राजनीति विज्ञान

जापान की संसद प्रणाली | जापान की संसद प्रणाली की कार्य और शक्तियाँ

जापान की संसद प्रणाली | जापान की संसद प्रणाली की कार्य और शक्तियाँ

जापान की संसद प्रणाली

जापान में संसदीय शासन-प्रणाली है। यहाँ की संसद को डायट कहते हैं। डायट के निम्नलिखित दो सदन होते हैं:-

(1) पार्षद सदन- यह डायट का उच्च सदन होता है। इसके सदस्यों की संख्या 250 होती है। इनका निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है। इसके 100 सदस्यों का चुनाव राष्ट्रीय निर्वाचन-क्षेत्र से होता है और शेष 150 सदस्यों का चुनाव क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में होता है। यह एक स्थायी सदन है। इसके आधे सदस्य प्रति तीन वर्ष के पश्चात् अवकाश ग्रहण करते रहते हैं और उनके स्थान पर नयें सदस्य चुने जाते हैं। इस सदन के प्रत्येक सदस्य का कार्य-काल 6 वर्ष होता है। इसकी बैठक करने के लिए एक-तिहाई सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक है। सदन के सदस्य अधिवेशन के प्रारम्भ में ही सदन की अध्यक्षता हेतु एक अध्यक्ष का चुनाव कर लेते हैं। अध्यक्ष एकदलीय व्यक्ति होता है जिसे विशेष सम्मान प्राप्त नहीं होता। उसका कार्य सदन की कार्यवाही का संचालन करना होता है।

(2) प्रतिनिधि सभा- यह डायट का निम्न सदन होता है। इसकी सदस्य संख्या 486 होती है। इसका कार्यकाल 4 वर्ष का होता है। इनका चुनाव 118 चुनाव-क्षेत्रों में होता है। प्रत्येक जिले से 2 से 5 प्रतिनिधि चुने जाते हैं। प्रत्येक मतदाता केवल एक ही मत दे सकता है। व्यक्ति चुनाव अपनी लोकप्रियता और अपने गुणों के आधार पर लड़ते हैं तथा निर्वाचन सम्बन्धी नियमों का कठोरता से पालन किया जाता है। जापान में कई राजनीतिक दल हैं।

प्रतिनिधि सभा की सदस्यता के लिए यह आवश्यक है कि वह व्यक्ति 25 वर्ष की आयु का हो। वह पागल, दिवालिया तथा किसी लाभकारी पद पर कार्यरत न हो। जापान में प्रत्येक वयस्क स्त्री-पुरुष को मताधिकार प्राप्त है।

अधिवेशन जापानी डायट के प्रायः तीन अधिवेशन होते हैं-(i) साधारण अधिवेशन वर्ष में एक बार होता है। इसकी अवधि 5 माह होती है। (ii) असाधारण अधिवेशन मन्त्रिमण्डल आवश्यकता पड़ने पर बुलाता है।

(iii) विशेष अधिवेशन सार्वजनिक निर्वाचन तथा प्रथम साधारण अधिवेशन के बीच में बुलाया जाता है।

जापान की संसद प्रणाली की कार्य और शक्तियाँ

डायट के निम्नलिखित कार्य हैं:-

(i) विधायी कार्य- डायट के दोनों सदनों को संयुक्त रूप से कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है। साधारण विधेयक डायट के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है किन्तु वह कानून का रूप, दोनों सदनों द्वारा पारित किये जाने पर ही, धारण करता है। किसी विधेयक पर दोनों सदनों में मतभेद हो जाने पर पहले संयुक्त समिति उनके मतभेद दूर करने का प्रयत्न करती है। संयुक्त समिति के असफल हो जाने पर प्रतिनिधि सभा उस विधेयक को दो-तिहाई बहुमत से पारित करके उस कानून का रूप दे सकती है। यदि डायट का उच्च सदन किसी विधेयक को 60 दिन तक पारित नहीं करता तो उसे पारित मान लिया जाता है। जिन विधेयकों को प्रतिनिधि सभा अस्वीकृत कर देती है उन पर उच्च सदन विचार नहीं कर सकता।

(ii) आर्थिक कार्य- जापान की आय-व्यय पर डायट को एकाधिकार प्राप्त होता है। वह राष्ट्रीय बजट को पारित करती है, नये कर लगाती है और व्यय की स्वीकृति देती है। आर्थिक क्षेत्र के उच्च सदन की अपेक्षा प्रतिनिधि सभा की शक्तियाँ अधिक विस्तृत है। वित्त विधेयक केवल प्रतिनिधि सभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं। इसके द्वारा पारित वित्त विधेयक यदि पार्षद सदन 30 दिन के अन्दर पारित नहीं करता तो वह विधेयक पारित मान लिया जाता है।

(iii) कार्यपालिका के कार्य-जापान में कार्यपालिका डायट के निम्न सदन के प्रति उत्तरदायी होती है। जापान में सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त को मान्यता प्रदान की गई है। डायट द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर मन्त्रिमण्डल को त्यागपत्र देना पड़ता है। डायट के सदस्य प्रश्न पूछकर तथा जाँच समिति नियुक्त करके एवं प्रस्ताव पास करके कार्यपालिका पर नियन्त्रण रखती है।

(iv) न्यायिक कार्य- डायट के दोनों सदन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के विरुद्ध महाभियोग चला सकते हैं। वह महाभियोग न्यायालय गठित करते हैं तथा उसकी सुनवाई करते हैं। डायट की एक दण्ड-समिति भी होती है।

(v) संवैधानिक कार्य- प्रत्येक सदन को संविधान में संशोधन का अधिकार प्राप्त। कोई भी सदन अपने दो-तिहाई बहुमत से संशोधन पारित कर सकता है। पारित संशोधन पर जनमत-संग्रह भी कराया जा सकता है।

(vi) निर्वाचनसम्बन्धी कार्य-डायट प्रधानमन्त्री का चुनाव करती है। प्रत्येक सदन अपने अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं स्थायी समितियों के अध्यक्षों को भी चुनते हैं। डायट निर्वाचन-नियमों को बनाती है।

महत्त्व-

डायट का उच्च सदन अधिक शक्तिशाली है। संविधान में डायट शीर्षस्थ स्थान रखती है। वह राज्य की शक्ति का सर्वोच्च अंग है। उसे प्रधानमन्त्री और उसके मनिमण्डल को पदच्युत करने का अधिकार प्राप्त है।

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Pankaja Singh

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