माध्यमिक शिक्षा में गुणवत्ता से सम्बन्धित मुद्दे | Issues relating to Quality Concerns in Secondary Education in Hindi
माध्यमिक शिक्षा में गुणवत्ता से सम्बन्धित मुद्दे
(Issues relating to Quality Concerns in Secondary Education)
(1) शिक्षा सोचने की शक्ति को तीव्र करने वाली होनी चाहिए-
शिक्षा को उत्सुकता से पैदा करना चाहिए और सीखने वालों की सोचने की शक्ति को तीव्र करने एवं फैसला लेने के लिए शक्तिशाली बनाने के लिए सहायता करनी चाहिए। क्या हमारी माध्यमिक शिक्षा इन क्षमताओं के विकास की ओर मुड़ी है अथवा अभी भी एक यान्त्रिक प्रयत्न है ? इसके लिए जिम्मेवार कौन है ? इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विकल्प क्या है? इन प्रश्नों के उत्तर माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने से सम्बन्धी समस्याओं को हल कर देंगे।
(2) सूचना तकनीकी का प्रयोग-
2000 से आगे के वर्षों में, समुदाय में विभिन्न साधनों जैसा कि टी. वी०, रेडियो, इंटरनेट आदि द्वारा प्रवेश करने के विश्वीकरण और सूचना तकनीक को भविष्य की चुनौती की ओर मोड़ने की पूरी प्रणाली की आवश्यकता है। इन साधनों का प्रयोग और उनका उचित उपयोग माध्यमिक शिक्षा प्रबन्ध, अध्यापक प्रशिक्षण और अध्यापन तरीकों के लिए भविष्य में चुनौतीपूर्ण होगा।
(3) शिक्षा जीवन से सम्बन्धित होनी चाहिए-
सभी को नौकरी/सरकारी नौकरी प्रदान करना मुश्किल होता है। लेकिन इस तरीके से शिक्षा देने की आवश्यकता है कि प्राप्त की गई जानकारी एवं निपुणताओं के आधार पर वह स्व-रोजगार ले सकें। प्रश्न यह है कि हमारा पाठ्यक्रम कहाँ तक इन जरूरतों की पूर्ति करता है? क्या यह विभाजित है? क्या यह एक समान है? किन कदमों को उठाया गया है? कहाँ आवश्यकता अभी भी सुदृढ़ है? हम इसके बारे में सोच सकते हैं और विचार-विमर्श कर सकते हैं।
(4) कक्षा-कक्ष-
स्कूलों में बहुत कम सहयोगी सुविधाओं वाले बहुत अधिक भरे हुए कक्षा-कक्ष । अधिकतर स्कूलों में अध्यापक विद्यार्थी अनुपात की आदर्श संख्या 1 : 35 से 1 : 40 है। आज मुश्किल यह है कि एक भी स्कूल इस विचार को पूरा करे । कक्षा-कक्ष का अनुपात वही रहता है, परन्तु बैठने वाले विद्यार्थियों की संख्या बढ़ती जाती है।
(5) संगठनात्मक प्रबन्धन-
स्कूल ईकाई, स्कूल प्रांगण और सदस्यों सहित संस्थागत योजना का विचार माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति प्रणाली को चालू कर सकता है। यहाँ तक कि संस्था का आकार, भौगोलिक स्थिति,सामूहिक भागीदारी ये सभी गुणवत्ता सुदृढ़ता में सहायता करने के लिए इकट्ठे आगे बढ़ते हैं।
(6) परीक्षा प्रणाली-
परीक्षा प्रणाली शिक्षा को भारी बना रही है। निरन्तर कक्षा मूल्यांकन एवं सामूहिक रिकार्ड कार्ड की बहुत अधिक जरूरत है ताकि परीक्षा कार्यक्रमों को सुधारा जा सके। बोझ रहित एवं आनन्ददायी सीखने के लिए काफी कुछ करना है।
(7) निर्देशन एवं सलाह-
मूल्यों का एकीकरण, प्रभाव एवं जानकारी विस्फोट अध्यापकों के लिए समस्या है। उचित आत्म-विचार, विश्वास एवं साहस को विकसित करने के लिए एक सुदृढ़ निर्देशन एवं सलाह कार्यक्रम की आवश्यकता है।
(8) भावनाओं का उचित नियन्त्रण एवं प्रशिक्षण-
माध्यमिक शिक्षा के दौरान उचित भावनाओं को विकसित करना और उनको नियन्त्रित करना शिक्षा का बहुत जरूरी उद्देश्य है। भावनाओं का नियन्त्रण जरूरी है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् शिक्षा पर नियुक्त किए गए बहुत से आयोगों ने नियन्त्रण को स्वीकार किया है। 1954 के मुदालियर कमीशन के द्वारा इंगित की गई त्रुटियाँ भी आज तक महत्त्वपूर्ण हैं। शिक्षा बहुत अधिक किताबी और यान्त्रिक, परम्परागत और एक समान थी और विभिन्न रुझानों वाले विद्यार्थियों की मांग की पूर्ति नहीं करती थी और न ही उन मूलभूत निपुणताओं एवं गुण जैसा कि अनुशासन, सहयोग एवं नेतृत्व को विकसित करती थी जो लाभदायक नागरिक बनाने के लिए कार्य कर सकें।
(9) माध्यमिक शिक्षा में व्यावसायिक दृष्टिकोण लाना-
आज के आधुनिक युग में,व्यावसायिक दृष्टिकोण को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा पर विशेष बल दिया जाना चाहिए ताकि देश एक सुदृढ़ तकनीकी आधार सहित प्रगति करने के योग्य हो सके । विद्यार्थियों को सृजनात्मक क्रिया-क्लापों में व्यस्त रखने के लिए, हमें शिक्षा में व्यावसायिक कोर्स लाने चाहिए। माध्यमिक शिक्षा का व्यावसायीकरण करते हुए हमें केवल विद्यार्थियों के विकास के लिए ही नहीं बल्कि साथ ही राष्ट्र के विकास के लिए भी इस विचार को ध्यान में रखना चाहिए।
(10) व्यक्ति का सामाजिक आर्थिक रूप से ठीक होना, योग्यता एवं सृजनात्पक पर बल-
माध्यमिक शिक्षा का लक्ष्य व्यक्तित्व का शारीरिक, बौद्धिक एवं सौन्दर्यात्मक विकास होना चाहिए। इसे श्रम की योग्यता एवं कठिन परिश्रम के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए। अपरिचित स्थितियों का सामना करने एवं नई बनाने के लिए आत्म-विश्वास विकसित करने की ओर उचित ध्यान दिया जाना चाहिए।
(11) विश्व नागरिकता की भावना को विकसित करना-
आज वैज्ञानिक एवं औद्योगिक क्रान्ति के कारण विभिन्न देशों में आपसी सम्बन्ध की आवश्यकता है। किसी-न-किसी प्रकार से एक देश के नागरिक दूसरे देश के नागरिकों के सम्पर्क में आ रहे हैं। इसलिए, खुले दिल से संसार के विधि ज्ञान को और संकीर्ण दृष्टि को दूर भगाने की जरूरत महसूस की जा रही है। इसलिए माध्यमिक शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों में विश्व-नागरिकता को भावना विकसित करना होना चाहिए।
(12) गुण की पहचान-
क्रियाशीलता के विभिन्न क्षेत्रों में जिम्मेवारी की पदवियों को लेने के लिए हमारे जैसे आधुनिक समाज को बहुत से गुणवान व्यक्तियों की जरूरत है। यह काम गुणी बच्चों की पहचान के लिए एक विस्तृत कार्यक्रम का संगठन करके ही हो सकता है। यह पहचान माध्यमिक स्तर पर ही वास्तविक रूप में शुरू होती है।
(13) नागरिकता के गुणों को विकसित करना-
भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है। प्रजातन्त्र की सफलता आदर्श नागरिकों पर निर्भर करती है। स्वीकृत सामाजिक आदर्शों के अनुसार व्यवहार करने के लिए नागरिकों को शिक्षित किया जाता है । स्वीकृत सामाजिक आदर्शों के अनुसार व्यवहार करने के लिए नागरिकों को शिक्षित किया जाता है। सहनशीलता, अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों की जानकारी, दूसरों के विचारों का सम्मान एवं समाज-सेवा के गुण माध्यमिक शिक्षा के दौरान विद्यार्थियों में विकसित किए जाने चाहिएं।
(14) विद्यार्थियों की विशेष रुचियों का पूरा ध्यान करना-
माध्यमिक स्कूल शिक्षा के दौरान विद्यार्थियों की विशेष रुचियों एवं रुझानों को ढूंढ निकालने के लिए बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेने के लिए उन्हें सीखने के अनुभव एवं अवसर प्रदान किए जाने चाहिएं । उनकी उत्सुकता,घूमने-फिरने एवं साहसपूर्ण कार्य की प्यास को पर्वतारोहण, भ्रमण, एन. सी. सी. एवं वैज्ञानिक खोजों द्वारा शान्त किया जाना चाहिए। पड़ोसी एवं निर्जन क्षेत्रों में समाज-सेवाओं एवं समुदाय सेवाओं के लिए मानवता एवं आदर्शों के प्रति प्यार का उपयोग किया जाना चाहिए। इस प्रकार करने से वे अपने खाली समय का उचित प्रयोग करेंगे।
(15) नैतिक एवं आचार सम्बन्धी उत्थान-
भारत जोकि संस्कृति आचार व्यवहार एवं संतों की भूमि है, वह संसार के सबसे बेईमान देशों में एक समझा जाने लगा है। भले ही इस पतन के लिए बहुत से तत्त्व जिम्मेवार हैं साथ ही शिक्षा नैतिक एवं आचार सम्बन्धी पतन की जिम्मेवारी से मुक्त नहीं हो सकती। पिछले कुछ वर्षों से युवा पीढ़ी में बढ़ती हुई अनुशासनहीनता, आदर्शों की कमी एवं सामाजिक तथा नैतिक मूल्यों का क्षीण होना, बहुत से देशों में गम्भीर चिन्ता पैदा कर रहा है। इसलिए, शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित करते समय धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए ।
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