorschach Method)

व्यक्तित्व के मापन के लिए रोश परीक्षण का प्रयोग व्यक्तिगत (Individual) रूप से तथा सामूहिक (Group) रूप से दोनों प्रकार से किया जा सकता है। औपचारिक क्षेत्र में इस परीक्षण से मानसिक रोगियों के रोग का निदान किया जा सकता है। यही कारण है कि चिकित्सा क्षेत्र में इस विधि का व्यापक प्रयोग किया जाता है।

अमेरिका में द्वितीय महायुद्ध के समय अनेक सैनिकों के व्यक्तित्व सम्बन्धी लक्षणों का मापन किया गया। उस समय इसको परोक्षण विधि को उपयोगी माना गया। व्यक्तित्व के मापन से अनेक सैनिकों को संवेगात्मक समस्याओं का अध्ययन किया गया। इस प्रकार अमेरिकी सरकार ने रोर्शा परीक्षण की उपयोगिता स्वीकार की।

रोर्शा परीक्षण द्वारा व्यक्ति की बुद्धि, सामाजिकता (Sociobility), समायोजन (Adjustment). अभिवृत्तियों (Attitudes), संवेगात्मक सन्तुलन (Emotional Balance), व्यक्तित्व भिन्नता (Individual Difference) आदि बातों को आसानी से जानकारी की जा सकती है। इन तथ्यों की जानकारी बालकों के व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance) में सहायता पहुँचाती है।

क्रो तथा क्रो (Crow and Crow) का कथन है, “रोर्शा परीक्षण के धब्बों की व्याख्या करके विषयी अपने व्यक्तित्व का सम्पूर्ण चित्र प्रस्तुत कर देता है।”

(2) कथाबोध परीक्षण (Thematic Apperception Test)- इसे टी०ए०टी० (T.A.T.) भी कहते हैं। इस परीक्षण के आरम्भ का श्रेय मरे (Murrusy) को है। मरे ने कुछ चित्रों की सहायता से व्यक्तित्व के गुणों की जाँच की। मरे के ये चित्र अब भी प्रामाणिक माने जाते हैं। प्रयोज्य इन चित्रों को देखकर प्रक्षेपण के द्वारा तस्वीरों के पात्रों से अपना एकीकरण कर लेता है। इस परीक्षण में 30 चित्र होते हैं। इसमें एक रिक्त कार्ड भी होता है। प्रयोज्य के सम्मुख एक-एक चित्र प्रस्तुत किया जाता है। एक निश्चित समय के अन्दर उस चित्र पर उसे एक कथानक लिखना होता है। प्रक्षेपण के द्वारा प्रयोज्य न जानते हुए भी अपने व्यक्तित्व की अनेक विशेषताओं को व्यक्त करता है। उसको सोचने का अधिक अवसर नहीं मिल पाता है। इसी कारण कहानी में उसकी स्वाभाविक इच्छाएँ, संवेग तथा प्रतिक्रिया व्यक्त होती हैं। इन कथानकों के आधार पर प्रयोगकर्त्ता प्रयोज्य के व्यक्तित्व का विश्लेषण करता है। इस प्रकार प्रयोज्य को उन विशेषताओं की जानकारी हो जाती है जिन्हें वह छिपाना चाहता है। परन्तु यह परीक्षण गुणात्मक होता है और इसी कारण इसमें त्रुटियाँ होने की सम्भावना अधिक होती है। फिर भी, यदि इस परीक्षण का सावधानी से प्रयोग किया जाये तो प्रयोज्य के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताओं की जानकारी हो जाती है।

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Pankaja Singh

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