अर्थशास्त्र

मार्क्सवाद समाजवाद | मार्क्स एक मौलिक विचारक के रूप में | मार्क्सवाद की विशेषताएँ

मार्क्सवाद समाजवाद | मार्क्स एक मौलिक विचारक के रूप में | मार्क्सवाद की विशेषताएँ

मार्क्सवाद समाजवाद

मार्क्स ने पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के अभिशाप-मुक्त अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, वर्ग-संघर्ष तथा मंदी पर कड़ा प्रहार किया और पूँजीवाद का विरोध किया था। दूसरी ओर मार्क्स ने काल्पनिक समाजवादियों राबर्टओविन, चार्ल्स फोरियार तथा लुई ब्लैक आदि के काल्पनिक विचारों को अव्यावहारिक घोषित करके अपने व्यावहारिक तथा वास्तविक कार्यक्रम को प्रस्तुत किया था और वैज्ञानिक समाजवाद की नींव डाली थी।

मार्क्सवाद इतिहास की द्वन्द्वात्मक विचारधारा पर स्थापित है। इस विचारधारा के अनुसार भौतिक संसार में परिवर्तन होते हैं। मार्क्स के विचार हीगलेवादी दर्शन पर आधारित है। हीगल के विचारानुसार, ‘प्रत्येक परिस्थिति विरोधी शक्तियों अथवा हितों के संघर्ष का परिणाम थी” प्रत्येक क्रिया-प्रतिक्रिया को जन्म देती है तथा दोनों के मध्य संघर्ष होने के फलस्वरूप नई परिस्थिति उत्पन्न होता है। प्रत्येक वाद प्रतिवाद को जन्म देता है। पूंजीवाद स्वयं सामंतवाद, के पतन का परिणाम था। परन्तु पूजीवाद ने स्वयं समाज में पूजीपति तथा श्रमिकों के दो परस्पर विरोधी दलों को जन्म दिया है जिनके मध्य निरन्तर संघर्ष होते रहने के फलस्वरूप भविष्य में एक नई आर्थिक प्रणाली “समाजवाद” का जन्म हुआ। मार्क्स के ये विचार अपने पूर्ववर्ती विचारकों से उन्हें अलग खड़ा करते हैं।

मार्क्सवाद की विशेषताएँ

  1. मार्क्सवादी समाज व्यावहारिक समाजवाद है- अन्य समाजवादी विचारकों की अपेक्षा कार्ल मार्क्स के विचार अधिक व्यावहारिक एवं वास्तविक हैं क्योंकि मार्क्स ने अपने समाजवाद में कोरे आदर्श को भी अपनाया है। मार्क्सवादी समाजवाद की आदर्श में दिलचस्पी नहीं है। वह वस्तुस्थिति के अध्ययन के आधार पर अपने को वास्तविकता के समीप ले आता है। मार्क्स ने नैतिक तथा मानवीय भावनाओं को अपने विचारों में कोई स्थान नहीं दिया है। मार्क्सवाद पूर्णत: भौतिक और वास्तविक है।
  2. मार्क्सवादी समाज श्रमजीवियों का आदर्श धर्म है- इतना समय व्यतीत होने के बाद भी मार्क्सवादी समाज आज भी श्रमजीवियों के लिए एक आदर्श धर्म के रूप में उनका मार्गदर्शन करता है। मार्क्स बजुआ वर्ग के साथ किसी भी प्रकार का समझौता करने को तैयार नहीं थे जबकि रार्बट ओविन, चार्ल्स फोरियर जैसे समाजवादी पूँजीपतियों तथा श्रमिकों के आपसी सहयोग के आधार पर सुधार योजनाओं की बात सोचते थे। कार्ल मार्क्स के अनुसार वास्तविक समाजवाद का उद्देश्य श्रमिकों के कल्याण के अलावा अन्य कुछ नहीं है और यह उद्देश्य तभी प्राप्त हो सकता है जबकि श्रमिक सत्ता को अपने हाथ में ले लेंगे।
  3. मार्क्सवादियों का क्रान्ति में विश्वास- मार्क्सवादी क्रान्ति पर बहुत विश्वास करते थे। वे सामाजिक परिवर्तन क्रान्ति के द्वारा लाने में विश्वास करते थे। वे शान्तिपूर्वक क्रान्ति के द्वारा श्रमिकों के अधीन पूँजीपति वर्ग को लाना चाहते थे। सामाजिक परिवर्तन के लिये राजनीति को एक साधन के रूप में भी प्रयोग में लाया जा सकता है। श्रमिकों को अपने संगठन बनाकर आर्थिक क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लेना चाहिये। यद्यपि मार्क्सवादी शांतिपूर्वक क्रान्ति के रास्ते पर चलने की सलाह देते थे किन्तु संघर्ष के मार्ग से भी इन्कार नहीं करते हैं।
  4. मार्क्सवादी समाजवाद वैज्ञानिक समाजवाद है- कार्ल मार्क्स से पूर्व समाजवाद आदर्शवादिता एवं भावनाओं से प्रभावित था जबकि मार्क्स ने एक व्यावहारिक तथा व्यवस्थित कार्यक्रम प्रस्तुत करके समाजवाद को एक वैज्ञानिक समाजवाद के रूप में प्रस्तुत किया है। कार्ल मार्क्स ने वैज्ञानिक तर्कों पर समाजवाद की स्थापना पर बल दिया है। मार्क्स का विचार था कि समाजवाद पूँजीवाद के विकास का तार्कित परिणामस्वरूप है और उसके उदय को रोकना सम्भव नहीं है।

मार्क्स एक मौलिक विचारक के रूप में

(Marx as an Original Thinker)

“मार्क्सवाद प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र के पेड़ के तने पर लगी हुई एक शाखा है” (जीड एवं रिस्ट)

मार्क्सवाद केवल परम्परावादी तने में लगी हुई एक डाल

मार्क्स ने आर्थिक विचार के इतिहास को अमूल्य योग दिया है। इस पर भी उसे सबसे मौलिक विचारक नहीं कहा जा सकता। कारण, उन्होंने जो भी कुछ लिखा है वह सब एडम, रिकार्डो आदि विद्वानों के विचारों से मिलता है। इस तर्क के पक्ष में निम्न उदाहरण दिए जा सकते हैं-

  1. उनका निगमन प्रणाली को महत्त्व देना नई बात नहीं- मार्क्स ने अध्ययन की निगमन प्रणाली को अपनाया। यह तरीका उसके पूर्व रिकार्डो और बाद में अन्य अनेक विचारकों ने अपनाया था।
  2. आर्थिक प्रगति की श्रेणियों का उल्लेख उनके पूर्ववर्ती लेखकों द्वारा भी- मार्क्स ने इतिहास का अध्ययन करते हुए आर्थिक-प्रगति को श्रेणियाँ बताई हैं, जिनका विचार उसे एडम स्मिथ, लिस्ट आदि से ही मिला था।
  3. मूल्य सिद्धान्त के अध्ययन को महत्त्व देना भी नया नहीं- मार्क्स ने मूल्य सिद्धान्त को अन्य विद्वानों की तरह बहुत महत्त्व दिया। उनके समकालीन तथा पूर्वकालीन विद्वान भी इस समस्या को सुलझाने की कोशिश कर रहे थे। एडम स्मिथ, रिकार्डो, मिल आदि ने इस सभ्यता का गम्भीर अध्ययन किया था। जैवन्स और गौसन ने भी सन् 1835-84 तक की अवधि में विषयागत विचार के आधार पर इस समस्या को सुलझाने का प्रयत्न किया था। आस्ट्रियन शाखा के विद्वानों-मैंजर, बीजर तथा बॉम बावर्क ने भी इसी समस्या पर अपने विषयागत विचार दिये थे। मार्शल भी इस समस्या का अध्ययन करने से नहीं चूके थे। अत: कहा जा सकता है कि अन्य अर्थशास्त्रियों की तरह मार्क्स भी मूल्य सिद्धान्त में अटक गये।
  4. वर्ग-संघर्ष का विचार भी नया नहीं- मार्क्स का पूँजीवादियों तथा श्रमिकों का आपसी विरोध का विचार भी नया नहीं है। रिकार्डो से मार्क्स के समय तक के अनेक अर्थशास्त्रियों ने इस वर्ग-संघर्ष का जिक्र किया है।
  5. लगान के अनार्जित आय होने का विचार भी नहीं मार्क्स का यह विचार भी कि लगान एक अनार्जित आय (unearned income) है तथा उसका राष्ट्रीयकरण कर दिया जाना चाहिए, नया नहीं है। रिकार्डो के लगान सिद्धान्त ने यह स्पष्ट कर दिया था कि लगान एक अनार्जित आय है और बाद के विद्वानों ने व्यक्तिगत-सम्पत्ति के राष्ट्रीयकरण के सुझाव दिए।
  6. आर्थिक नियमों को विश्वव्यापी मानने की बात भी नहीं- मार्क्स भी अन्य परम्परावादी-शाखा के विद्वानों की तरह समझते थे कि आर्थिक नियम विश्वव्यापी हैं।

इन्हीं बातों को देखकर जीड एवं रिस्ट ने कहा कि “Marxism is simply a branch grafted on the classical trunk.”

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Pankaja Singh

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