वित्तीय प्रबंधन

गोर्डन का लाभांश सिद्धान्त | गोर्डन के लाभांश सिद्धान्त की मान्यताएँ | गोर्डन के सिद्धान्त के निष्कर्ष

गोर्डन का लाभांश सिद्धान्त | गोर्डन के लाभांश सिद्धान्त की मान्यताएँ | गोर्डन के सिद्धान्त के निष्कर्ष | Gordon’s Dividend Theory in Hindi | Assumptions of Gordon’s Dividend Theory in Hindi | gordon’s theory in Hindi

गोर्डन का लाभांश सिद्धान्त (Gordan’s Model)

गोर्डन का सिद्धान्त यह प्रतिपादन करता है कि लाभांश नीति का प्रभाव उद्यम के मूल्य पर पड़ता है। यह सिद्धान्त इस व्यवस्था पर आधारित है कि भविष्य में मिलने वाले सम्भावित लाभांश (Expected Dividends) अंशों के बाजार मूल्य के निर्धारण को प्रभावित करते हैं। वास्तव में गोर्डन का सिद्धान्त लाभांश पूँजीकरण के सिद्धान्त की कल्पना करता है जिसमें अंशों का बाजार मूल्य उन अंशों पर भविष्य में उपलब्ध होने वाले लाभांशों के वर्तमान मूल्य के बराबर होता है।

गोर्डन के अनुसार विनियोजक विवेकपूर्ण व्यवहार का होता है और जोखिम से बचना चाहता है तथा वह एक निश्चित प्रत्याय के लिए प्रीमियम तथा अनिश्चित प्रत्याय के लिए छूट अथवा दण्ड देने के लिए तैयार रहता  है। चूँकि चालू लाभांश में किसी प्रकार की अनिश्चितता अथवा जोखिम नहित नहीं होती, इसलिए विनियोजक सम्भावित लाभांश की तुलना में चालू लाभांश को ही प्राथमिकता देता है। वह इस मानसिकता का होता है कि हाथ में एक चिड़िया, घोंसले की दो चिड़ियों से बेहतर होती है (A bird in hand is better than two in the bush) । अतः वह हाथ में एक चिड़िया के तर्क (A bird in the hand argument) का समर्थक होता है। इस प्रकार इस तर्क के आधार पर एक विवेकपूर्ण व्यवहार वाला नियोजक सम्भावित लाभांश को कम महत्व देता है और चालू लाभांश को अधिक चाहता है। यदि उद्यम ने विभाजनीय लाभ का प्रतिधारण किया है तो उसे विनियोजक एक जोखिम पूर्ण कार्य मानता है। दूसरे शब्दों में विनियोजक भविष्य की तुलना में  वर्तमान को अधिक महत्व देता है। गोर्डन का तर्क है कि भविष्य अनिश्चित होता है और वह वास्तविकता से परे भी हो सकता है इसलिए यदि लाभ या आय से चालू लाभांश को रोक लिया गया तो वह अनिश्चयकारक ही होगा भले ही विनियोजक को उसका भुगतान बाद में किया जाये। इसलिए विनियोजक सामान्य परिस्थिति में अनिश्चितता से बचना ही चाहेंगे। व्यवहार में विनियोजक ऐसे अंशों के लिए अधिक मूल्य देना चाहेंगे जिन पर कि चालू लाभांश का भुगतान होता है। इसी तरह ऐसे उद्यम जो लाभांश भुगतान की जगह आय का प्रतिधारण (Retention of Income) करते हैं अथवा लाभांश को स्थगित करते जाते हैं उनके अंशों के लिए विनियोजक कम मूल्य देना चाहेगा। इस प्रकार कम मूल्य देने की प्रवृत्ति या छूट की दर (Discount Rate) आय के प्रतिधारण दर या स्तर के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। दूसरे शब्दों में, कम लाभांश का भुगतान अथवा लाभांश की अनुपलब्धता उद्यम के अंश के बाजार मूल्य में कमी करता है।

गोर्डन के लाभांश सिद्धान्त की मान्यताएँ

(Assumptions)

गोर्डन के लाभांश सिद्धान्त की मुख्य मान्यताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) एक उद्यम समस्त पूँजी वाला उद्यम (all equity firm) होता है।

(ii) बाह्य वित्तीयकरण का प्रयोग उद्यम में नहीं किया जाता और समस्त विनियोग कार्यक्रम प्रतिधारित रूप से ही वित्तीयकृत किये जाते हैं।

(iii) विनियोग पर प्रत्याय दर (r) तथा समता अंश पूँजी की लागत यथा स्थिर रहती है। यह विनियोग के क्रमागत सीमिन्त कार्यकुशलता (Diminishing marginal efficiency of investment) को नजरन्दाज करता है।

(iv) उद्यम तथा उसके आय प्रवाह में शाश्वतता (Perpetual Ness) बनी रहती है।

(v) प्रतिधारण अनुपात (Retention Ratio) यथा स्थिर रहता है।

(vi) निगमीय कर व्यवस्था में प्रचलित नहीं होता।

(vii) पूँजीकरण दर या वांछित प्रत्याय दर या समता पूँजी की लागत (ke) आन्तरिक लाभदायकता या प्रत्याय में वृद्धि दर (br) से अधिक होती है।

अतः हम कह सकते हैं कि गोर्डन के लाभांश सिद्धान्त की मान्यताएँ वास्तव में वाल्टर के लाभांश सिद्धान्त की मान्यताओं से काफी सीमा तक मिलती जुलती हैं। वाल्टर के सिद्धान्त की तरह ही गोर्डन के सिद्धान्त में लाभांश नीति एवं विनियोग नीति को एक ही रूप में माना गया है। गोर्डन का सिद्धान्त भी वाल्टर के सिद्धान्त की तरह उद्यम की जोखिम में परिवर्तन का प्रभाव तथा पूँजी की लागत पर उसके प्रभाव को नजर अन्दाज करता है।

सूत्र व्यवस्था

(Formula Arrangement)

गोर्डन के अनुसार अंश का बाजार मूल्य लाभांश के भावी प्रवाहों के वर्तमान मूल्य के बराबर होता है। इसकी गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है जिसे लाभांश पूँजीकरण सूत्र के नाम से जाना जाता है-

P = E (1−b)/ke-br

जहाँ,

P = अंशों का मूल्य (Price of Shares)

E= प्रति अंश आय (Earnings Per Shares)

b= प्रतिधारण अनुपात या प्रतिधारित आय का प्रतिशत

1-b = लाभांश भुगतान अनुपात या (Dividend pay out ratio) आय का लाभांश के रूप में वितरित किया गया प्रतिशत

ke = पूँजीकरण दर या पूँजी की लागत (Capitalisation rate / Cost of Capital)

br =g = प्रत्याय में वृद्धि दर या एक समस्त समता-अंश पूँजी वाले उद्यम के विनियोग पर प्रत्याय दर में वृद्धि (growth rate in r i.e, rate of return of investment of an all-equity firm).

गोर्डन के सिद्धान्त के निष्कर्ष

(Conclusion)

गोर्डन के सिद्धान्त के मुख्य निष्कर्ष निम्नलिखित हैं-

(i) विकास सम्भावनाओं वाले उद्यम (r>k) के अंशों के बाजार मूल्य में वृद्धि प्रतिधारण अनुपात में वृद्धि के साथ होती है।

(ii) अवनति वाले उद्यम (r <k) में लाभांश भुगतान अनुपात (1-b) में वृद्धि के साथ अंशों के बाजार मूल्य में वृद्धि होती है।

(iii) एक सामान्य उद्यम (r =k) में लाभांश नीति का प्रभाव अंशों के बाजार मूल्य पर नहीं पड़ता है।

व्यंवहार में लाभांश नीति के सम्बन्ध में गोर्डन के निष्कर्ष वाल्टर के निष्कर्ष के समरूप ही हैं।

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Pankaja Singh

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