वित्तीय प्रबंधन

दीर्घकालीन ऋण | दीर्घकालीन ऋण प्रदान करने वाली विभिन्न संस्थाएं

दीर्घकालीन ऋण | दीर्घकालीन ऋण प्रदान करने वाली विभिन्न संस्थाएं | long term loan in Hindi | Various Institutions Offering Long Term Loans in Hindi

दीर्घकालीन ऋण

(Long-Term Loan)

ऋण-गत पूँजी में ऋण-पत्रों एवं बॉण्ड्स के साथ-साथ दीर्घकालीन ऋणों को भी सम्मिलित किया जाता है। दीर्घकालीन ऋणों में कम्पनियों को निम्नलिखित विभिन्न संस्थाओं से मिलने वाले ऋण सम्मिलित किये जाते हैं-

(1) अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं से ऋण (Loan from International Institutions) –

अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ विदेशी मुद्रा में औद्योगिक इकाइयों को दीर्घकालीन वित्त प्रदान करते हैं। इन संस्थाओं से ऋण लेने में सुविधा रहती है कि जिस देश की मुद्रा की आवश्यकता हो, उस देश की मुद्रा में ऋण उपलब्ध हो जाता है। ऐसा ऋण प्राप्त होने पर विदेशी भुगतान के लिये मुद्रा बदलने की आवश्यकता नहीं होती। अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से ऋण प्राप्त करने वाली निम्नलिखित संस्थाएँ प्रमुख हैं-

(i) विश्व बैंक (World Bank) – विश्व बैंक को अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक के नाम से भी जाना जाता है। इस बैंक की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों को आर्थिक सहायता देकर उनके पुनर्निर्माण एवं पुनर्संगठन में सहायता पहुँचाना है। इस बैंक द्वारा सार्वजनिक एवं निजी परियोजनाओं को ऋण, साख व सलाह के रूप में सर्वाधिक अधिक सहायता प्रदान की गई है। अपने देश में अनेक बड़ी- बड़ी परियोजनाओं का अस्तित्व इस बैंक के सहयोग के द्वारा ही सम्पन्न हुआ है।

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ (International Development Association)- इस संघ की स्थापना का प्रस्ताव 1 अक्टूबर, 1959 को पास किया गया तथा इस संघ ने 8 नवम्बर, 1960 से अपना कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। इस विकास संघ का भारत एक प्रारम्भिक सदस्य है। इस संघ में भारत ने इतना अधिक चन्दा दिया है कि वह एक प्रशासनिक संचालक नियुक्त करने का अधिकारी है। इस संघ द्वारा भी विकास परियोजनाओं को प्रोत्साहित करने के लिये ऋण प्रदान किया जाता है।

(iii) अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम (International Finance Corporation)-  इस निगम की स्थापना 21 जुलाई, 1955 को हुई। इस निगम ने भी भारतीय उद्योगों के विकासार्थ पर्याप्त मात्रा में वित्तीय सहायता प्रदान की है। भारतवर्ष ने इस निगम की स्थापना के प्रारम्भिक वर्षों में कोई लाभ नहीं उठाया। इसका कारण यह था कि भारत को इस निगम की अपेक्षा विश्व बैंक से कम ब्याज दर पर दीर्घकालीन ऋण प्राप्त हो चुके थे। इस निगम से बहुत कम राष्ट्र ऋण ले रहे हैं क्योंकि एक तो यह निगम ब्याज की ऊँची दर वसूल करने का प्रयास करता है तथा दूसरे इस निगम के ऋण सम्बन्धी नियम भी बड़े कठोर हैं।

(iv) एशियन विकास बैंक (Asian Development Bank)- इस बैंक ने भी दीर्घकालीन सहायता प्रदान करके अधिकांश देशों को प्रोत्साहित करने में अपना सहयोग प्रदान किया हैं इस बैंक की स्थापना 26 नवम्बर 1996 को एशियाई सुदूर पूर्व के विकास के लिये की गई । यह एक क्षेत्रीय संस्था है जिनकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र संघ के संरक्षण में की गयी है। इस बैंक का प्रमुख कार्यालय मनीला में (फिलिपाइन्स) में है। अपने क्षेत्र में उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिये इस निगम ने पर्याप्त मात्रा में वित्तीय सहायता प्रदान की है।

(2) विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं से ऋण (Loan from Specific Financial Institutions)-

उद्यागों को दीर्घकालीन एवं मध्यकालीन वित्तीय सहायता देने के लिये भारत में विशिष्ट वित्तीय  संस्थाओं की स्थापना की गई है। प्रमुख भारतीय विशिष्ट वित्तीय संस्थायें निम्नलिखित हैं-

(i) भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (IFCI), (ii) भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम (ICICI), (iii) भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (IDBI), (iv) राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम (NIDC), (v) राष्ट्रीय औद्योगिक पुनर्निर्माण निगम (IRCI), (vi) राज्य वित्त निगम (SFCs), (vii) जीवन बीमा निगम (LIC), (viii) भारतीय इकाई प्रन्यास (UTI), तथा (ix) राज्य औद्योगिक विकास निगम (SIDC) |

(3) केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों से ऋण (Loan from Central and State Govt.)-

केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों द्वारा प्रायः उन्हीं औद्योगिक संस्थाओं को ऋण प्रदान किये जाते हैं जो जनहित के विकास में संलग्न हैं। उदाहरणार्थ रेल उद्योग, सड़क निर्माण उद्योग, बिजली उद्योग आदि। सरकार द्वारा ऋण प्रदान करने का प्रमुख उद्देश्य यह होता है कि यदि इन उद्योगों की वित्तीय स्थति अधिक सुदृढ़ रहेगी तो ये जनहित के विकास में अच्छा कार्य कर सकेंगे।

(4) जन-निक्षेप (Public Deposits)- 

भारत में औद्योगिक वित्त के साधनों में निक्षेप का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है द्योगपतियों या औद्योगिक इकाइयों की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के कारण जनता एक निश्चित ब्याज की दर पर अपने धन को एक अवधि के लिये औद्योगिक इकाइयों में जमा कर देती है।

संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि कम्पनी को दीर्घकालीन वित्त की प्राप्ति समता अंशों, पूर्वाधिकार अंशों, ऋण-पत्रों के निर्गमन तथा दीर्घकालीन ऋणों द्वारा होती है।

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Pankaja Singh

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