मानव संसाधन प्रबंधन

निष्पादन मूल्यांकन की परम्परागत विधियां | Traditional methods of Performance Appraisal in Hindi

निष्पादन मूल्यांकन की परम्परागत विधियां | Traditional methods of Performance Appraisal in Hindi

निष्पादन मूल्यांकन की परम्परागत विधियां

परम्परागत विधियां (Traditional methods)

(1) गुणानुसार विधि (Ranking Method) –

अंकन विधि अति प्राचीन व परम्परागत विधि है। इस विधि में कर्मचारियों के सम्बन्ध में कुछ विशिष्टताओं का चयन किया जाता है और उन चयनित विशिष्टताओं के आधार पर उनका अंकन किया जाता है। चयनित विशेषताओं को आधार मानकर मूल्यांकक (Appraiser) से अपने अधीनस्थों के सम्बन्ध में अपना मत व्यक्त करने के लिए कहा जाता है। विभिन्न उपक्रमों में प्रयुक्त अंकन सोपान विधि समान नहीं होती है, न ही उन विशिष्टताओं में समानता पाई जाती है जिसके आधार पर मूल्यांकन की व्यवस्था की जाती है योग्यता अंकन कर्मचारियों के कार्य निष्पादन का एक महत्वपूर्ण उपकरण है।

(2) युगल तुलना विधि (Paired Comparison Method) –

युगल तुलना विधि में दो कर्मचारियों की तुलना की जाती है। इसमें प्रत्येक कर्मचारी के कार्यों की तुलना समूह के दूसरे कर्मचारियों के साथ की जाती है। अंकन सोपान विधि में कर्मचारी के पृथक् मूल्यांकन के कारण सदैव यह आशंका बनी रहती है कि मूल्यांकक प्रायः सभी कर्मचारियों का एक सा मूल्यांकन करेगा और यह कर्मचारियों के पक्ष में ही होगा। युगल तुलना विधि में अलग-अलग युगल (Pairs) का गठन किया जाता है और उसमें यह निर्धारित किया जाता है कि प्रत्येक युगल में कौन-सा कर्मचारी सबसे अच्छा है। उदाहरण के लिए, मान लिया जाए X, Y और Z एक ही समूह के कर्मचारी हैं। इसमें तीन युगल का गठन किया जा सकता है, X का Y का Z के साथ तथा Y का Z के साथ।

इसमें युगल की संख्या का निर्धारण निम्नलिखित सूत्र के आधार पर तुलना की जा

सकती है: n (n-1)/2 , जहां n का अर्थ कर्मचारियों की संख्या से है।

तुलना के लिए प्रत्येक युगल के लिए अलग-अलग कार्ड बना लिए जाते हैं। प्रत्येक कार्ड पर एक-दूसरे की तुलना अंकित की जाती है। मूल्यांकक प्रत्येक कार्ड पर अंकन का अध्ययन करता है। इससे प्रत्येक व्यक्ति के समग्र अंकन या क्रम प्राप्त हो जाता है। युगल तुलना विधि अधिक विश्वसनीय अंकन सूचना देती है और यह काफी सरल भी है, किन्तु यह छोटे समूह के लिए उपयुक्त है। जब इस व्यवस्था में कर्मचारियों की संख्या बढ़ जाती है और अधिक युगल की स्थापना हो जाती है तब यह कठिन हो जाती है।

  1. रेखीय सोपान विधि (Graphic Scale Method) –

रेखीय सोपान विधि या ग्राफीय स्केल विधि सामान्यतः अधिक प्रयोग की जाने वाली विधि है। यह अत्यन्त प्राचीन एवं व्यवस्थित विधि है। इसमें कर्मचारियों का मूल्यांकन उनके व्यक्तित्व की विशेषताओं तथा क्षमता के आधार पर किया जाता है। इसमें मूल्यांकक कर्मचारियों को एक मूल्यांकन प्रपत्र देता है जिसमें कर्मचारियों की विभिन्न विशेषताओं का उल्लेख रहता है। इस विधि में श्रमिकों व प्रबन्धकीय श्रेणी के कर्मचारियों के अंकन के लिए अलग-अलग मानदण्ड व विशिष्टताएं निर्धारित की जाती हैं। श्रमिकों के लिए उनके कार्य की जानकारी, उनकी तीव्रता, उनके दूसरे पर आश्रित होकर कार्य करना, कार्य की गुणवत्ता, उनके साहस, उद्यमिता आदि से सम्बन्धित विशिष्टताएं निर्धारित की जाती हैं जबकि प्रबन्धकीय श्रेणी के लिए नेतृत्व की क्षमता, सृजनात्मक क्षमता, संगठनात्मक क्षमता, संवादवाहन की क्षमता, निर्णय लेने व न्याय करने की क्षमता आदि गुणों व विशिष्टताओं के आधार पर उनका मूल्यांकन किया जाता है। इसे एक रेखाचित्र द्वारा निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है :

पहल शक्ति

खराब (Poor)

औसत अच्छा (Average Good)

उत्तम (Excellent)

(a) उत्तम (Excellent), (b) औसत से अधिक (Above average), (c) औसत (Average) तथा (d) खराब (Poor)

‘उत्तम’ अंक उसे दिया जाता है जो व्यक्ति कार्य में निपुण होते हैं और जिन्हें कार्य करने में किसी प्रकार के पर्यवेक्षण की आवश्यकता नहीं है। ‘औसत से अधिक’ उसे दिया जाता है जो निर्धारित मापन (Standard) से नीचे, किन्तु औसत से अधिक होता है और यह व्यक्ति कम समय में अच्छा कार्य कर सकता है औसत का अर्थ है कि व्यक्ति किसी प्रकार पर्यवेक्षकों की सहायता से कार्य कर पाता है जबकि का अर्थ असफल होने से है। इस विधि की सबसे अच्छी विशेषता यह है कि यह सरल एवं उपयोग में आसान है और स्केल के ऊपर व्यक्तियों की योग्यता को स्पष्ट रूप से दर्शाया जा सकता है। किन्तु इसका दोष यह है कि इसमें मूल्यांकन सही प्रकार से नहीं हो पाता है, क्योंकि मूल्यांकनकर्ता में कर्मचारी के उच्च स्तर पर मूल्यांकन करने की प्रवृत्ति पाई जाती है।

  1. बलात वितरण विधि (Forced Distribution Method) –

इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति की सम्पूर्ण कार्य क्षमता का अंकन किया जाता है। इस विधि का उपयोग उस समय किया जाता है जब कर्मचारियों की संख्या किसी विभाग में अधिक हो और युगल तुलना विधि का उपयोग सम्भव न हो। इसमें मूल्यांकन के लिए एक 3″ x 5″ का टंकित फार्म दिया जाता है जिसमें मूल्यांकक द्वारा अपने अंकन का निश्चित वर्ग विभाजन किया जाता है, जो निम्न प्रकार के होते हैं – निन्नतम (Low Level), औसत निम्न (Low Average), औसत (Average), औसत उच्च (High Average) तथा ऊंचा (High)।

इसमें कर्मचारियों का वितरण प्रतिशत वर्गों में इस प्रकार व्यक्त किया जाएगा:

10 प्रतिशत व्यक्ति निम्नतम, 20 प्रतिशत निम्न, 20 प्रतिशत औसत निम्न, 40 प्रतिशत औसत, 20 प्रतिशत औसत उच्च तथा 10 प्रतिशत उच्च आदि।

बलात वितरण विधि के उपयोग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें मूल्यांकक के अधिक दयालुता बरते जाने की सम्भावना कम होती है, किन्तु इसका सबसे बड़ा दोष यह है कि इसका प्रतिशत जानबूझकर निर्धारित किए गए वर्ग पर आधारित है।

  1. जाँच सूची विधि (Checklist Method) –

निष्पादन मूल्यांकन की यह प्रचलित विधि है इस विधि के अन्तर्गत कार्य निष्पादन के लिए आवश्यक गुणों की सूची पहले से ही तैयार कर दी जाती है। वस्तुतः यह प्रश्नों की सूची होती है जो कर्मचारियों के कार्य व्यवहार, उनके गुणों, क्षमताओं आदि के बारे में होती हैं इन सूची को जांच सूची कहा जाता है। मूल्यांकनकर्ता इस सूची में दिए गए प्रश्नों के आधार पर प्रत्येक कर्मचारी की योग्यता का मापन करता है। मूल्यांकनकर्ता कर्मचारी के सकारात्मक गुणों अर्थात् जो गुण कर्मचारी में हैं, उसके लिए जांच सूची में धन (+) का चिह्न तथा जो गुण कर्मचारी के व्यक्तित्व में नहीं है उनके लिए ऋण (-) का चिह्न लगाया जाता है। गुणों के बारे में किसी प्रकार का संशय होने की दशा में प्रश्नवाचक (?) चिह्न लगा दिया जाता है प्रत्येक प्रश्न का मूल्य या अंक भी निश्चित किया जा सकता है इसके बाद इन चिह्नों के आधार पर कर्मचारी की योग्यता का अंकन किया जाता है। जाँच सूची के प्रारूप को निम्न तालिका के द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है :

जाँच सूची का नमूना

प्रश्न

चिह्न

1. क्या कर्मचारी के कार्य पर उपस्थिति सन्तोषजनक है?

(+)

2. क्या कर्मचारी अपने कार्य में रुचि रखता है?

(-)

3. क्या कर्मचारी निर्धारित समय पर अपना कार्य पूरा कर लेता है?

(?)

4. क्या अन्य सहयोगी उसके व्यवहार से प्रसन्न हैं?

(?)

5. क्या वह कार्य के सम्बन्ध में रचनात्मक विचार प्रस्तुत करता है?

(+)

6. क्या वह अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन ठीक से करता है।

(-)

  1. क्षेत्र समीक्षा विधि (Field Review Method) –

यह विधि काफी प्रचलित है और यह वृहत पैमाने के संगठनों  के लिए उपयोगी है। इस विधि में सेविवर्गीय विभाग की भूमिका बढ़ जाती है, क्योंकि इसमें सेविवर्गीय विभाग के प्रशिक्षित अधिकारी प्रत्येक पर्यवेक्षक से उसके अधीनस्थ कर्मचरियों के बारे में आवश्यक प्रश्न पूछता है। यह अधिकारी कार्यस्थल पर जाकर पर्यवेक्षकों से मौखिक जानकारी एकत्रित करता है तथा उसे लिपिबद्ध करता है। बाद में वह अपनी टिप्पणी लिखकर पर्यवेक्षक को दिखा देता है तथा उसके मतानुसार संशोधन भी कर देता है। इस विधि में मूल्यांकन सामान्यतः (i) उत्तम, (ii) सन्तोषप्रद एवं (iii) सामान्य तीन श्रेणियों में किया जाता है। इस विधि की सफलता प्रायः पदाधिकारियों द्वारा साक्षात्कार लेने की कुशलता पर निर्भर करती है।

  1. गोपनीय प्रतिवेदन विधि (Confidential Report Method) –

यह एक बहु प्रचलित विधि है। इस विधि में प्रत्येक कर्मचारी गोपनीय रूप से एक या एक से अधिक वरीय पदाधिकारियों द्वारा मूल्यांकित किया जाता है। कर्मचारी के निकटस्थ अधिकारी द्वारा अपने अधीनस्थ कर्मचारी की कार्य योग्यता एवं व्यवहार के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी रखता है। गोपनीय प्रतिवेदन में कर्मचारियों के कार्य-व्यवहार, कार्य परिणाम, सहयोग भावना, कार्य क्षमता उत्साह, संगठन निष्ठा, नेतृत्व क्षमता, उत्तरदायित्व की भावना आदि पर वरीय अधिकारी अपने दृष्टिकोण का उल्लेख करता है। इन्हीं बातों के आधार पर कर्मचारी का मूल्यांकन करके वेतन वृद्धि, पदोन्नति, स्थानान्तरण आदि का निर्णय लिया जाता है।

इस विधि का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें कर्मचारी के सम्पूर्ण गुणों एवं विशेषताओं का उल्लेख रहता है और पदाधिकारी निरन्तर कार्यशैली एवं व्यवहार के आधार पर ही गोपनीय प्रतिवेदन तैयार करते हैं। किन्तु इसका सबसे बड़ा अवगुण यह है कि यह केवल विवरणात्मक होता है और किसी प्रकार के आंकड़े नहीं होते हैं, इस विधि में निष्पक्ष मूल्यांकन की सम्भावना कम होती है, क्योंकि यह व्यक्तिगत मत पर आधारित होता है जिसमें व्यक्तिगत द्वेष की सम्भावना भी निहित है।

  1. बलात चयन विधि (Forced Choice Method) –

बलात चयन विधि में मूल्यांकक को एक ही तथ्य के बारे में एक से अधिक कथन दिए जाते हैं और उसमें से किसी एक कथन को चिह्नित करना होता है विभिन्न घटकों के सम्बन्ध में अलग-अलग कथन समूह की रचना की जाती है और मूल्यांकक को सभी कथन समूहों में से व्यक्ति के सम्बन्ध में ऐसे कथनों का चयन करना पड़ता है जो उस व्यक्ति पर सबसे अधिक उपयुक्त बैठता है। इस विधि में मूल्यांकक की मूल्यांकन सीमा कथनों द्वारा निश्चित हो जाती है। मूल्यांकक को कर्मचारी की योग्यता के सम्बन्ध में दी गई श्रेणियों जैसे- ‘सबसे अधिक उपयुक्त’ तथा ‘सबसे कम उपयुक्त’ में से ही किसी श्रेणी का चयन करना पड़ता है। इन कथनों की श्रेणियों में अंक भी प्रदान किए जा सकते हैं। कथनों के अंकों के योग के आधार पर ही कर्मचारियों की योग्यता का अंकन हो जाता है। इसे तालिका द्वारा निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है :

अनिवार्य चयन समूह (Forced Choice Block)

सबसे अधिक उपयुक्त (Most Appropriate)

सबसे कम उपयुक्त (Least Appropriate)

1. अपने कार्य के लिए उपयुक्त है।

4

 

2. सहयोगियों में लोकप्रिय है

 

2

3. शीघ्र निर्णय नहीं ले सकता है।

 

1

4. अलोचना सहज स्वीकार नहीं करता।

5

 

5. स्वअभिप्रेरित नहीं है।

 

3

इस विधि का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें मूल्यांकक के व्यक्तिगत पक्षपात की सम्भावना समाप्त हो जाती है। इसमें कथनों का निर्धारण बहुत सोच-समझकर किया जाना चाहिए ताकि सही-सही मूल्यांकन सम्भव हो सके। इस विधि का एक दोष यह है कि इससे कर्मचारी विकास को सहायता नहीं मिलती है।

  1. आलोचनात्मक घटना विधि (Critical Incident Method)-

इस विधि में कर्मचारियों की योग्यता का मूल्यांकन उनके कार्य निष्पादन के दौरान होने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं एवं वृतान्तों के आधार पर किया जाता है। ये घटनाएं कर्मचारी की सफलता एवं असफलता में अन्तर करने वाली होती हैं पर्यवेक्षक कर्मचारियों के व्यवहार का अवलोकन करते हुए इन घटनाओं का रिकार्ड रखता है। कर्मचारी जब कोई ऐसा कार्य करता है जिस पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है अथवा जो अवांछनीय है तो उसका उल्लेख कर्मचारी के रिकार्ड में दर्ज किया जाता है। अलोचनात्मक घटना विधि इस तर्क पर आधारित है कि प्रत्येक कर्मचारी अपने सेवाकाल में परिस्थितिवश विशेष प्रकार का आचरण करता है। ऐसा आचरण संगठन की सफलता व विफलता का कारण होता है उसे ही निष्पादन मूल्यांकन के क्रम में कर्मचारी की सफलता व विफलता की श्रेणी में रखकर उसकी आलोचनात्मक व्याख्या की जाती है और उचित निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

आलोचनात्मक घटना विधि का एक प्रमुख लाभ यह है कि इसमें कर्मचारी का अंकन व्यक्तिगत न होकर साक्ष्यों पर आधारित होता है। इससे कर्मचारी अपने व्यवहार में सुधार कर सकता है यह विधि कर्मचारी के भावी प्रशिक्षण कार्यक्रम के निर्धारण में सहायक होती है। किन्तु इसका सबसे बड़ा दोष है कि कार्य से सम्बन्धित सभी महत्वपूर्ण घटकों का निर्धारण करना कठिन होता है।

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Pankaja Singh

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