वित्तीय प्रबंधन

लाभांश नीति | एक समुचित लाभांश नीति के आवश्यक तत्व | सुदृढ़ लाभांश नीति के लाभ

लाभांश नीति | एक समुचित लाभांश नीति के आवश्यक तत्व | सुदृढ़ लाभांश नीति के लाभ |Dividend Policy in Hindi | Essential elements of a proper dividend policy in Hindi | Advantages of Strong Dividend Policy in Hindi

लाभांश नीति

तात्पर्य कम्पनी की अपने अंशधारियों को दिए जाने वाले लाभांश सम्बन्धी व्यवहार का कार्य करने के तरीके से है। लाभांश वितरण योग्य लाभांश का वह भाग है जो अंशधारियों में बाँटा जाता है। कम्पनी का जितना भी लाभ होता है वह यह तो पूरा ही लाभांश के रूप में अंशधारियों को दिया जा सकता है अथवा उसका कुछ भाग अंशधारियों को लाभांश के रूप में दिया जा सकता है व कुछ भाग कम्पनी अपने पास कोष या अधिकोष के रूप में रख सकती है। यह भी सम्भव है कि लाभ होने पर भी कम्पनी लाभांश न बॉटे। इस प्रकार लाभांश कितना दिया जाए इस नीति ही लाभांश नीति कहा जाता है। वैस्टनव ब्रिंगम के अनुसार, “लाभांश नीति अर्जनों का अंशधारियों को भुगतान व प्रतिधारित अर्जनों में विभाजन निश्चित करती है।” प्रबन्धकों के सामने यह विकल्प नहीं होता है कि लाभांश बाँटे या न बाँटे, हाँ यह प्रश्न अवश्य होता है कि कितना बाँटे। इस प्रकार की समस्या का हल लाभांश नीति से मिलता है। इस प्रकार लाभांश के वितरण सम्बन्धी नीति को ही लाभांश नीति कहा जाता है।

एक समुचित लाभांश नीति के आवश्यक तत्व

(Essential Elements of an Appropriate Dividend Policy)

एक समुचित लाभांश नीति में निम्नलिखित आवश्यक तत्व होते हैं-

(1) लाभांशा का नकद वितरण (Distribution of dividend in cash)- लाभांश नीति तभी अच्छी कही जा सकती है जब लाभांश का भुगतान नकदी में किया जाए। सम्पत्ति, वस्तु या प्रतिभूतियों के रूप में भुगतान किया गया लाभांश उचित नहीं माना जाता। भारतीय कम्पनी अधिनियम के अनुसार तो लाभांश का नकदी के अतिरिक्त भुगतान किया ही नहीं जा सकता। हाँ; यदि कम्पनी के संचित कोषों की राशि बहुत अधिक हो जाए तो बोनस अंश निगर्मित कर लाभों का पूँजीकरण किया जा सकता है।

(2) प्रारम्भ में कम लाभांश (Less Dividend in the Beginning) – प्रत्येक कम्पनी को प्रारम्भ में कम लाभांश घोषित करना चाहिए। इससे लाभ का बड़ा भाग आन्तरिक वित्त की पूर्ति के रूप में साधन के रूप में रहेगा तथा कम्पनी की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ करने में सहायक होगा। प्रारम्भ में कम लाभांश कम्पनी के विकास व विस्तार में सहायक होगा।

(3) अंश वितरण की स्थिति (Extent of Share Distribution) – एक सन्निकट रूप से नियन्त्रित कम्पनी (Closely held Company) अंशधारियों की कम संख्या के कारण उनकी सहमति प्राप्त कर कठोर लाभांश नीति (Rigid Dividend Policy) का निरूपण कर सकती है। लेकिन अंशधारियों के विस्तृत फैलाव होने की स्थिति में उदार लाभांश नीति को लागू करना कम्पनी की अपनी मजबूरी होती है। कठोर लाभांश नीति से कम्पनी की साख भी प्रभावित होती है।

(4) व्यावसायिक उच्चावचन ( Business Fluctuations)- व्यवसाय में उच्चावचन के कारण आय में उच्चावचन दृष्टिगोचर होता है। फलस्वरूप पूँजी विनियोग की माँग तथा मुद्रा बाजार की परिस्थितियों में भी परिवर्तन होता रहता है। अतः कम्पनी को अपनी लाभाश नीति को व्यावसायिक उच्चावचन के काररण समायोजित करना होता है। तेजी काल में कम्पनी प्रबन्ध द्वारा अच्छे संचय का निर्माण किया जा सकता है और मुद्रास्फीति के बाद संकट का सामना करने के लिए आधार बनाया जा सकता है। मन्दी वाले बाजार में प्रतिभूतियों का विक्रय लाभांश के उच्च दर की सहायता से ही किया जा सकता है।

(5) अतिरिक्त पूँजी की आवश्यकता (Need for Additional Capital)- कम्पनी अपनी आय का एक भाग अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए प्रतिधारित करती है। जितना ही अधिक आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए प्रतिधारित करती है। जितना ही अधिक कम्पनी में लाभ को प्रतिधारित किया जायेगा उतना ही लाभांश वितरण के लिए कम लाभ उपलब्ध हो पायेगा। अतः यदि भावी विस्तार अथवा कार्यशील पूँजी के लिए लाभ का प्रतिधारण किया जा रहा है तो लाभांश नीति अपेक्षाकृत कठोर होगी।

(6) सरकारी नीति (Government Policy)- सरकार की औद्योगिक नीति, आर्थिक नीति, श्रमनीति, प्रशुल्क नीति आदि का कम्पनी की लाभांश नीति पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। यदि उपरोक्त नीति उदारवादी दृष्टिकोण की है, तो स्वाभाविक है कम्पनी की आय पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा और कम्पनी अपेक्षाकृत उदार लाभांश नीति का निरूपण कर सकेगी। यदि इन नीतियों का एकमात्र उद्देश्य व्यावसायिक क्रियाकलपों का केवल नियमन करना ही है तो लाभार्जिन एवं लाभांश दर भी नियंत्रित रहेगी।

(7) कर नीति (Taxation Policy)- यदि सरकार ने कम्पनियों के लाभों पर अपेक्षाकृत अधिक देर से निगम कर वसूला है तो विभाजनीय लाभ की मात्रा कम होगी; फलस्वरूप लाभांश की दर भी कम होगी। इसी तरह अप्रत्यक्ष कर दरों का भी प्रभाव एक सीमा के बाद कम्पनी की आय पर पड़ता है।

(8) रोकड़ स्थिति (Cash Position)- कभी कभी निदेशक मण्डल विभाजनीय लाभ अधिक होने के कारण अपेक्षाकृत अधिक दर से लाभांश वितरण करना चाहता है लेकिन संस्था की नकदी स्थिति सन्तोषजनक न होने के कारण वह लाभांश घोषणा करने में असमर्थ रहता है। अतः यदि संस्था की नकदी, स्थिति सन्तोषजनक नहीं है तो स्वाभाविक है कि संस्था कठोर लाभांश नीति के अनुसरण के लिए मजबूर होगी।

सुदृढ़ लाभांश नीति के लाभ (Advantages of Sound Dividend Policy)

मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं-

(i) कम्पनी की साख में वृद्धि होने से कम्पनी की ऋण प्राप्त करने की क्षमता में वृद्धि होती है।

(ii) कम्पनी को अतिरिक्त पूँजी जुटाने में सुविधा होती है। सुदृढ़ लाभांश नीति वाली कम्पनी की पूंजी बाजार में ख्याति अच्छी होने से विनियोगकर्ताओं का अच्छा समर्थन मिलता है।

(iii) कम्पनी के स्वामित्व तथा प्रबन्ध व्यवस्था में स्थिरता एवं नियमितता आती है।

(iv) कम्पनी के विकास एवं विस्तार के लिए दीर्घकालीन योजना निरूपण में सहायता मिलती है क्योंकि वित्तीय आवश्यकता एवं उनके जुटाव के सम्बन्ध में परिस्थिति का मूल्यांकन सही रूप में किया जा सकता है।

(v) कम्पनी के अंशधारियों का कम्पनी के प्रति विश्वास बना रहता है क्योंकि उनके लाभांश में नियमितता एवं स्थिरता होती है।

(vi) अंशों के बाजार मूल्य में स्थायित्व आता है इससे अंशों में सट्टेबाजी की प्रवृत्ति पर अंकुश लगता है और अंशधारी भी हानि से बच जाते हैं।

(vii) निगमीय क्षेत्र के विकास एवं विस्तार के लिए उपयुक्त आधार उपलब्ध होता है। इससे देश का त्वरित औद्योगिक विकास सम्भव होता है।

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Pankaja Singh

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