शिक्षाशास्त्र

मूल्यों के प्रकार | जीवन के मूल्य | जीवन के मूल्य और शिक्षा के मूल्य

मूल्यों के प्रकार | जीवन के मूल्य | जीवन के मूल्य और शिक्षा के मूल्य

मूल्यों के प्रकार

मूल्य व मूल्यों के बारे में जान लेने के बाद हमें मूल्यों के प्रकार पर भी विचार करना चाहिए। इन्हें नीचे दिया जा रहा है-

(क) आन्तरिक मूल्य- आन्तरिक (Intrinsic) मूल्य उसे कहते हैं जब आधारभूत वरीयता जो वस्तु या व्यक्ति में पाई जाती है उसे अन्तिम माना जाता है।

मनुष्य की मनुष्यता उसका आन्तरिक मूल्य है। इसी तरह से ईमानदारी, सच्चाई, सदाचार आदि भी मनुष्य के आन्तरिक मूल्य हैं।

(ख) बाह्य मूल्य- बाह्य मूल्य की आधारभूत वरीयता दूसरी वरीयता के अधीन होती है अर्थात् किसी बाह्य कारण से हमें कोई वस्तु मूल्य वाली होती है।

इससे स्पष्ट है कि जहाँ आन्तरिक मूल्य अपने आपके अधीन होता है, वह निरपेक्ष होता है, वहाँ बाह्य मूल्य दूसरे मूल्य के सम्बन्ध में समझा एवं स्वीकार किया जाता है। वस्तुतः आन्तरिक मूल्य स्वयं वही मूल्य होता है और बाह्य मूल्य का एक साधन होता है जिससे लक्ष्य की प्राप्ति होती है। उदाहरण के लिए परीक्षा का मूल्य बाह्य है क्योंकि परीक्षा पास करके लोग ज्ञान एवं नौकरी भी प्राप्त करते हैं।

(ग) व्यक्तिनिष्ठ मूल्य- व्यक्तिनिष्ठ मूल्य व्यक्ति से जुड़े होते हैं और व्यक्ति की आवश्यकता, इच्छा, उपयोगिता आदि पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए व्यक्ति की मूल आवश्यकताएँ हैं, भोजन, आवास और वस्त्र । इनका व्यक्तिनिष्ठ मूल्य है।

(घ) वस्तुनिष्ठ मूल्य- वस्तुनिष्ठ किसी वस्तु की उपयोगिता होती है। उदाहरण के लिए जाड़े के दिनों में गर्म कपड़ों का मूल्य होता है तो गर्मी के दिनों में ठंडे कपड़ों का। इसी प्रकार से गर्मी से बचने में पहाड़ों एवं ठंडी जगहों का मूल्य होता है। यह वस्तुनिष्ठ मूल्य है।

(ङ) साधन मूल्य- साधन मूल्य वे होते हैं जो किसी वस्तु की प्राप्ति में सहायता देते हैं। उदाहरण के लिये विद्यालय में हम शिक्षा लेते हैं और यह शिक्षण साधन होता है आगे बढ़ाने का। अतएव विद्यालय शिक्षण का साधन मूल्य होता है। इसी प्रकार से खाद्य पदार्थ भी साधन मूल्य रखते हैं क्योंकि इनकी सहायता से मनुष्य जीवन धारण करने में समर्थ होता है।

(च) सांस्कृतिक मूल्य- उन मूल्यों को सांस्कृतिक मूल्य कहा जाता है जिनसे हमारे संस्कारों का निर्माण होता है। इसमें कई वर्ग होते हैं जैसे एक मनोरंजन का वर्ग है-खेल- कूद, सिनेमा, तमाशा का मूल्य । दूसरा वर्ग साहित्य कला, संगीत काव्य आदि से सम्बन्धित मूल्य है। तीसरा वर्ग उदार कहलाता है जिसमें बुद्धि एवं बौद्धिक क्रिया का मूल्य होता है। चौथा वर्ग भावात्मक मूल्यों का है जिसमें स्थायीभाव एवं सामान्य प्रवृत्तियों रखी जा सकती हैं जैसे देश प्रेम, समाज-सेवा, युद्ध भावना, सहानुभूति का मूल्य ।

(छ) नैतिक और आध्यात्मिक मूल्य- नैतिक मूल्य अच्छे-बुरे को अलग करने से होता है। आध्यात्मिक जीवन के मानक एवं आदर्श आध्यात्मिक मूल्य प्रदान करते हैं। जीवन का लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति है, धन का त्याग है, सत्य का पालन है, इन सबसे आध्यात्मिक मूल्य होते हैं। इनसे मानव की आत्मा का विकास होता है और परम आत्मा की प्राप्ति होती है।

(ज) आर्थिक मूल्य- इसका सम्बन्ध रुपए, पैसे, वाणिज्य, व्यापार, उद्योग आदि से होता है। किसी वस्त्र का क्या मूल्य है ? वाणिज्य से कितना लाभ या कितनी हानि हुई? इनसे आर्थिक मूल्य का ज्ञान होता है।

(झ) सामाजिक मूल्य- सामाजिक क्रिया एवं संगठन का जो मूल्य होता है वही सामाजिक मूल्य कहलाता है। मनुष्य एक साथ कैसे रहे अथवा परस्पर कैसा व्यवहार करे यह सामाजिक मूल्य से ही सम्भव होता है।

(ञ) अन्तिम मूल्य- इसे शाश्वत मूल्य भी कहा जाता है। ईश्वर सम्बन्धी ज्ञान या ईश्वर की प्राप्ति में यह मूल्य पाया जाता है जो हमेशा रहने वाला है।

(ट) अस्थायी भौतिक या सीमित मूल्य- भौतिक पदापों के भोग से यह मूल्य सम्बन्धित होता है जिसे कुछ विद्वानों ने ‘रुचि’ भी माना है। सीमित का तात्पर्य क्षणिक है। जो आनन्द या सुख संसार में मिलता है वह इसी प्रकार का मूल्य रखता है।

(ठ) उच्चतम मूल्य- इनका सम्बन्ध मनुष्य की उच्च प्रवृत्तियों से होता है जिसमें पशुता का लोप हो जाता है। विचारमूलक, सौंदर्यमूलक, ज्ञानमूलक, मूल्य इसी प्रकार के होते हैं।

(ड) शैक्षिक मूल्य- विद्वानों ने शिक्षा की प्रक्रिया के संदर्भ में कुछ मूल्यों को बताया है। इन्हें शैक्षिक मूल्य कहते हैं जैसे उद्देश्य के विचार से मूल्य।

(ढ) राजनीतिक मूल्य- आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्तों के विकास से ऐसे मूल्यों का प्रादुर्भाव हुआ। ऐसी स्थिति में जनतांत्रिक मूल्य, समाजवादी मूल्प, साम्यवादी मूल्य, साम्राज्यवादी मूल्य आदि कहे जाते हैं।

जीवन के मूल्य

ऊपर के विचारों से हमें ज्ञात होता है कि विभिन्न प्रकार के मूल्य जीवन के विभिन्न पक्षों में भी सम्बन्ध रखते हैं। जीवन की विभिन्न क्रियाएँ होती हैं-शारीरिक बौद्धिक, भावात्मक, सामाजिक, राजनीतिक, मनोरंजनात्मक, नैतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक। इन सभी क्षेत्रों से मूल्यों का सम्बन्ध होता है और इन्हीं नामों से इन्हें पुकारा भी जाता है। इससे स्पष्ट है कि हम जीवन के मूल्यों से उन गुणों का तात्पर्य लेते हैं जो जीवन के विभिन्न कार्य-त्यापार के कारण प्राप्त होते हैं। प्रो० एच० एस० ब्राउडी के अनुसार जीवन के मूल्य निम्नलिखित होते हैं-

(1) स्वास्थ्य, शरीर तथा मनोरं- नागक मूत्य

(2) बौद्धिक मूल्य

(3) सौंदर्यात्मक मूल्य

(4) आर्थिक मूल्य

(5) नैतिक मूल्य

(6) धार्मिक मूल्य

(7) सामाजिक मूल्य

(8) सांस्थिक मूल्य

ये मूल्य शैक्षिक क्षेत्र में भी प्रयुक्त किये जा सकते हैं यदि जीवन और शिक्षा को हम एक ही मान लेवें जैसा आजकल विद्वान् लोगों का मत है। इस वर्गीकरण में व्यापकता है अतएव यदि इसे हम भी स्वीकार करें तो कोई दोष नहीं है।

जीवन के मूल्य और शिक्षा के मूल्य

यदि जीवन तथा शिक्षा को समान मान लें तो जीवन के मूल्य और शिक्षा के मूल्य भी समान हो जायेंगे। जीवन और शिक्षा के कुछ अन्तर अवश्य है। जीवन की एक प्रक्रिया शिक्षा है इसलिये जीवन के मूल्य शिक्षा के मूल्य से अधिक-अधिक होते हैं। इस आधार पर जीवन के मूल्य के घेरे के भीतर ही शिक्षा के मूल्य भी पाये जाते हैं।

जीवन में शिक्षा एक विशेष कार्यक्रम की पूर्ति करती है। इस दृष्टि से ज्ञान, भाव और क्रिया का विकास ही शिक्षा है जो कुछ विशेष परिस्थिति में कुछ विशेष साधनों व व्यक्तियों की सहायता से होता है। अतएव जीवन के मूल्य शिक्षा के मूल्य से अलग हो जाते हैं। शिक्षा के मूल्य शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, विधियों, विद्यालय अध्यापकों व छात्रों के संदर्भ में पाया जावेगा। जीवन के मूल्य इस विशेष संदर्भ को कभी भी नहीं छूते हैं।

शिक्षा के मूल्य जीवन के मूल्य से एक अन्य विचार से भी भिन्न पाये जाते हैं। शिक्षा का एक पक्ष प्रशिक्षण या ट्रेनिंग भी कहा गया है। इस विचार से शिक्षा के मूल्य जीवन के मूल्यों के सम्बन्ध में प्रशिक्षण देने पर प्राप्त होते हैं। उदाहरण के लिये शिक्षण का एक उद्देश्य मनुष्य को उपयोगी एवं सद्गुणी नागरिक बनाना है। इस प्रकार उपयोगी नागरिक की ट्रेनिंग या शिक्षा देकर उसमें शैक्षिक मूल्य उत्पन्न किये जा सकते हैं। अतः स्पष्ट है कि शैक्षिक मूल्य जीवन के मूल्यों में प्रशिक्षित करने पर प्राप्त होते हैं।

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Pankaja Singh

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