संगठनात्मक व्यवहार

परिवर्तनों के प्रबन्ध की आवश्यकता | सांगठनिक परिवर्तनों के प्रकार

परिवर्तनों के प्रबन्ध की आवश्यकता | सांगठनिक परिवर्तनों के प्रकार | Need for management of changes in Hindi | Types of Organizational Changes in Hindi

परिवर्तनों के प्रबन्ध की आवश्यकता

(Need for the Management of change)

परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। वास्तव में बाह्यण्ड का प्रत्येक भौतिक-अभौतिक पदार्थ परिवर्तनों की द्रुत प्रक्रिया से गुजर रहा है। हमें जीवन में चारों ओर परिवर्तन होता दिखायी पड़ता है। ऋतुयें बदलती हैं, समय बदलता है, पर्यावरण बदलता है और यहाँ तक कि मनुष्य भी बदल जाता है। सभ्यतायें, सांस्कृतियाँ, आचार-विचार, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज, जीवन-शैलियाँ धार्मिक विश्वास, राजनैतिक विचारधरायें, तकनीकी आदि में व्यापक परिवर्तन हो रहे हैं। परिवर्तन का यह अमर चक्र हमें औद्योगिक एवं व्यावसायिक जगत में भी स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। देखा जाये तो औद्योगिक एवं व्यावसायिक जगत में होने वाले परिवर्तन प्राकृतिक परिवर्तनों की तुलना में अधिक स्पष्ट, तीव्र और क्रांतिकारी होते हैं। वस्तुतः परिवर्तनों की द्रुत रफ्तार एवं उनसे उत्पन्न दूरगामी प्रभावों ने उनके प्रबन्ध की आवश्यकता को अनुभव कराया है।

विलियार्ड मेरीप्डू (Willard Marrihue) के शब्दों में, “वर्तमान गतिशील व्यवसाय में यदि कोई चीज स्थायी है, तो यह परिवर्तन ही है। परिवर्तन अथवा नयाचार प्रतिस्पर्धा की सन्तान है। अत्यधिक प्रतिस्पर्धी कार्य प्रणालियों में जो एक-दूसरे के लिये कार्य कर रही हैं, परिवर्तन पूर्णतः अनिवार्य है। कोई भी व्यवसाय स्थैतिक नहीं रह सकता है। इसे परिवर्तन के पहिये पर आगे बढ़ना चाहिये, अन्यथा यह पीछे की ओर चला जायेगा।” इसी सन्दर्भ में रिचर्ड के० एलन (Richard K. Allen) ने भी कहा है कि, “एक संगठन में परिवर्तन इतना अनवार्य है कि संगठन और उसमें कार्यरत व्यक्तियों को समय के साथ या तो आगे बढ़ना होगा अथवा पीछे हटना होगा। वे एक लम्बे समय तक स्थिर नहीं रह सकते हैं।” इस प्रकार जब परिवर्तन सुनिश्चित एवं अनिवार्य है तो उनके प्रबन्ध में प्रवन्धकों को महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना चाहिये ताकि परिवर्तनों का उपयोग संगठन एवं उसमें कार्यरत व्यक्तियों के लाभ हेतु किया जा सके। संगठन एवं उसमें कार्यरत व्यक्ति के विकास, उनके लाभ एवं भावी कल्याण के लिये ही आज परिवर्तनों के सुनियोजित प्रबन्ध की आवश्यकता महसूस हो रही है। इसके अतिरिक्त परिवर्तनों के परिणामों को संगठन एवं उसमें कार्यरत व्यक्ति के अनुकूल बनाने के लिये भी परिवर्तनों का नियोजन एवं नियन्त्रण करना आवश्यक है।

सांगठनिक परिवर्तनों के प्रकार

(Types of Organisational Changes)

सांगठनिक परिवर्तनों से आशय संगठन संरचना एवं व्यवस्था में समय-समय पर होने वाले विभिन्न परिवर्तनों से है। ऐसे परिवर्तन संगठन के लक्ष्यों, संरचनाओं, कार्यों, कार्य प्रणालियों, व्यक्तियों, उपकरणों, उत्पादों तथा प्रौद्योगिक आदि क्षेत्र में आते रहते हैं जिससे सम्पूर्ण संगठन प्रभावित होता है और परिवर्तन के दौर से गुजरता है। सांगठनिक परिवर्तन कई प्रकार के हो सकते हैं, जिनमें से निम्नलिखित प्रमुख हैं-

(1) यन्त्र तथा मशीन आदि में परिवर्तन (Changes in Plant and Machinery etc.) – विज्ञान एवं तकनीक की प्रगति के साथ-साथ नयी-नयी मशीनों एवं उपकरणों का आविष्कार हो रहा है। पुरानी मशीनों का स्थान नवीन परिष्कृत आधुनिक एवं स्वचालित मशीने लेती जा रही हैं। पुरानी मशीन के स्थान पर नवीन मशीन के प्रतिस्थान से भी संगठन में कई प्रकार के परिवर्तन आते हैं।

(2) कार्य के घण्टों में परिवर्तन (Changes in Working Hours)- उत्पाद की माँग में वृद्धि या कमी, श्रम कानून की अपेक्षाओं, विद्युत पूर्ति तथा श्रमिक नेताओं के साथ हुये समझौत के फलस्वरूप काम के घण्टों में परिवर्तन की आवश्यकता भी पड़ सकती है। काम के घण्टों में परिवर्तन के संगठन पर अन्य दूरगामी परिणाम भी होते हैं।

(3) कार्यविधि में परिवर्तन (Changes in Working Procedure) – निरन्तर शोध, अध्ययन एवं अनुसंधान से कार्यविधि में भी सुधार एवं परिवर्तन होते रहते हैं जिनका भी सम्पूर्ण सांगठन व्यवस्था का व्यापक प्रभाव पड़ता है।

(4) व्यक्तियों में परिवर्तन (Changes in People)- ये ऐसे सांगठनिक परिवर्तन हैं  जो संगठन में कार्यरत व्यक्तियों के स्थानान्तरण, छंटनी, सेवामुक्ति, सेवानिवृत्ति, पदोन्नति तथा नव- नियुक्तियों आदि के रूप में संगठन संरचना में प्रकट होते हैं। कार्यविधि सम्बन्धी परिवर्तन भी ऐसे सम्बन्धी परिवर्तन को जन्म देते हैं। कई बार केन्द्रीयकरण तथा विकेन्द्रीकरण की नीतियाँ तथा अभिप्रेरण व्यवस्था ऐसे परिवर्तनों को जन्म देती है।

(5) प्रौद्योगिकी में परिवर्तन (Changes in Technology)- प्रौद्योगिकी सम्बन्धी परिवर्तन विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ जन्म लेते हैं। तकनीकी और प्रौद्योगिकी परिवर्तन संगठनात्मक कार्यों, रचनाओं, मानवीय समबन्धों तथा व्यक्तियों में भी परिवर्तन लाते हैं।

(6) संरचना में परिवर्तन (Changes in Structure)- ऐसे परिवर्तन सांगठनिक संरचना एवं ढाँचे में बदलाव लाते हैं। अधिकार सत्ता के केन्द्रीयकरण एवं विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति में परिवर्तन होने, अन्तर्यव्यक्ति सम्बन्धों में परिवर्तन, सन्देशवाहन प्रणालियों में होने वाले बदलाव तथा कार्य-प्रवाहों में हुये रद्दोबदल के रूप में संगठन संरचना सम्बन्धी पर परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं।

(7) अनौपचारिक सम्बन्धों में परिवर्तन (Changes in informal Relation)- संगठन में कार्य करते-करते कर्मचारियों में अनौपचारिक सम्बन्धों का भी विवाद हो जाता है। यद्यपि ऐसे अनौपचारिक सम्बन्ध कर्मचारियों के जीवन के महत्वपूर्ण अंग होते हैं। कभी-कभी अनौपचारिक सम्बन्धों में भी न्यूनाधिक परिवर्तन आने लगते हैं। इन्हें समाजशास्त्रीय परिवर्तन (Sociological Changes) के नाम से भी जाना जाता है।

(8) कार्य के परिवर्तन (Changes in Tak) – कार्य सम्बन्धी परिवर्तन संस्था के कार्यों एवं उपकार्यों में लक्ष्यों तथा तकनीकी के बदलाव के साथ-साथ आते रहते हैं। इसके अतिरिक्त कार्य संवृद्धि (Job Enrichment) को भी इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। काम में विस्तार करने, उपकार्यो की संवृद्धि बढ़ाने तथा कार्य पर उत्तरदयित्व में वृद्धि करने, आन्तरिक परिवर्तनों को संवृद्धि कहते हैं। कार्य संवद्धि सम्बन्धी परिवर्तन कर्मचारियों से अच्छा परिणाम (Response) प्राप्त करते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि कार्य संवृद्धि से कार्य में नीरसता (Monotony) तथा हीनता की भावना समाप्त होती है तथा कर्मचारियों को विकास का अवसर मिलता है।

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Pankaja Singh

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