अर्थशास्त्र

लघु उद्योग नीति 1991 | लघु उद्योग नीति, 1991 की प्रमुख विशेषताएँ

लघु उद्योग नीति 1991 | लघु उद्योग नीति, 1991 की प्रमुख विशेषताएँ | Small Industries Policy 1991 in Hindi | Salient Features of Small Industries Policy, 1991 in Hindi

लघु उद्योग नीति, 1991 की प्रमुख विशेषताएँ

केन्द्रीय उद्योग राज्य मन्त्री पी. ज. कुरियन द्वारा 6 अगस्त, 1991 ई. को संसद में लघु एवं अति लघु (Tiny) उपक्रमों के सम्बन्ध में इन नीति की घोषणा की गयी। इस नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) अति लघु क्षेत्र में विनियोग की सीमा में वृद्धि-

इस नीति के माध्यम से अति लघु क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों में प्रयोग की जोन वाली मशीनरी एवं संयन्त्रों में विनियोग की अधिकतम सीमा जो इस नीति से पूर्व 2 लाख रु. थी, को बढ़ाकर 5 लाख रु. की गयी। विनियोग की सीमा में वृद्धि आधुनिक मशीनरी एवं उन्नत तकनीकों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए किया गया।

(2) बिलों के भुगतान के लिए अधिनियम-

लघु उपक्रमों के बिलों का भुगतान उपर्युक्त समय पर हो सके, इसके सम्बन्ध में आवश्यक अधिनियम पारित करने की घोषणा की गयी तथा भारत लघु उद्योग विकास बैंक द्वारा देश भर में वाणिज्य बैंकों (Commercial Banks) के माध्यम से लघु उपक्रमों के बिलों को भुनाने की सुविधा प्रदान की जायेगी। इससे बड़े उपक्रमी द्वारा लघु उपक्रमों बिलों के देरी से भुगतान करने की समस्या का समाधान सम्भव होगा।

(3) सीमित साझेदारी अधिनियम-

सीमित साझेदारी अधिनियम के माध्यम से नये अथवा गैर सक्रिय साझेदार (Non Acting Partner) के दायित्वों को उसके द्वारा विनियोजित पूँजी की मात्रा तक सीमित करने की व्यवस्था की गयी।

(4) लघु उपक्रमों को वित्तीय एवं साख सुविधाएँ-

इन नीति के माध्यम से लघु उपक्रमों की वित्त सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु राष्ट्रीय समता कोष योजना (National Equity Fund Scheme) के कार्यक्षेत्र को अत्यन्त व्यापक किया गया। अब इसके माध्यम से समता पूंजी की सहायता के लिए 10 लाख रू. तक की (15 प्रतिशत तक परियोजनाओं को स्वीकार किया जा सकेगा)। एकल खिड़की ऋण योजना (Single Window Loan Scheme) के अन्तर्गत 20 लाख रू. तक की परियोजनाओं को सम्मिलित किया जा सकेगा। अभी तक यह सुविधा केवल राज्य वित्त निगमों के माध्यम से ही उपलब्ध करायी जा रही थी, परन्तु भविष्य में इन्हें वाणिज्यिक बैंकों के माध्यम से भी प्राप्त किया जा सकेगा।

लघु उपक्रमों की साख सम्बन्धी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति की व्यवस्था सुनिश्चित करने हेतु एक एजेन्सी की स्थापना करने की घोषणा की गयी।

(5) अति लघु क्षेत्र की इकाइयों को विभिन्न सुविधाएँ-

इस नीति के अन्तर्गत अति लघु क्षेत्र की इकाइयों को विभिन्न प्रकार की सुविधाओं की घोषणा की गयी, जैसे-(क) सार्वजनिक क्रय में प्राथमिकता, (ख) श्रम अधिनियम के अन्तर्गत कुछ प्रावधानों से मुक्ति, (ग) भूमि तथा शक्ति (विद्युत) (Power) का आवंटन, (घ) तकनीकी परिवर्तनों को प्राथमिकतमा हेतु वित्तीय सुविधा, आदि।

(6) लघु इकाइयों में अन्य औद्योगिक इकाइयों की भागीदारी-

इस नीति के अन्तर्गत लघु इकाइयों में अन्य औद्योगिक इकाइयों की भागीदारी के लिए अनुमति प्रदान की गयी, परन्तु भागीदारी की सीमा लघु इकाई की समता पूँजी के 24 प्रतिशत से किसी भी परिस्थिति में अधिक नहीं होनी चाहिए। ऐसा इस उद्देश्य से किया गया ताकि लघु उपक्रमों को पूँजी बातार से वित्त की प्राप्ति, आधुनिकीकरण एवं तकनीकी प्रविधियों का प्रयोग, उप-अनुबन्ध एवं सहायक उद्योगों के द्वारा विकास सम्भव हो सके।

(7) विपणन सुविधाएँ-

प्रस्तुत नीति में लघु क्षेत्र के उपक्रमों के उत्पादों (Products) को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता का अनुभव किया गया तथा इस कार्य हेतु सहकारी समितियों, सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं तथा अन्य विपणन एजेन्सियों द्वारा मिलकर प्रयास करने पर जोर दिया गया। राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम, राज्य स्तरीय लघु उद्योग विकास निगमों के सहयोग से जनसाधारण के उपयोग में आने वाली वस्तुओं को एक ही ब्राण्ड (Brand) अर्थात् नाम से विक्रय करने की व्यवस्था करेगा।

(8) घरेलू एवं आयातित कच्चे माल का वितरण-

इस नीति के अन्तर्गत लघु एवं अति लघु क्षेत्र के उपक्रमों में घरेलू एवं आयातित कच्चे माल के वितरण की व्यवस्था आवश्यकता और समानता को ध्यान में रखते हुए की जायेगी।

(9) उत्पादन कार्यक्रमों की पूरकता-

इस नीति के अन्तर्गत सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के औद्योगिक इकाइयों के उत्पादन कार्यों में आर्थिक दृष्टि से समर्थ लघु-स्तरीय इकाइयों को भी विभिन्न छोटे-छोटे पुर्जों एवं हिस्सों का निर्माण करके उपयोग करने की व्यवस्था का प्रयास किया जायेगा।

(10) हस्तकरण क्षेत्र के विकास के लिए पैकेज-

हस्तकरघा क्षेत्र को विकसित करने के उद्देश्य से तीन विशिष्ट योजनाएँ प्रारम्भ करने की घोषणा की गयी- (1) प्रोजेक्ट पैकेज- तकनीकी एवं विपणन सुविधाओं का विस्तार, (2) कल्याण पैकेज-बुनकरों के कल्याण सम्बन्धी विभिन्न योजनाओं का संचालन एवं पूर्व निर्धारित राशि में पर्याप्त वृद्धि (3) संगठनात्मक पैकेज- प्रबन्ध व्यवस्था में सुधार एवं पूंजी की उचित व्यवस्था पर जोर दिया गया।

(11) हस्तकला क्षेत्र का विकास-

इस क्षेत्र का विकास करने के उद्देश्य से ‘दस्तकारी विकास केन्द्र स्थापित किये जाने की व्यवस्था की जायेगी। यह केन्द्र कच्चे माल की सुलभता, डिजाइनों, तकनीकी जानकारी, विपणन सहायता तथा प्रशिक्षण सम्बन्धी सुविधाओं को उपलब्ध करने हेतु प्रयास करेगा।

उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त इस नीति के अन्तर्गत निर्यात विकास केन्द्र की स्थापना, तकनीकी विकस प्रकोष्ठ की स्थापना; लघु क्षेत्रों के उत्पादों की गुणवत्ता परा विशेष ध्यान; ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों में लघु उद्योगों की स्थापना; शोध एवं अनुसंन्धन कार्यों को प्रोत्साहन तथा खाद एवं ग्रामीण उद्योग आयोग को सुदृढ़ता प्रदान करना आदि जैसे महत्वपूर्ण निर्णयों को सम्मिलित किया गया है।

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