भारतीय केंद्रीय मन्त्रिपरिषद् | भारतीय केंद्रीय मन्त्रिपरिषद् के संगठन | भारतीय केंद्रीय मन्त्रिपरिषद् के कार्य | राष्ट्रपति और लोकसभा के पारस्परिक सम्बन्ध

भारतीय केंद्रीय मन्त्रिपरिषद् | भारतीय केंद्रीय मन्त्रिपरिषद् के संगठन | भारतीय केंद्रीय मन्त्रिपरिषद् के कार्य | राष्ट्रपति और लोकसभा के पारस्परिक सम्बन्ध

भारतीय केंद्रीय मन्त्रिपरिषद्

संविधान के अनुसार, “राष्ट्रपति को अपने कार्यों के सम्पादन में सहायता और परामर्श देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होगी जिसका प्रधान, प्रधानमन्त्री होगा।”

राष्ट्रपति लोकसभा के बहुमत दल के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है तथा उसी की सलाह पर अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। वास्तव में कार्यपालिकीय शक्तियाँ प्रधानमन्त्री और उसकी मन्त्रिपरिषद् में निहित होती हैं। राष्ट्रपति की समस्त शक्तियों का उपभोग मन्त्रिपरिषद् ही करती है।

गठन- प्रधानमन्त्री स्वयं ही मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। वह नियुक्ति करते समय दल के प्रभावशाली व्यक्तियों को मन्त्री बनाता है तथा दल के विभिन्न क्षेत्रीय समूहों या हित समूहों, सामाजिक, सांस्कृतिक और जातीय समूहों के प्रतिनिधित्व का भी ध्यान रखता है।

कार्य-काल- संविधान के अनुसार मन्त्री राष्ट्रपति की इच्छा-पर्यन्त अपने पदों पर बने रहेंगे। किन्तु यह मात्र औपचारिक व्यवस्था है। वास्तव में लोकसभा के बहुमत के समर्थन प्राप्त होने तक ही वह अस्तित्व में रह सकती है। साधारणतया उसका कार्य-काल लोकसभा की भाँति 5 वर्ष का होता है। यदि लोकसभा भंग कर दी जाती है तो वह भी समाप्त हो जाती है।

मन्त्रिपरिषद् और मन्त्रिमण्डल

मन्त्रिपरिषद् में समस्त छोटे-बड़े मन्त्री होते हैं जिनकी संख्या 50-60 होती है जबकि मन्त्रिमण्डल में केवल कैविनेट-स्त मन्त्री होते हैं जिनकी संख्या अधिकतम 20 होती है। प्रायः इसी की बैठकें हुआ करती हैं और ये ही समस्त नीतियों का निर्धारण करता है।

मन्त्रियों के प्रकार

(1) कैबिनेट मन्त्री– प्रथम श्रेणी के मन्त्रियों को पूर्ण मन्त्री या कैविनेट मन्त्री कहा जाता है। ये ही शासन की नीति का निर्धारण करते हैं। इनकी संख्या प्रायः 20 होती है।

(ii) राज्यमन्त्री- इनकी नियुक्ति कैबिनेट मन्त्रियों की सहायता हेतु की जाती है। मन्त्रिपरिषद् में इनका स्थान द्वितीय स्तर का होता है। ये मन्त्रिमण्डल की बैठकों में भी भाग नहीं लेते।

(iii) उपमन्त्री- इनका कार्य कैविनेट मन्त्रियों और राज्य मन्त्रियों के कार्यों में सहायता करना है। इनका मन्त्रिपरिषद् में तीसरा स्थान है।

मन्त्रिमण्डल के कार्य

मन्त्रिमण्डल विभिन्न कार्य करता है जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं:-

(1) नीति निर्धारण का कार्य- यह सरकार की नीति की घोषणा करता है। मन्त्रिमण्डल ही राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर राष्ट्रहित को देखते हुए निर्णय लेता है।

(2) विधि निर्माणसम्बन्धी कार्य- अधिकतर मन्त्रिपरिषद् ही संसद में विधेयक प्रस्तुत करती है तथा विधि निर्माणसम्बन्धी कार्यों को पूर्ण करती है।

(3) कार्यपालिकासम्बन्धी कार्य— मन्त्रिपरिषद् के सदस्य (मन्त्री) विभिन्न विभागों (मन्त्रालयों) के अध्यक्ष होते हैं। ये ही विभाग कार्यपालिका के कार्यों का सम्पादन करते हैं। मन्त्रिमण्डल इन कार्यों के लिए लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है।

(4) वित्तीय कार्य- राष्ट्र की आर्थिक नीति का निर्धारण भी मन्त्रिमण्डल ही करता है। अर्थसम्बन्धी समस्त कार्यों को यही पूरा करती है। वह प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए अनुमानित आय-व्यय का विवरण (बजट) वित्तमन्त्री द्वारा संसद में प्रस्तुत करता है तथा उसे संसद द्वारा पारित कराती है। कर लगाना, उसकी दर निश्चित करना अथवा करों को समाप्त करना भी मन्त्रिपरिषद् का कार्य है। प्रत्येक धनविधेयक भी वित्तीय मन्त्री द्वारा ही संसद में प्रस्तुत किया जाता है।

(5) महत्त्वपूर्ण नियुक्तियाँ- राष्ट्रपति वास्तव में प्रधानमन्त्री की सलाह से ही राज्यपालों, न्यायाधीशों और राजदूतों इत्यादि महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियाँ करता है; अतएव इन पदों की नियुक्तियों का भार भी मन्त्रिपरिषद् पर होता है।

(6) संसद की व्यवस्था करना- संसद कार्यवाही. का पूर्ण निश्चय और निर्धारण मन्त्रिपरिषद् ही करती है।

(7) परराष्ट्र नीति का निर्धारण- पर-राष्ट्र नीति का निर्धारण भी मन्त्रिपरिषद् ही करती है। राजदूतों की नियुक्ति, सन्धि और युद्ध की घोषणा राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् के परामर्श से ही करता है।

(8) आपातकालीन कार्य- आपातकालीन स्थिति में मन्त्रिपरिषद् को बहुत विस्तृत अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। इस स्थिति में वह राज्यों के शासन में हस्तक्षेप कर सकती है तथा राष्ट्रपति को किसी राज्य के मन्त्रिपरिषद् को भंग करने की सलाह दे सकती है।

राष्ट्रपति से सम्बन्ध

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 और 75 में राष्ट्रपति और मन्त्रिपरिषद् के सम्बन्धों को वर्णित किया गया है। वैसे समस्त बातों को इसमें वर्णित नहीं किया गया है तथा बहुत-सी बातों को परम्पराओं पर छोड़ दिया गया है। भारतीय संविधान के अनुसार कार्यपालिका का प्रधान राष्ट्रपति है और मन्त्रिपरिषद् का गठन केवल उसे परामर्श देने के लिए किया जाता है। यद्यपि सैद्धान्तिक दृष्टि से राष्ट्रपति देश का सर्वेसर्वा है किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से मन्त्रिपरिषद् के अधिकार अधिक हैं। प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद् के गठन में राष्ट्रपति की सलाह मानने को बाध्य नहीं है। मन्त्रिपरिषद् के प्रत्येक निर्णय को राष्ट्रपति को मानना आवश्यक है। यद्यपि संविधान के अनुसार देश का शासन संघात्मक है परन्तु व्यवहार में मन्त्रिमण्डल ही अधिक शक्तिशाली है। राष्ट्रपति के जो भी अधिकार हैं उनका उपयोग मन्त्रिपरिषद् ही करती है।

राष्ट्रपति अपने अधिकारों का प्रयोग स्वतंत्रता से नहीं कर सकता । उसे अपने समस्त कार्यों के लिए मन्त्रिपरिषद् से परामर्श लेना होगा परन्तु अपने व्यक्तित्व के बल पर वह मन्त्रिपरिषद् की नीतियों को अवश्य प्रभावित कर सकता है।

लोकसभा से सम्बन्ध

लोकसभा में बहुमत दल का नेता ही प्रधानमन्त्री निर्वाचित किया जाता है तथा वह ही मन्त्रिपरिषद् का गठन करता है । मन्त्रिपरिषद् के सदस्य लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं। उनके कार्यों पर लोकसभा के सदस्य प्रश्न पूछ सकते हैं जिनका उत्तर मन्त्रियों को देना आवश्यक होता है। लोकसभा मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर उसे त्यागने को विवश कर सकती है।

दूसरी ओर मन्त्रिपरिषद् राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने की सिफारिश कर सकती है।

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