इतिहास

प्राचीन भारतीय राज्यों के लक्ष्य | प्राचीन भारतीय राज्यों के उद्देश्य | प्रभुता का सिद्धान्त

प्राचीन भारतीय राज्यों के लक्ष्य | प्राचीन भारतीय राज्यों के उद्देश्य | प्रभुता का सिद्धान्त

प्राचीन भारतीय राज्यों के लक्ष्य

राज्य के लक्ष्य या उद्देश्य एवं प्रभुता का सिद्धान्त

राज्य का क्या लक्ष्य एवं उद्देश्य होना चाहिए? इस पर प्राचीन काल से ही मनीषी बराबर चिन्तन एवं विचार करते रहे हैं। वैसे राज्य के उद्देश्य पर वैदिक साहित्य में कोई विशेष प्रकाश नहीं डाला गया है, किन्तु इस बात और तथ्य को सभी ने स्वीकार किया है कि राज्य की स्थापना, सुरक्षा, न्याय और प्रशासन व्यवस्था को स्थापित करना राज्य का परम कर्त्तव्य है। अथर्ववेद में राज्य के आदर्श रूप छान्दोग्य उपनिषद में राजा के कर्त्तव्य की झलक हमें प्राप्त होती है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि नैतिक उन्नति, भौतिक उन्नति, ज्ञान का संरक्षण एवं आचार-विचार को ठीक करना राज्य का परम कर्तव्य है। साथ ही राजा और राज्य का यह परम कर्तव्य है कि वह जन-समुदाय का धर्म, अर्थ एवं काम की प्राप्ति के लिए अवसर एवं वातावरण प्रदान करें।

डा० अल्तेकर के शब्दों में-

“The state was thus expected to maintain peace and order and promote moral material and acsthetic progress of society.”

हम यह देखते हैं कि राज्य के विकास एवं विस्तार के साथ-साथ उसके लक्ष्य और कर्तव्य भी बढ़ते गए। आज के परिवेश में राज्य के लक्ष्य और उद्देश्यों को इस प्रकार रखा जा सकता है-

(1) प्रजा का सर्वाङ्गीण कल्याण-

वेदों के अनुसार समाज में शांति, सुव्यवस्था सुरक्षा और न्याय ही राज्य के मूल उद्देश्य थे। राजा को वरुण के समान धृतव्रत नियम और व्यवस्था संरक्षक साधुओं का प्रतिपालक, दुष्टों को दण्ड देने वाला होना चाहिये। साथ ही प्रजा की नैतिक उन्नति के साथ भौतिक उन्नति करना भी शासन व्यवस्था का परम कर्त्तव्य था। विभिन्न साक्ष्यों से यह भी प्रमाणित होता है कि वेदकालीन राज्य में दूध और मधु की धार बहती थी। इस प्रकार हम देखते हैं वैदिक काल से 600 ई० पू० तक प्रजा का सर्वाङ्गीण कल्याण ही राज्य का मुख्य लक्ष्य माना जाता था।

(2) धर्म, अर्थ और काम का संवर्धन-

धर्म, अर्थ और काम के संवर्धन का अर्थ किसी सम्प्रदाय या मत विशेष का पक्षपात् नहीं वरन् सदाचार और सुनीति के प्रोत्साहन से जनता में सच्ची धार्मिक भावना और सदाचरण की प्रकृति का संचार करना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये राज्य द्वारा धर्मों और मतों को प्रोत्साहन देना परम आवश्यक माना जाता है। अर्थ संवर्धन का मुख्य साधन कृषि, उद्योग और वाणिज्य की प्रगति, राष्ट्रीय साधनों का विकास, कृषि विस्तार के लिये सिंचाई बाँध और नहरों का प्रबन्ध एवं खानों का खनन तथा खनिज पदार्थ की प्राप्ति था। काम संवर्धन शांति और सुव्यवस्था स्थापित करके प्रत्येक नागरिक को बिना विघ्न, बाधा के न्यायपूर्ण जीवन-सुख भोगने का अवसर देना तथा संगीत, नृत्य, चित्रकला, स्थापत्य और वास्तुकला आदि ललित कलाओं के पोषण से देश में सुरुचि और सुसंस्कृति का प्रचार करना राज्य का प्रमुख उद्देश्य था।

इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राचीन भारत में शान्ति-सुव्यवस्था की स्थापना और जनता का सर्वाङ्गीण नैतिक, भौतिक और सांस्कृतिक विकास ही राज्य का परम उद्देश्य था। इस लक्ष्य की प्राप्ति में जब सफलता प्राप्त होती तब समाज के हर एक व्यक्ति के सर्वागीण व सम्पूर्ण विकास के लिये काफी अवसर मिलता था। यही नहीं सर्वभूत हित का जो ध्येय हिन्दू संस्कृति ने व्यक्ति और समाज के सामने रखा है उसका लक्ष्य जिस प्रकार धार्मिक व आध्यात्मिक उन्नति था, उसी प्रकार आर्थिक व भौतिक प्रगति भी था।

अतः हम कह सकते हैं कि हिन्दू राजशास्त्र के अनुसार राज्य का उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष का संवर्धन है। धर्म के संवर्धन की दृष्टि से राज्य सदाचार और सुनीति में सहायक है। जो इनका पालन स्वेच्छा से नहीं करते, उनके लिये राज्य दण्ड का उपयोग करता है। इसी प्रकार अर्थ संवर्धन की दृष्टि से राज्य प्रजा के लिये सुखी जीवन व्यतीत करने का अवसर देता है। इन तीनों के संवर्धन से स्वयं मोक्ष का संवर्धन होता है। कौटिल्य के शब्दों में, राजा का कर्त्तव्य है कि वह प्रजा को धर्म पर चलाये और अधर्म के मार्ग से भ्रष्ट न होने दे क्योंकि प्रजा को धर्म और कर्म में प्रवृत्ति रखने वाला राजा लोक और परलोक में सुखी रहता है। राजा का यह कर्त्तव्य राज्य का सर्वोपरि लक्ष्य एवं उद्देश्य है।

इतिहास – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!