नगर शासन | स्थानीय शासन का अर्थ | स्थानीय स्वशासन से लाभ और उसका महत्व | City Government in Hindi | Meaning of local government in Hindi | Benefits of local self-government and its importance in Hindi
नगरीय शासन-
शक्तियों के विकेन्द्रीकरण पर आधारित है। किसी भी केन्द्रीय या राज्य सरकार के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह प्रत्येक स्थान की समस्याओं को हल करने के लिए स्वयं उलझी रहे, अतः इस कार्य को विभिन्न स्थानीय संस्थायें करती हैं। जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत, क्षेत्र विकास समिति और जिला परिशद नगरीय क्षेत्रों में नगर निगम, नगरपालिका और टाउन एरिया, नोटीफाइड एरिया आदि। ये सभी स्थानीय शासन की संस्थायें है। नगरीय शासन के अन्दर वे सभी संस्थायें आती हैं जो नगरों में प्रशासन कार्य को सम्पन्न करती हैं। प्रत्येक लोकतन्त्रीय शासन में, स्थानीय शासन की संस्थाओं का विशेष महत्व है। ये संस्थायें स्थानीय समस्याओं को हल करने में विशेष योग देती हैं। नगरीय शासन भी स्थानीय शासन का ही अंग है। नगरों में स्थानीय शासन नगर निगम, नगरपालिका, टाउन एरिया आदि द्वारा चलाया जाता है।
स्थानीय शासन का अर्थ
नगरीय संदर्भ में स्थानीय शासन की विवेचना से पूर्व स्थानीय शासन के प्रत्यय को समझना आवश्यक है। माण्टेस्क्यू के अनुसार ‘स्थानीय शासन’ शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जा सकता है।
इन दो अर्थों में पहला यह है कि स्थानीय सरकार उस सरकार की ओर संकेत करती है। जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त और उसके प्रति उत्तरदायी स्थानीय एजेन्टों, एक देश की समस्त भागों की सरकार होती है। यह स्थानीय सरकार का एक रूप है परन्तु वास्तव में इसे केन्द्रीय व्यवस्था का ही एक भाग मानना उचित होगा। स्थानीय सरकार के इस रूप हेतु ‘स्थानीय राज्य सरकार’ (Local State Govemment) शब्द का प्रयोग किया जाता है। स्थानीय सरकार का दूसरा रूप वह है जहाँ स्थानीय निकाय स्वतन्त्र निर्वाचन द्वारा गठित होते हैं और राष्ट्रीय सरकार की सर्वोच्चता के अधीन रहते हुए भी कुछ मामलों में स्वेच्छा और स्वतन्त्रता का अनुभव करते हैं तथा उनकी कुछ हद तक स्वतन्त्र सत्ता होती है, इसे सामुदायिक स्वायत्तता के नाम से भी पुकारा जाता है। परन्तु अधिकांश देशों में इसे स्थानीय स्वायत्त शासन या स्थानीय स्वायत्त स्वशासन (Local Self Government) कहा जाता है।
स्थानीय स्वशासन से लाभ और उसका महत्व
(Merits of Local Self Government and its Importance)
आधुनिक लोकतन्त्रात्मक युग में स्थानीय संस्थाओं का अपना विशेष महत्व है। स्थानीय शासन से अनेक लाभ हैं। इनमें प्रमुख लाभ निम्न प्रकार हैं-
(1) विभिन्न समस्याओं का उचित समाधान- आधुनिक युग में जीवन की समस्याएँ अत्यन्त जटिल हो गई है। केन्द्रीय या राज्य सरकार के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह नागरिकों की समसत समस्याओं का समाधान ठीक प्रकार से कर दे। साथ ही वे प्रत्येक क्षेत्र की समस्याओं को भली प्रकार नहीं समझ सकतीं। स्थानीय स्वशासन में किसी क्षेत्र विशेष के ही प्रतिनिधि होते हैं जो उस क्षेत्र की समस्याओं को भली-भाँति समझते हैं तथा उनका समाधान आसानी से कर लेते हैं।
(2) मितव्ययिता- स्थानीय संस्थाओं में प्रजा के बहुत से प्रतिनिधि अवैतनिक रूप से कार्य कर सकते हैं। साथ ही स्थानीय संस्थायें स्थानीय जनता के कार्यों को पूरा करने के लिए कुछ कर लगाती हैं। स्थानीय करदाता यह सहन नहीं कर सकता कि उसके द्वारा दिए गये धन का दुरूपयोग हो। इसलिए प्रशासन में मितव्ययिता वरती जाती है।
(3) स्वतन्त्रता एवं स्वावलम्बन की भावना- स्थानीय स्व-शासन के द्वारा लोगों में स्वतन्त्रता और स्वावलम्बन की भावना जागृत होती है और नौकरशाही की समाप्ति होती है।
(4) सरकार के कार्य-भार में कमी- स्थानीय स्व-शासन के फलस्वरूप केन्द्रीय या प्रान्तीय सरकार को छोटी-छोटी समस्याओं पर ध्यान नहीं देना पड़ता है और इस प्रकार उनके कार्य-भार में कमी हो जाती है। फलस्वरूप, सरकारें और अधिक महत्वपूर्ण कार्यों को देखती हैं।
(5) स्थानीय आवश्यकताओं की ओर विशेष ध्यान– स्थानीय प्रशासन के कारण क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कोई भी सरकार प्रत्येक क्षेत्र की समस्याओं को भली प्रकार नहीं समझ पाती। इसलिए उसका विकास रुक जाता है। इस प्रकार की पूर्ति स्थानीय स्वशासन करता है।
(6) राष्ट्रीय स्वशासन की नींव- स्थानीय शासन की स्थापना करना राष्ट्रीय स्वशासन की नींव डालना है। पराधीन देश की स्वतन्त्रता का प्रारम्भ स्थानीय स्वशासन से होता है। जब जनता के स्वशासन के भावना जागृत हो जाती है तो वह राष्ट्रीय स्वशासन प्राप्त करने का प्रयास करती है।
(7) न्याय की दृष्टि से आवश्यक– न्याय की दृष्टि से भी स्थानीय प्रशासन अत्यन्त आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति को इस बात का अधिकार होना चाहिए कि उसे अपनी समस्याओं के शीघ्र अवसर प्राप्त हो। यदि स्थानीय संस्थाएं न हों तो लोगों को अपने प्रत्येक कार्य के लिए सरकार का मुँह देखना पड़े। स्थानीय संस्थाओं द्वारा उनका कार्य आसानी से बन जाता है।
(8) लोकतन्त्रात्मक सरकार के लिए आवश्यक– स्थानीय स्वशासन के अभ्यास में ही प्रजातन्त्र के शासन की सफलता की कुञ्जी है। स्थानीय संस्थाएं वे पाठशालाएँ होती हैं जिनसे व्यक्ति प्रजातन्त्र सरकार के अधिकार और कार्यों के विषय में जानकारी प्राप्त करता है।
लोकतन्त्र इस मान्यता पर आधारित है कि शासन की अन्तिम शक्ति जनता में निहित होनी चाहिए। इस दृष्टि से स्थानीय स्वशासन का अपना अलग महत्व है। स्थानीय स्वशासन में ही वास्तविक लोकतन्त्र का स्वप्न साकार होता है। डी० टाकविल ने लिखा है, “नागरिकों की स्थानीय सभाएँ स्वतन्त्र राष्ट्रों की वास्तविक शक्ति है। नगर सभाएँ स्वतन्त्रता को लोगों तक पहुँचाती हैं, वे उनको सिखाती हैं कि स्वतन्त्रता का आनन्द किस प्रकार उठाया जाये। एक राष्ट्र भले ही स्वतन्त्र सरकार की पद्धति को स्थापित कर ले परन्तु स्थानीय संस्थाओं के बिना इसमें स्वतन्त्रता की भावना नहीं आ सकती।”
स्थानीय संस्थाओं में जो अनुभव व्यक्तियों को प्राप्त होता है वह लोकतंत्रीय शासन के लिए बहुत उपयोगी होता है। इस महत्व को स्पष्ट करते हुए प्रो० लास्की (Laski) ने लिखा है, “स्थानीय स्वशासन की संस्था सरकार के किसी अन्य भाग की अपेक्षा अधिक शिक्षाप्रद है।” स्थानीय स्वशासन के द्वारा नागरिकों में कर्तव्य और जिम्मेदारियों के पालन की भावना उत्पन्न होती है। ब्राइस ने लिखा है, “जो भी ग्राम के मामलों में ईमानदारी, सक्रियता और सार्वजनिक भावना को सीख लेता है, उसने अपने महान देश के नागरिक के कर्तव्य का पहला पाठ सीख लिया है। वह आगे लिखता है, “स्थानीय संस्थाएँ व्यक्तियों को न केवल सार्वजनिक हितों की शिक्षा देती है, बल्कि दूसरों के साथ प्रभावशाली ढंग से काम करने की ट्रेनिंग भी देती हैं। इन स्थानीय संस्थाओं द्वारा नागरिकों में न्याय और सामाजिक भावना की उत्पत्ति होती है जो कि लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक है।
केन्द्रीय या प्रान्तीय सरकार स्थानीय कार्यों को भली-भाँति नहीं कर सकतीं, क्योंकि न तो इनके पास इतना समय होता है कि वे स्थानीय समस्याओं की ओर ध्यान दें और न तो उनकी उस ओर विशेष रूचि ही होती है, इसलिए प्रान्तीय और स्थानीय हितों एवं कार्यों में बँटवारा आवश्यक हो जाता है। इसलिए स्थानीय सरकारों को कार्य सौंपने से लोगों की स्थानीय प्रशासन में रूचि उत्पन्न होगी और वे अधिक कुशलता, योग्यता और बचत पूर्वक कार्य करेंगे। भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने 1919 ई0 में स्वशासन के मन्त्रियों के पहले सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा था, “स्थानीय स्वशासन लोकतंत्र की सच्ची पद्धति का आधार है और होना भी चाहिए। हमें प्रायः लोकतन्त्र को ऊपर से सोचने की आदत पड़ गई है और हम नीचे की तरफ से लोकतन्त्र के बारे में कुछ सोचते नहीं हैं। लोकतन्त्र ऊपर से शायद सफल न हो जब तक कि आप उसे नीचे इस बुनियाद पर न बनाएँ।
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