प्रबंधन सूचना प्रणाली

निर्णयन हेतु सूचना प्रणाली से आशय | निर्णयन सूचना के प्रकार | निर्णयन के प्रकार | निर्णयन प्रक्रिया

निर्णयन हेतु सूचना प्रणाली से आशय | निर्णयन सूचना के प्रकार | निर्णयन के प्रकार | निर्णयन प्रक्रिया | Meaning of information system for decision making in Hindi | Types of Decision Making Information in Hindi | Types of Decision Making in Hindi | decision making process in Hindi

निर्णयन हेतु सूचना प्रणाली से आशय-

निर्णयन एक चेतन मानवीय प्रक्रिया अवधारणा है जिसके अन्तर्गत चेतन मानव (प्रबंधक) द्वारा निर्णय लिया जाता है। यह निर्णय तथ्यों तथा मूल्यों पर आधारित होते हैं। परन्तु निर्णय तभी लिये जा सकते हैं जबकि प्रत्येक स्तर से सूचनाएँ प्रबंधक को प्राप्त होती रहें। जब सूचनाएँ सभी स्तर से आसानी से मिल जाती हैं तथा समस्याओं का पता चल जाता है तो प्रबंधक द्वारा निर्णय लिए जाते हैं। अतः प्रबंधक निर्णयों के लिए अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से सूचना रिपोर्ट आदि अपने कहे अनुसार ढंग से प्राप्त करते है तथा उनके आधार पर निर्णय लेते हैं। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को निर्णयन हेतु सूचना प्रणाली कहते है।

निर्णयन सूचना के प्रकार या निर्णयन के प्रकार-

निर्णयन सूचना के प्रकार या निर्णयन के प्रकारों को निम्नलिखित प्रकारों में बाँटा जा सकता है-

(1) युद्धनीति निर्णय (2) निगुणनिर्णय (3) व्यक्तिगत निर्णय (4) समूह निर्णय।

  1. युद्ध नीति निर्णय (Strategic Decision)—ये वे निर्णय होते हैं जिन पर संस्था का अस्तित्व निर्भर करता है। अतः ये निर्णय प्रायः उच्च प्रबंधकों द्वारा लिए जाते हैं। ये निर्णय प्रायः संस्था के मुख्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए, लिये जाते हैं। उदाहरण के लिए किसी नए प्रोडक्ट को मार्केट में लाना, नई तकनीक को अपनाना आदि इसमें शामिल हैं। ये निर्णय प्रायः नॉन प्रोग्राम निर्णय होते हैं।
  2. निपुण निर्णय (Tactical Decision)—ये निर्णय जो संस्था के कुशल संचालन से संबंधित होते हैं अर्थात् ये संस्था के Strategic Level के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए किए जाने वाले विभिन्न कार्यों या विषयों पर लिए जाने वाले निर्णय हैं। एक Strategic निर्णय कई Tactical निर्णय लेने के बाद ही संभव होता है। ये निर्णय प्रायः मध्यम स्तर के प्रबंधकों द्वारा लिए जाते हैं। ये निर्णय प्रोग्राम्ड प्रकृति के होते हैं। क्योंकि यहाँ सूचनाएँ आसानी से मिल जाती हैं तथा समस्याओं का भी पता होता है जिन्हें पूर्वनियोजित विधि द्वारा सुलझाया जाता है।
  3. व्यक्तिगत निर्णय (Individual Decision)- संस्था में कुछ महत्वपूर्ण कार्यों के लिए कुछ उच्च प्रबंधकों को बहुत अधिक शक्ति दी जाती है। अतः इन कार्यों के लिए जाने वाले निर्णय इन्हीं व्यक्तियों द्वारा अपने आप लिए जाते हैं। इन कार्यों व निर्णय के लिए वे ही व्यक्ति उत्तरदायी होते हैं जिन्हें ये कार्य सौंपे गए हैं। ये प्रबंधक निर्णयों के लिए अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से सूचना, रिपोर्ट आदि अपने कहे अनुसार ढंग से प्राप्त करने हैं तथा उनके आधार पर निर्णय लेते हैं। लेकिन अन्ततः निर्णयों के लिए उत्तरदायी वे स्वयं (निर्णयकर्ता) ही होते हैं।
  4. समूह निर्णय (Group Decision)- ये वे निर्णय होते हैं जिन्हें एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा मिलकर लिए जाते हैं। ये निर्णय प्रायः सभी स्तरों पर लिए जाते हैं। ये प्रायः तब लिए जाते हैं जब समस्या एक से अधिक विभागों को प्रभावित करती है ऐसी स्थिति में सभी विभागों के प्रबंधकों द्वारा मिलकर सूचना प्राप्त करके तथा उन पर अपनी राय बनाकर निर्णय लिया जाता है। ये निर्णय उच्च स्तर पर भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए संचालकों द्वारा मिलकर लिए जाने वाले विभिन्न निर्णय। अतः हम कह सकते हैं कि ये एक समूह द्वारा लिए जाने वाले निर्णय होते हैं।
निर्णयन प्रक्रिया

निर्णयन प्रक्रिया के विभिन्न चरण निम्नलिखित हैं:

  1. समस्या को परिभाषित करना- इस प्रक्रिया में समस्या का पूर्णतया विश्लेषण किया जाता है। अतः सर्वप्रथम समस्या को परिभाषित करना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित प्रश्नों पर ध्यान दिया जाना चाहिए-

(i) समस्या क्या है, (ii) समस्या क्यों हल किया जाना चाहिए, (iii) समस्या से कौन से पक्ष प्रभावित हैं, (iv) क्या समस्या समयावधि है?

  1. समस्या का विश्लेषण करना- समस्या का विश्लेषण करना निर्णय प्रक्रिया का द्वितीय चरण है। विश्लेषण के द्वारा यह मालूम हो कि निर्णय किसे लेना चाहिए, निर्णय लेने में किस-किस की सम्मति लेनी चाहिए और निर्णय की सूचना किसे देनी चाहिए। ऐसा करने हेतु निम्नलिखित चार घटकों को ध्यान में रखना चाहिए-

(i) निर्णय की भविष्यता- सामान्य नियम यह है कि समय विस्तार जितना लम्बा हो, उतने ही ऊंचे स्तर का अधिकारी यह निर्णय करे।

(ii) निर्णय का प्रभाव क्षेत्र- कार्यों की संख्या जितनी अधिक होगी, निर्णय लेने वाला अधिकारी भी उतने ही ऊंचे स्तर का होना चाहिए।

(iii) गुणात्मक विचार- यदि निर्णय में गुणात्मक घटकों की समस्या उदय होती है जैसे—कम्पनी की नीति, लक्ष्य, संगठन-संरचना तो ऐसा निर्णय लेने का अधिकार शीर्ष प्रबंधक को होनी चाहिए।

(iv) निर्णय की बारम्बारता- कभी-कभी उठने वाली समस्या हो तो निर्णय शीर्ष प्रबंध द्वारा लिया जाना चाहिए। यदि समस्या आवधिक रूप से प्रस्तुत होती रहती है तो निर्णय उस स्तर के अधिकारी पर छोड़ देना चाहिए।

  1. वैकल्पिक समाधानों का विकास करना– समस्या को परिभाषित एवं विश्लेषित करने के पश्चात् उसे हल व ने के वैकल्पिक ढंगों की तलाश करना जरूरी है। वैकल्पिक हल होने के कारण परिस्थितियाँ बदलने पर समस्या का निदान किया जा सकता है।
  2. समस्याओं को सुलझाने के सर्वोत्तम ढंग पर विचार करना- वैकल्पिक हलों की खोज के उपरांत उनमें से सर्वश्रेष्ठ हल को चुनना आवश्यक है। इस हेतु निम्नलिखित दृष्टिकोणों से विभिन्न हलों पर तुलनात्मक रूप में विचार करना चाहिए-

(i) खतरा- निर्णायक को प्रत्येक हल के लिए आपेक्षित लाभों और हानियों का अनुपात ज्ञात करना चाहिए तथा उस हल को चुनना चाहिए जिसमें इनका अनुपात सबसे ऊँचा हो।

(ii) कम प्रयत्न- यह पता लगाना चाहिए कि कौन से वैकल्पिक ढंग, सामग्री और मानवीय प्रसाधनों के रूप में कम से कम विनियोग पर अधिक लाभ अर्जित किया जा सकता है।

  1. निर्णय को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करना- निर्णय की महत्वपूर्ण प्रक्रिया के अन्तर्गत निर्णय को प्रभावपूर्ण तरीके से लागू करना है। इसके लिए प्रबंधक को कर्मचारियों को अभिप्रेरित करना होता जिससे अधीनस्थ इस निर्णय को अपना निर्णय समझे। ऐसी भागीदारी से अन्तिम निर्णय की कुशलता में वृद्धि हो जाती है क्योंकि कुछ तथा प्रकाश में आ सकते हैं जो प्रबंधक से उपेक्षित रह गये थे।
  2. निर्णय का अनुसरण करना– निर्णय का अनुसरण करके उसकी व्यावहारिकता का पता लगाया जा सकता है। निर्णय के अनुसरण के बाद यदि कोई समस्या होती है तो उसमें परिवर्तन भी लाया जा सकता है।
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Pankaja Singh

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