किस स्तर पर जन शिक्षा आरम्भ की जानी चाहिये | किस स्तर पर जन शिक्षा आरम्भ की जाए
किस स्तर पर जन शिक्षा आरम्भ की जानी चाहिये
स्कूल स्तर के विरोध में
(Against School Level)
कुछ शिक्षाशास्त्रियों का विचार है कि क्योंकि यह गहन विषय है, इसलिए इसे स्कूल स्तर पर नहीं पढ़ाया जाना चाहिए। उनका एक तर्क यह भी है कि बच्चों को अपने विकास से सम्बन्धित अन्य रुचियां और क्रियाकलाप मिल जाते हैं इसलिए उन्हें समाज की इन गहन समस्याओं में रुची नहीं होती। उनका यह भी विश्वास है कि जन शिक्षा से बच्चों में अवांछनीय काम अभिवृत्तियां भी उत्पन्न हो सकती हैं। हम बच्चों को जन्म-विरोधी कार्यक्रमों का प्रदर्शनात्मक पक्ष भी तो नहीं दिखा सकते । इन बातों के कारण शिक्षा-शास्त्री स्कूल स्तर पर जन शिक्षा शुरू करने के पक्ष में नहीं हैं।
स्कूल स्तर के पक्ष में
(In Favour of School Level)
इसके विपरीत कुछ शिक्षाशास्त्री स्कूल स्तर पर जन शिक्षा शुरू करने के समर्थक हैं कि जनसंख्या समस्या को प्रभावशाली ढंग से तभी हल किया जा सकता है जब जन शिक्षा को स्कूल स्तर से आरम्भ किया जाये। वह इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क (Arguments) देते हैं-
(1) भावी समाज के लिए (For the Future Society – स्कूल भविष्योन्मुखी होने के कारण समाज की भावी आवश्यकताओं को प्रमुख रखते हैं। वे भावी समाज के लिए बच्चों को तैयार करते हैं। इसलिए वे देश की भावी आवश्यकताओं की उपेक्षा नहीं करते।
(2) संरचना (Structure)- स्कूलों में ही ऐसी संरचना उपलब्ध हो सकती है जिसके द्वारा समाज परिवर्तन कार्यक्रम को गति मिल सकती है।
(3) छोटी पीढ़ी के लिए (For Young Generation)- छोटी पीढ़ी तक विचार प्रसार के लिये स्कूल सर्वाधिक यथोचित (योग्य) साधन हैं । जनसंख्या समस्या के समाधान के लिए जब तक छोटी पीढ़ी को सक्रिय रूप से सम्मिलित नहीं किया जाता तब तक हम समस्या को सफलतापूर्वक हल नहीं कर सकते । क्योंकि बच्चों के पहुंचने के लिए स्कूल ही प्रभावशाली माध्यम हैं।
(4) भावी आचरण का निर्माण (Building of Future Characters)- स्कूलों में ऐसे शिक्षा सम्बन्धी अनुभव विद्यार्थियों को प्राप्त होते हैं जो उनके भावी आचरण का निर्माण करते हैं। जन शिक्षा उनमें जनसंख्या के प्रति उचित अभिवृत्तियों को विकसित करने में सहायक सिद्ध होगी। उनका भावी आचरण इन्हीं अभिरुचियों के अनुकूल बनेगा। इसलिए वे बड़े होकर छोटे परिवार के प्रतिमान का अनुसरण करेंगे।
(5) अभिरुचियों को सुधारना (To Improve the Attitudes)- बालकों और नवयुवकों की अभिरुचियों को सुधारने के लिए ही स्कूलों की स्थापना की जाती है। बच्चों की शैशवकालीन अभिरुचियाँ स्थाई होती हैं। जीवन का यह काल बहुत ही प्रभावशाली होने के कारण जनसंख्या वृद्धि समस्या को प्रमुख रखते हुए बच्चों की अभिरुचियों को नई दिशा देने का कार्य शैशव काल में ही आरम्भ हो जाना चाहिए।
(6) बच्चों को सामाजिक परिवर्तन के लिए तैयार करना (To Prepare the Children for Social Change)- स्कूल सामाजिक परिवर्तन लाने के सशक्त साधन है। हमारी सांस्कृतिक परम्परा अधिक जनसंख्या के पक्ष में है। हम जनसंख्या वृद्धि सम्बन्धी पुराने मूल्यों और रीति-रिवाजों का परित्याग करना चाहते हैं। इसलिए स्कूल का यह कर्तव्य बन जाता है कि वे सामाजिक परिवर्तन के लिए बच्चों को तैयार करें और उनमें जनसंख्या विस्फोट सम्बन्धी नये मूल्यों और नये विचारों का तथा उनसे उदभूत गंभीर परिणामों का संचार करें। जनसंख्या शिक्षा इन मूल्यों का संचार करेगी और परिवर्तित हो रहे समाज के लिए अच्छे नागरिक तैयार करने में सहायता देगी।
सभी स्तरों पर
(At All levels)
वास्तव में जनसंख्या शिक्षा को शिक्षा के सभी स्तरों पर दिया जाना चाहिए। यह शिक्षा किंडर गार्टन स्तर से लेकर विश्वविद्यालयी स्तर तक दी जानी चाहिए। जन शिक्षा एक सतत प्रक्रिया है। यह बड़े हो रहे बच्चों को निरन्तर दी जानी चाहिए। यदि हम यह शिक्षा बच्चों को निरन्तर देते रहें तो विद्यार्थियों के मन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। यदि हम किसी स्तर पर रुक जायेंगे तो सम्भव है विद्यार्थी बड़े होकर इन विषयों को छोड़ दें। विद्यार्थियों में उचित अभिरुचियां उत्पन्न करने के लिए और उनके मन पर गहरा प्रभाव डालने के लिए हमें स्कूल और कॉलेज स्तर तक यह शिक्षा देनी चाहिए।
प्रारम्भिक (प्राथमिक) शिक्षा स्तर
(Al Elementary (Primary) Level)
इस विषय को बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा के साथ ही शुरू करने के लिये विशेष रूप से प्राथमिक शिक्षा स्तर पर निम्नलिखित तर्क दिए गये हैं-
(1) सभी बच्चों से सम्पर्क (Contact with all the Students)- प्राथमिक शिक्षा स्तर पर हम सभी बच्चों के सम्पर्क में आ सकते हैं। इस स्तर के पश्चात संभव है बहुत-से विद्यार्थी स्कूल से निकलकर सामाजिक जीवन में प्रविष्ट हो जायें। यदि हम जन शिक्षा देने का काम माध्यमिक या विश्वविद्यालयी स्तर पर टाल दें, तब विद्यार्थियों की बड़ी संख्या जन शिक्षा से वंचित रह जाएगी। जब वे सामाजिक जीवन में पैर रखेंगे, वे जनसंख्या समस्या के समाधान में रोड़े अटकाएंगे। हम इस प्रकार के करोड़ों बच्चों में यथायोग्य अभिरुचियों का संचार नहीं कर पायेंगे। इसलिए जनशिक्षा प्राथमिक स्तर से ही प्रारम्भ कर देनी चाहिए।
(2) जनसंख्या विस्फोट ग्रामीण क्षेत्रों से अधिक सम्बन्धित है क्योंकि शहरी इलाकों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में जन्म दर बहुत अधिक है। ग्रामीण इलाकों में बहुत-से बच्चे प्राथमिक शिक्षा लिए बिना ही स्कूल छोड़ जाते हैं। यदि हम अपने गाँवों में जनसंख्या समस्या को हल करना चाहते हैं, हमें वहाँ के छोटे बच्चों तक सम्पर्क बनाना होगा। यह कार्य केवल प्रारम्भिक शिक्षा स्तर पर जन शिक्षा देने की व्यवस्था द्वारा कर सकते हैं।
(3) आंकड़ों की दृष्टि से देश में साक्षरता बहुत अधिक लोगों में फैल चुकी है । इस दयनीय और भयावह स्थिति के आधारभूत कारणों में से एक कारण यह भी है कि हम सभी बच्चों के लिए सार्वभौमिक अनिवार्य शिक्षा देने की व्यवस्था करने में असफल रहे हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव जनसंख्या वृद्धि के रूप में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में फैला हुआ है। गाँवों में अब भी बहुत-से व्यक्ति अनपढ़ हैं। देहाती क्षेत्रों में ही जनसंख्या वृद्धि को रोकने की आवश्यकता है। यह कार्य तभी हो सकता है जब हम प्राथमिक अवस्था पर ही जन शिक्षा देनी शुरू करें, क्योंकि बहुत-से विद्यार्थी तो प्राथमिक शिक्षा अवस्था को पूरा किए बिना ही स्कूल छोड़ जाते हैं।
(4) प्राथमिक शिक्षा के इस स्तर पर बच्चों के मन पर स्थाई प्रभाव पड़ते हैं। यह बच्चे का सर्वाधिक ग्राह्य काल होने के कारण बच्चे की अभिरुचियों और रुचियों का विकास इस काल में होता है।
इसलिए जन शिक्षा पूर्व प्राथमिक स्तर या प्राथमिक स्तर पर शुरू करनी चाहिए। यह शिक्षा माध्यमिक तथा विश्वविद्यालयी स्तर तक निरन्तर चलती रहनी चाहिए। यह शिक्षा के सभी स्तरों के पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग होनी चाहिए। इस प्रकार जनसंख्या विस्फोट के भयानक खतरे का सामना करने के लिए स्कूल और कॉलेज प्रभावशाली भूमिका निभा सकते हैं।
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