मानव संसाधन प्रबंधन

निष्पादन मूल्यांकन की आधुनिक विधियां व तकनीकें | उद्देश्यानुसार प्रबन्ध या परिणामों द्वारा मूल्यांकन | उद्देश्यानुसार प्रबन्ध की प्रक्रिया

निष्पादन मूल्यांकन की आधुनिक विधियां व तकनीकें | उद्देश्यानुसार प्रबन्ध या परिणामों द्वारा मूल्यांकन | उद्देश्यानुसार प्रबन्ध की प्रक्रिया | Modern Methods and Techniques of Performance Appraisal in Hindi | Evaluation by objective management or results in Hindi | objective management process in Hindi

निष्पादन मूल्यांकन की आधुनिक विधियां व तकनीकें

(Modern method and techniques)

निष्पादन मूल्यांकन की प्रक्रिया स्थिर (Static) नहीं है बल्कि परिवर्तनशील है। मानव संसाधन के विकास के साथ-साथ उसके निष्पादन मूल्यांकन की विधि एवं तकनीकें भी बदलती रही हैं। आधुनिक समय में विशेषकर बदलते वैश्विक वातावरण में मानव संसाधन के निष्पादन के तौर-तरीके भी बदले हैं। आज के वैश्विक व्यावसायिक जगत में कम्पनियां अपने कर्मचारियों में क्षमता के निष्पादन के लिए नए-नए विकल्प, तलाश रही हैं, ताकि उनको सही पुरस्कार दिया जा सके। आधुनिक समय में निष्पादन मूल्यांकन की निम्नलिखित विधियां प्रचलित हैं :

उद्देश्यानुसार प्रबन्ध या परिणामों द्वारा मूल्यांकन

(Management by Objective Appraisal by Result) –

उद्देश्यानुसार प्रबन्ध विचारधारा का विकास सर्वप्रथम 1954 में पीटर ड्रकर (Peter Drucker) द्वारा किया गया। ड्रकर ने इसे उद्देश्य के लिए प्रबन्ध या स्व- नियन्त्रण (Self Control) के नाम से पुकारा। उद्देश्यानुसार प्रबन्ध निष्पादन मूल्यांकन की अधिक प्रभावशाली तकनीक है जिसमें क्रियात्मक विधि (Operational Method) के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है। इस विधि के अन्तर्गत कर्मचारी और उसका पर्यवेक्षक आपस में मिलकर एक निश्चित कार्यकाल के अन्तर्गत उद्देश्यों का निर्धारिण करते हैं। उद्देश्यों व लक्ष्यों को निश्चित करते हैं, उन्हें परिभाषित करते हैं और उसके बारे में पर्याप्त चर्चा करते हैं। वे कर्मचारी प्रगति मापन के साधनों व विधियों के सम्बन्ध में भी विचार-विमर्श करते हैं इनके द्वारा (कर्मचारी एवं पर्यवेक्षक) जो उद्देश्य निर्धारित करते हैं उसे सम्बन्धित कार्यों के प्रति प्रगतिन्मुख होते हैं तथा निश्चित अन्तराल में पर्यवेक्षकों के सम्पर्क में अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करते हैं उनके कार्यों में हुई प्रगति का मूल्यांकन किया जाता है तथा आवश्यकता पड़ने पर पर्यवेक्षकों द्वारा पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों व उद्देश्यों में आवश्यक संशोधन भी किया जाता है। इस विधि में पर्यवेक्षक कर्मचारी के लिए सहयोग प्रदान करने वाले, दंगा करने वाले या कार्य सीखने व सिखाने वाले आदि के रूप में अपनी भूमिका निभाता है। इस विधि में कर्मचारी और पर्यवेक्षकों के मध्य नियमित और पर्याप्त सूचनाओं का आदान-प्रदान आवश्यक होता है।

प्रायः एक उद्देश्यानुसार प्रबन्ध (MBO) निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जा सकती है :

(1) अधीनस्थों की बढ़ती क्षमता व गुणवत्ता के पालन के लिए।

(2) क्षमता के आकलन एवं मापन के लिए।

(3) पदोन्नति एवं मूल वेतन निर्धारण के एक उपकरण के रूप में।

(4) संगठनात्मक नियन्त्रण एवं एकीकरण के उपकरण के रूप में।

(5) अधीनस्थों व कर्मचारियों को उत्प्रेरित करने के उद्देश्य से।

(6) पदाधिकारियों एवं अधीनस्थों के बीच खुले संवादवाहन के विकास के लिए।

(7) उद्देश्यों व लक्ष्यों के निर्धारण एवं उसकी प्राप्ति के वीच समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य से।

उद्देश्यानुसार प्रबन्ध की प्रक्रिया

(Process of MBO):

उद्देश्यानुसार प्रबन्ध की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी की जा सकती है :

(1) संगठन के लक्ष्यों का निर्धारण (Setting of Organisational Goal)

(2) क्षमता लक्ष्यों की प्राप्ति की व्याख्या (Defining Performance Targets)

(3) क्षमतापूर्ण मूल्यांकन (Performance Review)

(4) कार्य प्रतिपूर्ति (Job Feedback)

उद्देश्यानुसार प्रबन्ध (MBO) की प्रक्रिया को पूरा करने के विभिन्न चरणों को हम निम्न प्रकार से प्रकट कर सकते हैं:

चरण (Step) – I

संयुक्त लक्ष्य का निर्धारण (Setting Joint Goal)

चरण (Step) – II

कार्य नियोजन (Action Planning)

चरण (Step) – III

स्व-नियन्त्रण (Self-Control)

चरण (Step) – IV

समयानुकूल प्रगति का पुनरावलोकन (Periodic Process Review)

चरण-1 में प्रबन्धन एवं कर्मचारी का अधिकारी एवं उसके अधीनस्थ मिलकर अपने कार्य के लक्ष्यों व उद्देश्यों का संयुक्त निर्धारण करते हैं।

चरण- II में उन निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए वास्तविक कार्ययोजना (Reliastic  Action Plan) विकसित की जाती है।

चरण – III उन कार्ययोजनाओं का परिचालन व निर्देशन के साथ-साथ उसकी प्रबोधन (Monitoring) की जाती है। सभी कार्य योजनाओं का स्व-नियन्त्रण (Self-Control) किया जाता है।

चरण – IV में सम्पूर्ण कार्यों एवं लक्ष्यों का समय-समय पर पुनरावलोकन किया जाता है तथा आवश्यकता पड़ने पर सुधारात्मक कदम भी उठाने पड़ते हैं। इसमें निर्धारित लक्ष्यों व उद्देश्यों के साथ प्राप्त लक्ष्यों व उद्देश्यों का अवलोकन किया जाता है और फिर उचित निर्णय लिए जाते हैं।

निष्पादन मूल्यांकन की यह विधि वर्तमान और भविष्य की सम्भावनाओं पर अधिक बल देती है। इस विधि में कर्मचारी के व्यक्तिगत गुणों के स्थान पर उसके द्वारा प्राप्त किए गए उद्देश्यों एवं प्रस्तुत किए गए परिणामों पर अत्यधिक ध्यान दिया जाता है। इस विधि का सर्वाधिक प्रयोग तकनीकी, पेशेवर, पर्यवेक्षकीय या अधिशासी सेविवर्गियों के निष्पादन मूल्यांकन हेतु किया जाता है।

  1. श्रेणीयन पद्धति (Grading Method) – यह विधि ग्रैफिक विधि से मिलती- जुलती है। इस विधि में मूल्यांककों द्वारा मूल्यांकन के लिए निर्धारित योग्यताओं को श्रेणीबद्ध कर लेता हैं इसके अन्तर्गत विभिन्न योग्यताओं जैसे विश्लेषण क्षमता, सहयोगात्मक क्षमता, स्वाभिव्यक्ति, की क्षमता, नेतृत्व क्षमता, संगठनात्मक क्षमता आदि का श्रेणीयन कर परिभाषित कर लिया जाता है। उदाहरण के लिए, श्रेणियां इस प्रकार से हो सकती हैं:

समूह – अ (Group-A) – उत्कृष्ट (Outstanding)

समूह – ब (Group-B) – बहुत अच्छा (Very Good)

समूह – स (Group-C) – औसत (Average), अच्छा (Good)

समूह – द (Group-D) -सन्तोषजनक (Satisfactory)

समूह – ई (Group-E) –  खराब (Poor), असन्तोषप्रद (Unsatisfactory )

श्रेणियों का निर्धारण कर लेने के बाद कर्मचारी योग्यता के विभिन्न घटकों को ये श्रेणियां प्रदान की जाती हैं यह विधि सरल है, किन्तु श्रेणियों का निर्धारण करना एक जटिल मानसिक कार्य है।

  1. मूल्यांकन केन्द्र विधि (Assessment Centre Method) – मूल्यांकन केन्द्र विधि किसी कर्मचारी के अन्तर्गत प्रबन्धकीय क्षमता को मापने की उत्तम विधि मानी जाती है। इस विधि के अन्तर्गत कर्मचारी में निष्पादन मूल्यांकन हेतु विभिन्न मूल्यांककों द्वारा विभिन्न परिस्थितियों में कर्मचारी की जांच की जाती है। कर्मचारियों का मूल्यांकन पेपर, पेंसिल, टेस्ट, साक्षात्कार, अवस्थित अभ्यास (Situational Exercise), व्यावसायिक खेल (Business Games), भूमिका निर्वाहन घटना (Role Playing Incident), नेताविहीन समूह परिचर्चा (Leaderless Group Discussion) आदि के अध्ययन से किया जाता है। मूल्यांकक जो अनुभवी प्रबन्धकों में से होते हैं, कर्मचारियों की निष्पादन क्षमता का वैयक्तिक एवं सामूहिक दोनों ही परिस्थितियों में मूल्यांकन करते हैं और कर्मचारियों का विभिन्न श्रेणियों जैसे-
  2. स्वीकार योग्य से कहीं अधिक (More than Acceptable)
  3. स्वीकार योग्य (Acceptable)
  4. स्वीकार योग्य से कम (Less than Acceptable)
  5. अस्वीकार योग्य (Unacceptable)

आदि में से कोई एक श्रेणी दी जाती है। उसके बाद मूल्यांककों द्वारा कर्मचारियों की निष्पादन योग्यता के सम्बन्ध में एक रिपोर्ट तैयार की जाती है। इस रिपोर्ट से सभी कर्मचारियों को अवगत कराया जाता है और उनकी शंकाओं का समाधान किया जाता है।

मूल्यांककों द्वारा इस विधि में कर्मचारियों की क्षमता, उनके गुणों, उनकी संम्भाव्य क्षमता, उत्प्रेरणा आदि का निर्धारण किया जाता है। इसी आधार पर उनको पदोन्नति व आवश्यक प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

  1. मानव संसाधन लेखन विधि (Human Resource Accounting method)- मानव संसाधन संगठन की महत्त्वपूर्ण सम्पत्ति है। इसे आज मानव पूंजी (Human Capital) के नाम से जाना जाता है। संगठन में भौतिक सम्पदा (Physical Capital) की जगह आज मानव पूंजी सर्वोपरि बनकर संगठन का संचालन कर रही है किसी भी सम्पत्ति का मूल्यांकन मूल्य में या रुपए में किया जाता है। यदि कोई सक्षम व बहुत प्रशिक्षित कर्मचारी संगठन छोड़कर चला जाता है तो इससे संगठन की सम्पत्ति घटती है। इस प्रकार मानव संसाधन लेखन विधि से कर्मचारी की क्षमता का आकलन लागत तथा उसके द्वारा दिए गए अंशदान या अनुदान (Contribution) का आकलन किया जा सकता है।

मानव संसाधन की लागत का अर्थ मानव संसाधन के नियोजन, भर्ती, चयन, प्रबोधन, प्रशिक्षण तथा क्षतिपूर्ति आदि पर किए गए व्यय से है, जबकि मानव संसाधन अनुदान का अर्थ उत्पादन तथा उत्पादकता में की गई मूल्य वृद्धि (Value Addition) से है। अतः लागत एवं मानव संसाधन द्वारा दिए गए अनुदान पर अंशदान के अन्तर को ही कर्मचारी की क्षमता (Performance of the Employees) कहा जाता है। आज मानव संसाधन पर किया गया व्यय विनियोग (Investment) माना जा रहा है। अतः इस विनियोग को कैसे पूंजीकृत (Capitalise) किया जाए यह एक महत्वपूर्ण विषय है। मानव संसाधन लेखन विधि इस विनियोग की मानव पूंजी के रूप में आर्थिक चिट्ठे में किस प्रकार व्यक्त करेगा यह एक विवादस्पद विषय बना हुआ है, क्योंकि इसको मूल्य या रुपए में सही आकलन करना कठिन कार्य है।

  1. शलाका (Bars) – BARS (Behaviorally Anchored Rating Scale) का प्रयोग संगठन में कार्यरत कर्मचारियों के व्यवहार के विभिन्न स्तरों (Degree) का पता लगाया जाता है। यह पद्धति प्रैफिक अंकन विधि तथा आलोचनात्मक घटना विधि का सम्मिश्रण है। इसके द्वारा कर्मचारी के कार्य व्यवहार का निर्धारण पूर्व में कर दिया जाता है जिसे व्यवहार प्रमाप (Behavior Standard) कहते हैं और वास्तविक कार्य व्यवहार की तुलना निर्धारित की गई स्केल पर की जाती है। यह विधि कर्मचारियों के मनोविज्ञान को समझने की पद्धति है जिसे अवलोकन (Observation) पद्धति भी कहते हैं। BARS के निर्धारण में निम्नलिखित चरण शामिल किए जाते हैं :

(1) आलोचनात्मक घटना की पहचान करना (Identify Critical Incidents)

(2) क्षमता आयाम का चयन (Select performance Dimensions)

(3) घटना का पुनर्विश्लेषण (Re-analysis of Incidents)

(4) घटना का स्केल निर्धारित करना (Assign Scales to Incidents)

(5) अन्तिम यन्त्र/उपकरण का विकास (Development final Instruments)

BARS पद्धति का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें स्केल के निर्धारण कर देने पर कर्मचारियों के व्यवहार का अध्ययन आसान हो जाता है और इसमें पदाधिकारियों के निजी क्षोभ (Personal Blais) कर्मचारियों के व्यवहार का अध्ययन आसान हो जाता है और इसमें पदाधिकारियों के निजी क्षो निष्पादन मूल्यांकन एक नई पद्धति है जिसका प्रचलन इन दिनों संगठन में काफी बढ़ रहा है। यह आंकड़े संग्रह करने की एक व्यवस्थित पद्धति है जिसके द्वारा एक संगठनात्मक व्यक्ति से सम्बन्धित सम्पूर्ण आंकड़े संगृहीत किए जाते हैं। यह कर्मचारियों के विविध स्रोत मूल्यांकन की प्रक्रिया है जिसमें संगठन के विभिन्न धारकों (Stakeholders) से कर्मचारियों की सूचनाएं प्राप्त की जाती हैं। इसके द्वारा कर्मचारी जिनका कि मूल्यांकन किया जा रहा है उससे सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की सूचनाएं एवं उसका विभिन्न लोगों के साथ संम्बन्धों की माप की जाती है। प्रायः प्रतिभागियों के सम्बन्ध में उनके बॉस (Boss), सहयोगियों (Peers), अधीनस्थों (Subordinates), आन्तरिक एवं बाह्य ग्राहकों (Internal and External Customers) आदि से जिससे कि वह सम्पर्क स्थापित करता है से सूचनाएं प्राप्त की जाती है। इसके लिए एक प्रमाप निर्धारण फॉर्म ( Standard Assessment Form) विकसित की जाती है जिसमें सभी स्टेकहोल्डरों/लाभार्थियों (Stockholders) से सूचनाएं प्राप्त की जाती है। इसमें कर्मचारियों की क्षमता के साथ-साथ उसके व्यवहार के बारे में भी सूचनाएं ली जाती हैं ताकि कर्मचारियों के बारे में सही निर्धारण किया जा सके। इसे एक रेखाचित्र द्वारा अग्र प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:

सूचनाएं संग्रह फॉर्म (Feedback once form)

  • बांस (Boss)
  • सहयोगी (Peers)
  • स्वयं (Self)
  • कर्मचारी (Staff)
  • ग्राहक (Customers)
  • टीम सदस्य (Team members)

360° Feedback: A Management Tool

360° क्षमता मूल्यांकन मूलतः संगठन में वरिष्ठ पदाधिकारियों, जैसे- निर्देशक, प्रबन्धकों, वरीय कार्यकारी पदाधिकारियों, पेशेवर कर्मियों, साझेदारों आदि के लिए अधिक उपयोगी है। आज इसका प्रचलन इतना अधिक बढ़ गया है कि इसका प्रयोग अभियन्ताओं, पायलटों, विक्रय अभिकर्ताओं, मानव संसाधन प्रवन्धकों, उपभोक्ता सेवाओं में शामिल लोगों का मूल्यांकन इस विधि से किया जा रहा है।

360° सूचनाओं का उपयोग (Use of 360° Feedback)

360° सूचनाओं का प्रयोग संगठन में विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है। क्योंकि इस विधि से प्राप्त सूचनाएं संगठन के गुणात्मक व संख्यात्मक विकास में सहायक होती हैं। प्रायः 360° सूचनाएं निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति करती हैं।

(1) स्व-विकास तथा व्यक्तिगत परामर्श में सहायक।

(2) संगठन में व्यवस्थित प्रशिक्षण एवं विकास के अभिन्न हिस्से के रूप में।

(3) समूह निर्माण या होम बिल्डिंग के रूप में।

(4) क्षमता प्रवन्धक (Performance Management) के तकनीकी के रूप में।

(5) युद्धनीतिक (Strategic) संगठनात्मक विकास के रूप में।

(6) उचित क्षतिपूर्ति एवं प्रशिक्षण की वांछनीता के निर्धारण में।

(7) संगठन में सुदृढ़ कार्य संस्कृति (Work Culture) विकसित करने में।

360° निष्पादन मूल्यांकन में जो सूचनाएं प्राप्त की जाती हैं उन्हें विभिन्न श्रेणियों में रखा जाता है। इस श्रेणी को निम्न प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं :

श्रेणी ‘अ’ (Category A ) : विकास क्षेत्र (Development Area) जिसमें प्रतिभागियों व अन्य समूहों के विकास को आंका जाता है।

श्रेणी ‘ब’ (Category B) : शक्ति/सूची (Strength/Contents) जिसमें व्यवहारात्मक अध्ययन किया जाता है।

श्रेणी ‘स’ (Category C) : कमियों (Discrepancies) का अवलोकन किया जाता हैं।

श्रेणी ‘द’ (Category D) : छिपी शक्ति (Hidden Strength) छिपी हुई सम्भावनाओं की तलाश की जाती है।

360° निष्पादन मूल्यांकन काफी प्रचलित पद्धति बन गई है और आज इसका प्रयोग, देशी और विदेशी तथा बहुदेशीय कम्पनियां जैसे गोदरेज, जनरल इलेक्ट्रिक इण्डिया, रिलायंस इण्डस्ट्रीज लि., क्रॉम्पटन विप्रो, इम्फॉसिस, लरसन एण्ड टुब्रो, वोल्टाज आदि कर रही हैं।

  1. सम्भावना मूल्यांकन (Potential Appraisal) – सम्भावना मूल्यांकन एक नवीन विचारधारा है। आज के बदलते वैश्विक व्यावसायिक वातावरण में व्यापार के आयाम बदल रहे हैं। अतः इस परिवर्तन को अपनाना एवं उसकी दिशा में चलना संगठन की प्राथमिकता बन गई है, अन्यथा संगठन का बने रहना (Survival) मुश्किल हो जाएगा। सम्भावना मूल्यांकन कर्मचारियों की वर्तमान की क्षमताओं के साथ-साथ भविष्य की सम्भावनाओं की क्षमता का भी आकलन करता है। यह इस बात का आकलन करता है कि क्या वर्तमान की कर्मचारियों की क्षमता भविष्य की जरूरतों को पूरा कर पाएगी? आज सम्भाव्यता निष्पादन (Potential Appraisal) तथा अनुक्रमण नियोजन (Succession Planning) दो ऐसे शब्द हैं जिसकी आवश्यकता आज प्रायः सभी संगठनों को है। सम्भाव्यता मूल्यांकन तथा अनुक्रमण नियोजन मानव संसाधन नियोजन एवं विकास का प्रमुख कार्यक्रम (Agenda) बन गया है। सम्भाव्यता निष्पादन प्रायः निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति करता है

(i) व्यक्ति का निर्धारण इस रूप में किया जाए ताकि वह वर्तमान एवं भविष्य की सम्भावनाओं की जरूरतों की पूर्ति कर सके, तथा

(ii) संगठन को उनकी जिम्मेदारियों की पूर्ति करने में सहायता करना ताकि सतत विकास की सम्भावना को सुनिश्चित कर सके।

इस प्रकार सम्भावना मूल्यांकन का प्रयोजन यह है कि कर्मचारियों की उन छिपी हुई प्रतिभाओं एवं गुणों का पता लगाया जाए, जिनका अभी तक वर्तमान कार्यों पर उपयोग नहीं हो पाया है। प्रबन्धकों का यह कर्तव्य है कि वे कर्मचारियों में ऐसी प्रतिभाओं एवं गुणों का विकास करें तथा उनकी उन्नति के मार्ग को प्रशस्त करें। सम्भावना मूल्यांकन, वैयक्तिक विकास के क्रम की आवश्यक कड़ी है। सम्भावना मूल्यांकन की प्रक्रिया से व्यक्ति के साथ संगठन भी लाभान्वित होते हैं। विकासोन्मुख संगठनों के लिए, समय-समय पर नई प्रतिभाओं एवं योग्यताओं की आवश्यकता होती है। सम्भावना मूल्यांकन, संगठनों की इस आवश्यकता की पूर्ति करता है।

सम्भाव्यता निष्पादन प्रक्रिया एक गतिशील (Dynamic) प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति के दिखने वाली क्षमता (Visible Performance) तथा नहीं दिखने वाली क्षमता (Not Visible potential) का आकलन किया जाता है। इस विधि से साविधिक विकास (Periodic Development) के क्रम का आकलन कर भविष्य की सम्भाव्यता का आकलन किया जा सकता है। किसी भी कर्मचारी के सम्भाव्यता के निर्धारण के लिए निम्नलिखित सम्भाव्यता गुणों (Potential Attribution) का आकलन किया जा सकता है :

  1. 1. विश्लेषण शक्ति (Analytical Power)
  2. सृजनात्मक परिकल्पना (Creating Imagination)
  3. वास्तविकता की समझ (Sense of Reality)
  4. सकारात्मक सोच की क्षमता (Capacity of Taking Holistic view)
  5. प्रभावशाली नेतृत्व (Effective Leadership)
  6. विचारधारक गुण (Conceptual Skills)
  7. तकनीकी क्षमता (Technical Skills)
  8. व्यावसायिक क्षमता (Commercial Skills)
  9. संवादवाहन क्षमता (Communication Skills)
  10. नियोजन एवं संगठनात्मक क्षमता (Planning and Organisation Skills)
  11. अतिरिक्त जिम्मेदारी की इच्छा (Willingness to take Additional Responsibilities)
  12. नवीन सोच व आविष्कारात्मक सोच (Innovative Skills)
  13. उपक्रमण पहल (Initiative Effect)
  14. परिणाम उन्मुखीकरण (Result Orientation)
  15. सहकार्य समूह निर्माण (Team Work and Team Building)
  16. अधीनस्थ विकास (Subordinate Development)
  17. सौदेबाजी क्षमता (Negotiation Skills)
  18. समस्या समाधान व निर्णय क्षमता (Problem Solving or Decision Making)
  19. प्रक्रिया उन्मुखीकरण (Process Orientation)

सम्भाव्यता निष्पादन की प्रक्रिया में उपर्युक्त गुणों का आकलन किया जाना चाहिए। गुणों का आकलन कर सम्भाव्यता का निर्धारण कर कर्मचारियों को उच्च पदों पर प्रोन्नति देनी चाहिए। सम्भाव्यता मूल्यांकन का प्रयोग आज कई प्रसिद्ध कम्पनियों, फिलिप्स इण्डिया, गलेक्सो इण्डिया (Glaxo India) आदि के द्वारा अपनाया जा रहा है। आज सितारा निष्पादक (Star Performers) का प्रचलन बढ़ रहा है। बड़ी-बड़ी कम्पनियां सितारा निष्पादक का प्रयोग कर आदर्श प्रस्तुत कर रही हैं और अन्य कर्मचारियों को उत्प्रेरित करने की कोशिश कर रही हैं। कई कम्पनियों ने PPP (Pay for-Performance Plan) की भी शुरुआत की है जिसमें सम्पूर्ण मानव शक्ति एक समूह (One Group) या एक टीम (Team) के रूप में देख रही है और समूचे समूह की सम्भाव्यता के निर्धारण में जुटी हैं। चूंकि समूह की सम्भाव्यता ही संगठन की सफलता का परिचायक है।

मानव संसाधन प्रबंधन – महत्वपूर्ण लिंक

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Pankaja Singh

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