अर्थशास्त्र

गैट की कार्य प्रगति | गैट समझौते से विकासोन्मुख एवं अन्य देशों को लाभ | गैट समझौते से भारत को लाभ | गैट समझौते के दोष

गैट की कार्य प्रगति | गैट समझौते से विकासोन्मुख एवं अन्य देशों को लाभ | गैट समझौते से भारत को लाभ | गैट समझौते के दोष

गैट की कार्य प्रगति (Progress of GATT) 

(1) तटकर (टैरिफ) वार्ताएँ-

सन् 1947 व 1992 के बीच कई अधिवेशन हो चुके हैं, जिनका उद्देश्य आयात करों में स्थिरता व कमी लाना था।

प्रथम अधिवेशन (1947 जेनेवा) वस्तुतः सामान्य समझौते की स्थापना के लिए था। इसमें विभिन्न मन्त्रणाओं के फलस्वरूप कुछ करों व प्राथमिकताओं को पूर्णतया समाप्त करने, कुछ करों में घोषित प्राथमिकताओं को कम करने, आयात व निर्यात करों को प्रचलित दरों पर बाँधने एवं यथासम्भव करों से मुक्ति की प्रचलित नीति को जारी रखने के निर्णय लिए गए।

द्वितीय अधिवेशन (1947 अनेसी) का उद्देश्य नये सदस्यों को गैट में शामिल करना था। 500 वस्तुओं के विषय मे 147 द्विपक्षीय मन्त्रणाएँ हुईं।

तीसरे अधिवेशन (1950-51 तोरके) में 6 नये देशों ने भाग लिया। यह अधिवेशन विशेष सफल नहीं हुआ क्योंकि जिन 400 समझौतों के होने की आशा थी उनमें से 147 ही पूरे हो सके।

चौथे अधिवेशन (1956 जेनेवा) में अमेरिका ने 90 करोड़ डालर मूल्य के आयात व्यापार पर अधिकतम सम्भव छूट देने का प्रस्ताव रखा और बदले में उसने अन्य देशों से 40 करोड़ रुपये डालर के व्यापार पर छूट प्राप्त की। इस अधिवेशन से कोई देश पूर्ण सन्तुष्ट नहीं हुआ। अनेक देशों ने तो मन्त्रणाओं का बहिष्कार किया।

पाँचवें अधिवेशन (जेनेवा, 1960-61) में विकासोन्मुख देशों ने यह तर्क दिया कि पूर्व अधिवेशनों के अनुसार ‘परस्परता के सिद्धान्त’ के पालन से उनकी सौदाशक्ति (Bargaining power) कुण्ठित हो गयी है तथा अपनी प्रशुल्क नीति के अन्तर्गत वे अब अधिक रियायतें (Concessions) देने में समर्थ नहीं है। औद्योगिक देश उन वस्तुओं में, जिनमें विकासोन्मुख देशों को रुचि थी, कोई छूट देने में कतरा रहे थे। गैट के उद्देश्य तभी सफल हो सकते थे जबकि औद्योगिक देश एक पक्षीय (One-sided) रियायतें देना स्वीकार कर लें। हैबरलर रिपोर्ट द्वारा भी इस धारणा का समर्थन किया गया। भारत एवं आस्ट्रेलिया के प्रतिनिधि मण्डलों ने विभिन्न मन्त्रणाओं के दौरान कोटा, आन्तरिक कर नीति आदि पर विचार करने हेतु जो प्रस्ताव रखे थे वे लम्बे-विचार-विनिमय के बाद स्वीकार हो गये।

छठा अधिवेशन मई 1964 में शुरू हुआ। इसे केनेडी राउण्ड (Kennedy Round) कहते हैं। यूरोपियन साझा बाजार ECM) और यूरोपियन मुक्त व्यापार संघ (EFTA) की, जो पूर्व ही स्थापित हो चुके थे, सफलता से प्रेरणा लेते हुए अमेरिका ने सभी प्रकार की प्रशुल्क दरों में कटौती का सुझाव दिया ताकि यूरोप के देशों, विशेषत: यूरोपियन साझा बाजार (ECM) के देशों से अमेरिका का व्यापार बढ़ सके। यह सब सुझाव तत्कालीन राष्ट्रपति केनेडी के निर्देश पर दिए गए थे। गैट के सदस्य के रूप में अमेरिका प्रत्येक अधिवेशन में अपनी प्रशुल्क दरों में कुछ न कुछ छूट देता आया था लेकिन सबसे अधिक छूट उसने इसी अधिवेशन (1964-65) के समय दी। 50 देशों ने इसमें भाग लिया था और उन देशों ने 4 करोड़ डालर के व्यापार पर प्रशुल्क रियायतें दीं। अमेरिका ने अपने दो-तिहाई आयातों पर औसतन 35% की प्रशुल्क रियायतें (Tariff concessions) दीं। ECM देशों ने भी 50% की रियायतें दी, ब्रिटेन द्वारा दी गई छूट का औसत 38% जापान का 30% व कनाडा का 24% था। ये रियायतें शनैः-शनैः 5 वर्ष की अवधि के अन्दर प्रभावी बनाई जानी थीं, ताकि 5 वर्ष के बाद औद्योगिक देशों द्वारा लगाई गई प्रशुल्क दरों का अनुपात 5 से 15% के बीच रह जाए।

विभिन्न वस्तुओं का व्यापार करने वाले देशों पर उक्त रियायतों का प्रभाव समान नहीं रह सका, क्योंकि छूट का अनुपात रसायन पदार्थों, कागज, आधारभूत धातुएँ और अन्य कुछ तैयार वस्तुओं पर अधिकतम था जबकि लौह व इस्पात, वस्त्रों, ईंधन और ट्रॉपिकल प्रोडक्ट्स पर सबसे कम था। विकासोन्मुख देशों को अपनी रुचि की केवल 79% वस्तुओं पर ही प्रशुल्क रियायतें मिल  सकीं। सच तो यह है कि केनेडी राउण्ड की सफलता केवल औद्योगिक अर्थात निर्मित वस्तुओं पर प्रशुल्क रियायतें देने तक ही सीमित रही। कृषि वस्तुओं के बारे में मन्त्रणाएँ अधिक सफल नहीं हुई। डेरी वस्तुओं पर कोई छूट नहीं मिली। हाँ, गेहूँ की न्यूनतम अन्तर्राष्ट्रीय कीमत पर सहमति हो गई। कुल पर, केनेडी राउण्ड को प्रशुल्क दरों में कमी और व्यापार के विस्तार हेतु दूसरे व्यवधानों को दूर करने में एक बड़ी सफलता मिली।

बाद में निक्सन के राष्ट्रपतित्व काल में 15 अगस्त, 1971 को जो नवीन आर्थिक नीति New Economic Policy) घोषित हुई, उसने गैट के प्रयासों पर पानी फेर दिया, क्योंकि अमेरिकी सरकार ने विकासोन्मुख देशों से आयात किए जाने वाले माल पर 10% आयात कर लगा दिया और उनको दी जाने वाली आर्थिक सहायता में कटौती कर दी। 1973 के डालर अवमूल्यन से यह बाधा दूर हो गई और अमेरिका ने कर भी वापिस ले लिया।

सातवाँ महासम्मेलन (टोक्यो घोषणा)- सिम्बर 1983 में “गैट” के संविदकारी देशों के मन्त्रियों का एक विशेष अधिवेशन हुआ जिसमें केनेडी वार्ता में स्वीकृत बहुपक्षीय व्यापार वार्ता सिद्धान्त को पूर्णतः कार्यान्वित करने का प्रस्ताव पारित किया गया। यह ‘गैट’ का. सातवाँ महासम्मेलन था। इसके अन्तर्गत 300 विलियन डालर विश्व व्यापार से तटकर घटाने की बात स्वीकार की गई। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व व्यापार में उदारता बरतने, उसके विस्तार, उसकी क्रियाविधि में संरचनात्मक सुधार तथा विकासशील देशों के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए अतिरिक्त लाभ व सुविधाएँ देकर उनके उत्पादों का निर्यात बाजार बढ़ाना और इस भाँति उनकी निर्यात आय को बढ़ाना था। इस घोषणा का महत्वपूर्ण पहलू विकासशील देशों के उत्पादनों को जिन्हें उष्ण कटिबन्धीय उत्पादन कहा जाता है, विशेष प्राथमिकता देना है। वार्ताओं को पूरा करने के लिए एक व्यापार वार्ता समिति बनाई गई है। इसने अप्रैल 1979 तक वार्ता को पूरा किया तथा अधिकांश वार्ता के मुद्दों पर समझौता हो गया। इस वार्ता में 41 देशों ने भाग लिया जिनमें 19 विकासशील देश शामिल थे। इस वार्ता से तटकर सम्बन्धी बातें पूर्ण हो गईं। उद्योग प्रधान देश 1980 से लेकर आठ वर्ष तक की अवधि में अनेक वस्तुओं पर आयात कर कम करने पर सहमत हो गए परन्तु विकासशील देशों की रुचि की अनेक वस्तुओं पर तट कर बहुत कम घटाए गये हैं। वस्त्र और चमड़े के निर्मित पदार्थों से जो विकासशील देशों के लिए विशेष महत्व रखते हैं, परिमाण सम्बन्धी रुकावटों को कम नहीं किया गया।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली को पूर्णत: बहुपक्षीय रूप प्रदान करने के लिए गैट के महानिदेशक ने एक समिति नियुक्त की थी जिसने मार्च 1985 में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किए। इसमें बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के मध्य आये संकट निवारण के लिए 15 महत्वपूर्ण सुझाव दिए। प्रमुख सुझाव- (i) व्यापार नीतियों को उदार बनाना, (ii) कृषिजन्य वस्तुओं के व्यापार को न्यायोचित और स्पष्ट नियमों के अन्तर्गत लाना, (iii) बहुपक्षीय व्यवस्था को चरणबद्ध (Phased out)किया जाना, (iv) सेवाओं के व्यापार का विस्तार किया जाना, (v) विकासशील देश विश्व व्यापार व्यवस्था के अन्तर्गत एकीकरण करें।

यह उल्लेखनीय है कि 1 जनवरी 1977 से 15 उद्योग-प्रधान विकसित देश विकासशील देशों को चाय, कॉफी, कोको एवं मसालों इत्यादि उन वस्तुओं पर जिन पर ट्रोक्यो घोषणा में प्राथमिकता के व्यवहार का आश्वासन दिया गया था, नयी व्यापारिक छूटे देने लगे हैं। ये छूटें तीन वर्ष से चलती आ रही वार्ता का परिणाम थीं (वार्ता के समय 44 विकासशील देशों ने 290 वस्तुओं पर छूटें माँगी थीं)। ये देश यूरोपीय साझा बाजार के नौ देश तथा फिनलैण्ड, नार्वे, स्वीडन, स्विट्जरलैण्ड, आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैण्ड हैं। गाट के तत्वावधान में इस सम्बन्ध में 70 देशों की एक‌ वार्ता समिति (Negotiating Group) बना दी गयी है जो उष्णकटिबन्धीय उत्पादों पर छूटी में सुधार की बातचीत करती रहती है। गाट के प्रयत्नों के फलस्वरूप कई विकसित देश सीमा-शुल्क निलम्बित करने अथवा कम करने को सहमत हो गए हैं और कुछ वस्तुओं को कर मुक्त आयात करने पर सहमत हो गये हैं। 1 जनवरी सन् 1977 से यूरोपीय साझा बाजार के नौ देशों ने 22 वस्तुओं के आयात पर आयात कर निलम्बित कर दिये या कम कर दिए। कॉफी पर आयात कर 7% से 5%, कोको पर 5.4% से 3% कर दिया गया। यूरोपीय साझा बाजार देश 159 सीमा शुल्का के लिए विशेष पूर्वाधिकार योजना (GSP) के अन्तर्गत सुधार करने पर सहमत हो गये हैं।

नवम्बर 1982 में गैट के एक उच्चस्तरीय सम्मेलन द्वारा कुछ प्रस्ताव पारित किए गए जैसे विकसित देशों द्वारा समझौतों के परिपालन के सम्बन्ध में समीक्षा करना, समस्त तटकरों की समीक्षा करके उन्हें समाप्त करने के लिए प्रयास करना, सदस्य देशों के मामले आपसी वार्ता द्वारा तय करना आदि।

‘गैट’ उपसन्धि (GATT Protocol)- टोक्यो घोषणा के अनुसार विकासशील देशों के निर्यात वृद्धि की विशेष योजनाएं कार्यान्वित करने का निश्चय हुआ था। इसका एक पहलू पारस्परिक व्यापार वृद्धि था। इस सम्बन्ध में फरवरी सन् 1973 में 16 विकासशील देशों ने गैट के साथ एक उपसन्धि पर हस्ताक्षर किए थे। ये देश ब्राजील, चिली, मिस्र, यूनान, भारत, इसरायल, मैक्सिको, पाकिस्तान, कोरिया गणराज्य, स्पेन, ट्यूनीशिया, तुर्की, यूरोगोए, यूगोस्लाविया, पीरू और फिलीपीन हैं। इन देशों ने उपसन्धि की सन्तुष्टि कर दी है। उस उपसन्धि के अन्तर्गत विकासशील देशों को विशेष छूटें दी जा रही हैं, जिसका लाभ उठाकर ये देश अपना व्यापार बढ़ा सकते हैं।

जेनेवा बैठक

26 नवम्बर से 30 नवम्बर, 1982 के मध्य जेनेवा में गैट के सदस्य देशों के मंत्रियों की बैठक सम्पन्न हुई जिसमें बहुपक्षीय व्यापार समझौतों का कार्यान्वयन एवं विश्व व्यापार को प्रभावित करने वाली समस्याओं पर विचार करने के उपरान्त यह निर्णय लिया गया कि 1983 तक अल्प विकसित देशों के हितार्थ गैट के विभिन्न नियमों में सुधार किया जाएगा। व्यापार तथा विकास की समिति को यह समीक्षा करने का दायित्व सौंपा कि विकसित देश गैट के चतुर्थ प्रस्ताव की पूर्ति किस सीमा तक करते हैं । गैट के 1984 के सम्मेलन में समिति के सुझावों पर विचार किया गया।

इस सम्मेलन में संरक्षणवाद पर नियन्त्रण पाने के सम्बन्ध में गतिरोध बना रहा। यह गतिरोध संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूरोपीयन आर्थिक समुदाय के देशों के बीच कृषि उत्पादों पर रियायतें देने के सवाल पर उत्पन्न हुआ। यूरोपीयन देशों की माँग थी कि उन्हें कृषि उत्पादों के निर्यातों पर दी जा रही रियायतों को एकमत किया जाय परन्तु संयुक्त राष्ट्र अमरीका का कहना था कि ऐसा करने से उसके अपने कृषि उत्पादकों को भारी हानि उठानी पड़ रही है।

उरूग्वे राउण्ड

विश्व व्यापार के विस्तार एवं उदारीकरण हेतु ऐसे मामलों पर विचार करने के लिए बहुपक्षीय व्यापार विचार विमर्श का उरूग्वे राउण्ड सितम्बर 1986 में प्रारम्भ किया गया जो अब तक प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौतों की परिधि से बाहर था। इनमें से मुख्य कृषि उत्पादों, कपड़ों एवं पोशाकों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार था जो गैट के पिछले उदारवादी समझौतों में सम्मिलित नहीं हो सका था। इस राउण्ड में गैट व्यवस्था के सुचारु संचालन हेतु अपनायी जाने वाली वाणिज्यिक नीति पर भी विचार-विमर्श किया जाना था। इसमें कुछ नए क्षेत्र जैसे- (i) व्यापार से सम्बन्धित विनियोग उपाय (Trade related investment measures TRIMS) तथा (ii) व्यापार से सम्बन्धित बौद्धिक परिसम्पत्ति अधिकारों का पहलू (Trade related aspects of intellectual property rights-TRIPS) तथा (iii) सेवाओं में व्यापार (Trade in services)।

प्रारम्भिक विचार-विमर्श में भाग लेने वाले सदस्य देशों ने बाजार विस्तार क्षेत्रों में प्रशुल्कों को कम करने की माँग की ताकि व्यापार का विश्व स्तर पर विस्तार किया जा सके। अपने आप ही, भारत ने पूँजीगत वस्तुओं, कच्चा माल तथा मध्यवर्ती वस्तुओं (Intermediate goods) पर सीमा शुल्कों में 30 प्रतिशत की कटौती का प्रस्ताव प्रारम्भिक स्तर पर किया। भारत ने वस्त्रों एवं पोशाकों के विश्व व्यापार पर लागू बहुधागा व्यवस्था (Multifiber Arrangement MFA) समाप्त किए जाने की भी मांग की। अधिकांश विकासशील देशों ने भारत के इस सुझाव का समर्थन किया कि विकसित देशों में , जहाँ कृषि को अनुदान एवं संरक्षण चरम सीमा पर है, विकासशील देशों के कृषि उत्पादों के विश्व व्यापार हेतु अधिक उदार नीति अपनायी जाए तथा सीमा शुल्कों में और अधिक रियायतें दी जाएं।

नियम निर्माण क्षेत्र में भारत एवं अनेक विकासशील देशों ने विश्व-व्यापार के विस्तार हेतु बहुपक्षीय व्यापार समझौतों को लागू किए जाने की माँग की जिसमें परमानुग्रहित राष्ट्र की अवधारणा के आधार पर सभी देशों के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाता है। विकासशील देशों ने ऐसे नियमों को और भी कठोर बनाने के लिए कहा जिनसे राशिपतन को रोका जा सकता है। इसके विपरीत औद्योगिक देशों ने विकासशील देशों द्वारा अपने प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन को ठीक करने के लिए आयातों पर परिमाणात्मक नियन्त्रण लगाने तथा निर्यातों को अनुदान देने जैसी नीतियाँ अपनाने को कम से कम करने का सुझाव रखा लेकिन भारत एवं अन्य विकासशील देशों का विचार था कि गैट के नियमों का वर्तमान लचीलापन यथावत बनाए रखा जाना चाहिए।

गैट के लिए सर्वथा नवीन तों पर विचार-विमर्श की प्रक्रिया अत्यधिक विवादास्पद रही। व्यापार से सम्बन्धित विनियोग उपाय TRIMS) के मामलों में औद्योगिक रूप से विकसित देशों ने विकासशील देशों द्वारा अपने औद्योगीकरण को तेज करने के लिए उठाए जाने वाले कुछ उपायों जैसे स्थानीय विनिर्माण आवश्यकताओं को पूरा करना, निर्यात प्रोत्साहन तथा तकनीकी उच्चीकरण आदि जैसे उपायों पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रस्ताव रखा। बौद्धिक सम्पत्ति अधिकारों से सम्बन्धित व्यापार पहलुओं के बारे में विकसित देशों का प्रस्ताव था कि विश्व के समस्त देशों से चाहे वे विकसित हों, विकासशील हों या अविकसित हों, बौद्धिक सम्पत्ति अधिकारों को संरक्षण प्रदान करने में ऊँचे मानकों को अपनाना चाहिए। इस मामले में भारत का दृष्टिकोण था कि बौद्धिक सम्पत्ति अधिकारों के संरक्षण का स्तर का निर्धारण सम्बन्धित देश के आर्थिक विकास के स्तर एवं तकनीकी विकास के स्तर से निर्धारित होना चाहिए।

सेवाओं के व्यापार के मामले में विकसित एवं विकासशील देशों के दृष्टिकोणों में पर्याप्त अन्तर था। औद्योगिक देश उन क्षेत्रों में अपने बाजारों का विस्तार करना चाहते हैं जहाँ उन्हें उच्चता प्राप्त है जैसे-बैंकिंग, बीमा, तार, संचार एवं सूचना। इसके विपरीत वे श्रम एवं श्रम से जुड़ी सेवाओं, जिनमें विकासशील देशों को महारथ हासिल है, का विस्तार किए जाने के पक्ष में नहीं हैं।

उरूग्वे राउण्ड के विचार-विमर्श में अभी तक कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका है। संयुक्त राज्य अमेरिका में चल रहे गम्भीर आर्थिक मन्दी के दौर में 1992 के चुनाव में पराजित राष्ट्रपति बुश प्रशासन ने यूरोपीयन देशों को चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने अमरीकी आयातों पर रियायतें प्रदान नहीं की तो वह यूरोपीयन देशों के आयातों पर 150% से 200% तक का आयात कर लगा देगा। यदि ऐसा होता है तो गैट का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।

(2) झगड़ों का निपटारा-

गैट को झगड़ों का निपटारा कराने में सबसे अधिक सफलता मिली है। इसके वार्षिक सम्मेलनों (Annual Conferences) में नियमों का उल्लंघन करने वाले दोषी राष्ट्र के विषय में शिकायतें प्रस्तुत की जाती है। प्रारम्भ में तो पक्षों से यह प्रार्थना की जाती है कि वे पारस्परिक वार्ता द्वारा अपने विवाद को सुलझाएँ किन्तु यदि ऐसा करने में असमर्थ रहे तो गैट की वर्किंग कमेटी (Gatt’s working Committee) समस्या का सावधानी से अध्ययन करती है और अपना सुझाव या निर्णय देती है। दोषी सदस्य से इस सुझाव या निर्णय का पालन करने के लिए कहा जाता है। यदि वह ऐसा न करे तो, हानि उठाने वाले पक्ष को यह अनुमति दे दी जाती है कि वह दोषी देश के विरुद्ध, उससे कुछ या सब रियायतें लौटाकर, प्रतीकारात्मक कार्यवाही (Retaliatory action) करे। प्रायः व्यवहार में, दोषी सदस्यों ने वर्किंग कमेटी के सुझावों का आदर किया है। केवल अमेरिका ने ही नीदरलैण्ड के डेरी उत्पादी पर अपने आयात प्रतिबन्धों में संशोधन करना स्वीकार नहीं किया था। सन् 1983 में सदस्यों ने एक पैनल बना दिया है, जो झगड़ों के निपटारे के लिए एक अनौपचारिक न्यायालय (Informal court) के सदृश्य कार्य करता है।

समझौते से विकासोन्मुख एवं अन्य देशों को लाभ

(Advantage form GATT to Developing and other Countries)

गैट में शामिल होने वाले देशों को निम्न लाभ प्राप्त होते हैं-

(1) “सबसे प्रिय देश” का सा व्यवहार- उन्हें ‘सबसे प्रिय देश’ (Most favoured nation) का अधिकार प्राप्त हो जाता है और किसी देश द्वारा एक सदस्य देश को दी गई रियायत स्वतः रूप से (Automatically) उन्हें भी प्राप्त हो जाती है।

(2) विशेष रियायतों की व्यवस्था- गैट के आठवें अनुच्छेद में विकासोन्मुख देशों के लिए विशेष रियायतों का प्रावधान है, जैसे-जीवन स्तर में वृद्धि करने के आशय से किसी उद्योग विशेष का विकास करने हेतु रियायतें देना; बाह्य (External) वित्तीय स्थिति की रक्षा हेतु पेरिमाणात्मक आयात प्रतिबन्ध (Quantitaive import restrictions) लगाने की छूट, प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन के सुधार हेतु परिमाणात्मक प्रतिबन्ध अथवा ऐसे ही अन्य कदम उठाने का विशेष अधिकार होना; आर्थिक विकास के लिए आवश्यक उद्योगों की स्थापना हेतु समुचित कदम उठाने की भी छूट होना।

(3) विश्व व्यापार के विस्तार का कार्यक्रम- हैबरलर रिपोर्ट (1958) के आधार पर समझौते (गैट) के अन्तर्गत विश्व के व्यापार का विस्तार करने हेतु कार्यक्रम बनाया गया और तीन समितियाँ बनाई गईं-एक, समिति बहुमुखी व्यापार मन्त्रणाएँ शुरू करने के प्रश्न पर विचार करने के लिए, दूसरी, कृषि वस्तुओं के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार करने के लिए और तीसरी, समिति अल्पविकसित देशों के आयात बढ़ाने के प्रश्न पर विचार करने और सुझाव देने के लिए।

(4) समीक्षा करने वाली समिति की नियुक्ति- फरवरी 1965 में एक अन्य समिति की नियुक्ति की गई, जिसका कार्य पहले वाली समितियों द्वारा दिए गए प्रतिवेदनों के आधार पर उठाये गए कदमों की समीक्षा करना था।

(5) अल्प देशों की समस्याओं के समाधान हेतु प्रयास- गैट की व्यापार एवं विकास समिति (Trade and Development Committee) ने अल्पविकसित देशों की समस्याओं के समाधान हेतु अधिक प्रभावी प्रयत्न करने की दृष्टि से अनेक कार्य किए हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण कार्य विभिन्न देशों की विकास योजनाओं (Development Plans) की समीक्षा करना है ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि इन देशों की विकास योजनाओं का विदेशी व्यापार पर विशेषतया निर्यात वृद्धि पर क्या प्रभाव हो सकता है और यदि आवश्यक प्रतीत हो तो इन योजनाओं में समुचित संशोधन करने के सुझाव दिए जा सकें। ये समीक्षाएँ विश्व बैंक और विदेशी सहायता में संलग्न अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सलाह से तैयार की जाती है, ताकि विदेशी सहायता और व्यापार में समन्वय रखा जा सके।

गैट समझौते से भारत को लाभ

भारत शुरू से ही गैट का एक सक्रिय सदस्य रहा है। भारतीय प्रतिनिधियों ने विभिन्न प्रशुल्क वार्ताओं में भाग लिया और विभिन्न समितियों की बैठकों में विकासोन्मुख देशों की समस्याओं और दृष्टिकोण को प्रभावी ढंग से रखा। परन्तु भारत जैसे विकासोन्मुख देश गैट का पूरा लाभ तभी उठा सकेंगे जबकि वे अपनी प्रतियोगितात्मक शक्ति (Competitive power) को बढ़ाएँ, चाहे ऐसा करने हेतु वे आन्तरिक आर्थिक अनुशासन की नीति (Policy of internal economic discipline) अपनाएँ, चाहे विदेशों में विक्रयकला का श्रेष्ठतम उपयोग करें। कुछ भी हो , अपनी प्रतियोगिता शक्ति को बढ़ाने के लिए देश में बढ़ती हुई लागत एवं कीमतों पर रोक लगाना आवश्यक है। भारत गैट के परामर्श समुदाय का भी सदस्य है।

गैट समझौते के दोष (Weakness of GATT)

गैट के उद्देश्य पर्याप्त अच्छे होते हुए भी इसमें अनेक दोष हैं जिनके कारण इसे आंशिक सफलता ही मिली है। ये दोष निम्न हैं-

(1) समझौता मात्र ‘अच्छे आचरण की संहिता’ बनकर रह गया है। केनेडी राउण्ड को गैट की एक बड़ी सफलता माना जाता है। परन्तु इससे भी स्थिति में पर्याप्त सुधार नहीं हो सकता है। वास्तव में बचाव धाराओं (Escape clauses) की आड़ में सरंक्षण की नीति अपनाई जाती रही है और गैट की केन्द्रीय समिति के पास इसे रोकने का कोई उपाय नहीं है।

(2) आर्थिक उद्देश्य राजनैतिक उद्देश्य में उलझकर रह गए हैं तभी तो कोई सामान्य नियम नहीं बनाये जा सके हैं।

(3) भेद-भावपूर्ण व्यवहार न करने के सिद्धान्त और परस्परता के सिद्धान्त एक दूसरे से असंगत (Inconsistent) हैं। वास्तव में इनमें एक सिद्धान्त को एक बार में कार्यान्वित करना अधिक उपयुक्त है।

(4) अधिकांश वार्ताएँ वस्तुगत आधार पर की जाती हैं। इसीलिए दो देशों के बीच ही व्यापार बढ़ाने पर बल दिया जाता है तथा अन्य देशों के प्रति उपेक्षा बरती जाती है।

(5) गैट में यह स्वीकार किया गया है कि बहुपक्षीय सौदेबाजी द्विपक्षीय सौदेबाजी से श्रेष्ठ है। किन्तु परस्परता के सिद्धान्त के अनुसार सौदेबाजी में केवल बड़े देशों का प्रभुत्व रहता है।

(6) गैट विश्व के सभी देशों की प्रतिनिधि संस्था नहीं है। इसमें अनेक विकासोन्मुख देश व कुछ विकसित देश शामिल नहीं हुए हैं।

उक्त कमियों के कारण ही विकासोन्मुख देश गैट का पूर्ण लाभ नहीं उठा सके हैं। अल्पविकसित देशों के सम्बन्ध में गैट के अन्तर्गत बहुत ही धीमी प्रगति हुई है और आज सभी गैट में वर्जित व्यापार प्रतिबन्ध (Prohibited trade restrictions) मौजूद हैं। विकसित देश न तो प्रशुल्क दरों में कटौती करने सम्बन्धी कोई स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करना चाहते हैं और न ही विकासोन्मुख देशों की घरेलू आर्थिक समस्याओं का कोई स्थायी समाधान करना चाहते हैं। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार एवं विकास सम्मेलन (अंकटाड) का आयोजन करना पड़ा। अब इस संस्था का नाम परिवर्तित करके World Trade Organisation (WTO) कर दिया गया है।

अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!