
माध्यमिक स्कूल स्तर पर पाठ्यक्रम की विभिन्नता की आवश्यकता
माध्यमिक स्तर पर बालकों तथा बालिकाओं के पाठ्यक्रम में विभिन्नता
(Differntiation Currieulum for Boys and Girls at Seeondary Level)
स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात भारत में लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली को अपनाया है। इसके आधार पर शिक्षा प्राप्त करने के सन्दर्भ में बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान अवसर प्रदान किये गये हैं । लोकतन्त्रात्मक दृष्टि से दोनों की शिक्षा को महत्व भी समान दिया जाना चाहिए। प्राथमिक स्तर पर तो हमारे देश में लड़कों एवं लड़कियों के लिये समान पाठ्यक्रम की ही व्यवस्था है और उन्हें शिक्षा भी प्रायः एक साथ ही प्रदान की जाती है किन्तु माध्यमिक स्तर पर उनके पाठ्यक्रम में कुछ अन्तर पाया जाता है तथा अधिकांशतया उनके विद्यालय भी पृथक-पृथक हैं। बालकों तथा बालिकाओं का स्वभाव व प्रकृति क्योंकि भिन्न-भिन्न होती है, इसलिए दोनों की शिक्षा के अन्तर्गत पाठ्यक्रम में क्या विभिन्नता हो, इस पर विचार करना आवश्यक है। 1962 में ‘राष्ट्रीय स्त्री शिक्षा परिषद’ (National Council of Women’s Education) ने बालक एवं बालिकाओं के लिये पाठ्यक्रम की विभिन्नता पर विचार करने के लिए श्रीमती हंसा मेहता की अध्यक्षता में एक समिति, जिसे उन्हीं के नाम पर ‘हंसा मेहता समिति’ (Hansa Mehta Committee 1962) कहते हैं, का गठन किया। इस समिति ने इस सन्दर्भ में निम्न ‘सिफारिशें’ (Recommendations) प्रस्तुत की-
(1)लोकतन्त्रात्मक प्रणाली में शिक्षा का प्रत्यक्ष सम्बन्ध विद्यार्थियों की व्यक्तिगत रुचियों, शक्तियों एवं रुझानों से होता है, अत: लिंग-भेद के आधार पर पाठ्यक्रम में कोई भी अन्तर करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
(2) आज के संक्रमण काल में कुछ मनोवैज्ञानिक आधारों पर पुरुष और स्त्री का अन्तर आवश्यक है। सामाजिक क्रियाओं के कुछ क्षेत्रों में भी इस प्रकार का अन्तर हो सकता है। अतः पाठ्यक्रम का निर्माण उसके प्रयोगात्मक आधार को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। किन्तु यहाँ यह जानना आवश्यक है कि उनके द्वारा मान्यताओं तथा स्वभावों का निर्माण दोनों पक्षों में समान रूप से सम्भव हो। उनमें किसी प्रकार का अन्तर नहीं होना चाहिए।
(3) दसवीं कक्षा तक विद्यार्थियों के लिये ‘सामान्य पाठ्यक्रम’ (Common Curriculum) की व्यवस्था की जायें । यह पाठ्यक्रम उच्च व निम्न स्तरों में विभाजित किया जा सकता है। दोनों के मध्य केवल भाषा एवं कार्य-अनुभव में ‘विकल्प’ (Option) प्रदान किया जाये।
(4) ‘गृह-विज्ञान’ (Home Science) विषय को उच्चतर माध्यमिक स्तर पर वैकल्पिक विषय के रूप में रखा जाये । यह विषय यद्यपि बालिकाओं में बहुत लोकप्रिय है किन्तु फिर भी इस अनिवार्य न बनाया जाये।
(5) संगीत व ललित कलाओं के शिक्षण में विस्तार किया जाये।
(6) विज्ञान तथा गणित विषयों को बालिकाओं को लेने के लिये प्रोत्साहित किया जाये।
(7) शारीरिक शिक्षा के स्थान पर बालिकाओं को हस्तकला व दस्तकारी की शिक्षा प्रदान की जाये।
(8) बालिकाओं के विद्यालयों के लिए पृथक से सहायता प्रदान की जाये।
(9) अध्यापिकाओं को प्रशिक्षित किया जाये।
(10) बालिकाओं के लिए पाठ्यक्रम में नये विषय जैसे-आन्तरिक सजावट, बागवानी, कैटरीज आदि को सम्मिलित किया जाये।
राष्ट्रीय समिति की इन सिफारिशों का समर्थन यद्यपि ‘कोठारी आयोग’ (Kothari Commission) ने भी किया है किन्तु वास्तविकता तो यह है कि बालिकाओं के पृथक् पाठ्यक्रम के लिये देश में शिक्षा के क्षेत्र के अन्तर्गत कोई विशेष प्रयास नहीं किये गये हैं।
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