हिन्दी शब्द भण्डार के स्रोत | हिन्दू शब्द समूह | भारतीय आर्य भाषाओं का शब्द | भारतीय अनार्य भाषाओं के शब्द
हिन्दी शब्द भण्डार के स्रोत
प्रत्येक भाषा अपने शब्द भंडार की समृद्धि के लिए अपनी जननी भाषा, सहभाषा तथा विदेशी भाषाओं की ऋणी होती है। हिन्दी भाषा इसका अपवाद नहीं है। हिन्दी का शब्द कोष संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि पूर्व प्रचलित आर्य भाषाओं तथा अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेजी आदि विदेशी भाषाओं के शब्दों से निर्मित हुआ है। कालक्रमानुसार कुछ शब्द नवीन अर्थों की व्यंजना के साथ हिन्दी में प्रचलित हुए जो उसकी निजी सम्पत्ति के रूप में स्वीकार किए जा सकते हैं। हिन्दी के सम्पूर्ण शब्दों को चार वर्गों में रखा जा सकता है-
(i) तत्सम (ii) तदभव (iii) देशी (iv) विदेशी
हिन्दू शब्द समूह
किसी भाषा पर भाषाओं का प्रभाव पड़ना ‘शब्द समूह’ कहलाता है। एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्द प्रायः नये विचारों के द्योतक के रूप में प्रयोग होते हैं। हिन्दी भाषा की समृद्धि का मूल कारण उसकी विशाल शब्द राशि है। प्रत्येक समृद्धि भाषा ने केवल अपनी ही शब्दावली के आधार पर समृद्ध न होकर दूसरी भाषाओं के शब्दों के अतिरिक्त प्राचीन तथा मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं से शब्दों को ग्रहण किया है।
हिन्दी संस्कृत भाषा से इतने अधिक शब्दों को लेती रही है, जिसका ठीक-ठाक लेखाजोखा करना प्रायः असंभव है। ‘ग्रीक’ जिस प्रकार यूरोपीय भाषाओं के लिए महत्त्वपूर्ण है, भारतीय भाषाओं के लिए संस्कृत’ की वही स्थिति है।
हिन्दी के शब्दों को निम्न वर्गों में बाँटा जा सकता है-
(1) भारतीय आर्य भाषाओं के शब्द
(2) आर्येतर भारतीय आर्य भाषाओं के शब्द
(3) विदेशी शब्द
भारतीय आर्य भाषाओं का शब्द
तत्सम- तत् का अर्थ है उसके (संस्कृत), सम का अर्थ है समान अर्थात् संस्कृत के समान। इस प्रकार तत्सम शब्द वे शब्द हैं जो संस्कृत से विना किसी परिवर्तन के हिन्दी में चले आए हैं, जैसे- कमल, सुर, दिन, सत्य, शय्या, कवि, हरि, शत्रु, मति आदि। बहुत से संस्कृत-शब्द मध्यकालीन आर्य-भाषाओं में अपना स्वरूप अक्षुण्ण बनाए रहे और फिर हिन्दी में आ गए। कुछ शब्दों को सीधे संस्कृत से ग्रहण कर लिया गया। इन शब्दों को परम्परागत शब्दों की कोटि में रखा जा सकता है। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान तथा प्राविधिक युग में हिन्दी की अभिव्यक्ति क्षमता बढ़ाने के लिए संस्कृत की धातुओं तथा प्रत्ययों से बड़ी संख्या में शब्दों का निर्माण किया गया है। ये शब्द संस्कृत-कोशों में वर्तमान अर्थ-सन्दर्भ में नहीं मिलते। इन नवनिर्मित शब्दों में वैज्ञानिक, प्राविधिक तथा प्रशासकीय शब्दों का आधिक्य है, जैसे—प्रशासक, अधीक्षक, अभियंता, पर्यवेक्षक, परिचालक, प्राध्यापक, निदेशक, पत्राचार, प्रभाग, अनुभाग आदि। हिन्दी में प्रयुक्त होनेवाले तत्सम शब्दों में संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण सभी हैं। संज्ञा शब्दों का बाहुल्य है। बहुत में ऐसे शब्द हैं जिनके मूल अर्थ में परिवर्तन आ गया है, जैसे-जंघा, परिवार, कटि का संस्कृत अर्थ क्रमशः घुटने और टखने के बीच का भाग (जंघा), घेरनेवाला या नौकर-चाकर समूह (परिवार), नितम्ब या कूल्हा (कटि) होता था किन्तु हिन्दी में इनका दूसरा अर्थ लिया जाता है। ऐसे शब्द चूँकि संस्कृत से लिए गए हैं और ध्वनि परिवर्तन के बिना प्रचलित हैं इसलिए इन्हें तत्सम शब्द ही माना जाता है।
तद्भव- ऐसे शब्द जो संस्कृत शब्दों से उद्भूत या विकसित हैं, जैसे-कान्ह, साँच, मिथ्या, दूध, हाथ आदि। हिन्दी के क्रियापद और सर्वनाम तद्भव ही हैं। संज्ञापदों की भी पर्याप्त संख्या है। हिन्दी की मौलिक शब्दावली की दृष्टि से तद्भव का विशेष महत्व है। हिन्दी में बहुत से तद्भव शब्द हैं जो अपनी परम्परा से भिन्न अर्थ रखते हैं, जैसे-चाकू, आप, गाभिन, थान आदि।
देशी- देशी या देशज शब्दों की परिभाषा विवादास्पद है। कतिपय विद्वानों का मत है कि देशज शब्दों की प्रकृति प्रत्ययमूला व्युत्पत्ति नहीं दी जा सकती। हेमचन्द, बीम्स, भंडारकर आदि विद्वानों के मतानुसार इन शब्दों की संस्कृत से व्युत्पत्ति सिद्ध करना कठिन है। चटर्जी ने आर्यभाषा से इतर द्रविड़, कोल शब्दों को देशज माना है। आर्यभाषा अपनी विकास परम्परा में अनेक अनार्य शब्दों को अपनाती रही इसलिए आर्य और अनार्य शब्दों का निर्णय बहुत आसान नहीं है। यह भी सम्भव है कि बहुत से शब्द लोक में चलते रहे हों किन्तु साहित्य में उनका प्रयोग न हुआ हो। समय-समय पर लोक में नए-नए शब्द गढ़े जाते रहते हैं। देशी शब्दों के अन्तर्गत तीन प्रकार के शब्द हैं-
- ऐसे शब्द जिनकी व्युत्पत्ति ज्ञात नहीं है, जैसे-पेड़, धब्बा, झंझट, पेठा,
- ऐसे शब्द जो अनार्य भाषाओं से लिए गए हैं, जैसे-गोड़, ढकना, गोद आदि।
भारतीय अनार्य भाषाओं के शब्द
विदेशी शब्द-ऐसे शब्द जो विदेशी भाषाओं से लिए गए हैं। प्राचीन काल से ही भारतीयों का सम्पर्क विदेशियों के साथ होता रहा। आधुनिक आर्यभाषा काल में तो यह सम्पर्क अधिक स्थाई तथा प्रभावी रहा। 8-9 सौ वर्षों तक हिन्दी विदेशी भाषाओं के सम्पर्क में रही। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से हिन्दी में बहुत से विदेशी शब्द में आ गए। विदेशी शब्दों के आगमन की परम्परा बहुत प्राचीन है किन्तु तत्कालीन भाषाविदों को इसकी विशेष जानकारी नहीं थी।
वेश-भूषा सम्बन्धी शब्द- कमीज, कुर्ता, पाजामा, मोजा, साफा, सलवार, चादर, रजाई, रूमाल आदि।
खाद्यपदार्थ सम्बन्धी शब्द- (मिष्ठान) बरफी, हलवा, जलेबी, गुलाबजामुन, (फल-मेवा- सब्जी)-बादाम, सेव, अनार, अंगूर, मुनक्का, किशमिश, पिस्ता, सब्जी, तरकारी, चुकंदर, खरबूजा, कद्दू आदि।
तुर्की- मुस्लिम शासकों में गुलाम पूर्णतः खिलजी और तुगलक अंशतः तुर्क थे। तुर्क शासकों और सैनिकों द्वारा बहुत से तुर्की शब्द प्रचलित हुए। जैसे–चाकू, कैंची, गलीचा, बहादुर, उर्दू, चम्मच, दारोगा, बीबी, वारूद आदि।
चूंकि तुर्की, अरबी के शब्द फारसी के माध्यम से अधिक आए हैं। इसीलिए इन शब्दों को फारसी के अन्तर्गत परिगणित कर लिया जाता है।
अंग्रेजी शब्द- यद्यपि अंग्रेजों का भारत आगमन 1579 ई0 से ही शुरू हो गया था किन्तु अंग्रेजी शिक्षा एवं सभ्यता आदि का व्यापक प्रभाव पड़ना 19वीं सदी से प्रारम्भ हुआ। अंग्रेजी माध्यम से शिक्षित लोगों ने अपनी भाषा में अंग्रेजी शब्दों को अधिक स्थान दिया। अंग्रेजी के हिन्दी में प्रचलित शब्दों की संख्या चार-पांच सौ तक सीमित हैं।’ अंग्रेजी से आगत शब्दों में शासन, यन्त्र, पोशाक, खान-पान, वैज्ञानिक आविष्कार, दवा आदि से सम्बन्धित शब्द हैं, जैसे-कोर्ट, अपील, कलेक्टर, आर्डरली, रेल, इंजिन, शर्ट, पैंट, शूट, बिस्कुट, टोस्ट, आइस्क्रीम, कैमरा, टाइपराइटर, टेलीप्रिण्टर, कुनैन, क्लोरोफार्म आदि।
रूसी शब्द- टुन्ड्रा, टैगा आदि.
जर्मन शब्द- पैगन, सेमिनार।
इटैलियन शब्द- काटरी, गाजर, कारटून, ममेरिया
आस्ट्रेलियन शब्द- कंगारू
चीनी शब्द- चाय, लीची, सिन्दूर आदि।
जापानी शब्द–रि क्सा
ईरानी शब्द- तरबूज
तुर्की शब्द- कैंची, बेगम, कुली, चम्मच आदि।
पाश्तो शब्द- गुण्डा, नगारा, डेरा, पठान आदि।
इस प्रकार हिन्दी के शब्द अत्यन्त समृद्ध हैं।
पुर्तगाली शब्द– भारत का सम्बन्ध पुर्तगाली लोगों से भी रहा। अतः हिन्दी में पुर्तगाली के भी थोड़े बहुत शब्द मिलते हैं, जैसे— अलमारी, आलपिन, आया, भाव, पादरी, पिस्तौल आदि।
फ्रांसीसी- कार्तृस, कूपन, बेसिन, अंग्रेज आदि।
डच- बम, तुरूपा
चाय और लीची चीनी भाषा से तथा रिक्शा जापानी से लिए गए हैं।
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