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निबन्ध की विशेषताएँ | जीवनी तथा उनकी विशेषताएँ | आत्मकथा एवं उनकी विशेषताएं | जीवनी और आत्मकथा में अन्तर

निबन्ध की विशेषताएँ | जीवनी तथा उनकी विशेषताएँ | आत्मकथा एवं उनकी विशेषताएं | जीवनी और आत्मकथा में अन्तर

निबन्ध की विशेषताएँ

  1. ‘निबन्ध’ एक लघु आकार वाली रचना होनी चाहिए, जो सुगमता से पढ़ी जा सके और जिसका प्रभाव ऐसा हो जो सरलता से चित में संचित हो जाय।
  2. ‘निबन्ध’ में चित्तात्मक प्रभाव होना चाहिए, जिससे वह तर्कों का समूह न भासित हो और उसमें किसी सिद्धान्त या पद्धति की प्रतिष्ठा न हो।
  3. यद्यपि निबन्ध में परिपूर्णता की अनिवार्यता नहीं स्वीकारी गयी है फिर भी उसे अपनी समग्रता में कलात्मक होना चाहिए।
  4. निबन्ध की शैली सरल-सरस-सुगम होनी चाहिए।
  5. उसमें विषय-वस्तु का वैविध्य, संक्षिप्तता, वैयक्तिकता, संगठनात्मकता, सुसम्बद्धता और रोचकता होनी चाहिए।
  6. निबन्ध में एक आकर्षक शैली के साथ-साथ व्यंग्य-विनोद की अभिक्षमता भी होनी चाहिए।

जीवनी तथा उनकी विशेषताएँ

जीवनी

जीवनी का अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द ‘लाइफ’ अथवा ‘बायोग्राफी’ है। ‘जीवनी’ या ‘जीवन- चरित्र’ जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है कि इसके अन्तर्गत अन्य व्यक्तियों का जीवन-चरित्र लिखा जाता है। जीवनीकार इतिहास, समाज, अतीत या वर्तमान से अपनी रचना के प्रधान पुरुष का चयन करके उसके समग्न जीवन देशकालगत परिस्थितियों के अनुकूल चित्रित करता है। उसमें चरित नायक सम्पूर्ण जीवन या उसके यथेष्ट भाग की चर्चा होती है। जीवनियाँ बहुधा महान् पुरुषों की ही लिखी जाती है जिसकी अभिव्यक्ति जीवनीकार कुछ तो प्रत्यक्ष जीवन से तथा कुछ अपने मानस लोक की प्रतिक्रिया से करता है। हिन्दी साहित्य कोश के अनुसार-“जीवन-चरित सारे जीवन में किये हुए किसी के कार्य का वर्णन होता है। उसमें चरित नायक के सम्पूर्ण जीवन या उसके यथेष्ट भाग की चर्चा होनी चाहिए।” डिक्शनरी आफ वर्ल्ड लिटरेरी टर्स के अनुसार-“जीवनी से चरित नायक के सम्पूर्ण जीवन या उसके यथेष्ट भाग की चर्चा होनी चाहिए और उसे उपने आदर्शरूप में एक विशिष्ट इतिहास भी होना चाहिए।”

जीवनी की विशेषताएँ

‘जीवनी’ गद्य साहित्य का वह रूप है जो उसे गद्य की अन्य विधाओं से अपने को अलग करती है जिसका कारण उसकी कतिपय विशेषताएँ ही हैं जो निम्नलिखित हैं-

  1. ‘जीवनी’ किसी व्यक्ति के जीवन की घटनाओं का कालक्रमानुसार धारावाहिक वर्णन है।
  2. ‘जीवनी’ में देशकाल और परिस्थितियों का भी प्रसंगानुसार वर्णन होता है।
  3. ‘जीवनी’ में चरित नायक के चरित्र की विशेषताओं, उसके शारीरिक तथा बौद्धिक गुणों के वर्णन के साथ-साथ उसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण भी किया जाता है।
  4. ‘जीवनी’ में चरित नायक की वंश-परम्परा, सामाजिक परिवेश और कुल-परिवार का भी वर्णन किया जाता है।
  5. ‘जीवनी’ में लेखक स्वयं पृष्ठभूमि के रूप में रहता है। वह अपने बारे में कही विस्तार से या विशेषरूप से कुछ नहीं लिखता।

आत्मकथा एवं उनकी विशेषताएं

आत्मकथा

आत्मकथा का शाब्दिक अर्थ है अपनी कहानी। इसमें किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं अपनी लेखनी से लिखी गयी उसकी अपनी जीवन कहानी होती इसमें लेखक अपनी बात उत्तम पुरुष (मैं, मुझको, मेरा) में व्यक्त करता है। इसमें लेखक अपनी स्मृति के आधार पर अपने जीवन की विविध घटनाओं एवं अनुभवों का क्रमबद्ध वर्णन प्रस्तुत करता है।

यदि लेखक अपने जीवन के किसी छोटे अंश का किसी व्यक्ति के सम्पर्क या घटना विशेष का ही वर्णन करता है तो उसे आत्मकथा नहीं कहेंगे, वह संस्मरण की कोटि में आयेगा। हिन्दी साहित्य कोश के अनुसार, “आत्मकथा लेखक का अपने जीवन से सम्बद्ध वर्णन है। आत्मकथा के. द्वारा अपने बीते हुए जीवन का सिंहावलोकन और एक व्यापक पृष्ठभूमि में अपने जीवन का महत्व दिखलाया जाना सम्भव है।”

आत्मकथा की विशेषताएँ

  1. आत्मकथा का नायक स्वयं लेखक होता है।
  2. आत्मकथा में केवल आत्म-विश्लेषण ही नहीं होता अपितु बाझ जगत से सम्बन्धित क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं का भी विवेचन होता है।
  3. आत्मकथा के लेखक को अपने जीवन से सम्बन्धित घटनाओं और परिस्थितियों का वर्णन पूरी ईमानदारी के साथ करना चाहिए, क्योंकि ईमानदारी और सच्चाई आत्मकथा का मूल प्राण है, अतः सत्यता की रक्षा करना लेखक का धर्म है।
  4. आत्मकथा में काल्पनिक प्रसंगों के लिए कोई स्थान नहीं होता, क्योंकि आत्मकथा यथार्थ और प्रामाणिक कथ्यों पर आधारित होती है।
  5. आत्मकथा की शैली में ऐसी प्रभावोत्पादकता होनी चाहिए जो पाठक के मस्तिष्क और अन्तर्मन पर पूरी तरह छा जाये। शैली में घटनाओं की सुसंगठित योजाना, लाघवता, स्पष्टता, निर्भीकता और रोचकता होनी चाहिए।

जीवनी और आत्मकथा में अन्तर

जीवनीकार किसी व्यक्तिविशेष के जीवन-चरित का वर्णन करता हैं, जबकि आत्मकथा में लेखक स्वयं अपने जीवन-चरित का वर्णन करता है। आत्मकथा का लेखक मुख्यतः अपने जीवन में घटित महत्वपूर्ण घटनाओं का पुनर्गठन करता है जो कि अपने आप में निश्चय ही एक दुष्कर कार्य होता है इसके विपरीत जीवनी का कार्य अपेक्षतया अधिक सरल होता है क्योंकि दूसरे बाह्या एवं अन्तर को व्यक्त करना आत्म विवेचन से अधिक सरल होता है।

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Pankaja Singh

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