पंच महायज्ञ | पंच महायज्ञ का महत्व | Panch Mahayagya in Hindi | Importance of Panch Mahayagya in Hindi
पंच महायज्ञ
भारतीय पारिवारिक प्रणाली में संयुक्त पारिवारिक जीवन को विशेष महत्व प्राप्त था। इस प्रकार के पारिवारिक जीवन में परिवार के सभी सदस्य परिवार की समृद्धि तथा उन्नति हेतु प्रयत्नशील रहते थे। ये प्रयत्न केवल भौतिक सुख प्राप्ति के लिये ही नहीं होते थे, अपितु उनका उद्देश्य धार्मिक, आध्यात्मिक तथा नैतिक समृद्धि प्राप्त करना भी था। मनु ने इन पारिवारिक कर्तव्यों के अन्तर्गत पंच महायज्ञ करने का प्रतिपादन किया। प्रत्येक परिवार के लिये पंच महायज्ञ करने का बड़ा महत्व था। ये यज्ञ परिवार की सहयोगी, सहिष्णु, नैतिकता तथा अपने पूर्वजों के प्रति आदर की प्रवृत्ति के परिचायक थे। पंच महायज्ञों का वर्णन निम्नलिखित है-
(1) ब्रह्म यज्ञ- यह यज्ञ ब्रह्मचर्य जीवन के उपरान्त वेदाध्ययन से विमुख न हो जाने की आशंका के कारण किया जाता था। इस यज्ञ के अन्तर्गत प्रत्येक गृहस्थ गृहस्थाश्रम में रहते हुये भी वेदों के अध्ययन द्वारा अपने ज्ञान में वृद्धि करता था। जो व्यक्ति इस यज्ञ को नियमित रूप से करता था उसे समाज में श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता था।
(2) पितृ यज्ञ- अपने मृत पिता तथा पूर्वजों के प्रति आदर भाव प्रदर्शित करने तथा उनको तृप्त करने के लिये पितृ यज्ञ का सम्पादन आवश्यक था।
(3) देव यज्ञ- इस यज्ञ द्वारा प्रज्वलित अग्नि में घृत, मधु तथा सुगन्धित सामग्री डाल कर देवताओं की प्रार्थना की जाती थी। यह आहुति विवाहित पति-पत्नी द्वारा जीवन-पर्यन्त दी जाती थी। एक प्रकार से यह यज्ञ विवाह के समय प्रज्वलित अग्नि को निरन्तर प्रदीप्त करने का प्रतीक था। पति-पत्नी में से किसी की मृत्यु होने पर उनकी दाह क्रिया इसी अग्नि से की जाती थी।
(4) भूत यज्ञ- भूत यज्ञ का उद्देश्य सृष्टि के समस्त जीवधारियों की निरन्तरता तथा उन्हेंभोजन देना था। इस यज्ञ का सम्पादन करने वाला संसार के समस्त प्राणियों की रक्षा में तत्पर रहने वाला माना जाता था।
(5) मनुष्य यज्ञ- इस यज्ञ का सम्पादन किया जाना इस भावना पर आधारित था कि प्रत्येक मनुष्य केवल अपने लिये ही जीवित नहीं रहता, वरन वह समस्त मानव जाति के कल्याण का आकांक्षी है। इस यज्ञ के अन्तर्गत, द्वार पर आने वाले प्रत्येक व्यक्ति का स्वागत, सहायता तथा सत्कार किया जाता था।
पंच महायज्ञों का महत्व
पंच महायज्ञ भारतीय जीवन की अद्भुत महात्ता तथा गौरव के परिचायक है। इन यज्ञों द्वारा आर्यजनों ने अपने भौतिक तथा आध्यात्मिक जीवन का समन्वय किया। इन यज्ञों द्वारा पारिवारिक सुख-शान्ति तथा समृद्धि को बनाये रखने की भावना पैदा होती थी।
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