एडम स्मिथ का निरपेक्ष लाभ का सिद्धान्त | निरपेक्ष लाभ के सिद्धान्त की मान्यताएँ | Adam Smith’s Theory of Absolute Advantage in Hindi

एडम स्मिथ का निरपेक्ष लाभ का सिद्धान्त | निरपेक्ष लाभ के सिद्धान्त की मान्यताएँ | Adam Smith’s Theory of Absolute Advantage in Hindi

एडम स्मिथ का निरपेक्ष लाभ का सिद्धान्त

(Adam Smith’s Theory of Absolute Advantage)

एडम स्मिथ ने विश्व व्यापार के विस्तार हेतु स्वतन्त्र व्यापार तथा अन्तर्राष्ट्रीय विशिष्टीकरण को उपयोगी बताते हुए निरपेक्ष लाभ का सिद्धान्त प्रतिपादित किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि प्रत्येक देश उन वस्तुओं के उत्पादन में अपनी शक्ति तथा साधनों को लगाए जिससे उसे निरपेक्ष लाभ प्राप्त हो तो समस्त वस्तुओं का उत्पादन कुशलतापूर्वक किया जा सकता है और उत्पादन के साधनों का अनुकूलतम उपयोग (Optimum utilization of Factors of Production) किया जा सकेगा। ऐसी दशा में वस्तुओं के विश्व उत्पादन में काफी वृद्धि हो सकेगी। इस सिद्धान्त को एक काल्पनिक उदाहरण की सहायता से समझाया जा सकता है। उदाहरणार्थ विश्व में दो देश A तथा B. है एवं इनके द्वारा दो वस्तुओं A तथा Y का उत्पादन किया जाता है। अब यह मान लिया जाता है कि देश A द्वारा एक दिन के श्रम का प्रयोग करके X वस्तु की दो इकाइयां तथा Y- वस्तु की एक इकाई का उत्पादन किया जाता है। इसके विपरीत देश B द्वारा एक दिन के श्रम X वस्तु की एक इकाई तथा Y वस्तु की दो इकाइयों का उत्पादन किया जाता है। उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि देश A, X वस्तु के उत्पादन में तथा देश B, Y वस्तु के उत्पादन में एक दूसरे की तुलना में दक्ष है। अत: X और Y वस्तु का उत्पादन तुलनात्मक दृष्टि से कम लागत पर किया जा सकता है। इस स्थिति में यदि A देश X वस्तु तथा B देश Y वस्तु के उत्पादन में विशिष्टीकरण कर ले और अपनी वस्तु का दूसरे देश को निर्यात करके अन्य वस्तु का आयात करके दोनों ही देश लाभ कमा सकते हैं। इन दोनों ही देशों के बीच व्यापारिक संबंध स्थापित करना उचित एवं लाभप्रद होंगे। इसके विपरीत यदि दोनों ही देश आत्मनिर्भर बनने का प्रयास करें और एक दूसरे से व्यापार नहीं करें तो दोनों ही देशों को संभावित लाभ प्राप्त नहीं होगा।

विशिष्टीकरण से पूर्व की स्थिति

X वस्तु का उत्पादन Y वस्तु का उत्पादन

देश A

2 इकाइयां

1 इकाई

देश B 1 इकाई

2 इकाइयां

विशिष्टीकरण के पश्चात् की स्थिति

X वस्तु का उत्पादन

Y वस्तु का उत्पादन

देश A

4 इकाइयां

कुछ नहीं

देश B कुछ नहीं

4 इकाइयां

ऐसी स्थिति में दोनों देशों को एक इकाई x वस्तु की तथा एक इकाई Y वस्तु का शुद्ध लाभ प्राप्त होता है जो कि व्यापारिक संबंध स्थापित करने के परिणामस्वरूप प्राप्त हुआ है। इस प्रकार व्यापार से होने वाले लाभ को केवल व्यक्तिगत देश की दृष्टि से ही नहीं बल्कि विश्व की दृष्टि से भी आंका जा सकता है।

उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि विशिष्टीकरण से पूर्व कुल विश्व उत्पादन X वस्तु तथा Y वस्तु का तीन तीन इकाइयों का जो कि विशिष्टीकरण तुलनात्मक लागत सिद्धान्त इस बात की व्याख्या करता है कि यदि व्यापार स्वतंत्र हो तो प्रत्येक देश दीर्घकालीन अवस्था में ऐसी वस्तुओं के उत्पादन तथा निर्यात में विशिष्टीकरण प्राप्त करेगा जिनके उत्पादन में उसे वास्तविक लागत के रूप में तुलनात्मक लाभ प्राप्त हो और इस प्रकार का विशिष्टीकरण उन सभी देशों के लिये पारस्परिक रूप से लाभप्रद होगा जो कि इस प्रकार का व्यापार करते हैं।

रिकार्डो के समय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के संबंध में स्वतंत्र व्यापार एवं संरक्षण व्यापार संबंधी दो विचारधाराएं प्रचलित थीं। संरक्षणवादियों का कहना था कि जब इंगलैण्ड गेहूं का उत्पादन कर सकता है फिर क्यों अन्य देशों से इसका आयात किया जाता है। रिकार्डो ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि “इंग्लैण्ड को कपड़े या अन्य वस्तुएं बनाने व निर्यात करने में कृषि वस्तुओं के बनाने व निर्यात करने में कृषि वस्तुओं के बनाने और निर्यात करने की अपेक्षा अधिक लाभ है।” इस कथन के अनुसार एक देश जितनी मात्रा में श्रम और पूंजी लगाकर वह औद्योगिक वस्तुओं का अधिक उत्पादन कर सकता है उतना ही उन वस्तुओं की निर्यात द्वारा अधिक मात्रा में खाद्यान्न का आयात कर सकता है

रिकार्डो ने निम्न उदाहरण द्वारा अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, “दो व्यक्ति जूते और टोपी दोनों ही वस्तुएं बना सकते हैं और इनमें से एक व्यक्ति दूसरे की अपेक्षा इन दोनों ही कार्यों में अधिक कुशल हैं परन्तु वह टोपियों को बनाने में अपने प्रतिस्पर्धी की अपेक्षा 20 प्रतिशत से अधिक कुशल हैं, जबकि जूते बनाने में वह उससे 331/3 प्रतिशत अधिक कुशलता रखता है। ऐसी स्थिति में क्या यह दोनों के हित में न होगा कि कुशल व्यक्ति केवल जूतों का उत्पादन करे और कम कुशल व्यक्ति केवल टोपियां ही बनायें।’

सिद्धान्त की मान्यताएँ (Assumptions of the Theory)-

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रतिष्ठित सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है-

(1) केवल श्रम ही उत्पादन का साधन है और उत्पादन लागतों में केवल श्रमिक व्यय ही शामिल है। वस्तुओं के मूल्यों में भिन्नता उनमें लगे श्रम की भिन्न मात्राओं के कारण होता है। वस्तु के मूल्य तथा श्रम की मात्रा में सीधा तथा आनुपातिक संबंध है।

(2) श्रम साधन की सभी इकाइयां समरूप होती हैं। इनमें किसी आधार पर विभेद नहीं किया जा सकता है।

आलोचना

एडम स्मिथ द्वारा प्रतिपादित अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का निरपेक्ष लाभ का सिद्धान्त निम्न आधारों पर आलोचना का शिकार हुआ है-

(1) यह सिद्धान्त अस्पष्ट तथा अविश्वसनीय हैं क्योंकि इस सिद्धान्त के अनुसार एक राष्ट्र विशिष्टीकरण को तभी अपना सकता है जबकि वह किसी वस्तु विशेष के उत्पादन में निरपेक्ष लाभ प्राप्त किया हुआ हो अन्यथा नहीं। लेकिन व्यवहार में ऐसी स्थिति वाला देश भी हो सकता है जो किसी भी वस्तु के उत्पादन में अन्य देशों की तुलना में अधिक दक्ष न हो।

(2) किसी देश में पिछड़ेपन के परिणामस्वरूप इसके उत्पादन के साधन अपने पड़ोसी देशों की तुलना में कम कार्य-कुशलता वाले होने पर सभी क्षेत्रों में उत्पादन का स्तर निम्न हो सकता है।

(3) यह सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का मौलिक आधार ही प्रस्तुत करता है जबकि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं व्यापारिक शर्तों को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्वों की व्याख्या नहीं की गई है।

उपरोक्त आलोचनाओं के बावजूद भी एडम स्मिथ के निरपेक्ष लाभ के सिद्धान्त का आर्थिक विचारों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण कड़ी का काम करता है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में इन विचारों को उच्च कोटि का स्थान प्राप्त है।

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