वित्तीय प्रबंधन

लेनदार पूँजी | ऋणगत पूँजी | ऋण-पत्र का अर्थ | ऋण-पत्रों के भेद

लेनदार पूँजी | ऋणगत पूँजी | ऋण-पत्र का अर्थ | ऋण-पत्रों के भेद | creditor capital in Hindi | Debt Capital in Hindi | Meaning of debenture in Hindi | Distinctions of Debentures in Hindi

ऋणगत अथवा लेनदार पूँजी

(Borrowed or Creditorship Capital)

कम्पनी सर्वप्रथम स्वामीगत पूँजी से वित्त व्यवस्था करने का प्रयत्न करती है। यदि स्वामीगत पूँजी से वित्त की आवश्यकता पूरी होती तो कम्पनी ऋणगत अथवा लेनदार पूंजी की सहायता प्राप्त करती है। ऋणगत पूँजी उस दशा में विशेष रूप से उपयुक्त होती है जबकि कम्पनी को केवल कुछ समय के लिये ही वित्त की आवश्यकता होती है। ऋणगत पूँजी के निम्नलिखित दो साधन हैं- (1) ऋण-पत्र एवं (2) दीर्घकालीन ऋण

(1) ऋण-पत्र (Debenture) का अर्थ :

ऋण-पत्र कम्पनी की सार्वमुद्रा के अन्तर्गत निर्गमित एक प्रमाण-पत्र है जिसे कम्पनी अपने ऋणदाताओं को देती है। यह इस बात का प्रमाण है कि कम्पनी ने इन प्रमाण-पत्रों में उल्लिखित राशि उसके धारकों से उधार ली है।

भारतीय कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2(30) के अनुसार, “ऋण-पत्रों में ऋण-पत्र, स्टाक बॉण्ड और कम्पनी की अन्य प्रतिभूतियाँ सम्मिलित होती हैं चाहे वे कम्पनियों की सम्पत्तियों पर उत्पन्न करें या ना करें।”

नायडू एवं प्रदत्ता के अनुसार, “एक ऋण-पत्र कम्पनी की सार्वमुद्रा के अधीन निर्गमित एक ऐसा प्रपत्र है जो ऋण की स्वीकृति देता है और उन शर्तों को स्पष्ट करता है जिनके अधीन वे निर्गमित किये गये हैं और उनका शोधन होना है।”

उपरोत्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि “ऋण-पत्र कम्पनी की सार्वमुद्रा के अधीन निर्गमित किया गया एक ऐसा प्रमाण-पत्र है जो इस बात का प्रमाण होता है कि कम्पनी ने उसमें उल्लिखित धन पूर्व निर्धारित शर्तों के आधीन ऋण के रूप में प्राप्त किया है।”

ऋण-पत्रों के भेद (Kinds of Debentures)

(1) पंजीकृत ऋण-पत्र (Registered Debentures) – पंजीकृत ऋण-पत्रों से आशय ऐसे ऋण-पत्रों से है जिनके मूलधन और ब्याज का भुगतान पंजीकृत धारकों को ही देय होता है। पंजीकृत ऋण- पत्र के धारक ऐसे ऋण-पत्रों का हस्तान्तरण अधिनियम द्वारा निर्धारित नीति के अनुसार ही कर सकते हैं।

(2) वाहक ऋण-पत्र (Bearer Debentures) – ऐसे ऋण-पत्रों का हस्तान्तरण सुपुर्दगी मात्र से ही हो जाता है। इनकी मूल राशि तथा इन पर देय ब्याज का भुगतान उसी व्यक्ति को किया जाता है जिस व्यक्ति के पास यह वाहक ऋण-पत्र होते हैं। इनके हस्तान्तरण के लिये न तो कोई शुल्क देना पड़ता है और न ही किन्हीं वैधानिक रीतियों का पालन करना होता है।

(3) बन्धकयुक्त ऋण-पत्र (Mortgaged Debentures) – बन्धकयुक्त ऋण- पत्र वे ऋऋण-पत्र होते हैं जिनके लिये कम्पनियों की सम्पत्तियों पर प्रभार प्रदान किया जाता है। यदि इन ऋण-पत्रों की राशि का भुगतान कम्पनी नहीं करती तो वे अपनी क्षतिपूर्ति बन्धक में रखी हुई कम्पनी की सम्पत्तियों से कर लेते हैं।

(4) नग्न ऋण-पत्र (Naked Debentures)- नग्न ऋण-पत्र से आशय ऐसे ऋण- पत्र से है जिनके धारकों को कम्पनी द्वारा कोई भी सम्पत्ति बन्धक के रूप में नहीं दी जाती है। कम्पनी के समापन के समय यह साधारण लेनदार की भाँति ही माने जाते हैं। यह ॠण-पत्र केवल इस बात का प्रमाण होता है कि कम्पनी ने किसी निश्चित व्यक्ति से एक निश्चित धनराशि ऋण के रूप में प्राप्त की है।

(5) शोध्य ऋण-पत्र (Redeemable Debentures) – ये वे ऋण पत्र होते हैं जिनका भुगतान कम्पनी द्वारा एक निश्चित अवधि के पश्चात् कर दिया जाता है।

(6) अशोध्य ऋण-पत्र (Irredeemable Debentures)- ये वे ऋण-पत्र होते हैं जिनका भुगतान केवल कम्पनी के समापन पर ही किया जाता है परन्तु इन ऋण-पत्रों पर ब्याज निरन्तर मिलता रहता है, अर्थात कम्पनी अपने जीवन काल में इनका भुगतान नहीं करती।

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Pankaja Singh

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