अर्थशास्त्र

जीवन-चक्र परिकल्पना | Life Cycle Hypothesis in Hindi | एण्डो तथा मोदिग्ल्यानी की जीवन-चक्र परिकल्पना | Ando and Modigliani’s Life-cycle hypothesis in Hindi

जीवन-चक्र परिकल्पना | Life Cycle Hypothesis in Hindi | एण्डो तथा मोदिग्ल्यानी की जीवन-चक्र परिकल्पना | Ando and Modigliani’s Life-cycle hypothesis in Hindi

जीवन-चक्र परिकल्पना

(Life Cycle Hypothesis)

ए० एण्डो तथा मोदिग्ल्यानी ने 1963 में The Life Cycle Hypothesis of Saving नामक लेख में ऐसे उपभोग फलन का निर्माण किया है जिसे जीवन-चक्र सिद्धान्त का नाम दिया गया है। इस सिद्धान्त के अनुसार, उपभोग किसी उपभोक्ता की जीवन-काल में प्रत्याशित आय का फलन है। व्यक्तिगत उपभोक्ता का उपभोग इस बात पर निर्भर करता है कि उसके उपलब्ध संसाधन (resources) क्या हैं, पूँजी पर प्रतिफल की दर क्या है, उसकी व्यय करने की योजना क्या है, और वह योजना किस उम्र में बनाई गई है, उसकी आय (अथवा साधनों) के वर्तमान मूल्य में परिसम्पत्तियों अथवा सम्पत्ति से प्राप्त आय तथा चालू एवं प्रत्याशित श्रम आय से प्राप्त सम्मिलित रहती हैं।

जीवन-चक्र सिद्धान्त की चर्चा करने से पहले, इसकी मान्यताएं देख ली जाएं-(1) उपभोक्ता के जीवनकाल में कीमत स्तर में कोई परिवर्तन नहीं होता, (2) ब्याज की दर स्थिर रहती है, (3) उपभोक्ता को विरासत में कोई परिसम्पत्तियां प्राप्त नहीं होती और उसकी निवल परिसम्पत्तियां उसकी अपनी ही बचतों का परिणाम होती हैं।

उपभोक्ता का उद्देश्य यह होता है कि वह अपने जीवनकाल-पर्यन्त अपनी उपयोगिता को अधिकतम बनाए जो, आगे इस बात पर निर्भर करेगी कि उसे उसके जीवनकाल में उपलब्ध कुल संसाधन कितने हैं।

व्यक्ति की जीवन-अवधि दी हुई होने पर, उसका उपभोग उसके संसाधनों के समानुपाती होता है। परन्तु उपभोक्ता जिन संसाधनों को व्यय करने की योजना बनाता है, उनका अनुपात इस बात पर निर्भर करेगा कि वह व्यय करने की योजना अपने जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में बनाता है अथवा अन्तिम वर्षों में। नियम यह है कि किसी व्यक्ति की औसत आय उसके जीवन के प्रारम्भ में अपेक्षाकृत कम होती है और उसके जीवन के अन्तिम वर्षों में भी कम होती है। इसका कारण यह है कि उसके जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में उसकी परिसम्पत्तियां बहुत कम होती हैं और अन्तिम वर्षों में श्रम-आय कम होती है। हां, उसके जीवन के मध्यवर्ती काल में उसकी परिसम्पत्तियों से आय भी और श्रम-आय भी अधिक होती है। परिणामतः व्यक्ति का उपभोग स्तर समस्त जीवनपर्यन्त लगभग स्थिर अथवा थोड़ा बढ़ता हुआ रहता है, जिसे चित्र में CC1 वक्र द्वारा दिखाया गया है। Yo YY1 व्यक्ति के जीवनकाल T में उस व्यक्तिगत उपभोक्ता की आय धारा को प्रकट करता है। अपने जीवन की प्रारम्भिक अवधि में जिसे चित्र T1 द्वारा दिखाया गया है, वह अपने उपभोग स्तर CB को जो कि स्थिर है, बनाए रखने के लिए वह मुद्रा की CYoB मात्रा उधार लेता है। अपने जीवन के मध्यवर्ती वर्षों में, जिसे T1 T2 द्वारा दिखाया गया है, वह अपने ऋण को चुकाने के लिए तथा भविष्य के लिए मुद्रा की BSY मात्रा की बचत करता है। अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में, जिसे T2T द्वारा प्रकट किया गया है, वह SC1 Y1 मात्रा व्यय करता है।

जीवन चक्र सिद्धान्त के आधार पर, एण्डो तथा मोदिल्यानी ने अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन उपभोग फलनों का निर्माण करने के लिए अनेक अध्ययन किये। एक तिर्यक् छेद अध्ययन से पता चला कि निम्न आय वर्गों में अपेक्षाकृत अधिक व्यक्ति निम्न-आय स्तर पर थे क्योंकि वे अपने जीवन की अन्तिम अवधि में थे। इस प्रकार उनकी APC अधिक थी। दूसरी ओर, उच्च आय वर्ग से संबंध रखने वाले औसत से अधिक व्यक्ति उच्च आय स्तरों पर थे क्योंकि वे अपने जीवन के मध्यवर्ती वर्षों में थे। इस प्रकार उनकी APC अपेक्षाकृत कम थी। कुल मिला कर, ज्यों-ज्यों आय बढ़ रही थी, त्यों-त्यों APC घटती जा रही थी जो परिणामतः यह बताती थी कि MPC<APC अमरीका से संबंधित आंकड़ों के निरीक्षण से पता चला कि दीर्घकाल पर्यन्त APC= 0.7 पर स्थिर था।

एण्डो-मोदिग्ल्यानी अल्पकालीन उपभोग फलन को चित्र में Cs वक्रद्वारा दिखाया गया है। समय के किसी भी दिए हुए बिन्दु पर, Cs वक्र को स्थिरांक माना जा सकता है, और अल्पकालीन उतार-चढ़ावों के दौरान, जब परिसम्पत्तियां काफी स्थिर रहती हैं, यह वक्र केन्जीय उपभोग फलन जैसा प्रतीत होता है। परन्तु बचतों के माध्यम से परिसम्पत्तियों के संचय के परिणामस्वरूप इसका अन्त:खण्ड (intercept) बदल जाएगा, और इससे समय के साथ Cs वक्र ऊपर की ओर सरक कर Cs’ पर चला जाएगा। दीर्घकालीन उपभोग फलन CL है जो प्रकट करता है कि जब आय बढ़ने लगती है तो APC स्थिर रहती है। यह सरल रेखा है जो मूल बिन्दु में से गुजरती है। समय पर्यन्त APC स्थिर रहती है क्योंकि जब अर्थव्यवस्था वृद्धि की ओर अग्रसर होती है तो कुल आय में श्रम-आय का भाग और कुल आय से परिसम्पत्तियों का अनुपात स्थिर रहता है।

इसकी आलोचना (Its Criticism)- 

जीवन-चक्र सिद्धान्त की कुछ सीमाएं भी हैं। प्रथम, एण्डो तथा मोदिग्ल्यानी का यह कथन कि उपभोक्ता अपने जीवन भर के उपभोग को योजनाबद्ध करता है-अवास्तविक है क्योंकि उपभोक्ता भावी उपभोग की अपेक्षा जो अनिश्चित है, वर्तमान उपभोग पर अधिक ध्यान देता है।

दूसरे, जीवन-चक्र सिद्धान्त पहले से यह मान लेता है कि उपभोग व्यक्ति की परिसम्पत्तियों से प्रत्यक्ष तौर पर सम्बद्ध रहता है। ज्यों-ज्यों परिसम्पत्तियां बढ़ती हैं, त्यों-त्यों उसका उपभोग बढ़ता है और परिसम्पत्तियों के घटने पर उपभोग घटता है। यह भी अनावश्यक है क्योंकि हो सकता है कि व्यक्ति अपनी परिसम्पत्तियां बढ़ाने के लिए उपभोग घटा दें।

तीसरे, व्यक्ति के जीवन के प्रति दृष्टिकोण पर उपभोग निर्भर करता है। समान आय एवं परिसम्पत्तियों के दिए हुए होने पर, एक व्यक्ति दूसरे की अपेक्षा अधिक उपभोग कर सकता है।

इन सब बातों के बावजूद, जीवन-चक्र सिद्धान्त उन सब सिद्धान्तों से श्रेष्ठ है, जिनकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है, क्योंकि इसमें उपभोग फलन के अन्तर्गत चार के रूप में केवल परिसम्पत्तियों को ही शामिल नहीं किया गया है, अपितु यह इस बात को भी स्पष्ट करता है कि क्योंकि अल्पकालीन में MPC<APC होती है और दीर्घकालीन में APC स्थिर रहती है।

अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!