हिन्दी

जिस लाहौर देखा ओ जम्याई नई’ का कहानी चित्रण

जिस लाहौर देखा ओ जम्याई नई’ का कहानी चित्रण

जिस लाहौर देखा ओ जम्याई नई’ का कहानी चित्रण

कथावस्तु या कथानक-

प्रस्तुत नाटक में हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे की दर्दनाक कहानी का चित्रण बड़े ही मार्मिक ढंग से किया गया है। बंटवारे के समय कहीं इन्सानियत तो कहीं जेहाद के नाम पर मासूम लोगों के कत्लेआम की झलक भी प्रस्तुत नाटक में देखने को मिलती है। विभाजन के दौरान शरणार्थी शिविरों से निकले लोगों के अण्ड से शुरू हुआ नाटक घरों के आवंटन तक जा पहुंचता है।

सिकन्दर मिर्जा, जावेद, हमीया बेगम और वो सामान उठाये मंच पर आते हैं। इधर-उधर देखते हैं। वह कस्टोडियन द्वारा एलाट होली आ गये है। सबके चेहरे पर सन्तोष और प्रसन्नता के चिन्ह दिखाई पड़ते हैं। ये लोग अपने हाथों में उठाये सामान को वहाँ रख देते हैं। तत्पश्चात् उन्हें पता चलता है कि जो हवेली उन्हें एलाट की गयी है, उसमें पहले से ही कोई बुढ़िया रहती है। सिकन्दर मिर्जा अपने परिवार के साथ बंटवारे के बाद लखनऊ से पाकिस्तान के लाहौर शहर पहुँचें थे। जो घर उन एलाट था वह रतन नामक जौहरी का था जो बंटवारे के दौरान मारा जाता है। लेकिन उसका किसी को पता नहीं। घर में अकेली रतन की माँ रह जाती है। कस्टोडियन द्वारा एलाट  उस हवेली में सिकन्दर मिर्जा जब पहुँचते हैं तो वे रतन की बूढ़ी माँ से मकान खाली करने को कहते हैं और बताते हैं कि उन्हें कस्टोडियन ने यह हवेली रहने के लिए एलाट की है। वह सिकन्दर मिर्जा की बातें सुनकर बिगड़ जाती है और मकान खाली करने से मना कर देती है किन्तु वह इस बात के लिए तैयार है कि सिकन्दर मिर्जा अपने परिवार के साथ हवेली में रह सकते हैं।

नाटक आगे बढ़ता है। सिकन्दर मिर्जा हवेली कब्जाने के चक्कर में कभी कस्टोडियन अधिकारियों के पास तो कभी इलाके के गुण्डों के पास उन्हें पैसा भी देता है। इन्हीं घटनाओं के बीच रतन की माँ कब सिकन्दर मिर्जा और उनके परिवार वालों को अजीज लगने लगती है कोई नहीं समझ पाता। रतन की माँ अपने व्यवहार और विचारों से विकास पसन्द लोगों की मदद करती थी। सारा मोहल्ला बुढ़िया को माई कहता था। बुढ़िया वहाँ पर लोगों की मदद करती हुई उनके दिलों में अपना स्थान बनाती जाती है। इसी दौरान दीपावली आ जाती है, बुढ़िया सिकन्दर मिर्जा से पूछती है कि बेटा मैं हर साल की तरह इस वर्ष भी दीपावली मनाना चाहती हूँ तुम्हें कोई ऐतराज तो नहीं होगा। सिकन्दर मिर्जा कहते हैं माई हमें कोई एतराज नहीं है, हर त्यौहार आप खुशी से मनाओ और हमारे काबिल जो काम हो बताना। दीपावली आ गयी। बुढ़िया अपनी हवेली में सिकन्दर के बच्चे तन्नो और जावेद के साथ दिया जला रही है और सिकन्दर मिर्जा की बेगम हमीदा सब देख रही है दिया जलाने के बाद बुढ़िया पूजा करती है तथा सभी को मिठाइयाँ खिलाती है। मोहल्ले के और लोग हामिद, नासिर आदि भी आते हैं और बुढ़िया माई को दीपावली की मुबारकबाद देते हैं। वह सभी को मिठाइयाँ खिलाती है। कुछ लोग एतराज करते हैं तो कुछ लोग समर्थन करते हैं। समय व्यतीत होता जाता है और एक दिन बुढ़िया का इन्तकाल हो जाता है। मौलाना साहब आते हैं और सिकन्दर मिर्जा से कहते हैं, “पुत्तर गुस्सा और अक्ल कभी एक नहीं होते (कुछ ठहर कर) तुममें से कितने लोग हैं जो ये कह सकते हैं कि रतन की माँ तुम्हारे काम नहीं आई? कि तुम पर उसमें एहसानात नहीं है? कि उसने तुम लोगों की खिदमत नहीं की।”

मौलाना आगे कहता है- “आज वो औरत मर चुकी है जिसके तुम सब पर एहसानात हैं, तुम सबको उसने अपना बच्चा समझा था, आज जब कि वो मौत के आगोश में सो चुकी है तुम उसे अपनी मां मानने से इन्कार कर दोगे……… और अगर वह तुम्हारी माँ तो उसका जो मजहब था……. उसका एहतेराम करना तुम्हारा फर्ज है।

सिकन्दर मिर्जा मौलाना की बात सुनकर कहते हैं- बजा फरमाते हैं मौलाना…….. हमें मरहूमों के मजहबी उसूलों के मुताबिक ही उसका कफन दफन करना चाहिए। यहाँ उपस्थित और लोग भी इसी बात पर सहमत हैं। उसके हिन्दू रीति-रिवाज से रतन की माँ उस बुढ़िया का कफन दफन किया जाता है तथा सिकन्दर मिर्जा पुत्र रूप उसे मुखाग्नि देते हैं।

  1. पात्र चरित्र चित्रण-

असगर व जाहब का प्रस्तुत नाटक में सोलह पात्र है। कहानी के पात्रों में ‘अहं’ का तीव्र रूप दिखाई देता है। बौद्धिक तटस्थता के फलस्वरूप प्रस्तुत नाटक में किसी प्रकार का सैद्धान्तिक आग्रह नहीं मिलता। फिर भी व्यक्तिवादी आग्रह की प्रबलता पायी जाती है। नाटक के पात्रों की प्रमुख विशेषता यह है कि वे स्वयं से सम्बन्धित समस्याओं से संघर्ष करने के साथ-साथ सभी प्रकार की समस्याओं से संघर्ष करते दिखाई पड़ते हैं।

  1. देशकाल या वातावरण-

प्रस्तुत नाटक में हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बँटवारे के गढ़ का पूरा नक्शा प्रस्तुत किया गया है। नाटक के वातावरण में एकरूपता नहीं अनेक रूप भी दृष्टिगोचर होते हैं। लाहौर के वातावरण में पूरा नाटक निर्मित है। नाटककार ने प्रस्तुत नाटक में देशकाल और वातावरण का सुन्दर निर्वाह किया है।

बेगम- क्या हुआ बेटी क्या हुआ?

तनो – इस हवेली में कोई है अम्मी!

सिकन्दर मिर्जा – कोई है? क्या मतलब!

तनो- मैं सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर गई तो मैंने देखा

सिकन्दर मिर्जा – क्या फुजूल बातें करती हो।

तनो – नहीं, अब्बा सच।

………

हिदायत- क्या उनके यहाँ मुर्दे को नहलाया भी जाता है।

मौलाना – ये मुझे इल्म नहीं।

नासिर- जी हाँ नहलाया जाता है।

हिदायत – कैसे?

नासिर- ये तो मुझे नहीं मालूम।

मौलाना – भई नहलाने से मुराद यही कि मुर्दा पाक हो जाए और उसके साथ कोई गंजालत न रहे।

इस प्रकार नाटक के संवाद छोटे-छोटे व प्रवाहपूर्ण है।

  1. भाषा शैली-

शैली विधान एकांकी का एक ऐसा तात्विक विधान है जिससे नाटक की अभिव्यक्ति बहुत अधिक प्रभावित होती है। इस दृष्टि से प्रस्तुत नाटक ‘जिस लाहौर नइ देख्या ओ जभ्याई नइ” एक उपयुक्त नाटक है। प्रस्तुत नाटक के भाव और अभिप्राय एकदम सहज और सरल रूप में सामने आ जाते हैं।

  1. उद्देश्य–

उद्देश्य किसी भी रचना अथवा कृति का सर्वोपरि और सर्वोच्च प्रधान तत्व है। इससे ही किसी कृति या रचना को अपेक्षित महत्व और सम्मान प्राप्त होता है। प्रस्तुत नाटक का मुख्य उद्देश्य बँटवारे के बाद उत्पन्न समस्याओं को सामने लाना है। नाटककार अपने उद्देश्य में पूर्णतया सफल है।

  1. अभिनेयत-

अभिनय नाटक का अन्तिम तत्व होते हुए भी एक अनन्य तत्व है। ऐसा इसलिए कि इस पर ही नाटक की लोकप्रियता और सार्थकता अधिक-से-अधिक रूप से निर्भर करती है। इस आधार पर यह कहना किसी प्रकार से अनुपयुक्त और अनुचित नहीं होगा कि नाटक के सभी तत्व अन्य तत्वों के योगदान से प्रस्तुत हुआ अभियन नाटक को सार्थकता के निकट ला देता है। इस दृष्टि से प्रस्तुत नाटक एक सफल और सार्थक नाटक है। इसके अभिनय के सम्पूर्ण कलेवर बड़े ही अपेक्षित और अनुकूल हैं।

हिन्दी – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

1 Comment

  • यह नाटक इन्सानियत एवं उस समय जिंदा रहने वाली समाजिक उत्कृष्टता को अपने चरम बिंदू तक ले जाने का कार्य यथार्थ पूर्व किया है। इसका समाजिक भेद-भाव नाम मात्र का है यह इन्सानियत को अत्यधिक दर्शाता है।

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!