वित्तीय प्रबंधन

पूँजी बजटन का अर्थ | पूँजी बजटन के उद्देश्य | पूँजी बजटन की आवश्यकता अथवा महत्व

पूँजी बजटन का अर्थ | पूँजी बजटन के उद्देश्य | पूँजी बजटन की आवश्यकता अथवा महत्व | Meaning of capital budgeting in Hindi | Objectives of Capital Budgeting in Hindi | need or importance of capital budgeting in Hindi

पूँजी बजटन का अर्थ

Meaning of Capital Budgeting

पूँजी बजटन से अभिप्राय पूँजी प्राप्त करने के लिये किन-किन साधनों की व्यवस्था की जाये या पूँजी किन साधनों से जुटाई जाये, के लिये बजट से नहीं है वरन् पूँजी की किस प्रकार विनियोजित किया जाये ताकि प्रत्याय की दर अधिकतम हो, के बारे में बजट बनाने से है। दूसरे शब्दों में, पूँजी बजटन एक प्रकार से पूँजीगत व्यय बजटन (Capital Expenditure Budgeting) है। यह एक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत उन परियोजनाओं में धन लगाने अथवा न लगाने के बारे में निर्णय किया जाता है। जिनकी लागतें व लाभ दीर्घकाल तक उदय और प्राप्त होती है। पूँजी बजटन या पूँजी व्यय निर्णय की प्रमुख परिभाषायें नीचे दी गई हैं-

(1) चार्ल्स टी० हार्नग्रीन के शब्दों में, “पूँजी बजटन प्रस्तावित पूँजी व्ययों को करने तथा उनकी वित्त पूर्ति की दीर्घकालीन आयोजन है।’

(2) प्रो0 इन्द्र मोहन पाण्डेय के अनुसार, पूँजी बजटन निर्णय भावी लामों के. सम्भावित प्रवाह की प्रत्याशा में संस्था द्वारा अपने चालू कोषों को दीर्घकालीन क्रियाओं में कुशलतापूर्वक विनियोजित करने के निर्णय के रूप में पभिाषित किया जा सकता है।”

(3) आर० एम० लिन्च के शब्दों में, “पूँजी बजटन में संस्था की दीर्घकालीन लाभप्रदता (विनियोग पर प्रत्याय) को अधिकतम करने के उद्देश्य से उपलब्ध पूंजी के विस्तार का नियोजन सम्मिलित है।”

पूँजी बजटन की उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि पूँजी बजटन पूँजी के दीर्घकालीन नियोजन से सम्बन्धित एक प्रक्रिया है। इसके अन्तर्गत पूँजीगत विनियोग की भावी लाभोत्पादकता का अध्ययन करना, उसकी पूँजी लागत की गणना करके अर्जन और लागत की तुलना करना तथा अंत में उस विनियोग के करने अथवा न करने के बारे में अन्तिम निर्णय लेना सम्मिलित है।

पूँजी बजटन के उद्देश्य

Objects of Capital Budgeting

पूँजी बजट निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिये बनाया जाता है-

(1) पूँजी व्ययों पर नियन्त्रण- अन्य व्यावसायिक बजटों की भाँति बजट का भी एक प्रमुख उद्देश्य संस्था के विभिन्न विभागों द्वारा किये जाने वाले पूँजी व्ययों को नियन्त्रित करना है। इसमें वास्तविक व्ययों की पूर्व निर्धारित व्ययों से तुलना करके इन पर प्रभावकारी नियन्त्रण रखा जा सकता है।

(2) पूँजी व्ययों के लिये वित्त व्यवस्था- पूँजी बजट बनाने के विभिन्न सम्पत्तियों पर भविष्य में किये जाने वाले व्ययों की पूर्व जानकारी मिल जाती है। जिससे संस्था के प्रबन्धक समय पर उस राशि के लिये उचित व्यवस्था कर सकते हैं।

(3) भूतकालीन निर्णयों का विश्लेषण- इस बजट की सहायता से गत अवधि में किये गये व्ययों का विश्लेषण किया जाता है जिससे यह जाना जा सकता है कि वे निर्णय किस सीमा तक सही थे।

(4) प्रस्तावित पूँजी व्ययों का मूल्यांकन- इस बजट की सहायता से बजट अवधि में संस्था द्वारा विभिन्न सम्पत्तियों के लिये किये जाने वाले व्ययों का मूल्यांकन किया जाता है। ऐसा करने से प्रत्येक व्यय की सार्थकता औंकी जा सकती है।

(5) प्राथमिकता निर्धारित करना- प्राथमिकता निर्धारित करने का आशय विभिन्न परियोजनाओं को उनकी लाभप्रदता के क्रम में विन्यासित (arrange) करना है। पूँजी बजट द्वारा ऐसी विभिन्न पूंजी परियोजनाओं में निर्धारित की जाती है तथा प्रबन्ध इनमें सबसे अधिक लाभप्रद योजना का चुनाव कर लेता है।

(6) पूँजी व्ययों में समन्वय- पूँजी बजट बनाने उद्देश्य पूंजी व्ययों में समन्वय स्थापित करना भी है। इसकी सहायता से विभिन्न विभागों द्वारा किये जाने वाले पूँजी व्ययों में सन्तुलन बिठाया जा सकता है।

(7) स्थायी सम्पत्तियों का मूल्यांकन- बजट अवधि के अंत में बनाये जाने वाले चिट्ठे के लिये स्थायी सम्पत्तियों के मूल्यांकन समंक पूँजी बजट से उपलब्ध हो जोते हैं। इससे प्रक्षेपित चिट्ठा आसानी से बनाया जा सकता है।

पूँजी बजटन की आवश्यकता अथवा महत्व

(Need or Importance of Capital Budgeting)

प्रबन्धक सुनियोजित ढंग से पूँजी व्ययों के सम्बन्ध में विभिन्न वैकल्पिक परियोजनाओं की लाभदायकता की गणना करते हैं और तत्पश्चात् ही सर्वाधिक उपयुक्त पूँजीगत व्यय योजना को स्वीकृति प्रदान करते हैं। अतः पूंजीगत व्यय के सम्बन्ध में बजट बनाना इसलिये आवश्यक है; क्योंकि पूँजीगत व्यय के फलस्वरूप वृहत मात्रा में धनराशि इस प्रकार की परियोजना में फँस जाती है जिसे सुगमता से शीघ्र ही निकाला नहीं जा सकता है। निम्नांकित कारण पूँजीगत व्ययों के बजट बनाने के महत्व को प्रदर्शित करते हैं-

(1) अधिकतम लाभार्जन (Maximisation of Profits) पहले से पूँजीगत व्यय बजट बनाने से व्यवसाय अपने लाभों को अधिकतम कर सकता है जो कि किसी भी व्यावसायिक संस्था का प्रमुख उद्देश्य होता है। लाभ में वृद्धि अनावश्यक व्ययों पर नियन्त्रण व सम्पत्तियों का अधिकतम क्षमता पर उपयोग द्वारा सम्भव होती है।

(2) बजटन में सुविधा (Easy Budgeting) – पूँजीगत व्ययों का बजट पहले तैयार करने  एक लाभ यह है कि अन्य बजट आसानी से तैयार किये जा सकते हैं। उदाहरण के लिये, यदि यह निश्चित हो जाये कि 50,000 रु० की एक नई मशीन उत्पादन के लिये क्रय की जानी है तो उत्पादन, उत्पदन लागत तथा रोकड़ बजट तैयार करने में सुविधा हो जायेगी, क्योंकि एक लक्ष्य निर्धारित हो जायेगा।

(3) लागत नियन्त्रण (Cost Control) – पूँजीगत व्यय कितना किया जाये और कब किया जाये, यह निर्धारित करने से पूर्व लागत-लाभ तुलना करनी पड़ती है। अतः व्यवसाय यह निरन्तर प्रयास करता रहता है कि जितनी लागत सोची गई है उससे अधिक न हो। इस प्रकार लागत पर नियन्त्रण स्वतः ही हो जाता है।

(4) आदर्श विनियोग (Ideal Investment) – विनियोग कितनी राशि का हो और किस स्थान पर हो, यह पूँजीगत व्यय बजट का आवश्यक अंग है। इसलिये स्थायी सम्पत्तियों में इससे अधिक या कम विनियोग नहीं हो पाता। स्थायी सम्पत्तियों के पूर्ण सदुपयोग से व्यावसायिक लाभदायकता में निश्चित वृद्धि होती है।

(5) किस्म नियन्त्रण (Quality Control) – विभिन्न विनियोग परियोजनायें यह इंगित करती हैं कि किस प्रकार की वस्तु निर्मित की जायेगी अथवा किस प्रकार की सम्पत्ति क्रय की जाये। इससे वस्तु की किस्म पर नियन्त्रण रखने में सहायता मिलती है क्योंकि उसी किस्म या निर्धारित स्तर की सम्पत्ति का क्रय किया जायेगा।

(6) उचित एवं समयातीत निर्णय (Proper and Timely Decision)- पूँजगत व्ययों का बजट तैयार करने से प्रबन्धकों को सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि उन्हें व्यवसाय के परिचालन में प्रतिदिन विशेष कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता तथा व्यवसाय सुचारु रूप से कुशलतापूर्वक चलता रहता है। व्यवसाय में उच्च प्रबन्धकों का मार्गदर्शन सबसे अधिक इसी बात के लिये आवश्यक है कि पूँजी को किस प्रकार विनियोजित किया जाए और यदि इस समस्या के सम्बन्ध में उपयुक्त समय पर उपयुक्त निर्णय लेने में वे सक्षम हो जाते हैं तो शेष निर्णय भी उपयुक्त समय पर और सही लिये जा सकते है।

(7) जोखिम (Risk) – बड़ी मात्रा में विनियोग करने में यह जोखिम रहती है कि यदि लाभ न मिले तो कोई बात नहीं, लेकिन यदि विनियोग की राशि ही डूब जाये तो व्यवसाय को बड़ा धक्का लगेगा। अतः विनियोजन प्रत्येक पहलू को पूर्णतया सोच-विचार करके किया जाना आवश्यक है। पूँजी बजटन इस कार्य में बड़ा सहायक होता है।

(8) लोचशीलता की कमी (Lack of Flexibility)- किसी भी पूँजीगत व्यय योजना को क्रियान्वित करने के बाद बदलना आसानी से सम्भव नहीं होता। यदि इसे बन्द किया जाये या इसमें परिवर्तन किया जाय तो व्यवसाय को वित्तीय हानि होने की सम्भावना रहती है। इसलिये बजट बनाने की आवश्यकता है।

(9) धन की व्यवस्था (Acquisition of Funds) – जैसा कि पहले बतलाया गया है कि पूँजीगत व्यय के अन्तर्गत वृहत् मात्रा में धनराशि का विनियोग निहित होता है। अतः इसके लिये वृहत धनराशि की व्यवस्था करना भी पहले से आवश्यक है जो कि पूर्व-नियोजन बिना सम्भव नहीं है।

निष्कर्ष :

सारांश रूप में, हम यह कह सकते हैं कि पूँजी बजटन प्रबन्धकों के लिये एक ऐसी तकनीकी है जो उन्हें अपने मुख्य कार्यों – नियोजन, निर्णयन तथा नियन्त्रण को निष्पादित करने में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करती है। प्रबन्धक यदि चाहे तो इस यंत्र का भली प्रकार प्रयोग करके व्यवसाय को उच्चतम कोटि की सफलता तक पहुँचा जा सकते हैं।

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Pankaja Singh

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