अर्थशास्त्र

एशियाई विकास बैंक | एशियाई विकास बैंक के उद्देश्य | एशियाई विकास बैंक के कार्य | एशिया विकास बैंक का संगठन | एशियाई विकास बैंक की ऋण क्रियायें | एशियाई बैंक की प्रगति

एशियाई विकास बैंक | एशियाई विकास बैंक के उद्देश्य | एशियाई विकास बैंक के कार्य | एशिया विकास बैंक का संगठन | एशियाई विकास बैंक की ऋण क्रियायें | एशियाई बैंक की प्रगति

एशियाई विकास बैंक

संसार के सबसे बड़े महाद्वीप एशिया में कुल विश्व जनसंख्या के 60% भाग का निवास है। इस महाद्वीप के अधिकतर देशों में गरीबी और अभाव का साम्राज्य है। यहाँ की तीन चौथाई जनसंख्या निम्नतम जीवन-स्तर बिता रही है। इसका सबसे मुख्य कारण इन देशों का राजनैतिक दासता और आर्थिक शोषण का शिकार रहना है। अब अनेक देश सदियों पुरानी दासता से मुक्त हो गए हैं और अपने पिछड़ेपन को दूर करने के लिए संकल्पबद्ध हैं किन्तु वित्त आदि का अभाव उनकी प्रगति में काँटा बना हुआ है। जब तक ये देश विकास नहीं करेंगे, विश्व शान्ति खतरे में रहेगी। अतः विकसित देशों को इनके विकास में सहयोग देना चाहिए। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए IMF, IDBI, IFC और IDA जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थायें स्थापित की गयी हैं। किन्तु ये संस्थायें सभी देशों के आर्थिक विकास के लिए प्रयत्न करती हैं। उनके लिए एशियाई देशों की समस्याओं पर विशेष ध्यान देना सम्भव नहीं था। अत: एशियाई देशों के आर्थिक विकास में सहायता देने हेतु एक पृथक विकास बैंक-एशियाई विकास बैंक (ADB) -स्थापित करना उचित समझा गया।

इस प्रकार, इकेफी की बैलिंगटन बैठक में 9 सदस्यीय सरकारों की, जिनमें से भारत भी एक था, एक उच्चस्तरीय समिति इसकी चार्टर तैयार करने हेतु गठित की गयी। इसकी अन्य बैठक (दिसम्बर, 1965) में चार्टर को स्वीकृति प्रदान की गयी और 26 नवम्बर, 1966 को 30 सदस्यीय देशों (18 एशियाई देश+12 गैर एशियाई देश) की सहमति से एशियाई बैंक की विधिवत् स्थापना मनीला (फिलीपाइन्स) में कर दी गई। बैंक का केन्द्रीय कार्यालय इसी स्थान में रखा गया है।

एशियाई विकास बैंक के उद्देश्य एवं कार्य

लेटिन अमरीका और अफ्रीका में क्षेत्रीय सहयोग की भावना और तत्जनित सुपरिणामों से प्रभावित एवं प्रेरित होकर एशियाई देशों में भी क्षेत्रीय सहयोग की भावना प्रबल हो उठी और इसका परिणाम एशियाई विकास की स्थापना के रूप में हमारे सामने हैं। बैंक का उद्देश्य “एशिया और सुदूर-पूर्व के क्षेत्र में आर्थिक विकास और सहयोग को बढ़ावा देना तथा इस क्षेत्र के  विकासशील सदस्य देशों के आर्थिक विकास की प्रक्रिया को अलग-अलग व संयुक्त रूप से तेज करने में योग देना है।” बैंक के विस्तृत कार्य व उद्देश्य इसके चार्टर के अनुसार निम्न प्रकार हैं-

  1. विकास पूँजी की व्यवस्था करना- इकेफी क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए बैंक सार्वजनिक एवं निजी पूँजी के विनियोग को बढ़ावा देगा।
  2. उपलब्ध साधनों का इष्टतम सदुपयोग- बैंक उपलब्ध साधनों का प्रयोग विकास कार्यों के वित्त प्रबन्धन हेतु करेगा। ऐसा करते हुए वह उन क्षेत्रीय, उप-क्षेत्रीय और राष्ट्रीय परियोजनाओं व कार्यक्रमों को प्राथमिकता देगा जोकि सम्पूर्ण क्षेत्र में समन्वित आर्थिक विकास में अधिकतम प्रभावी ढंग से योग दे सकती है। क्षेत्र के छोटे और अल्प-विकसित देशों के आर्थिक विकास कार्यक्रमों को विशेष प्रोत्साहन दिया जाएगा।
  3. विकास नीतियों और योजनाओं में तालमेल रखना- बैंक सदस्य देशों की विकास नीतियों और योजनाओं के मध्य समायोजन व समन्वय रखने में सहायता देगा ताकि वे अपने साधनों का अपेक्षाकृत श्रेष्ठ उपयोग कर सकें और उनकी अर्थव्यवस्थाएँ एक दूसरे की पूरक बन सकें और इस प्रकार अन्तक्षेत्रीय व्यापार क्रमिक एवं व्यवस्थित ढंग से बढ़ सकें।
  4. तकनीकी सहायता की व्यवस्था करना- बैंक सदस्य देशों को अपनी विकास योजनाएँ और कार्यक्रम बनाने, इसके लिए वित्त की व्यवस्था करने और इनको लागू करने के लिए आवश्यक तकनीकी सहायता उपलब्ध करेगा और, यदि सदस्य देश चाहे तो, उनके लिए वह किसी विशेष परियोजना की विस्तृत रूपरेखा भी तैयार करेगा।
  5. अन्य रुचि रखने वाली संस्थाओं से सहयोग करना- बैंक उन सभी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं व संगठनों से सहयोग करेगा, जिन्हें कि इकेफी क्षेत्र से विकास के लिए कोषों का विनियोग करने में रुचि है, जैसे-इकेफी, संयुक्त राष्ट्र संघ व इसके अंग तथा सहायक संस्थायें, सार्वजनिक तथा निजी राष्ट्रीय इकाइयाँ । इस प्रकार वह सदस्य देशों की अधिक से अधिक पूँजी उपलब्ध कराने का प्रयास करेगा।
  6. अन्य कार्य- बैंक ऐसी अन्य क्रियाएँ व सेवाएँ भी करेगा जो कि उसके उपर्युक्त उद्देश्यों व कार्यों की पूर्ति में सहायक हों।

एशिया विकास बैंक का संगठन

एशियाई देशों के लिए ADB पहला क्षेत्रीय बैंक है और इण्टर अमेरिकन विकास बैंक और अफ्रीका विकास बैंक के नमूने पर स्थापित किया गया है। इसके संगठन से सम्बन्धित प्रमुख बातें निम्नांकित हैं।

सदस्यता- एशियाई विकास बैंक की सदस्यता, अफ्रीका डेवलपमेन्ट बैंक के असमान, केवल उसी क्षेत्र के देशों तक सीमित नहीं रखी गयी है वरन् एशिया से बाहर के देशों के लिए भी खुली है ताकि बैंक को साधन पर्याप्त मिल सकें । बैंक की सदस्यता निम्न देशों को प्राप्त हो सकती हैं-(i) इकेफी के सदस्य राष्ट्र। (ii) इकेफी के सह-सदस्य देश। (iii) इकेफी क्षेत्र के वे देश जो कि संयुक्त राष्ट्र संघ अथवा उसकी किसी विशिष्ट एजेन्सी या संगठन के सदस्य हैं। (iv) इकेफी क्षेत्र से बाहर के विकसित देश, जो संयुक्त राष्ट्र संघ या इससे सम्बन्धित किसी संगठन के सदस्य हैं।

सदस्य बनने हेतु बैंक को एक प्रार्थना-पत्र देना होता है, जिसे इसकी वार्षिक सभा में प्रस्तुत किया जाता है। गवर्नर मण्डल से कम से कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा जोकि कुल मताधिकार के कम से कम 3/4 का प्रतिनिधित्व करते हों सदस्यता के प्रस्ताव अनुमोदन कर देने पर प्रार्थी-देश को सदस्य बना लिया जाता है। वर्तमान में इसकी सदस्य संख्या 45 हो गई।

इकेफी क्षेत्र के सदस्य-देश निम्न हैं- अफगानिस्तान, आस्ट्रेलिया, चीन (ताइवान), फीजी, हाँगकाँग, भारत, इण्डोनेशिया, जापान, खेमर गणराज्य, द. कोरिया, लाओस, मलेशिया, नेपाल, न्यूजीलैण्ड, पाकिस्तान, बंगला देश, पपूआ यूगिनी, फिलीपाइन्स, सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैण्ड, वियतनाम गणराज्य, पश्चिमी समोआ, टौंगा, बर्मा व ब्रिटिश सोलमन द्वीप समूह ।

गैर क्षेत्रीय सदस्य- देश निम्न हैं-आस्ट्रिया, ब्रिटेन, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, जर्मनी, (GDR), फिनलैण्ड, इटली, नीदरलैण्ड्स, नार्वे, स्वीडन, सं०रा० अमेरिका, फ्रांस, स्विट्जरलैण्ड।

बैंक के पूँजी साधन- एशियाई विकास बैंक की अधिकृत पूँजी प्रारम्भ में 1000 मि० डालर (दस-दस हजार डालर के एक लाख अंशों में विभाजित) थी। लक्ष्य था कि 60% क्षेत्रीय देशों और 40% गैर क्षेत्रीय देशों से प्राप्त की जाए। तय हुआ कि सदस्यों द्वारा आधी पूँजी प्रदान (Pay) की जाए और शेष (आधी) पूँजी उनके पास देय पूँजी (Callable capital) के रूप में रहे, अर्थात, उनसे कभी भी मांगी जा सकेगी। प्रदान (Pay) की जाने वाली पूँजी का 50% भाग स्वर्ण और परिवर्तनशील मुद्राओं में और 50% भाग अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं में समान 5 वार्षिक किश्तों में देना होगा।

1 नवम्बर, 1966 को बैंक की अधिकृत पूँजी में 100 मि० डालर की वृद्धि की गई। तत्पश्चात् 1 नवम्बर, 1961 को उसमें 650 मि० डालर की और वृद्धि की गई। बाद में इसे पुनः बढ़ाया गया और यह 3,777 मि० डालर हो गई। सन् 1976 में इसे 8,711 मि० डालर कर दिया गया, 1983 में बैंक की अधिकृत पूँजी 796.5 करोड़ डालर हो गई। प्रार्थित पूँजी में क्षेत्रीय देशों और गैर क्षेत्रीय देशों का भाग क्रमश: 76.5% और 23.5% था। क्षेत्रीय देशों का पूँजी अंश अधिक रखने का कारण बैंक के एशियाई चरित्र को बनाए रखना है।

बैंक में जापान का चन्दा सबसे बड़ा है। एशियाई देशों में दूसरा स्थान भारत का है। उसके इतने बड़े चन्दे के कारण ही विकासोन्मुख देशों को बैंक में सम्मानित स्थान मिल सका है। अन्यथा यह बैंक गैर क्षेत्रीय देशों की एशियाई देशों की सहायता करने वाली संस्था मात्र रहती।

अन्य वित्तीय साधन- विकास बैंक अपनी स्वीकृत पूँजी का एक थोड़ा ही (= 10%) भाग उदार शर्तों पर दे सकता था (यह भी प्रारम्भिक वर्षों में नहीं) और शेष वह कठोर शर्तों पर ही उपलब्ध कर सकता था। अत: बैंक के स्रोतों में वृद्धि करने के आशय से उसे यह अधिकार दिया गया कि सम्बन्धित सरकारों से अनुमति मिलने पर वह उनके पूँजी बाजार से ऋण ले सकता है और स्वयं की प्रतिभूतियाँ भी बेच सकता है।

अब तक तीन विशेष कोष स्थापित किये जा चुके हैं-तकनीकी सहायता कोष, कृषि कोष, बहुउद्देशीय कोष। इनमें से दी जाने वाली रकमें सामान्य ऋणों से अलग होती हैं।

एशियाई विकास बैंक की ऋण क्रियायें

बैंक की ऋण क्रियाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

(अ) सामान्य क्रियायें (Ordinary operations)-सामान्य ऋण बैंक अपने सामान्य कोषों से देता है। सामान्य कोष वे हैं जो कि पूँजी और ऋण द्वारा निर्मित होते हैं। इन ऋणों पर ब्याज दर व ऋण की अवधि सम्बन्धित देश की आवश्यकता, क्षमता व ऋण के प्रयोग तथा अन्तर्राष्ट्रीय ब्याज दर को ध्यान में रखते हुए तय की जाती है।

(ब) विशेष क्रियायें (Special operations)- अपने तीन विशेष कोषों से बैंक विशेष परियोजनाओं के लिए ऋण देता है। ये परियोजनाएँ अत्यन्त प्राथमिकता प्राप्त व महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों से सम्बन्धित होती हैं। इस तरह प्रायः अधिक रकमें लम्बी अवधि के लिए और रियायती ब्याज पर उधार दी जाती हैं। विशेष ऋण स्वीकृत करते समय बैंक निम्न बातों का ध्यान रखता है-(i) अल्प-विकसित एवं छोटे देशों को उच्च प्राथमिकता देना, (ii) अधिक सामाजिक व आर्थिक महत्त्व की परियोजनाओं को जो कि दीर्घकाल में फल देने वाली हैं, उच्च प्राथमिकता देना, (iii) ऋण सम्बन्धी परियोजना का आधार वैज्ञानिक एवं युक्तसंगत होना, (iv) बहुत पिछड़े देशों में अधिक लागत किन्तु कम तकनीकी परियोजना के लिए ऋण सहज ही देना, (v) रकम उधार देते समय कुल माँग व कुल पूर्ति का ध्यान रखना एवं (vi) विकासोन्मुख देश की आर्थिक स्थिति का ध्यान रखना।

जहाँ आवश्यक हो, एक ही परियोजना के लिए संयुक्त व विशेष दोनों प्रकार के कोषों से संयुक्त सहायता प्रदान की जा सकती है।

एशियाई बैंक की प्रगति

बैंक ने ऋण देने का कार्य 1968 में प्रारम्भ किया था। उसने 30 जून, 1981 तक 206 परियोजनाओं के लिए कुल 9,771 मि० डालर राशि के ऋण स्वीकार किए हैं। 6,799 मि० डालर के ऋण साधारण ऋणों के रूप में और 2,971 मि० डालर के ऋण रियायती ब्याज दरों पर दिए गए। इस बैंक ने 1982 में 173.06. करोड़ डालर के 56 ऋण स्वीकृत किए। वर्तमान में कुल ऋणों की राशि 1,200 करोड़ डालर से अधिक हो चुकी है।

उल्लेखनीय है कि धन की व्यवस्था करने के अतिरिक्त बैंक जो तकनीकी सहायता देता है वह निम्न प्रकार है-

  • सलाह सेवा- वह विकास योजना तैयार करने व उसका प्रबन्ध करने सम्बन्धी परामर्श देने हेतु विशेषज्ञों की सेवायें उपलब्ध करता है।
  • विशेषज्ञों की सेवा- आवश्यक होने पर बैंक अपने विशेषज्ञों को प्रार्थी देश में एक निर्धारित अवधि के लिए भेज देता है जो वहाँ योजना की प्रगति में प्रत्यक्ष रूप से सहायता करते हैं।
  • अन्य संस्थाओं से सहयोग- अविकसित देशों में कार्य कर रही अन्य अन्तर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय संस्थाओं से बैंक अपने स्तर पर या उनके कार्यक्रमानुसार उनको सहयोग प्रदान करता है। तकनीकी सहायता देने में बैंक जो आर्थिक व्यय करता है उसका पूर्ण या आंशिक भाग वह स्वयं वहन करता है। सन् 1981 तक 300 परियोजनाओं के लिए ADB ने तकनीकी सहायता (कुल राशि 2,971 मि० डालर) स्वीकृत की थी।

ADB ने हाल ही में अपनी ब्याज दरों में कुछ कमी की है। साधारण पूँजी कोषों से दिए जाने वाले ऋणों पर ब्याज दर को 8.30% से घटाकर 7.65% कर दी गई है। घटी हुई दर 1 जनवरी, 1978 से प्रभावी हो गई। विशेष कोषों से ऋण पर 1% वार्षिक का सेवा चार्ज लगाया जाता है तथा वापसी 40 वर्षों में होती है।

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Pankaja Singh

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