कार्य विश्लेषण का अर्थ | कार्य विश्लेषण की विधियाँ | Meaning of job analysis in Hindi | Methods of Job Analysis in Hindi
कार्य विश्लेषण का अर्थ
(Meaning of Job Analysis)
कार्य विश्लेषण वास्तव में किसी कार्य के निष्पादन के लिए आवश्यक प्रकार्यों कर्त्तव्यों, दायित्वों को निर्धारित करने, कर्मधारक से अपेक्षित योग्यताओं को निश्चित करने तथा कार्य से संगत पूर्ण सत्ता दायित्व सम्बन्धों को तय करने की प्रक्रिया है।
कार्य विश्लेषण की विधियाँ
(Methods of Job Analysis)
कार्य विश्लेषण का महत्व दिन-प्रति-दिन बढ़ता चला जा रहा है और यह मानव संसाधन प्रबन्ध का महत्वपूर्ण कार्य है। कार्य विश्लेषण के लिए निम्नलिखित विधियाँ प्रयुक्त की जा सकती हैं-
(1) अवलोकन विधि (Observation Methods)- कार्य विश्लेषण की सम्भवतः यह सबसे पुरानी तथा सरल पद्धति है। यह पद्धति ‘देखो कुछ मत कहो’ (watching and not asking) सिद्धान्त पर आधारित है। इस विधि के अन्तर्गत कर्मचारी का कार्य करते हुए समय- समय पर अवलोकन किया जाता है। इस विधि में सुपरवाइजर तथा कर्मचारी दोनों एक ही कार्य स्थल पर कार्य करते पाये जाते हैं तथा सुपरवाइजर कर्मचारियों की कार्य प्रणाली, कैसे वह कार्य कर रहा है, कितना समय लगा रहा है, कार्य करते समय उसकी वैयक्तिक गतिविधि का अवलोकन कर रिकार्ड प्रस्तुत किया जाता है। यह विधि मुख्यतः अकुशल तथा अर्धकुशल कार्यो के लिए सफलतापूर्वक प्रयुक्त की जाती है।
इस विधि का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह काफी सरल है तथा कम खर्चीली पद्धति है। साथ ही इसमें सूचनाओं को आसानी से उपलब्ध कराया जा सकता है। किन्तु इस विधि का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह अधिक समय लेने वाली पद्धति है तथा तकनीकी युक्त कार्यों या कुशल कार्यों के लिए इसका प्रयोग किया जाना कठिन है।
(2) प्रश्नावली विधि (Questionnaire Method)–प्रश्नावली विधि को सर्वेक्षण विधि भी कहते हैं। इस विधि में कार्यों के सन्दर्भ में विभिन्न प्रकार के प्रश्नों का निर्माण कर कर्मचारियों से पूछा जाता है इसके अन्तर्गत कर्मचारियों से कार्य की सूक्ष्मताओं, कार्य सम्बन्धी कठिनाइयों, कार्य विवरण के औचित्य आदि के बारे में विविध बातें की जाती है। प्रश्नावली विधि में प्रत्येक कर्मचारी अपनी सुविधानुसार सूचना दे देता है। प्रश्नावली विधि को अधिक प्रभावी बनाने के लिए सर्वेक्षण के उद्देश्य स्पष्ट कर देना चाहिए। इस में प्रश्नावली के निर्माण पर ही सूचनाएं निर्भर करती है यदि प्रश्नावली कार्य के अनुकूल तैयार की जायेगी तो सूचनाएँ अनुकूल आयेंगी। कर्मचारियों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर कार्य विश्लेषण से सम्बन्धित महत्वपूर्ण निर्णय लिये जा सकते हैं।
इस विधि का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें कार्य से सम्बन्धित सभी सूचनाएँ कम समय में शीघ्रता से प्राप्त की जा सकती हैं। इस विधि में खर्चे भी कम आते है तथा महत्वपूर्ण सूचनाएँ एकत्रित की जा सकती है। इसका सबसे बड़ा दोष यह है कि अलग-अलग व्यक्ति के एक ही प्रश्न के उत्तर अलग-अलग आते हैं तथा सभी उत्तरदाता इमानदारी पूर्वक प्रश्नों का उत्तर नहीं देते। अशिक्षित श्रमिकों के लिए यह विधि बिल्कुल ही उपयुक्त नहीं है।
(3) साक्षात्कार विधि (Interview Method)- इस विधि में कार्य विश्लेषक कर्मचारी के सामने उपस्थित होकर अर्थात प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित करके कार्य सम्बन्धी सूचनाएँ एकत्रित करता है। इसमें विविध प्रश्नों के माध्यम से प्राप्त उत्तर व्यक्ति के हाव-भाव, बातचीत के द्वारा सूचानएँ एकत्रित की जाती है। इसके लिए प्रश्नों का प्रमापित प्रारूप भी प्रयुक्त किया जाता है। साक्षात्कार के समय साक्षात्कारकर्ता न्याय प्रक्रिया का भी प्रयोग करता है ताकि उससे सही सूचनाएँ प्राप्त की जा सकें।
इस विधि का सबसे बड़ा लाभ यह है कि व्यक्तिगत सम्पर्क के आधार पर पर्यवेक्षकों/ साक्षात्कार कर्ताओं द्वारा सूचनाएँ संग्रहित की जाती हैं जिसमें सत्यता की गुंजाइश अधिक रहती है किन्तु इसका सबसे बड़ा दोष यह है कि यह अधिक समय लेने वाली विधि है और इसमें व्यक्तिगत द्वेष की सम्भावना रहती है।
(4) अभिलेख विधि-(Record Method)- इसे कर्मचारी अभिलेख (Employees Record) विधि या लॉग-बुक (Log-book) पद्धति भी कहते हैं। मानव संसाधन विभाग का यह कर्तव्य होता है कि संगठन के प्रत्येक कर्मचारी की सूचनाएँ वह अपने पास रखे। इस विधि में कर्मचारी के बारे में जो सूचनाएँ उपलब्ध होती है उनका विश्लेषण किया जाता है। इन सूचनाओंश्रमें कार्य अध्ययन, समय एवं गति अध्ययन सम्बन्धी सूचनाएँ उपलब्ध की जाती हैं, किन्तु यह पता नहीं लगता है कि कार्य में कौन-कौन से उपकरण प्रयोग किये गये? कर्मचारी के पर्यवेक्षक तथा अन्य सहयोगियों में किस प्रकार के सम्बन्ध हैं? कार्य की दशाएँ कैसी होती है? प्राप्त अभिलेखों के आधार पर उनके द्वारा आधारित पद के सम्बन्ध में कर्त्तव्यों, दायित्वों उनकी भूमिकाओं आदि का ज्ञान हो जाता है।
(5) चेक लिस्ट पद्धति (Check List Method)- चेक लिस्ट पद्धति काफी सरल है
तथा प्रश्नावली विधि से मिलती-जुलती है। इसमें प्रश्नों की एक चेक लिस्ट तैयार की जाती है तथा उसे कर्मचारियों को दे दिया जाता है, जिसमें कर्मचारी हाँ (Yes) तथा नहीं (No) में चिह्नित कर अपने विचारों व भावनाओं/उत्तर को व्यक्त कर देते हैं। इस विधि का प्रयोग प्रायः कार्यकुशल व तकनीकी श्रमिकों, पेशेवरों तथा जानकार कर्मचारियों के लिए किया जाता है। चेक लिस्ट के आधार पर प्राप्त सूचनाओं का सारणीयन तथा विश्लेषण कर उचित निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं। यह विधि काफी उपयुक्त है, क्योंकि इसमें प्रश्नों की चेक लिस्ट इस प्रकार बनायी जाती है कि सही तथ्य को निकाला जा सके, किन्तु यह विधि थोड़ी महँगी अवश्य है।
(6) तकनीकी सम्मेलन विधि- (Technical Conference Method)- इस विधि के अन्तर्गत विशिष्ट लक्ष्यों वाले कार्यों का विश्लेषण करने के लिए विशेषज्ञों, तकनीकी व्यक्तियों, इंजीनियर्स, सुपरवाइजर्स आदि का एक तकनीकी सम्मेलने बुलाया जाता है जो अपने कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी देते हैं। इनसे कार्य के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी प्राप्त करके कार्य विश्लेषण किया जाता है। विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श तथा उनके मतों एवं दृष्टिकोण से कार्य की जटिलताएँ सामने आ जाती हैं।
(7) महत्वपूर्ण घटना विधि (Critical Incidents Method)- इस विधि में केवल उन महत्वपूर्ण घटनाओं का अध्ययन किया जाता है जो कार्य के सफल या असफल निष्पादन को दर्शाती हैं। पदधारकों से असाधारण घटनाओं, बातों, प्रसंगों आदि का वर्णन करने के लिएक्षकहा जाता है तथा जो कार्य की प्रकृति पर प्रकाश डालती है। ये प्रसंग प्रभावी अथवा अप्रभावी कार्य व्यवहार को दर्शाते हैं। ये अनोखी एवं कठिन निर्णय लेने वाली घटनाएँ या अवसर होते हैं, जिनसे यह जाना जा सकता है कि कार्य में किन गुणों, योग्यताओं, सूचनाओं, मानसिक जागरूकता की आवश्यकता होगी। इन प्रसंगों का विवेचन करके कार्य की गम्भीरता, अपेक्षित उत्तरदायित्वों, कार्य व्यवहारों आदि का ज्ञान किया जा सकता है। यह विधि कार्य से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं के आधार पर कार्य की आवश्यकताओं एवं वांछित गुणों का निर्धारण करती है।
उपरोक्त विधियों अतिरिक्त कार्य निष्पादन (Job performance), कार्य प्रतिचयन (Work sampling), क्रियात्मक कार्य विश्लेषण (Functional job analysis), विधि विश्लेषण (Methods analysis) तथा सहभागिता विधि (participation method) आदि भी है जिनके द्वारा कार्य विश्लेषण किया जा सकता है यहाँ यह स्पष्ट कर देना उचित है कि सभी विधियों की अपनी कुछ अच्छाइयाँ एवं बुराइयाँ हैं। अतः सभी विधियाँ अपनी-अपनी जगह अलग-अलग कार्यों के लिए उपयुक्त या अनुपयुक्त है। उनकी उपयुक्तता के आधार पर सही विधि का चयन कर हम कार्य विश्लेषण की प्रक्रिया का संचालन कर सकते हैं।
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