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जनसंख्या में वृद्धि आर्थिक विकास में बाधक तत्व | भारतीय जनसंख्या में वृद्धि आर्थिक विकास में बाधक तत्व

जनसंख्या में वृद्धि आर्थिक विकास में बाधक तत्व | भारतीय जनसंख्या में वृद्धि आर्थिक विकास में बाधक तत्व

जनसंख्या में वृद्धि आर्थिक विकास में बाधक तत्व

भारतवर्ष में बढ़ती हुई जनसंख्या इसके आर्थिक विकास में अवरोधक साबित हुई है। 1901 ई. में भारत की जनसंख्या 23.8 करोड़ थी, जो बढ़कर 1991 ई. में 84.6 करोड़ तथा  2011 में 121.09 करोड़ हो गई। पाकिस्तान के अलग हो जाने के बावजूद पिछले 100 वर्षों में भारत की आबादी में चार गुना से भी अधिक वृद्धि हो गई है। वर्तमान में भारतवर्ष में विश्व की कुल आबादी (6 अरब) के लगभग 16.6 प्रतिशत व्यक्ति निवास करते हैं, जबकि भारत के पास विश्व के कुल भू-भाग 2.4 प्रतिशत भाग है। वर्तमान समय में भारत की जनसंख्या लगभग 2 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ी रही है। यदि यही रफ्तार रही तो भविष्य में जनसंख्या के आकार के आधार पर विश्व में हमारा स्थान प्रथम होगा।

भारतीय जनसंख्या में वृद्धि आर्थिक विकास में बाधक

किसी देश का आर्थिक विकास वहाँ के प्राकृतिक साधनों के अतिरिक्त वहाँ की जनसंख्या पर भी निर्भर करता है। देश के लोगों की संख्या, उनका स्वास्थ्य, लोगों की कार्य, आयु, स्त्री- पुरुष का अनुपात, लोगों को जन्म व मृत्यु दर, जीवन अवधि और लोगों का व्यवसाय देश के आर्थिक विकास पर अपना प्रभाव डालते हैं। उपर्युक्त सभी बातों का सम्बन्ध देश की राष्ट्रीय आय से है जो कि प्रति व्यक्ति आय निश्चित करते हैं। आर्य से ही लागों को अधिक समृद्धि प्राप्त होती है। यदि किसी देश की आर्थिक उन्नति तेज हुई है तो वहाँ के निवासियों की आय अधिक होती। आय में यह वृद्धि कई बातों पर निर्भर करती है। आय में वृद्धि की तुलना में यदि जनसंख्या की वृद्धि दर अधिक है, तो आर्थिक विकास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि देश की आर्थिक उन्नति में रुकावट लाने वाली देश की जनसंख्या ही होती है।

भारत के आर्थिक विकास में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या को अवरोधक के रूप में जाना जाता है। भारतीय जनसंख्या के संदर्भ में यह कथन उपयुक्त प्रतीत होता है कि जनसंख्या के तीव्र गति से बढ़ते रहने पर योजनाबद्ध विकास करना बहुत कुछ ऐसी भूमि पर मकान खड़ा करने के समान है जिसे बाढ़ का पानी बराबर बहा ले जा रहा हो। भारतीय जनसंख्या को आर्थिक विकास में बाधक बनने के संदर्भ में निम्न कारण दिये जा सकते हैं:

  1. देश में पूँजी निर्माण की निम्न दर-

किसी देश का आर्थिक विकास अन्य बातों के अतिरिक्त देश में पूँजी निर्माण की दर बहुत अधिक निर्भर होती है। पूँजी निर्माण की दर जितनी ऊँची होती है, आर्थिक विकास की गति भी सामान्यतः उतनी ही तेज होती है, पर भारत में पूंजी निर्माण की दर बहुत नीची है और देश की तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या इसके लिए एक बड़ी सीमा तक उत्तरदायी है। भारत में अधिकांश लोग बहुत निर्धन हैं। अतः यहाँ बचत बहुत कम होती है। बचत राष्ट्रीय आय का 10.5 प्रतिशत है अर्थात् देश में राष्ट्रीय आय का 89.5 प्रतिशत भाग प्रत्यक्ष रूप से उपभोग कर लिया जाता है। भारत जैसे पिछड़े देश के आर्थिक विकास के लिये वचत की यह दर वृति ही कम है। बचत के विनियोग से भी जो अतिरिक्त उपज प्राप्त होती है, उससे लोगों के रहन-सहन व उपभोग के स्तर में भी उन्नति नहीं होती है। वह स्तर वहीं बना रहता है क्योंकि यह अतिरिक्त उपज देश की जनसंख्या में प्रतिवर्ष होने वाली वृद्धि पुराने स्तर पर भरण-पोषण करने में व्यय हो जाती है। नये विनियोग से प्राप्त अतिरिक्त उपज का भी बहुत कम भाग अगली अवधि में विनियोग के लिए उपलब्ध हो पाता है और देश की अर्थव्यवस्था लगभग निष्प्रभावी हो जाती है।

  1. पूँजीपरक उत्पादन विधियों का अपनाया जाना-

किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिये यह आवश्यक है कि वहाँ पूँजीपरक उत्पादन विधियों व योजनाओं को अपनाया जाए अर्थात् देश के द्रुत आर्थिक विकास के लिए ऐसी उत्पादन विधियों को अपनाया जाए जिनमें  पूँजी अधिक लगे और श्रम कम, परन्तु देश की बढ़ती हुई जनसंख्या बाध्य करती है कि ऐसी उत्पादन विधियों को अपनाया जाए जो श्रमपरक हो अर्थात् जिनमें श्रम अधिक और पूँजी कम लगे। इसका कारण स्पष्ट है कि देश में एक ओर तो श्रम की अधिकता है दूसरी ओर पूंजी का अभाव। अतः तब परिथ्सिातियों से मजबूर होकर श्रमपरक उत्पादन विधियों को अपनाया जाता है तो इससे भी आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ती है। अतः भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या पूँजी निर्माण और देश के आर्थिक विकास के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है।

  1. खेती का पिछड़ा होना-

भारत में खेती बहुत पिछड़ी हुई अवस्था में है। ऐसा कहा जाता है कि भारत में कृषि एक व्यवसाय न होकर जीविका का साधन है और इसका एक मुख्य एवं आधारभूत कारण भूमि पर जनसंख्या का अत्यधिक दबाव है। जनसंख्या के प्रतिवर्ष तेजी से बढ़ने से यह दबाव और भी बढ़ता जा रहा है। इससे कृषि जोतें बहुत छोटी एवं अनार्थिक हो गई, जोतों के उपविभाजन एवं उपखण्डन का भी यही कारण है। भूमिहीन कृषि श्रमिकों की बढ़ती हुई संख्या और उनसे सम्बन्धित सब समस्याएँ भी इसी का परिणाम है। अतः खेती की दशा सुधारने के लिए भूमि पर जनसंख्या के दबाव को कम करना और कृषि जोतों को आर्थिक आकार का बनाना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए एक ओर तो भूमि पर आश्रित फालतू जनसंख्या को अन्य उद्योगों एवं कार्यों में लगाना होगा और दूसरी ओर भविष्य में आर्थिक विकास की गति को बढ़ाकर और जनसंख्या वृद्धि की गति को कम करके भूमि पर जनसंख्या के दबाव को बढ़ने से रोकना आवश्यक है। जब तक यह नहीं होता तब तक भारतीय खेती के पिछड़ेपन की समस्या स्थायी और पूर्ण रूप से हल नहीं होगी।

  1. खाद्य समस्या-

भारतवर्ष में जनसंख्या जितनी तेजी से बढ़ रही है, खाद्यात्र की पूर्ति उतनी तेजी से नहीं बढ़ रही है। भारत 1929 ई. से पूर्व खाद्यान्त्रों का निर्यात करता था, परन्तु अब उसे खाद्यान्नों का आयात करना पड़ता है।

खाद्यान्नों का यह आयात भी बढ़ रहा है और खाद्य समस्या को स्थायी रूप से हल करने के लिए यह परम आवश्यक है कि देश की जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगाई जाये।

  1. मूल्य स्तर में वृद्धि-

जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूप जहाँ वस्तुओं की मांग में वृद्धि होती हैं, वहीं उत्पादन की मात्रा में उतनी वृद्धि नहीं होती, उत्पादन की मात्रा घट जाती है। जिससे मूल्य में वृद्धि होती है। यह मूल्य वृद्धि देश के आर्थिक विकास पर विपरत प्रभाव डालती है, क्योंकि इससे विकास व्ययों में वृद्धि हो जाती है।

  1. भुगतान सन्तुलन की समस्या-

जनसंख्या वृद्धि के कारण देश में उत्पन्न खाद्यान्न समस्या को दूर करने के लिए देश में खाद्यान्न का आयात करना पड़ता है, जिससे भुगतान सन्तुलन की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अगर देश में खाद्यान्न समस्या नहीं होती तो यही धन देश के आर्थिक विकास में लगाया जा सकता था।

  1. बेरोजगरी की समस्या-

देश में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के परिणामस्वरूप बेरोजगारी भी बढ़ी है, जिसको खत्म करने के लिए सरकार को अपने बहुमूल्य साधनों का इस्तेमाल करना पड़ता है, जो कि देश के आर्थिक विकास को प्रभावित करते हैं।

  1. अन्य समस्याएँ-

भारत वर्ष में बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए मकान, शिक्षा, चिकित्सा, मनोरंजन तथा अन्य आवश्यकताओं व सुविधाओं की व्यवस्था करना भी एक महान् और कठिन समस्या है। देश की बेकारी जो समस्या का इतना भयंकर रूप धारण हुए हैं, उसका मुख्य और आधारभूत कारण भी देश की बढ़ती हुई जनसंख्या है। देश का आर्थिक विकास उतनी तेजी से नहीं हो पा रहा है, जितनी तेजी से जनसंख्या बढ़ रही है। देश के 40 लाख नए व्यक्ति  श्रम बाजार में रोजगार की खोज में आते हैं। इस प्रकार देश में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या एक ओर तो लोगों को रोजगार की तलाश में भ्ज्ञेजती है, परन्तु दूसरी ओर वह तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या आर्थिक विकास के क्रम में बाधा बनकर नये रोजगार अवसर को कम संख्या में उत्पन्न होने देती है। इसके अतिरिक्त देश की निर्धनता की समस्या भी कुछ अंशों तक तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या का कारण है।

निष्कर्ष

उपर्युक्त विवेचना के आधार पर यह कहा जा सकता है कि “जब तक भारत में जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण नहीं लगाया जाता, तब तक उसके आर्थिक विकास को सही रूप से नहीं देख सकता है।” अर्थात् यह कथन सत्य है कि भारत में आर्थिक विकास की आवश्यक शर्त जनसंख्या नियंत्रण है। जनसंख्या पर नियंत्रण लगाये बगैर देश के आर्थिक विकास की कल्पना करना व्यर्थ होगा।

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Pankaja Singh

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