अर्थशास्त्र

निजीकरण से तात्पर्य | निजीकरण का औचित्य | निजीकरण के पक्ष में तर्क | निजीकरण के विपक्ष में तर्क | निजीकरण से आशय

निजीकरण से तात्पर्य | निजीकरण का औचित्य | निजीकरण के पक्ष में तर्क | निजीकरण के विपक्ष में तर्क | निजीकरण से आशय

निजीकरण से तात्पर्य

विश्व में आर्थिक संरचना में दो प्रकार की लहरें अदल-बदल कर आती रहती हैं। कभी व्यावसायिक एवं आर्थिक क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका प्रबल हो जाती है तो कभी सरकार द्वारा अहस्तक्षेप की नीति को अपनाने पर बल दिया जाता है। सन् 1776 में एडम स्थिथ द्वारा लिखित पुस्तक ‘Wealth of Nations” के बाद लगभग एक शताब्दी तक स्वतंत्र व्यापार नीति (Policy of Laissez Fair) का बोलबाला रहा। इसके बाद में आर्थिक क्रियाओं में सरकार की भूमिका को बढ़ाने की मांग चारों ओर उठने लगी। आज विश्व में कोई भी ऐसा देश नहीं है, जहाँ पर सरकार द्वारा आर्थिक एवं व्यावसायिक क्रियाओं में किसी न किसी रूप में हस्तक्षेप नहीं किया जाता हो।

हमारे देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् नियोजित अर्थव्यवस्था की नीति को अपनाया गया तथा सार्वजनिक क्षेत्र का एक वृहत् जाल बिछाया गया है। सार्वजनिक क्षेत्र का विकास करने के लिए अनेक व्यवसायों तथा उद्योगों का राष्ट्रीयकरण भी किया गया। 1985 के बाद के देस में सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण की चर्चा की जाने लगी है।

निजीकरण से आशय एवं अवधारणा

(Meaning and Concept of Privatisation)-

जब सार्वजनिक क्षेत्र में संचालित किसी उपक्रम की सम्पत्तियाँ कारोबार तथा कर्मचारियों की सेवाएं सरकार द्वारा किसी निजी व्यवसायी या निजी क्षेत्र के उपक्रम को हस्तान्तरित कर दी जाती हैं, तो इस आर्थिक प्रक्रिया को निजीकरण कहा जाता है। इस प्रकार निजीकरण के अन्तर्गत दो प्रकार की क्रियाएँ होती हैं-

(i) सार्वजनिक क्षेत्र का आकार छोटा हो जाता है तथा

(ii) सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा प्रदत्त वस्तुओं एवं सेवाओं का नियन्त्रण राजकीय उपक्रमों से निजी उद्यमियों के हाथों में आ जाता है। निजीकरण की अवधारणा नयी नहीं है। हमारे देश में निजीकरण की बात 1980 के दशक के बाद से अधिक की जाने लगी है। भारतीय अर्थव्यवस्था की परिस्थितियों को देखते हुए निजीकरण के अर्थ को हम निम्न प्रकार स्पष्ट करत सकते हैं-

  1. निजीकरण से तात्पर्य निजी क्षेत्र पर लगे हुए प्रतिबन्धों एवं नियन्त्रणों को हटाना है। इस दिशा में भारत में अनेक प्रयास किये गये हैं, जैसे- निजी उपक्रमों को अपनी उत्पादन क्षमता का विस्तार करन की छूट देना, लाइसेंस लेने से छूट देना, विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम (FERA) तथा एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम (MRTP Act) के अधीन व्यावसायिक एवं औद्योगिक उपक्रमों को छूट दी गयी है तथा उनकी सीमा को बढ़ाया गया है।
  2. निजीकरण से तात्पर्य यह हो सकता है कि सार्वजनिक उपक्रमों के संचालक मण्डलों में निजी क्षेत्र के व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाये, जैसा कि भारत में एयर इण्डिया तथा इण्डियन एयरलाइन्स के संचालक मण्डलों में निजी उद्यमियों का अध्यक्ष बनाया गया है।
  3. निजीकरण का तात्पार्य योजनाओं में निजी क्षेत्र के अंशदान को बढ़ाने से भी लगाया जा सकता है।
  4. निजीकरण से तात्पर्य किसी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई को निजी क्षेत्र के व्यवसायियों को बेचने से है। हमारे देस में ऐसा नहीं हुआ है, परन्तु बंगलादेश, चिली आदि देशों में कुछ सरकारी उपक्रम निजी उद्योगपतियों को बेचे गये हैं।
  5. निजीकरण का तात्पर्य निजी उद्योगपतियों को सार्वजनिक इकाइयों का प्रबन्ध अनुबन्ध पर देने से भी है। भारत में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है।

निजीकरण का औचित्य अथवा निजीकरण के पक्ष में तर्क

(Need of Privatisation or Arguments in Favour of Privatisation)

सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करने का निर्णय बहुत जल्दबाजी में नहीं किया जाना चाहिए। जैसा कि पूर्व में विवेचन किया जा चुका है, हमारे देश में सरकार 1980 के बाद से निजी को पहले की अपेक्षा अधिक स्वायत्तता प्रदान कर रही है। 1991 की औद्योगिक नीति में निजी उद्यमियों, अप्रवासी भारतीयों तथा विदेशी उद्योगपतियों को भारत में उद्योग लगाने के लिए स्पष्ट रूप से खुला आमन्त्रण दिया गया है। उद्योगों पर लगे हुए प्रतिबन्धों को ढीला किया गया है। हमारी सरकार अभी किसी भी सार्वजनिक उपक्रम को निजी उद्योगपतियों को बेचने का निर्णय नहीं ले रही है। भारत में सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण की आवश्यकता निम्न कारणों से है अर्थात् निजीकरण के पक्ष में हम निम्न तर्क दे सकते हैं-

  1. राजकीय उपक्रमों की अकुशलता को कम करना- हमारे देश में बहुत-से राजकीय उपक्रम घाटे में चल रहे हैं और जो उपक्रम लाभ कमा भी रहे हैं व उनमें विनियोजित पूंजी की तुलना में बहुत कम लाभ कमा रहे हैं। सार्वजनिक उपक्रमों में साधनों का अपव्यय अधिक होता है। राजकीय उपक्रमों की अकुशलता को समाप्त करने के लिए उनका निजीकरण किया जाना उपयुक्त होता है, ताकि उपक्रम के साधनों का सदुपयोग हो सके तथा उपक्रमों के शुद्ध लाभों में वृद्धि की जा सके।
  2. मुद्रा स्फीति के प्रभाव को कम करना- सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण से देश में मुद्रा स्फीति की दर को नियन्त्रित करने में सहायता मिलेगी। हमारे देश में केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों के बजट घाटों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। यह बजट घाटा मुद्रास्फीति के कारण और बढ़ जाता है और साधारण नागरिकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बजट के घाटे को सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता है।
  3. सरकारी प्राप्तियों में वृद्धि सम्भव- वर्तमान समय में सरकार पर भारी वित्तीय दबाव है। सरकार को अपनी योजनाओं के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं जैसे विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि तथा विदेशों से प्राप्त होने वाली सहायता में कमी आयी है तथा उनकी शर्ते भी कठोर होती जा रही हैं। सरकारी प्राप्तियों में वृद्धि के लिए निजीकरण का उपयोग किया जा सकता है। सार्वजनिक उपक्रमों के अंश निजी व्यक्तियों को बेचकर योजनाओं के लिए धन प्राप्त किया जा सकता है? भारत में 1992 में इस तरीके से धन प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है और कुछ सार्वजनिक उपक्रमों के अंश जनता को बेचे गये हैं। अक्टूबर, 1992 में सार्वजनिक उपक्रमों के 682 करोड़ रुपये के अंश खुली निलामी से बेचे गये हैं और एक बड़ी धनराशि प्राप्त की गयी है।
  4. कार्यकुशलता एवं उत्पादकता में वृद्धि- निजीकरण की प्रक्रिया से विभिन्न प्रकार की मितव्ययितायें प्राप्त की जा सकती हैं। इससे लागतों में कमी आयेगी तथा उपक्रम की कार्यकुशलता एवं उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है। अपव्ययों पर रोक लगने से विकास तथा कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए धन की की प्राप्ति होगी।
  5. प्रतिस्पर्धा का लाभ प्राप्त होना- निजीकरण की प्रक्रिया का लाभ यह होता है कि आन्तरिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का लाभ उपभोक्ताओं को प्राप्त होता है। प्रतिस्पर्धा में टिकने के लिए निजी उपक्रम ग्राहकों के हितों पर अधिक ध्यान देते हैं तथा नवीनतम तकनीकी को अपनाते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में इसका अभाव पाया जाता है।
  6. जनकल्याण पर सरकार का अधिक ध्यान- सार्वजनिक उपक्रमों का विस्तृत जाल हो जाने के कारम सरकार जनसामान्य की समस्याओं पर ध्यान नहीं दे पाती है। अतः निजीकरण करके सरकार जनकल्याण कार्यक्रमों का अधिक प्रभावशाली ढंग से क्रियान्वयन कर सकती है।
  7. राजनैतिक प्रभाव एवं प्रतिबद्धताओं से मुक्ति- राजकीय उपक्रमों का संचालन करने में सरकार पर अपने राजनैतिक दल की विचारधारा तथा अन्य पूर्वाग्रहों का प्रभाव पड़ता है। इससे उपक्रम की कार्यशैली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए सरकार द्वारा जनहित तथा राष्ट्रीय महत्त्व के उद्योगों को छोड़कर शेष का निजीकरण कर देना चाहिए।
  8. राष्ट्रीयकरण के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं होना- हमारे देश में जिन उद्देश्यों को लेकर उद्योगों तथा व्यावसायिक उपक्रमों का राष्ट्रीयकरण किया गया वे अपने इन उद्देश्यों को पूरा करने में सर्वथा असमर्थ रहे हैं। इसी प्रकार सरकार द्वारा स्थापित अनेक उपक्रम जन-आकांक्षाओं के अनुरूप अपनी स्थापना के उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाये हैं। अतः ऐसी स्थिति में इन सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करना अधिक उपयुक्त रहेगा।

निजीकरण के विपक्ष में तर्क

(Arguments against Privatisation)

सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण के विपक्ष में निम्न तर्क दिये जाते हैं-

  1. सार्वजनिक क्षेत्र की कार्यकुशलता में सुधार के प्रयास- वर्तमान समय में भारत में राजकीय उपक्रमों की और कुशलता का प्रमुख कारण उनकी संचालन संबंधी कमियों का होना है। सरकार को निजीकरण की बात करने की अपेक्षा इन उपक्रमों की संचालन सम्बन्धी कमियो को दूर करने का प्रयास करना चाहिए तथा इनकी कुशलता में सुधार का प्रयास करना चाहिए। बहुत से सार्वजनिक उपक्रम पर्याप्त मात्रा में लाभ कमा रहे हैं तथा अपने उत्पादन तथा सेवाओं के लिए अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिष्ठा अर्पित की है। हिन्दुस्तान मशीन टूल्स तथा भारत हैवी इलेक्टिकल्स लि0 इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
  2. निजी क्षेत्र में बीमार औद्योगिक इकाइयों की विद्यमानता- निजी क्षेत्र में बीमार औद्योगिक इकाइयों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। सूती वस्त्र उद्योग की 104 बीमार मिलों को राष्ट्रीय कपड़ा निगम द्वारा लिया गया है। निजीकरण का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि एक तरफ से सरकार स्वयं निजी क्षेत्र की बीमार इकाइयों का अधिग्रहण कर सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार कर रही है और दूसरी तरफ राजकीय उपक्रमों के निजीकरण की बात की जा रही है। यह एक हास्यास्पद स्थिति है।
  3. बीमार राजकीय उपक्रमों को कोई लेने को तैयार नहीं- लाभप्रद स्थिति में संचालित राजकीय उपक्रमों में तो निजी क्षेत्र के व्यवसायी भी धन विनियोजित करने को तत्पर हैं, परन्तु आर्थिक दृष्टि से असक्षम एवं बीमार सार्वजनिक इकाइयों को कोई भी निजी उद्योगपति लेने को तैयार नहीं होता है।
  4. निजी क्षेत्र दीर्घकालीन आधार प्रदान नहीं करता- निजी क्षेत्र की कुशलता अल्पकालीन परिस्थितियों पर निर्भर करती है। अल्पकाल में अनुकूल बाजार परिस्थितियों के कारण जब निजी उपक्रम लाभ कमा लेते हैं तो वे कुशल लगने लगते हैं, परन्तु दीर्घकाल में व्यापार चक्रों के प्रभाव तथा बाजार परिस्थितियों में परिवर्तन के कारण निजी उपक्रम लाभ की स्थिति में नहीं होते हैं। इसी प्रकार से निजी उपक्रम अर्थव्यवस्था को किसी प्रकार का संरचनात्मक आधार प्रदान नहीं करते हैं, जो कि केवल सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा ही सम्भव है।
  5. निजी उपक्रमों में सार्वजनिक अभिकरणों का विनियोजन अधिक- निजी क्षेत्र के उपक्रमों में औद्योगिक विकास बैंक, भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इडिया, जीवन बीमा निगम तथा राज्य वित्त निगम आदि सार्वजनिक अभिकरणों की पूँजी बड़ी मात्रा में लगी हुई है। निजी उद्योगपतियों का पूँजी में अंशदान तुलनात्मक रूप से बहुत कम है, अतः आलोचकों का कहना है कि ऐसे निजी क्षेत्र को सार्वजनिक उपक्रम सौंपना न्यायोचित नहीं होगा।
  6. आर्थिक विषमता- निजीकरण से देश में आर्थिक विषमता को अधिक बढ़ावा मिलेगा। जिस समाजवादी समाज की स्थापना के उद्देश्य को लेकर सार्वजनिक क्षेत्र का विकास एवं विस्तार किया गया था, समाजवाद के उस लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकेगा।

निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण न करके उनकी कार्यकुशलता को सुधारने का प्रयास करना चाहिए। जब तक वर्तमान सार्वजनिक उपक्रम अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते हैं, उनकी संख्या में वृद्धि नहीं करनी चाहिए।

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Pankaja Singh

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