जापान में संसदीय व्यवस्था | Parliamentary Form of Government in Japan in Hindi
जापान में संसदीय व्यवस्था
(Parliamentary Form of Government in Japan)
सम्राट् राज्य और जनता की एकता का प्रतीक है तथा प्रभुसत्ता जनता के हाथों में है। पुराने ‘हाउस ऑफ पीयर्स’ (वरिष्ठ सदन) की जगह अब ‘हाउस ऑफ काउंसिलर्स’ (सलाहकार-सदन) बन गया है और उसके सदस्य निचले प्रतिनिधि-सदन की भाँति जनता के प्रतिनिधियों के रूप में चुने जाते हैं। प्रतिनिधि सदन का महत्व सलाहकार सदन से अधिक है। कार्यकारी शक्ति मन्त्रिमण्डल में निहित है और वह सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। सम्राट् को शासन में कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। सम्राट् केवल वही कार्य करता है जिनका उल्लेख संविधान में है।
डायट (संसद) ही सर्वोच्च राज्यसत्ता प्राप्त संस्था है और वही विधि-निर्माण की एकमात्र संस्था है। इसके अन्तर्गत प्रतिनिधि सदन की सदस्य संख्या 467 है और सलाहकार सदन की 250। प्रतिनिधि-सदन के सदस्य चार वर्ष की अवधि के लिए चुने जाते हैं। किन्तु यदि सदन भंग कर दिया जाए तो चार वर्ष से पहले ही यह अवधि समाप्त की जा सकती है। सलाहकार सदन के सदस्य 6 वर्ष की अवधि के लिए चुने जाते हैं। प्रत्येक तीन वर्ष के बाद उसके आधे सदस्यों का चुनाव होता है।
कार्यकारिणी-शक्ति मन्त्रिमण्डल में निहित है। मन्त्रिमण्डल में प्रधानमन्त्री और अधिक से अधिक 18 राज्यमन्त्री होते हैं। मन्त्रिमण्डल सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी है। प्रधानमन्त्री संसद द्वारा मनोनीत किया जाता है और यह आवश्यक है कि वह संसद का सदस्य हो । उसे राज्यमन्त्री नियुक्त करने और उन्हें पदमुक्त करने का अधिकार होता है।
स्थानीय प्रशासन के उद्देश्य से जापान 46 भागों में बँटा हुआ है। इन्हीं में टोकिओ का राजधानी-क्षेत्र भी शामिल है। स्थानीय प्रशासन अलग-अलग स्तरों पर चलता है। इनमें प्रान्त, नगर, कस्बे और गाँवों के शासन के स्तर सम्मिलित हैं और सभी की अपनी-अपनी सभाएँ हैं।
न्यायपालिका शासन के कार्यपालिका और विधायिका से सर्वथा स्वतन्त्र है। नये संविधान के अनुसार सम्पूर्ण न्याय-शक्ति सर्वोच्च न्यायालय और कानून द्वारा स्थापित छोटी अदालतों में निहित है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को कानून द्वारा निर्धारित आयु पर सेवानिवृत्त होना पड़ता है। उनकी नियुक्ति की समीक्षा राष्ट्रीय लनमत-संग्रह द्वारा हो सकती है पहले तो नियुक्ति के समय और फिर दस-दस वर्ष की अवधि के पश्चात। इसके अतिरिक्त महाभियोग- न्यायालय न्यायाधीशों पर महाभियोग चलाने का आदेश दे सकता है। इस न्यायालय में प्रतिनिधि सदन और सलाहकार-सदन के सदस्य होते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त 14 न्यायधीश और भी होते हैं। मुख्य न्यायाधीश मन्त्रिमण्डल द्वारा मनोनीत और सम्राट् द्वारा नियुक्त किया जाता है। 14 न्यायाधीशों की नियुक्ति मन्त्रिमण्डल द्वारा की जाती है।
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