इतिहास

नागर शैली के मन्दिर | नागर शैली के मन्दिरों का संक्षिप्त परिचय

नागर शैली के मन्दिर | नागर शैली के मन्दिरों का संक्षिप्त परिचय

नागर शैली के मन्दिर

नागर शैली के मन्दिर उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कर्नाटक के बीजापुर जिले तक और पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में बंगाल तक फैले हुए थे। इतने विशाल भूभाग में विस्तृत होने के कारण नागर शैली के मन्दिरों के आकार-प्रकार, स्वरूप तथा विकास में क्षेत्रीय अथवा प्रादेशिक विशेषताओं की झलक मिलती है। विद्वानों ने नागर शैली के मन्दिरों को विभित्र उपशैलियों में विभाजित किया है क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों में कुछ न कुछ स्थानीय प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। यद्यपि नागर शैली का क्षेत्र प्राचीन काल में उत्तर भारत के अत्यन्त विशाल क्षेत्र में फैला हुआ था किन्तु आज गंगा के मैदान में नागर शैली की वास्तुकला के उदाहरण नहीं के बराबर है। इस क्षेत्र के अधिकांश मन्दिर ध्वस्त हो गए हैं। उत्तर प्रदेश के दक्षिणी पठार भाग, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा गुजरात के क्षेत्रों में नागर शैली के अनेक मन्दिर अपेक्षाकृत सुरक्षित अवस्था में स्थित हैं। हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर में भी कतिपय प्रसिद्ध मन्दिर स्थित हैं। दक्षिणी उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में रामनगर तथा बाँदा जिले में कालंजर में शिव के मन्दिर हैं। महोबा, हमीरपुर, झाँसी और ललितपुर जनपदों में नागर शैली के मन्दिरों के उदाहरण अनेक स्थानों पर मिलते हैं। ललितपुर जिले में दुधई, चन्दनपुर, मदनपुर तथा देवगढ़ नामक स्थानों पर नागर शैली के मन्दिर विद्यमान हैं।

मध्य प्रदेश के प्रायः अधिकांश जिलों में नागर शैली के मन्दिर तथा मन्दिरों के अवशेष मिलते हैं। छतरपुर जिले के खजुराहो नामक स्थान पर स्थित मन्दिर अपेक्षाकृत सुरक्षित अवस्था में हैं। पन्ना जिले में अजयगढ़, सतना में मैहर तथा सड़ई, रीवा में गुर्गी ग्वालियर जिले में ग्वालियर नगर, जबलपुर में त्रिपुरी, बिल्हरी, भेड़ाघाट, सीधी जिले में चन्द्रेहे, शहडोल जिले में बान्धवगढ़, सोहागपुर एवं अमरकण्टक, विदिशा जिले में ग्यारसपुर में नागर शैली के मन्दिर स्थित हैं।

राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में गुप्तोत्तर काल में अनेक मन्दिरों का निर्माण हुआ। राजस्थान के झालारपाटन जिले में चन्द्रभागा में स्थित शैलेश्वर मन्दिर, कोटा जिले में शिव मन्दिर, जयपुर जनपद में आबनेरी और हर्षद माता का मन्दिर जोधपुर में ओसिया में हरि-हर, सूर्य तथा महावीर का जैन मन्दिर उल्लेखनीय हैं। सिरोही जिले में स्थित दिलवाड़ा में आबू पर्वत पर जैन मन्दिर का निखरा हुआ रूप देखने को मिलता है। इस समूह में चार मुख्य तथा शेष आनुषंगिक मन्दिर हैं। इनमें से विमल-वसही तथा लूण-वसही इन दो का विशेष महत्त्व है। गुजरात के चालुक्य (सोलंकी) राजा प्रथम भीम के मंत्री विमलशाह ने सन् 1031 ईसवी (संवत् 1088) में विमल- वसही का निर्माण कराया था। विमल-वसही प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभनाथ का मन्दिर है। संगमरमर के बने इन मंदिरों के भीतर का प्रत्येक भाग अलंकृत है। विलक्षण जालियों, बेल-बूटों, नक्काशियों और आकृतियों का उपयोग अलंकरण के लिए किया गया है।

गुजरात के नागर शैली के मन्दिर राजस्थान के नागर मन्दिरों से बहुत कुछ मिलते-जुलते हैं, किन्तु यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि सौराष्ट्र के कतिपय मन्दिर ऐसे भी हैं जो अपनी वास्तु- योजना में नागर शैली के मन्दिरों से किंचित् भिन्न हैं। जामनगर जिले में गोप नामक स्थान पर गुजरात का प्राचीनतम मन्दिर स्थित है जिसका निर्माण छठवीं शताब्दी ईसवी में हुआ था। अन्य उल्लेखनीय मन्दिरों में जूनागढ़ के मियानी तथा भनसरा, विसवाड़, खिमेश्वर, प्रभास पाटन के समीप कड़वार स्थित वाराह मन्दिर और सूत्रपद स्थित सूर्य मन्दिर तथा साबरकांठा जिले में रोड़ा नामक स्थान पर स्थित मन्दिर-समूह आते हैं जिनका निर्माण-काल मोटे तौर पर आठवीं शताब्दी ईसवी माना जाता है। गुजरात के सोलंकी राजाओं का शासन-काल मन्दिरों के निर्माण के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध रहा है। महासाणा जिले के मोढेरा नामक स्थान पर स्थित ध्वस्त सूर्य मन्दिर, खोलारु जिले के मदनीपुर में दुग्धेश्वर महादेव मन्दिर, खण्डोरन का हिंगलोजी-माता मन्दिर तथा प्रभास पाटन में स्थित सोमनाथ मन्दिर वास्तुकला की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में मसरूर नामक स्थान पर पत्थरों को काटकर नागर शैली के कतिपय मन्दिरों का निर्माण संभवतः आठवीं शताब्दी में किया गया था। काँगड़ा जनपद के बैजनाथ नामक स्थान पर नवीं शताब्दी में पत्थरों से चिनकर कुछ मन्दिर बनवाये गए जो उड़ीसा के मन्दिरों से रूप और शैली में बहुत कुछ मिलते-जुलते हैं। जम्मू-कश्मीर में आठवीं शताब्दी में ललितादित्य मुक्तापीड़ के शासनकाल में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य हुए। परिहासपुर में बौद्ध स्तूप, विहार और चैत्यगृह बनवाये गए। मन्दिर निर्माण के लिए यह काल विशेष रूप से उल्लेखनीय है। ललितादित्य द्वारा निर्मित मार्तण्ड का सूर्य मन्दिर सबसे प्रसिद्ध है। कश्मीर के मन्दिर प्रायः आँगन से घिरे हुए हैं। गर्भगृह के चारों ओर स्तम मुक्त दक्षिणापथ मिलता है और ऊपर त्रिकोणाकार दोहरी छत है। प्रवेश-द्वार के ऊपर त्रिकोणाकार तोरण और उसके बीच में एक रथिका (आला) है। स्तम्भ खरबूज की तरह कटावदार हैं। मन्दिर के आँगन से लगी हुई कुछ कोठरियाँ (कक्ष) मिलती हैं जिनका निर्माण कदाचित् बौद्ध विहारों की प्रेरणा के आधार पर किया गया था।

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Pankaja Singh

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