मानव संसाधन प्रबंधन

द्वार प्रकोष्ठ प्रशिक्षण | प्रशिक्षण का उद्देश्य | प्रशिक्षण एवं विकास का महत्व | प्रभावशाली प्रशिक्षण कार्यक्रम की मुख्य बातें

द्वार प्रकोष्ठ प्रशिक्षण | प्रशिक्षण का उद्देश्य | प्रशिक्षण एवं विकास का महत्व | प्रभावशाली प्रशिक्षण कार्यक्रम की मुख्य बातें | Vestibule Training in Hindi | Objectives of Training in Hindi | Significance of Training and Development in Hindi | Essentials of Effective Training Programme in Hindi

द्वार प्रकोष्ठ प्रशिक्षण (Vestibule Training)

द्वार प्रकोष्ठ प्रशिक्षण को प्रशिक्षण केन्द्र पर प्रशिक्षण (Training Centre Training) भी कहा जाता है। इस विधि के अन्तर्गत कारखाने से पृथक् एक बड़ा कक्ष या हॉल या प्रवेश द्वार के पास एक प्रशिक्षण भवन या प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किया जाता है, जिसमें प्रशिक्षण की समस्त सामग्री व सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती है। इसमें कारखानें में वास्तविक रूप से काम में आने वाली मशीनों का मॉडेल आदि भी लगा रहता है। कर्मचारी को सैद्धान्तिक प्रशिक्षण की जानकारी प्रशिक्षण भवन में दी जाती है और बाद में उन्हें कारखाने में कार्य स्थल पर ले जाकर  उन्हें उसका व्यावहारिक ज्ञान व वास्तविक ज्ञान प्रदान किया जाता है। इस प्रकार की व्यवस्था  वृहत् औद्योगिक प्रतिष्ठानों में होती है। इस प्रकार का प्रशिक्षण विशेषज्ञों द्वार या पर्यवेक्षकों के द्वारा दिया जाता है और प्रशिक्षण पूरा हो जाने पर व्यक्ति को उस कार्य पर लगा दिया जाता है। इस प्रशिक्षण का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें कार्य में बाधा उत्पन्न नहीं होती है और यन्त्र सुरक्षित रहते हैं। प्रशिक्षण नियंत्रित, क्रमबद्ध तथा विशेषज्ञों के द्वारा दिया जाता है और सैद्धांतिक व्यावहारिक दोनों पहलुओं पर एकाग्रता बनी रहती है। हालांकि यह विधि काफी खर्चीली है।

प्रशिक्षण का उद्देश्य

(Objectives of Training)

व्यक्ति के विकास से संगठन का विकास निहित है। प्रशिक्षण एक मशीनरी है, जिसके माध्यम से ज्ञान, योग्यता, कुशलता की वृद्धि की जाती है, जिसके द्वारा संगठन में प्रभावशीलता विकसित की जाती है। प्रशिक्षण के द्वारा कर्मचारी के अन्तर्गत स्वविकास (Self Development), उसकी गरिमा (dignity) व उनके कल्याण (Well-being) की भावना का विकास होता है, जिससे उसकी उत्पादकता में वृद्धि होती है। प्रशिक्षण से कर्मचारियों के मनोबल एवं संतुष्टि में वृद्धि होती है, जिसके द्वारा कर्मचारी अपना तथा संगठन दोनों का लक्ष्य प्राप्त करता है। एक संगठन में प्रशिक्षण एवं विकास की आवश्यकता कई कारणों से आवश्यक है और इससे संगठन के निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति की जा सकती है :

(1) कर्मचारियों की प्रवीणता (Proficiency) या कार्यकुशलता में वृद्धि करने के लिए।

(2) कर्मचारियों के भीतर कार्य के दौरान ज्ञात कमियों (Deficiencies) को दूर करने के लिए।

(3) नवीन तकनीकी तथा नवीन जानकारियों को अपनाने की क्षमता में वृद्धि करने के लिए।

(4) उत्पादकता तथा गुणवत्ता के विकास के लिए।

(5) मानव संसाधन तथा भौतिक संसाधनों की बर्बादी (Wastage) को ककम करने य समाप्त करने के लिए।

(6) संगठन का स्थायित्व (Stability), लोचशीलता (Flexibility) तथा विकास (Growth) को बरकरार रखने के लिए।

(7) व्यावसायिक जगत में संगठन की प्रतिष्ठा व विश्वास को कायम रखने के लिए।

(8) औद्योगिक सम्बन्ध को कायम रखने के लिए।

(9) मानवीय इच्छाओं की पूर्ति के लिए जिससे कार्य संतुष्टि में वृद्धि की जा सके।

(10) कर्मचारियों के मनोबल को ऊँचा रखने व बढ़ाने हेतु।

(11) पर्यवेक्षण (Supervision) के स्तर को कम करने हेतु।

(12) निम्न लागत पर उच्च स्तर के कार्य की प्राप्ति हेतु।

(13) वैश्विक प्रतियोगिता (Global Competition) की चुनौतियों का सामना करने हेतु तथा बाजार के परिवर्तन को अपनाने हेतु।

(14) संस्थागत सूचनाओं की प्राप्ति हेतु।

(15) कार्य आदत (Work habits) तथा कार्य संस्कृति में सुधार व विकास हेतु।

(16) कार्य समायोजना (Work Adjustment) तथा विशिष्टीकरण (Specialiation) के प्रयोग करने हेतु।

(17) संगठन के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु संगठन की कार्यकुशलता एवं प्रभावशीलता में वृद्धि करने के उद्देश्य से, आदि।

प्रशिक्षण एवं विकास का महत्व

(Significance of Training and Development)

प्रशिक्षण आज के वैश्विक, व्यावसायिक एवं औद्योगिक वातावरण में व्यवसाय एवं उद्योग की सफलता व समृद्धि के लिए आवश्यक उपकरण के रूप में काफी महत्वपूर्ण हो गया है। यह संगठन के भीतर व्यक्तित्व के विकास, स्वच्छ कार्य संस्कृति विकसित करने, संगठन की उत्पादन उत्पादकता को बढ़ाने व औद्योगिक सम्बन्ध को विकसित करने के लिए नितान्त आवश्यक है। डेल योडर ने प्रशिक्षण को कर्मचारियों व संगठन के अनुकूल बनाने, उनकी क्षमता एवं कार्यकुशलता विकसित करने तथा उन्हें पदोन्नति का मार्ग प्रशस्त करने का एक साधन माना है। वहीं बी. एम. बास (B.M. Bass) तथा ए. वाउघान (A. Vaughan) ने कहा है कि संगठन के लिए प्रशिक्षण निम्न तीन घटकों के लिए आवश्यक है :

(i) तकनीकी परिवर्तन (Technological Change)

(ii) संगठनात्मक जटिलता (Organisational Competition)

(iii) मानवीय सम्बन्ध (Human relations)

प्रशिक्षण सिर्फ नये कर्मचारियों के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह पुराने कर्मचारियों के लिए भी आवश्यक है। प्रशिक्षण एवं विकास से कर्मचारियों की कार्यकुशलता एवं कार्यक्षमता में वृद्धि होती है यह संगठन के भीतर व्यक्ति के अन्दर की कमियों को दूर करता है और संगठन की बर्बादियों को रोकता है। प्रशिक्षण कर्मचारियों के व्यक्तित्व के विकास का एक माध्यम है और इससे कर्मचारियों के मनोबल एवं उत्प्रेरणा में वृद्धि होती है, असंतोष घटता है तथा स्थायी औद्योगिक शान्ति की स्थापना होती है।

आज की बदलती वैश्विक प्रतियोगिता के युग में व्यावसायिक जगत को गलाघोंट प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा है। तकनीकी में परिवर्तन तथा सूचना क्रान्ति का प्रादुर्भाव, ज्ञान के विकास, संगठनात्मक परिवर्तन आदि ऐसे कई घटक हैं जिन्होंने कर्मचारियों की क्षमता, कार्यकुशलता, ज्ञान आदि में वृद्धि के लिए बाध्य किया है। इनके लिए प्रशिक्षण आवश्यक है। आज हमारे सभी स्तर के कर्मचारियों एवं प्रबन्धकों को नवीनतम ज्ञान, तकनीकी व विकास की जानकारियों से मुक्त होना होगा। भारत एक विकासशील देश है, जो सिर्फ प्रशिक्षण के ऊपर लगभग 50 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष खर्च कर रहा है। वहीं अमेरिका प्रशिक्षण पर इससे दुगने से भी अधिक राशि व्यय कर रहा है। प्रशिक्षण के ऊपर किया गया व्यय मानव पूँजी में किया गया विनियोग (Investment in Human Capital) माना जाता है, क्योंकि इससे व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के साथ-साथ संगठन का विकास एवं समृद्धि सम्भव है। आप प्रायः सभी संगठन प्रशिक्षण एवं विकास के लिए अपने-अपने तरह से नीतियों व कार्यक्रम बनाकर इस दिशा में काफी पहल व व्यय कर रहे हैं, क्योंकि प्रशिक्षण एवं ज्ञान के माध्यम से कर्मचारियों के गुणों एवं क्षमताओं का विकास संगठन के न सिर्फ अल्पकालीन उद्देश्यों की पूर्ति करता है, बल्कि लम्बी अवधि तक संगठन को लाभ पहुँचाता रहता है।

प्रभावशाली प्रशिक्षण कार्यक्रम की मुख्य बातें

(Essentials of Effective Training Programme)

एक प्रभावशाली प्रशिक्षण कार्यक्रम में निम्नलिखित विशेषताएँ अवश्य होनी चाहिए :

(1) प्रशिक्षण कार्यक्रम संगठन की आवश्यकता एवं लक्ष्यों को ध्यान में रखकर बनाये जाने चाहिए।

(2) एक प्रशिक्षण कार्यक्रम को लचीला (Flexible) होना चाहिए।

(3) एक प्रशिक्षण कार्यक्रम योग्य, कुशल व अनुभवी व्यक्तियों के द्वारा संचालित किया जाना चाहिए।

(4) एक प्रभावशाली प्रशिक्षण कार्यक्रम में सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों ज्ञान की प्राप्ति पर बल देना चाहिए।

(5) प्रशिक्षण प्रविधियाँ (Techniques) एवं प्रणालियाँ (Systems) प्रशिक्षण के उद्देश्यों पर आधारित होनी चाहिए।

(6) प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य प्रशिक्षणार्थी को संगठन में उपलब्ध सभी स्तरों पर कार्य करने का अवसर प्रदान करने, वांछित कुशलता प्राप्त करने तथा कार्य में दक्षता प्राप्त करने का होना चाहिए।

(7) प्रशिक्षण कार्यक्रम में लाभान्वित होने वाले प्रशिक्षणार्थियों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

(8) प्रभावशाली प्रशिक्षण कार्यक्रम उच्च प्रवन्धकों के द्वारा संचालित किया जाना चाहिए। या उनके निर्देशन में संचालित किया जाना चाहिए।

(9) प्रशिक्षण कार्यक्रम में नवीन विचारों व आधुनिक परिवर्तनों व प्रगति को शामिल किया जाना चाहिए।

(10) प्रशिक्षण व्यवस्था में ‘सरलता से जटिलता की ओर’ सिद्धान्त का पालन किया जाना चाहिए।

इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रभावशाली प्रशिक्षण कार्यक्रम का निर्माण एवं क्रियान्वयन उपर्युक्त सिद्धान्तों व विशेषताओं को ध्यान में रखकर करना चाहिए। इस सन्दर्भ में राष्ट्रीय औद्योगिक प्रशिक्षण बोर्ड के सामान्य सिद्धान्तों का भी ध्यान रखना चाहिए।

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