इतिहास

जहांगीर का व्यक्तित्व | जहांगीर के समय में नूरजहां का तत्कालीन राजनीति पर प्रभाव | नूरजहाँ का चरित्र एवं मूल्यांकन

जहांगीर का व्यक्तित्व | जहांगीर के समय में नूरजहां का तत्कालीन राजनीति पर प्रभाव | नूरजहाँ का चरित्र एवं मूल्यांकन

जहांगीर का व्यक्तित्व

अकबर की मृत्यु के बाद 24 अक्टूबर, 1605 ई. को उसका पुत्र सलीम सिंहासनारूढ़ हुआ और उसने अपना नाम ‘जहांगीर’ रखा। जहांगीर एक उदार, धर्मपरायण, न्याय-प्रिय शासक था। परन्तु वह इतना अधिक मदिरा-प्रेमी और आरामतलब था कि वस्तुतः उसने राज्य नहीं किया, बल्कि उसकी पत्नी नूरजहां ने शासन किया। उसके शासन-काल की प्रमुख घटनाएं निम्न है-

(1) खुसरो का विद्रोह- 1606 ई० में खुसरो का विद्रोह हुआ। इस विद्रोह को जहांगीर ने दमन किया और उसे बन्दीगृह में डाल दिया।

(2) मेवाड़ विजय- जहांगीर के काल में मेवाड़ में अमरसिंह शासन कर रहा था। 1609 ई० में जुहांगीर ने अब्दुल्ला खां को मेवाड़ की विजय के लिये भेजा। मेवाड़ का राजा पराजित हुआ और उसने जहांगीर से सन्धि कर ली।

(3) अहमदनगर विजय- 1611 ई० में खानखाना की अध्यक्षता में जहांगीर ने एक सेना अहमदनगर भेजी, परन्तु उसे अहमदनगर के क्षक मलिक अम्बर ने बुरी तरह हराया। तत्पश्चात् शाहजादा खुर्रम, अहमदनगर विजय के लिये भेजा गया। बीजापुर का राजा आदिलशाह खुर्रम से मिल गया और मलिक अम्बर को खुर्रम से सन्धि करने के लिए बाध्य होना पड़ा।

(4) कांगड़ा विजय- कांगड़ा विजय के लिये सबसे पहले जहांगीर ने मुर्तजा खां को भेजा, परन्तु वह मारा गया। तत्पश्चात् उसने खुर्रम को भेजा और 16 नवम्बर, 1619 ई० को कांगड़ा पर मुगलों का अधिकार हो गया।

(5) किस्तवार विजय- किस्तवार, काश्मीर का एक भाग था। जहांगीर किस्तवार को मुगलों के अधीन करने हेतु काश्मीर के गवर्नर दिलावरखां को भेजा। किस्तवार के राजा को पराजित करके उसने किस्तवार को मुगल साम्राज्य का अंग बना लिया।

(6) कंधार का मुगलों के हाथ से निकल जाना- जहांगीर के समय में फारस के राजा शाह अब्बास ने ईरानियों को कंधार पर आक्रमण करने के लिये भेजा। परन्तु वह खदेड़ दिया गया। तत्पश्चात् शाह अब्बास ने जहांगीर से मित्रता कर ली। जहांगीर कन्धार से निश्चिन्त हो गया। मौका पाकर 1622 ई० में फारस के शाह ने कंधार पर अधिकार कर लिया।

(7) दरबार की गुटबन्दी- जहांगीर के शासन काल में दरबार की गुटबन्दी ने भीषण रूप धारण कर लिया। एक नूरजहां के पक्ष का दल था और एक नूरजहां के विरुद्ध ।

(8) खुर्रम का विद्रोह- कंधार के आक्रमण के समय नूरजहां ने जहांगीर को यह सलाह दी कि खुर्रम को कंधार की ओर भेजे। जहांगीर ने ऐसा ही किया परन्तु खुर्रम ने ऐसा करने से अस्वीकार कर दिया। तत्पश्चात् नूरजहां ने खुर्रम के विरुद्ध जहांगीर के कान भर दिये। खुर्रम ने विद्रोह कर दिया, परन्तु सेनापति महावत खां द्वारा विद्रोह का दमन कर दिया गया। जहांगीर ने खुर्रम को क्षमा कर दिया।

(9) महावत खां का विद्रोह- खुर्रम के विद्रोह के दमन के पश्चात् महावत खां की ख्याति बढ़ गयी। नूरजहां को यह असह्य था। उसने महावत खां को कावुल का सुबेदार बनवाकर भेजा और उस पर भ्रष्टाचार एवं घूसखोरी के आरोप लगाये। इससे महावत खां अत्यन्त रुष्ट हो गया और अवसर की ताक में रहने लगा। 1626 ई० में जब जहांगीर, नूरजहां और आसफ खाँ काबुल जाने के लिए झेलम पार कर रहे थे तो महावत खां ने उन पर आक्रमण कर दिया और जहांगीर को कैद कर लिया। नूरजहां ने आत्मसमर्पण कर दिया। 100 दिन तक महावत खां ने राज्य किया। इस बीच नूरजहां की कूटनीति से महावत खां की सेना में आग भड़क उठी और जहांगीर तथा नूरजहाँ स्वतन्त्र हो गये। महावत खां दक्षिण की ओर भाग गया।

(10) जनमत प्राप्ति के उपाय- जहाँगीर ने उदार नीति और निष्पक्ष न्याय व्यवस्था की थी। उसने आगरे के किले के शहबुर्ज में एक जंजीर लटकवा दी थी जिससे मिला हुआ 60 घंटों का जाल किले में फैला हुआ था। कोई भी व्यक्ति घंटी बजाकर जहांगीर से अपनी फरियाद कर सकता था। जहांगीर ने 12 अध्यादेश भी जारी किये जो जनता के बहुत अधिक हित में थे।

(11) विदेशी यात्रियों की भारत यात्रा- जहांगीर के शासन काल में कप्तान हाकिन्स, सर टामस रो, एडवर्ड टेरी और पैट्रो डेलावेला आदि विदेशी यात्री भारत आये और उन्होंने जहांगीर के शासन-काल का वर्णन अत्यन्त निष्पक्ष रूप से किया है।

जहागीर का मूल्याँकन

जहाँगीर के चरित्र के दो पक्ष है, एक उज्ज्वल और दूसरा अन्धकारमय । जहाँ एक ओर वह हमारे सम्मुख धर्मपरायण, उदार, न्यायप्रिय, साहित्य-प्रेमी और कलाप्रेमी के रूप में आता है वहाँ दूसरी ओर हम उसमें उत्यधिक विलासिता के दर्शन करते हैं। वह अत्यधिक मदिरापान करता था और शासन के कार्यों को नूरजहाँ के हाथों में छोड़कर निश्चिन्त सा हो गया था। उसके चरित्र के इन्हीं दो रूपों के कारण प्रो०एस०आर० शर्मा ने लिखा है-

“The character and achievement of Jahangir was more difficult to assess than those of any of his predecessers.”

 – Prof. S. R. Sharma.

उसके चरित्र में पर्याप्त विरोधाभास परिलक्षित होता है। इसमें किंचितमात्र भी सन्देह नहीं कि वह धर्म-परायण, उदार, न्यायप्रिय, योग्य शासक और कुशल राजनीतिज्ञ था, परन्तु उसके दुर्गुणों ने उसे अपना दास बना लिया था। उसके विषय में विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न विचार व्यक्त किये हैं। अधिकतर विद्वान उसके दुर्गुणों के कारण ही उसे योग्य शासक नहीं मानते हैं। सर रिचर्ड बर्स ने उसका मूल्यांकन करते हुए लिखा है-

“He stands in the roll of Indian monarchs as man a with generous instincts, fond of sports, art and good living, aiming to do well to all and failing by the lack of the final intellectual qualities to attain the ranks of great administrators”

-Sir Richard.

नूरजहाँ

प्रारम्भिक जीवन- नूरजहाँ मध्य-काल के इतिहास में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। उसका बचपन का नाम मेहरून्निसां था । वह अत्यन्त रूपवती थी। उसके पिता का नाम गयास बेग था जो फारस छोड़कर भारत आया था। कहा जाता है कि शाहजादा सलीम मेहरुन्निसाँ के सौन्दर्य पर मुग्ध था और अकबर ने उसके रास्ते से मेहरुन्निसाँ को हटाने के लिए गयासबेग से कह कर उसकी शादी अलीकुली नामक व्यक्ति से करवा दी।

जहाँगीर से विवाह- विद्वानों का एक वर्ग यह कहता है कि सिंहासनारूढ़ होने के पश्चात् जहाँगीर ने अलीकुली खाँ की हत्या करवा दी और मेहरुन्निसा को अपने महल में ले आया। परन्तु विद्वानों का दूसरा वर्ग यह कहता है कि जहाँगीर ने अलीकुली की हत्या नहीं करवायी, वह दुर्भाग्यवश मौत का शिकार हुआ था। कुछ भी हो इसमें कोई सन्देह नहीं कि 1611 ई० में जहाँगीर ने मेहरुन्निसाँ से विवाह कर लिया और उसे ‘नूरजहाँ’ की पदवी से विभूषित किया।

नूरजहाँ का प्रभुत्व-काल

नूरजहां अत्यन्त रूपवती, चतुर एवं गुण-सम्पन्न थी । जहाँगीर से विवाह होने के पश्चात् उसने राजनीतिक कार्यों में बहुत अधिक अभिरुचि दिखाई। वस्तुतः शासन की बागडोर उसके हाथ में आ गयी। डॉ. बेनी प्रसाद का मत है कि नूरजहाँ के प्रभुत्व काल को हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-

(1) प्रथम काल (1611-1621ई.)

(2) द्वितीय काल (1622-1627ई०)

(1) प्रथम काल- यह वह समय था, जबकि वह शासन का भार नूरजहाँ, उसके पिता गयासवेग, उसके भाई आसफ खों और राजकुमार खुर्रम के हाथ में था। परन्तु इस काल में जहांगीर शासन से बिल्कुल अलग नहीं हुआ था।

अपने प्रभुत्व प्रथम काल में नूरजहाँ ने कला के विकास में महान् योगदान दिया, उसने नये फैशन चलाये । उसने बहुत से गरीबों की मदद की। ‘नूरजहाँ जनता’ ने समस्त राज्य में शान्ति और सुव्यवस्था स्थापित की थी। साथ ही जहाँगीर भी राज्य के कार्यों में थोड़ी बहुत रुचि लेता था।

(2) द्वितीय काल- इस काल में जहाँगीर ने शासन के समस्त कार्यों को नूरजहाँ के हाथों में सौंप दिया था और वही वास्तविक शासिका बन गई थी। ‘नूरजहाँ जनता’ में विभाजन इसीलिये हुआ कि नूरजहाँ ने अपने दामाद शहरयार को जहाँगीर को उत्तराधिकारी बनाना चाहा और शाहजहाँ के अधिकारों को छीनना चाहा । फलस्वरूप शाहजहाँ ने जहाँगीर और नूरजहाँ के विरुद्ध विद्रोह कर दिया । नूरजहाँ को अपनी शक्ति पर इतना गर्व था कि उसने साम्राज्य के स्वामिभक्त सेवकों की सलाह नहीं मानी और फलस्वरूप महावत खाँ का विद्रोह हुआ जिससे साम्राज्य को बहुत बड़ा धक्का लगा।

नूरजहाँ के प्रभुत्व का प्रभाव

नूरजहाँ के प्रभुत्व का शासन पुर अच्छा और बुरा दोनों ही प्रकार का प्रभाव पड़ा । सामाजिक और सांस्कृति उन्नति के लिए नूरजहाँ का शासन पर प्रभाव लाभदायक था, परन्तु राजनीतिक दृष्टि से यह घातक सिद्ध हुआ। नीचे नूरजहाँ के प्रभुत्व का शासन पर अच्छे एवं बुरे प्रभाव की चर्चा की जा रही है।

(1) अच्छे प्रभाव

(अ) जहाँगीर के चरित्र में सुधार- नूरजहाँ के प्रभाव के फलस्वरूप जहाँगीर के चरित्र में सुधार हुआ । नूरजहाँ एक बुद्धिमान और पति-प्रेमी रमणी थी। उसने अपने पति की अच्छी तरह देखभाल की। उसके प्रभाव के कारण ही जहाँगीर ने उन बर्वर अत्याचारों को छोड़ दिया जो वह पहले किया करता था। नूरजहाँ ने उसको हिंसात्मक कार्यों से विमुख कर दिया ।

नूरजहाँ का ही प्रभाव था कि जहाँगीर ने शराब पीना कम कर दिया। पहले वह दिन-रात शराब पीता था, परन्तु नूरजहाँ के प्रभाव के कारण उसने दिन में शराब पीना छोड़ दिया और केवल रात्रि में ही अधिक शराब पीता था। एक प्रसिद्ध इतिहासकार ने लिखा है-

Nurjahan’s influence on her husband was also solitary to some extent in as much as he was persuaded by her to reduce his drinking to a mere moderate amount.”

(ब) अर्थ-व्यवस्था पर नियन्त्रण-नूरजहाँ ने अर्थ-व्यवस्था को कम खर्च के द्वारा सुधारने का प्रयत्न किया। उसने शासन कार्यों में होने वाली समस्त फिजूल खर्ची को बन्द कर दिया। इस सम्बन्ध में उसने यह ध्यान रखा कि कम खर्च का कोई बुरा प्रभाव शासन के कार्यों पर न पड़े। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि उसने उन्हीं कार्यों पर खर्च किया जो शासन के लिये उपयोगी थे।

(स) दरबार के गौरव की वृद्धि- नूरजहाँ अत्यधिक सौन्दर्य-प्रेमी थी । उसके सौन्दर्य प्रेमी होने के फलस्वरूप उसके दरबार के गौरव में वृद्धि हुई। उसने दरबारियों के लिये अच्छे कपड़ों की व्यवस्था की । गुलाब के इत्र का प्रचलन नूरजहाँ ने ही किया। उसने साहित्य और कला को बहुत अधिक प्रोत्साहन दिया। उसे नये-नये फैशन चालू करने का शौक था और नकली गहनों की व्यवस्था करने का श्रेय उसे ही प्राप्त है। बहुत से कवियों को उसने अपने दरबार में शरण दी। उसने स्वयं भी कविता की और शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में महान् योगदान दिया।

(द) दया और उदारता की भावना- नूरजहाँ अत्यधिक तदार और दयावान थी। उसने बहुत से गरीबों और विधवाओं की मदद की। लगभग 500 लड़कियों के विवाह का खर्च उठाने का श्रेय उसे प्राप्त है।

वह बहुत बड़ी धनराशि, प्रतिदिन दान में दिया करती थी। इस प्रकार उसके स्वयं के व्यक्तित्व का प्रभाव भी अच्छा था। उसके कार्यों को देखकर लोगों में दया और उदारता की भावना जन्म लेती थी।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सामाजिक और सांस्कृति क्षेत्र में नूरजहाँ का प्रभाव अत्यन्त अच्छा सिद्ध हुआ। इन क्षेत्रों में जो उन्नति हुई उसका बहुत कुछ श्रेय नूरजहाँ को प्राप्त है।

(2) बुरे प्रभाव

(क) खुर्रम का विद्रोह- नूरजहाँ के शासन के प्रभाव के कुछ बुरे परिणाम हुए। शाहजादा खुर्रम ने शासन पर उसके प्रभुत्व के कारण ही विद्रोह किया । यद्यपि अपने प्रारम्भिक जीवन में नूरजहाँ खर्रम को बहुत चाहती थी परन्तु बाद में उसने खुर्रम के स्थान पर अपने दामाद शहरयार को जहांगीर का उत्तराधिकारी बनाना चाहा। उसने खुर्रम की कुछ जागीरें भी छीन ली और उसके विरुद्ध षड्यन्त्र करना प्रारम्भ किया। खुर्रम को यह असह्य था। इसलिए उसने विद्रोह कर दिया। यद्यपि विद्रोह का दमन कर दिया गया परन्तु इस विद्रोह से मुगल साम्राज्य को बहुत बड़ा धक्का लगा।

(ख) कन्धार का निकल जाना-नूरजहाँ की कूटनीति की चालों के कारण खुर्रम तो उससे रुष्ट हो ही गया था, साथ ही उसके कुछ राज्याधिकारी भी उसके विरोधी हो गये। 1622 ई० में पार्शिया के शाह ने कन्धार को घेर लिया। जहाँगीर ने खुर्रम से विरोधियों का दमन करने के लिये कहा, परन्तु उसने कुछ राज्याधिकारियों के साथ विद्रोह कर दिया। इसके परिणामस्वरूप कन्धार मुगल-साप्राज्य से अलग हो गया।

(ग) अमीरों की गुटबन्दी- नूरजहाँ के कारण ही बहुत से अमीर एक-दूसरे से जलने लगे और गुटबन्दी को प्रोत्साहन मिला। नूरजहाँ की पक्षपातपूर्ण नीति के कारण ही अमीरों में विद्रोह की प्रवृत्ति जन्म लेने लगी और वे शासन के कार्यों से विमुख होने लगे।

(घ) महावत खाँ का विद्रोह-नूरजहाँ के प्रभाव के कारण ही महावत खाँ का विद्रोह हुआ। नूरजहाँ महावत खाँ के बढ़ते हुए प्रभाव और राजकुमार परवेज से उसकी मित्रता के कारण ही उससे जलती थी। उसने उसका तबादला बंगाल कर दिया और उसके ऊपर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। इससे महावत खाँ को बहुत अधिक उलझन हुई और उसने विद्रोह कर दिया और उसने सम्राट जहाँगीर और नूरजहाँ को बन्दी बना लिया। 100 दिन बन्दी रहने के पश्चात् नूरजहाँ ने अपनी चालाकी से अपने पति तथा स्वयं को बन्दीगृह से मुक्त कर लिया और महावत खाँ को उखाड़ फेंका परन्तु महावत खाँ के विद्रोह के कारण मुगल साम्राज्य की नींव हिल गयी।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में नूरजहाँ का प्रभाव चाहे जितना लाभदायक हो परन्तु उसके प्रभाव के कारण मुगल साम्राज्य को बहुत बड़ा धक्का लगा। राजनीतिक दृष्टि से नूरजहाँ का प्रभुत्व अत्यन्त हानिकारक सिद्ध हुआ।

नूरजहाँ का चरित्र एवं मूल्यांकन

मध्यकालीन इतिहास में नूरजहाँ अपनी सुन्दरता के कारण ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि वह अपने प्रशासकीय गुणों के कारण भी अत्यन्त प्रसिद्ध है। उसके चरित्र को हम निम्नलिखित रूप में अंकित कर सकते हैं:

(1) सौंदर्य एवं कोमलता की मूर्ति- नूरजहाँ में असीम सौंदर्य, लावण्य और कोमलता थी। 34 वर्ष की अवस्था होने पर भी उसमें इतना अधिक आकर्षण था कि जहाँगीर ने उससे विवाह किया और उसे नूरजहाँ अर्थात् ‘संसार का प्रकाश’ की पदवी दी। डॉ० ईश्वरी प्रसाद उसके विषय में लिखते हैं।

“But advancing age had done nothing to mar the freshness of her charm …..Nature reinforced by art had greatly added to her charms, made her name famous for all that is lovable and attractive in woman kind.”

-Dr. Ishwari Prasad.

(2) निर्भीक रमणी- सुन्दरता तथा कोमलता के गुणों के अतिरिक्त नूरजहाँ में असीम निर्भीकता विद्यमान थी। उसने अपने साहस का परिचय अपने स्वामी को महावत खाँ से छुड़ाते समय दिया । नूरजहाँ अत्यन्त दूरदर्शी, परिश्रमी और अत्यधिक कार्य करने वाली स्त्री होने के साथ-साथ महान् योद्धा भी थी। डॉ०बेनी प्रसाद ने उसके सम्बन्ध में लिखा है, “हाथी पर बैठकर निडर होकर युद्ध करना उसके चरित्र को गौरव प्रदान करता है।”

(3) निश्छल प्रेमिका- नूरजहाँ एक निश्छल प्रेमिका थी। यद्यपि वह आरम्भ में जहाँगीर से प्रेम करती थी परन्तु अलीकुली से विवाह हो जाने के बाद उसने अपना सर्वस्व अपने पति को अर्पित कर दिया। अलीकुली खाँ की मृत्यु के बाद जब वह जहाँगीर की पत्नी बनी तो भी उसने अपने निश्छल प्रेम का परिचय दिया। जहाँगीर से वह अगाध प्रेम करती थी। अपने प्राणों को संकट में डालकर उसने जहाँगीर को महावत खाँ से छुड़ाया। डॉ० ईश्वरी प्रसाद ने उसके विषय में लिखा है।

“Her devotion to Jahangir unequalled she loved him with all the intensity of her full flooded nature and so captivated him by her charms that he became a dubmissive tool in her hands.”

 – Dr.Ishwari Prasad.

(4) उदार एवं लोकप्रिय- नूरजहाँ बहुत ही उदार प्रवृत्ति की स्त्री थी। एक ओर नूरजहाँ ने सुन्दरता की छाप जहाँगीर पर अंकित की थी तो दूसरी ओर उसकी उदारता ने प्रजा का हृदय जीत लिया था। लेनपूल महोदय ने लिखा है:

“She was liberal and just to all who begged her support. She was an adylum for all sufferers. She must have portioned above five hundred girls in her life time and thousands were grateful for her generosity.”

-Lanepoole

उसने षड्यन्त्रकारियों को भी क्षमा प्रदान की थी। पंजाब के जगतसिंह को मुक्ति उसी के प्रयासों से मिली।

(5) महान् प्रतिभा एवं प्रभुत्व-सम्पन्न- नूरजहाँ महान् प्रतिभा सम्पन्न स्त्री थी। उसकी प्रतिभा के सामने महावतखा जैसे वीर सेनापति को भी झुकना पड़ा था। उसमें प्रखर बुद्धि विद्यमान थी, जिसका आदर समस्त दरबारी करते थे। दरबार के अनेक राजनीतिक गुत्थियों को सुलझाने में उसकी मदद लेते थे। वह समस्त मन्त्रियों और दरबारियों को अपने सम्मुख नतमस्तक करवाती थी। जहाँगीर ने स्वयं उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अपने सिक्कों पर भी उसका नाम खुदवाया था।

(6) कुशल राजनीतिज्ञ एवं दृढ़ संकल्पी- नूरजहाँ सदैव अपने विचारों में दृढ़ रहती थी। वह अपने कार्यों की पूर्ति करने के लिये भी सम्भव उपाय करती थी। जिस किसी पर भी वह एक बार रुष्ट हो जाती थी उसके अभिमान को तोड़ देती थी। उसने शाहजादा खुर्रम को ‘शाहजहाँ’ को उपाधि से विभूषित कराया था, किन्तु जब वह उसका विरोधी बन गया तो उसने उसके दमन में कोई कसर न उठा रखी। उसने महावत खाँ और खुर्रम को कभी न मिलने दिया। उसके द्वारा खुसरो का वध करवाया गया और महावत खाँ भी अपमानित हुआ। उसने अपनी राजनीतिक चालें समस्त दरबार में फैला दी थीं। यदि भाग्य उसका साथ देता और जहाँगीर की मृत्यु इतनी शीघ्र न होती तो वह अपने अविवेकी दामाद शहरयार को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने का स्वप्न भी पूरा कर लेती। जहाँगीर के शासन के 15 वर्ष इसी सुन्दरी के क्रिया-कलापों से भरे पड़े हैं।

(7) कला-प्रेमी- नूरजहाँ सुन्दरी होने के साथ ही कला-प्रेमी भी थी । उसने अनेक प्रकार के आभूषणों और श्रृंगारों तथा वस्त्रों का प्रचलन किया था। उसने नये-नये ढंग के जरी, बेलबूटे, दद्रियाँ आदि बनवायी थीं। वह अपने पास अनेक सुन्दर आभूषणों के नमूने रखती थी। आगरे का किनारी बाजार अब भी नूरजहाँ को किनारियों की याद दिलाता है। अपने काल में नये-नये ढंग की सजावटों को नूरजहाँ ने जन्म दिया। अनेक तरह से फूलों तथा खुशबूदार तेलों आदि में उसकी विशेष रुचि थी। गुलाव से इतर की उत्पत्ति नूरजहाँ के काल में ही हुई थी।

नूरजहाँ के चरित्र के दोष- जहाँ एक ओर नूरजहाँ के चरित्र में अनेक गुण थे, वहाँ कुछ बुराइयाँ भी थीं। नूरजहाँ मनमोहक, लावण्यमयी और प्रेमी स्त्री होते हुए भी अनेक चारित्रिक बुराइयों से युक्त थो। एक ओर उसमें दान देने की प्रवृत्ति थी दूसरी ओर उसमें उच्चकोटि को स्वार्थपरता विद्यमान थी। उसने जहाँगीर से विवाह के बाद अपने पिता के वंश की ही उन्नति की। उसके पिता को एतमादुद्दौला को उपाधि मिली थी। उसका भाई दरबार में प्रथम कोटि का व्यक्ति था, तथा उसकी पुत्री लाडली बेगम युवराज शहरयार की प्रेयसी थी। उसने स्वार्थ के वशीभूत होकर अपने मन्त्रियों की इच्छा की उपेक्षा की । उसने खुसरो का वध और महावत खां और खुर्रम के विरुद्ध षड्यन्त्र करके उनको विद्रोह करने के लिये बाध्य कर दिया। वह अपने मूर्ख दामाद शहरयार को सिंहासन पर बैठाकर जहाँगीर के वंश पर अपनी प्रभुता स्थापित करना चाहती थी। उसके स्वार्थ के कारण ही जहाँगीर के राज्य में गुटबन्दी उत्पन्न हो गई जिसने आगे चलकर एक भयंकर रूप धारण किया। किसी को ऊंचा उठता देखकर उसे ईर्ष्या होती थी।

नूरजहाँ के चरित्र में कुछ बुराइयाँ होने के बावजूद भी वह प्रथम भारतीय स्त्री थी जिसने सम्राट की रानी के रूप एक राजा की तरह राज्य किया। राजनीतिक, सामाजिक तथा साँस्कृतिक सभी क्षेत्रों में उसका प्रभाव महत्वपूर्ण था। जहाँगीर ने जो कुछ भी किया उसका बहुत कुछ श्रेय नूरजहाँ को ही प्राप्त है। मद्यप्रेमी जहाँगीर के लिये वह बहुत बड़ा वरदान थी। उसके विषय में डॉ० ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है-

“Few women in the word’s history have displayed such masterful qualities of courage and stataesmanship as this extraordinary woman who held her husband in leading strings and dominated the state for a number of years.”

-Dr. Ishwari Prasad.

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Pankaja Singh

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