मानव शक्ति नियोजन की प्रक्रिया | मानव शक्ति नियोजन के चरण

मानव शक्ति नियोजन की प्रक्रिया | मानव शक्ति नियोजन के चरण | Manpower planning process in Hindi | Stages of Manpower Planning in Hindi

मानव शक्ति नियोजन की प्रक्रिया या मानव शक्ति नियोजन के चरण

नियोजन प्रक्रिया से हमारा अभिप्राय उन विभिन्न चरणों से है जो नियोजन के मन्तव्य पर पहुँचने के लिये बढ़ते हैं। नियोजन प्रक्रिया या नियोजन के चरण निम्नांकित है-

(A) मानव शक्ति आवश्यकताओं का निर्धारण

उत्पादन कार्यक्रम मानव-शक्ति आवश्यकताओं का निर्धारण करता है। विक्रय अनुमान उत्पादन कार्यक्रम निश्चित करते हैं। कर्मचारी आवर्त को कम करने तथा कर्मचारी माँग एवं पूर्ति के सन्तुलन को बनाये रखने के लिये आवश्यकताओं का पूर्वानुमान आवश्यक है। इसलिये मानव-शक्ति नियोजन को उत्पादन तथा विक्रय कार्यक्रम से सम्बद्ध करना अत्यावश्यक हो जाता है। मानव-शक्ति निर्धारण हेतु किसी व्यावसायिक संस्थान के द्वारा निम्नांकित कदम उठाये जाते हैं-

  1. विक्रय अनुमान- विक्रय अनुमान के अभाव में उत्पादन नहीं किया जा सकता। अतः यह आवश्यक है कि विक्रय का अनुमान लगाया जाये, जिससे उत्पादन कार्यक्रम बन सके। उत्पादन कार्यक्रम वनने के पश्चात ही मानव-शक्ति की आवश्यकताओं का ज्ञान होता है। विक्रय अनुमान दीर्घकालीन या अल्पकालीन हो सकते हैं। विक्रय का पूर्वानुमान लगाकर विक्रय सम्बन्धी कार्यकलापों के लिये कार्यक्रम बनाया जाता है।
  2. उत्पादन कार्यक्रम या उत्पादन अनुसूचिपन- जब विक्रय का पूर्वामान लगा लिया जाता हैं तो उसके अनुरूप उत्पादन कार्यक्रम तैयार किया जाता है। वह दीर्घ या अल्पावधि के लिये हो सकता है। उत्पादन कार्यक्रम में विकास एवं रोजगार जैसे तत्वों को सम्मिलित किया जाता है। दीर्घकालीन उत्पादन कार्यक्रम विचलनों से प्रभावित होते हैं, अतः ये विक्रय कार्यक्रमों के सहयोग से ही तैयार किये जाते है तथा इनमें स्थिरता लाने का प्रयास किया जाता है। उत्पादन वृद्धि की मांग पूर्ति के लिये उपलब्ध मानव-शक्ति का अधिकतम प्रयोग किया जाता है तथा अतिरिक्त आवश्यकता के लिये भर्ती एवं चयन तथा प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है।
  3. रिक्त पदों की आवश्यकता का निर्धारण- जब उत्पादन कार्यक्रम तैयार कर लिया जाता है तो उसके पश्चात निश्चित कृत्यों के लिये योग्यता वाले व्यक्तियों का चुनाव किया जाता है। उत्पादन कार्यक्रमों को कार्यरूप देने के लिये अनेक कृत्यों का सम्पादन किया जाता है, उसके लिये मानव-शक्ति विभाग की आवश्यकता होती है, अतः मानव-शक्ति नियोजन आवश्यक है। उत्पादन कार्यक्रम मानव-शक्ति विभाग की आवश्यकताओं का अनुमान लगाने में सहयोग देता है। कृत्यों के अनुरूप व्यक्तियों की परिमाणात्मक तथा गुणात्मक विशेषताओं का निर्धारण होता है। विभिन्न कृत्यों के लिये आवश्यकता का निर्धारण कर उनकी पूर्ति का कार्यक्रम बनाया जा सकता है।
  4. पदों की स्वीकृति- पदों को अधिकृत तौर पर शीर्ष अधिकारी ही स्वीकृत करता है। कृत्यों के अनुसार पदों का पूर्वानुमान विभिन्न विभागों को यथार्थ मानव-शक्ति की आवश्यकता का निर्धारण करने में सहयोग देते हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु वेतन चिट्ठा, बजट तथा न्यूनतम तालिकाओं का प्रयोग किया जाता है। वेतन चिट्ठा बजट के अन्तर्गत उस राशि को दर्शाया जाता है जो किसी विभाग के कर्मचारियों को वेतन के रूप में दी जा सकेगी, जिसके अनुरूप कर्मचारियों की व्यवस्था होगी। नियूतन या मैनिंग तालिकायें कर्मचारियों के पदों का निर्धारण करती हैं

(B) मानव-शक्ति की आवश्यकताओं को प्रभावित करने वाले घटक

एक औद्योगिक या व्यावयायिक प्रतिष्ठान में आवश्यक मानव-शक्ति को अनेक घटक प्रभावित करते हैं। उन घटकों को निम्न प्रकार प्रस्तुत किया जा रहा है-

  1. वर्तमान मानव-शक्ति की प्रकृति- किसी उपक्रम की वर्तमान आवश्यकतायें ही उसके भविष्य की आवश्यकताओं का अनुमान है। बदलती हुयी प्रविधियों एवं तकनीकों के प्रयोग से कर्मचारियों की माँग निश्चित रूप से प्रभावित होती है। समस्त मानव-शक्ति को कृत्यों, योग्यताओं, आयु, अनुमान, संख्या, निवृत्ति आदि के आधार पर आँका जाना चाहिये। कर्मचारी प्रकृति को जानने के लिये उपयुक्त तथ्यों की जानकारी अत्यावश्यक है।
  2. कर्मचारी आर्वतन- मानव-शक्ति की संख्या तथा गुण कर्मचारी आर्वत से भी अत्यधिक प्रभावित होते हैं। मानव-शक्ति नियोजन के लिये कर्मचारी आवर्त की दर जानना अत्यावश्यक होता है। कर्मचारी आवर्त दर घटने-बढ़ने के अनेक कारण हैं तथा अनेक समस्याओं में आवर्त के अलग-अलग कारण होते हैं।
  3. उपक्रम के विकास की दर- यदि किसी विकासोन्मुख संस्था का मानव-शक्ति नियोजन करना है तो निःसदेह पहले यह जानना होगा कि इस संस्था की विकास की गति क्या है? यदि संस्था तेज गति से विकास कर रही है, तो उसके लिए मानव शक्ति आवश्यकतायें बढ़ती हुयी होंगी तथा हर समय भविष्य की आवश्यकता पूर्ति के लिये सजग रहना पड़ेगा। यदि विकास की दर निम्न है तथा संख्या बहुत धीमी गति से विकास कर रही है, तो ऐसी स्थिति में संस्था की मानव-शक्ति की आवश्यकतायें नियन्त्रित स्थिति में होंगी।
  4. श्रम बाजार का स्वाभाव- श्रम बाजार जहाँ पर माँग एवं पूर्ति का मिलन होता है, कुछ लोग रोजगार तलाशते हैं तो कुछ नियोक्ता यहीं से योग्यतम व्यक्तियों का चयन करते हैं। प्रत्येक नियोक्ता यह जानना चाहता है कि किस योग्यता वाले व्यक्ति कैसी नौकरी तलाशते हैं तथा उनकी अपेक्षायें क्या हैं ?

(C) मानव-शक्ति आवश्यकताओं का पूर्वानुमान

प्रत्येक उपक्रम के लिये यह जानना आवश्यक है कि उसकी भावी मानव-शक्ति आवश्यकतायें क्या होंगी? भावी आवश्यकताओं का पूर्वानुमान कृत्य विश्लेषण तथा कृत्य विवरण के माध्यम से जाना जा सकता है। मानव-शक्ति की आवश्यकताओं पूर्वानुमान दीर्घकालिक या अल्पकालिक हो  सकता है। दोनों ही प्रकार की आवश्यकतायें निम्न बातों पर निर्भर करती है-

(i) उत्पाद तथा सेवा की भावी माँग का अनुमान या बाजार का अनुमान,

(ii) उत्पाद की भावी माँग की पूर्ति के लिये समुचित आर्थिक साधन,

(iii) उत्पाद में तकनीकी परिवर्तन,

(iv) आन्तरिक तथा बाह्य मानव-शक्ति के स्रोत

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