प्रकृतिवाद और आदर्शवाद में अन्तर | difference between naturalism and idealism in Hindi

प्रकृतिवाद और आदर्शवाद में अन्तर | difference between naturalism and idealism in Hindi

प्रकृतिवाद और आदर्शवाद

पिछले अध्याय में हमने शिक्षा में आदर्शवाद पर विचार प्रकट किया है उन्हें और शिक्षा में प्रकृतिवाद के सम्बन्ध में दिये गये विचारों को ध्यानपूर्वक देखने से ज्ञात होता है कि दोनों में अन्तर अधिक मिलता है। अस्तु, हमें भी दोनों से सम्बन्धित विचारों का तुलनात्मक अध्ययन कर लेना चाहिए जिससे दोनों सम्प्रदायों एवं विचारधाराओं के बारे में हमें ज्ञान प्राप्त हो जाये। इस दृष्टि से हम दोनों वादों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते हैं।

सैद्धान्तिक अन्तर

प्रकृतिवाद आदर्शवाद
(1) प्रकृतिवाद भौतिक पदार्थ पर बल भौतिक पदार्थ विचार उत्पन्न करते हैं। (1) आदर्शवाद केवल विचारों को महत्व देता है। पदार्थ भी विचारजन्य होते हैं।
(2) प्रकृतिवाद संसार की रचना भौतिक पदार्थ तथा गति से होती है यह मानता है। (2) आदर्शवाद भौतिक संसार काअस्तित्व नहीं मानता है। इसमें भौतिक जगत विचारों की छाया मात्र है।
(3) प्रकृतिवाद के अनुसार यह संसार एक यन्त्र है और निष्प्रयोजन क्रियाशील रहता है। (3) आदर्शवाद में संसार उद्देश्यपूर्ण माना गया है। प्रत्येक वस्तु में एक पूर्व स्थापित एकता पाई जाती है।
(4) प्रकृतिवाद मनुष्य को पशु सदृश्य मानता है। उसमें जैविक विकास क्रमशः होता है। (4) आदर्शवाद मनुष्य को ईश्वर का अंश एवं रूप मानता है। वह ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना है
(5) प्रकृतिवाद के अनुसार मनुष्य केवल स्थूल देह है। उसमें मन और आत्मा केवल शारीरिक क्रिया रूप में होता है। यह विचार रखता है। (5) आदर्शवाद की धारणा है कि मनुष्य का देह नश्वर है और उसमें इसकी आत्मा उसका संकल्प एक आध्यात्मिक वास्तविकता है।
(6) प्रकृतिवाद इंद्रिय अनुभव को चरम ज्ञान मानता है। (6) आदर्शवाद परमब्रह्मा में विश्वास रखता है और उसी का ज्ञान चरम ज्ञान है। इंद्रियानुभव क्षणिक एवं भ्रम पूर्ण है।
(7) प्रकृतिवाद सत्य, मूल्य आदर्श, बाद में विश्वास नहीं रखता है, केवल भौतिक प्रकृति ही सब कुछ है। (7) आदर्शवाद मूल्यों, आदर्शों, सत्य, सद्गुणों में विश्वास रखता है। 3 सास्वत मूल्य हैं- सत्यमं शिवमं सुंदरम।
(8) प्रकृतिवाद मूल प्रवृत्तियों, संवेगों, भावों उत्तेजनाओं को प्रमुखता देता है, इन्हीं की संतुष्टि में सच्चा जीवन मानता है। (8) आदर्शवाद मूल प्रवृत्तियों, संवेगों, भावों, उत्तेजनाओं की अपेक्षा अंत:ज्ञान अंतर्दृष्टि आत्मबोध पर जोर देता है। जीवन उच्च रहस्यों को समझने में होता है।
(9) प्रकृतिवाद वैज्ञानिक विधियों से सत्य ज्ञान की खोज करने पर बल देता है। सत्य की खोज में कारण-परिणाम के सिद्धांत का पालन करता है। (9) आदर्शवाद सत्य ज्ञान की खोज बौद्धिक तर्क के द्वारा करने के लिए जोर देता है क्योंकि इसमें चारों प्रत्ययों आधार लेते हैं।
(10) प्रकृतिवाद अंतिम सत्ता भौतिक पदार्थ को मानता है ऐसा पदार्थ इंद्रियगोचर एवं निरीक्षण- योग्य है। (10) आदर्शवाद परम और अंतिम सत्ता निरपेक्ष ब्रह्मा, ईश्वर, परमात्मा को मानता है। जिस की अनुभूति होती है। वह दृष्टिगोचर नहीं होता है।

शैक्षिक अंतर

प्रकृतिवाद आदर्शवाद
(1) प्रकृतिवाद शिक्षा को भौतिक एवं स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया मानता है। इसमें शारीरिक और भावात्मक दोनों का विकास होता है। (1) आदर्शवाद शिक्षा का तात्पर्य उस साधन से लेता है जिससे मनुष्य को ब्रह्मा की प्राप्ति, पूर्णता की प्राप्ति या मुक्ति की प्राप्ति होती है। इसमें आध्यात्मिक विकास भी शारीरिक विकास के साथ-साथ होता है।
(2) प्रकृतिवाद के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य हैं सभी शक्तियों का विकास, पर्यावरण से अनुकूलन और सामंजस्य, जीवन की तैयारी, जातीय विशेषताओं को ग्रहण करना। (2) आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य है मुक्ति की प्राप्ति, सत्यं, शिवं, सुंदरं की प्राप्ति, आत्मानुभूति और आत्म प्रकाशन, आध्यात्मिक, नैतिक और पवित्र जीवन का विकास।
(3) प्रकृतिवाद शिक्षा की आधुनिक विधियों का प्रयोग करता है जैसे क्रिया-विधि, खेल-विधि, स्वानुभव विधि, प्रत्यक्ष निरीक्षण विधि, ह्यूरिष्टिक विधि आदि। (3) आदर्शवाद शिक्षा की प्राचीन विधियों का प्रयोग करता है जैसे वाद- विवाद विधि, तर्क- विधि, विवेचन विधि, प्रश्नोत्तर विधि। यह विधियां क्रियात्मक एवं प्रयोगात्मक ना होकर मौखिक होती हैं। पाठ्य-पुस्तक विधि के लिए भी आदर्शवाद का सुझाव है।
(4) प्रकृतिवाद शिक्षा की प्रक्रिया में बालक को केंद्र मानता है तथा शिक्षक और पाठ्यक्रम को गौण स्थान देता। (4) आदर्शवाद शिक्षा की क्रिया में शिक्षक को केंद्र मानता है तथा बालक को शिक्षक के अधीन रखता है।
(5) प्रकृतिवाद शिक्षक को केवल सहायक, मित्र, पट को प्रकाशित करने वाला ही मानता है। शिक्षक शिक्षार्थी समान माने जाते हैं। (5) आदर्शवाद शिक्षक को महान मानता है। शिक्षार्थी मित्र नहीं बल्कि पिता सदृश्य होता है। दोनों के पद व स्थान में काफी अंतर होता है।
(6) प्रकृतिवाद विद्यालय को प्रकृति की गोद में रखना चाहता है जहां मनुष्य समाज के दोषों से मुक्त रहे, स्वतंत्र वातावरण हो और स्वाभाविक ढंग से बालक का विकास हो। (6) आदर्शवाद भी विद्यालय को शहर के कोलाहल से दूर रखना चाहता है परंतु शिक्षक द्वारा बनाए गए आदर्श वातावरण से पूर्ण रखना चाहता है। जहां बालक का आध्यात्मिक विकास हो, चिंतन-मनन में सुविधा मिले, शिक्षा की साधना की जा सके।
(7) प्रकृतिवाद अनुशासन के मुक्तिवादी सिद्धांत में विश्वास रखता है और प्राकृतिक परिणामों तथा सुखवादी नियमों के पालन द्वारा उसे स्थापित करता है। दमन और दंडका पूर्ण विरोधी प्रकृतिवाद है। यह अनियंत्रित स्वतंत्रता प्रदान करने के पक्ष में है। (7) आदर्शवाद दमनवादी प्रभाववादी सिद्धांत में विश्वास करता है। दमन और दंड के द्वारा अनुशासन स्थापित करने को करता है। सुखवाद के स्थान पर त्याग की भावना पर जोर देता है। यह नियंत्रण पर बल देता है।
(8) प्रकृतिवाद सह-शिक्षा पर जोर देता है जिससे स्वाभाविक विकास संभव होता है। विद्यालय-व्यवस्था में भी सुधार होती है। (8) आदर्शवाद सह-शिक्षा का विरोधी तो नहीं है परंतु सुरेश स्वाभाविक विकास में बाधक मानता है। इससे शिक्षा-व्यवस्था में अड़चन होती है।
(9) प्रकृतिवाद शिक्षा व्यवस्था में विद्यार्थियों को भी उचित भाग, अधिकार और उत्तरदायित्व देता है। (9) आदर्शवाद शिक्षा- व्यवस्था मैं विद्यार्थी को भाग, उत्तरदायित्व और अधिकार देने के पक्ष में नहीं है।
(10) प्रकृतिवाद शिक्षा में सहपाठ्य-क्रमीय क्रियाओं को महत्वपूर्ण स्थान देता है, अन्य विषयों के समान ही उपयोगी मानता है। (10) आदर्शवाद सहपाठ्यक्रमीय क्रियाओं को महत्वपूर्ण नहीं मानता। इन्हें शिक्षा का अंग नहीं मानता है।
(11) प्रकृतिवाद शिक्षण सामग्री के प्रयोग के लिए जोड़ देता है, इससे शिक्षा सरल होती है ऐसा विश्वास करता है। (11) आदर्शवाद सहायक सामग्री का प्रयोग नहीं करता है। सूक्ष्म माध्यम से शिक्षा देना श्रेयस्कर है।
(12) प्रकृतिवाद व्यावहारिक एवं प्रयोगात्मक शिक्षा से जीवन का सच्चा सुख और आनंद देने पर जोर देता है। (12) आदर्शवाद सूक्ष्म विचारों के द्वारा ही जीवन का सच्चा सुख-आनंद देने पर जोर देता है। कल्पना एवं चिंतन मात्र से ही यह स्थिति आती है।

निष्कर्ष

प्रकृतिवाद पर अंत में विचार करते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि प्रकृतिवाद वह दार्शनिक विचारधारा है जो प्रकृति तथा भौतिक पदार्थ को वास्तविक एवं परम सत्ता मानती है और इसी से जगत का निर्माण हुआ है। इसके लिए प्रकृति से बढ़कर अन्य कोई वस्तु नहीं है और न उसका अस्तित्व ही है। यह विचारधारा आदर्शवादी विचारधारा की प्रतिक्रिया रूप में उत्पन्न हुई। प्रकृतिवाद मनुष्य की आध्यात्मिकता में नहीं बल्कि उसकी पाशविकता और यांत्रिकता मैं विश्वास करता है। शिक्षा में प्रकृतिवाद का अपना एक विशेष स्थान एवं महत्व है और इसने शिक्षा को एक नया मोड़ दिया है इसे सभी मानते हैं। इसने यद्यपि शिक्षा के उद्देश्य आदर्शवाद के समान नहीं बनाए फिर भी नई शिक्षा की विधियां दी जिनका प्रयोग आधुनिक समय में हो रहा है। इस प्रकार से प्रकृतिवाद ने विद्यार्थी, उसकी क्रियाशीलता, उसकी स्वतंत्रता एवं जन समूह तथा स्त्री शिक्षा को प्रगतिशील बनाने में श्रेयस्कर सहयोग दिया। इसका महत्व आदर्शवाद की ही भांति माना जाता है। जो कुछ कमी इसमें दिखाई देती है उसके लिए प्रकृतिवाद का मेल आदर्शवाद के साथ कर देना चाहिए जैसा कि कहा गया है की विज्ञान तथा सामान्य बुद्धि के संगठन से मनुष्य को वास्तविकताओं की खोज में सहायता मिलेगी।

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