लेनिन का दल सम्बन्धी सिद्धान्त | Lenin’s party theory in Hindi

लेनिन का दल सम्बन्धी सिद्धान्त | Lenin’s party theory in Hindi

लेनिन का दल सम्बन्धी सिद्धान्त

हम इस अध्याय के आरम्भ में ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि जिन विचारों को मार्क्स ने सूत्र रूप में व्यक्त किया था, लेनिन ने उनको विकसित किया है या उनमें नवीनताओं को जोड़ा है। दल का प्रश्न भी उन्हीं विचारों में से एक है। लेनिन क्रमिकवाद में विश्वास करने वाला नेता नहीं था। लेनिन मानता है कि क्रान्ति क्रमिक विकास से नहीं होगा। किन्तु उसे लाने के लिए केन्द्रीकृत एवं अनुशासित दल की आवश्यकता होगी। लेनिन के अनुसार दल सर्वहारा का नेतृत्व करने वाला ‘अग्रिम वाहक’ (vanguard) अथवा ‘सेनामुखा’ है। सर्वहारा वर्ग के शक्ति प्राप्त करने के संघर्ष में दल का केन्द्रीय स्थान है। एक नेता के रूप में लेनिन आरम्भ से ही यह विश्वास करता था कि क्रान्तिकारी आन्दोलन की सफलता के लिए कठोर संगठन और सुस्पष्ट (मार्क्सवादी) विचारधारा का समन्वय आवश्यक है। अपने लेख ‘वन स्टैप फारवर्ड, टू स्टैप्स बैक’ में लेनिन ने दल की आवश्यकता तथा उसके स्वरूप के बारे में अपने विचारों को इस प्रकार व्यक्त किया है-“शक्ति प्राप्त करने के संघर्ष में सर्वहारा वर्ग के पास संगठन के अतिरिक्त और कोई शास्त्र नहीं है। बुर्जुआ संसार की अराजकतापूर्ण प्रतियोगिता द्वारा विभक्त, पूँजीपतियों द्वारा पूर्णतः प्रताड़ित, पूँजी के लिए दासता से बँधे, दैन्य, अधोगति तथा जंगलीपन के गर्त में सदैव पड़े हुए श्रमिक एक अजेय शक्ति का रूप धारण कर सकते हैं और वे निश्चित रूप से करेंगे, जब मार्क्सवाद के सिद्धान्तों के आधार पर उनकी वैचारिक एकता भी भौतिक एकता के द्वारा दृढ़ हो जायेगी और वे असंख्य श्रमिकों की सेना का रूप धारण कर लेंगे।”

इसी प्रकार कम्यूनिस्ट इण्टरनेशनल (1920) के अधिवेशन में दल सम्बन्धी यह प्रस्ताव स्वीकार किया गया था जिससे लेनिन के दल संबंधी विचारों की भावना व्यक्त होती है- “साम्यवादी दल श्रमिक वर्ग का एक अंग है। यह उसका सबसे अधिक प्रगतिशील, सर्वाधिक वर्ग-चेतनापूर्ण और इसीलिए सर्वाधिक क्रान्तिकारी अंग है। साम्यवादी दल सबसे अच्छे, सबसे बुद्धिमान, सबसे अधिक आत्मत्यागी एवं दूरदर्शी कार्यकर्ताओं का संगठन है।-साम्यवादी दल ऐसी राजनीतिक व्यवस्था है जिसके द्वारा श्रमिक वर्ग का अधिक उन्नत भाग समस्त सर्वहारा एवं अर्ध-सर्वहारा का ठीक दिशा में नेतृत्व करता है।”

उपर्युक्त उद्धरणों से स्पष्ट होता है कि लेनिन दल को क्रान्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने का आधार मानता है। उसकी दृष्टि से दल सावधानी से चुने हुए बौद्धिक एवं नैतिक वर्ग के लोगों का संगठन है। दल के संगठन के बारे में उसकी मान्यता है कि सदस्यता हर एक के लिए खुली. न होकर ‘सीमित’ होनी चाहिए। क्रान्ति के ध्येय को सिद्ध करने वाला दल छोटा, बुद्धिमत्तापूर्ण एवं अनुशासन से ओत-प्रोत होना चाहिए। उसे क्रान्तिकारी आन्दोलन का नियंत्रण एवं मार्गदर्शन करने का अधिकार है। दल क्रान्ति का नेतृत्व करता है और क्रान्ति के विचारों का प्रसारण करता है। यह क्रान्ति की कला की शिक्षा देता है और श्रमिकों को अपने उद्देश्य की पूर्ति में सफल बनाता है। इतना ही नहीं, क्रान्ति के बाद भी उसे नियंत्रण का यह विशेषाधिकार प्राप्त रहना चाहिए। लेनिन के दल सम्बन्धी विचारों का आशय यह है कि साम्यवादी दल का स्वरूप तानाशाही है। अतः यह कहना उचित होगा कि लेनिन ने दल की तानाशाही के सिद्धान्त  की नींव  डाली जिसे बाद में स्टालिन ने और भी दृढ़ बनाया। दल के आन्तरिक संगठन के लिये लेनिन ने ‘प्रजातन्त्रीय केन्द्रीयवाद’ (Democratic Centralism) के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जिसका आशय यह है कि दल के निम्न स्तर के अंगों को उच्च स्तर के अंगों के अधीनस्थ रहना चाहिए। एक बार दल की नीति निर्धारित हो जाने पर दल के किसी सदस्य अथवा अंग को पार्टी की आलोचना का अधिकार नहीं है।

लेनिन कहता है कि दल की ‘आलोचना करने की स्वतन्त्रता अवसरवादिता है’, सिद्धान्तहीनता है और इसीलिए एक प्रकार से दल के प्रति अश्रद्धा है। उसके कथनानुसार पार्टी संगठन में प्रजातन्त्र “एक अनावश्यक एवं नुकसानकारी खिलौना है।’ दल का आदर्श एकचालाकानुवर्तित्व है और चारों ओर की कठिनाइयों को देखते हुए यह आवश्यक भी है। लेनिन कहा करता था कि “हम एक संकटपूर्ण और कठिन मार्ग पर एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए एक सुसंगठित समुदाय के रूप में चल रहे हैं। हम चारों ओर से शत्रुओं से घिरे हुए हैं और हमारे ऊपर निरन्तर गोलियों की बौछार हो रही है। हमने स्वेच्छा से संगठन किया है, विशेषकर शत्रु से लड़ने के लिये, इसलिए नहीं कि हम समीप के दलदल में फँस जाएँ। (लेकिन) अब हमारी भीड़ में से अनेक लोग चिल्लाते हैं कि “चलो, दलदल की ओर चलो” लेनिन द्वारा साम्यवादी दल की जो धारणा प्रस्तुत की गई उसे रूस तथा दुनिया के अनेक देशों के साम्यवादी दलों ने आदर्श माना और उन सिद्धान्तों के आधार पर साम्यवादी दलों को संगठित किया। लेनिन की दल की धारणा भावी साम्यवादी दलों के संगठन का आधार बन गई। उसका दल सम्बन्धी विचार दार्शनिक मार्क्सवाद के विचार का पूरक है। सेबाइन का कहना है कि ‘लेनिन के दल सम्बन्धी सिद्धान्त ने सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवाद के राजनीतिक दर्शन को तय किया।’

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