शिक्षाशास्त्र

दर्शन का शिक्षा पर प्रभाव | दर्शन पर शिक्षा का प्रभाव

दर्शन का शिक्षा पर प्रभाव | दर्शन पर शिक्षा का प्रभाव | Effect of philosophy on education in Hindi | Impact of education on philosophy in Hindi

दर्शन का शिक्षा पर प्रभाव

शिक्षा क्रिया के विभिन्न अंगों जैसे उद्देश्य, पाठ्यक्रम, विधि, पाठ्यपुस्तक, शिक्षक, शिक्षार्थी, अनुशासन आदि पर दर्शन का प्रभाव दिखाई देता है। अतः इन्हें अलग-अलग समझा देने से दर्शन और शिक्षा की स्थिति स्पष्ट हो जावेगी।

(i) दर्शन का शिक्षा के उद्देश्य पर प्रभाव- मनुष्य जीवन के लक्ष्य के अनुसार अपनी शिक्षा के उद्देश्य भी रखता है। जीवन के लक्ष्य का निर्धारण जीवन दर्शन से होता है। अतएव शिक्षा का उद्देश्य भी दर्शन के द्वारा निश्चित होता है। उदाहरण के लिए आज भारत में शिक्षा का उद्देश्य प्रमुखतः जीवन को सुखी बनाना है। इसके पीछे भौतिकवादी दर्शन मिलता है। अतएव हमारी शिक्षा का उद्देश्य भौतिकवादी दर्शन ने निश्चित किया है यह हम कह सकते हैं। इसी प्रकार अन्य देशों में होता है, जैसे अमरीका में प्रयोजनवादी दर्शन, रूस में साम्यवादी दर्शन, इंग्लैण्ड में उपयोगितावादी दर्शन ने शिक्षा के उद्देश्य निश्चित किये हैं।

(ii) दर्शन का शिक्षा के पाठ्यक्रम पर प्रभाव- पाठ्यक्रम शिक्षा के उद्देश्य के अनुसार निश्चित किया जाता है; यदि शिक्षा का उद्देश्य दर्शन निश्चित करता है तो उसका पाठ्यक्रम भी दर्शन के द्वारा निश्चित होता है। इसका उदाहरण हम विभिन्न देशों के पाठ्यक्रम में पाते हैं। भारत में प्राचीन काल से ही आध्यात्मिक विषयों को पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया। आज विज्ञान के प्रभाव से वैज्ञानिक दृष्टिकोण हो गया है अतएव पाठ्यक्रम में विज्ञान, तकनीकी, व्यावसायिक विषय रखे गये हैं। आवश्यकता एवं क्रियाशीलता के आधार पर आज पाठ्यक्रम में खेल-कूद, क्रियात्मक शिक्षा, क्राफ्ट जैसे विषय रखे गये हैं। ये सब दर्शन का ही प्रभाव कहा जा सकता है।

(iii) दर्शन का शिक्षा की विधि पर प्रभाव- शिक्षा की विधि पर भी दर्शन का प्रभाव पड़ा है। प्राचीन भारत में गुरु-शिष्य की प्रणाली थी, कुछ समय बाद मौखिक विधि के साथ क्रियाविधि भी काम में लायी गई। आज कुछ नई शिक्षाविधियाँ काम में लाई जा रही हैं जैसे प्रोजेक्ट विधि, डाल्टन विधि, किन्डर गार्टेन विधि आदि। नवीनतम विधियों में पूर्वायोजित अधिगम की विधि, शिक्षण-मशीनों की विधि, भाषा प्रयोगशाला की विधि आदि हैं। इन विधियों का प्रयोग दार्शनिक विचारों में परिवर्तन के कारण हुआ है।

(iv) दर्शन का पाठ्यपुस्तकों पर प्रभाव- दर्शन का प्रभाव पाठ्यपुस्तकों पर भी पड़ता है। प्राचीन काल में प्रकाशन का अभाव होने से पाठ्यपुस्तकें नहीं थी। आज इनके बिना शिक्षा का कार्य होना संभव नहीं है। पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से दर्शन का प्रचार होता है। जनतन्त्रवादी दर्शन ने शिक्षा सभी को प्राप्त कराने का दावा किया है अतएव पाठ्यपुस्तकें एक अनिवार्य साधन बन गईं। यहाँ भी दर्शन का प्रभाव शिक्षा व पाठ्यपुस्तकों पर पड़ता है।

(v) दर्शन का शिक्षक पर प्रभाव-शिक्षक का अपना एक दर्शन होता है। शिक्षक वही होता है जो ज्ञान की इच्छा रखता है। दर्शन ज्ञान के लिये प्रेम होता है। अतएव शिक्षक दर्शन से प्रभावित व्यक्ति होता है। दर्शन के द्वारा ज्ञान की परिपक्वता आती है, व्यक्तित्व के मूल्य विकसित होते हैं, शिक्षण के प्रति उचित दृष्टिकोण बनता है, भविष्य निर्माण के लिये सही प्रयत्न होता है और शिक्षार्थी के जीवन का उन्नयन करने में सहायता मिलती है। प्राचीन भारत में गुरु शान्त, सरल, निरीह, कर्तव्यपरायण होता था, आज वह अशान्त है, तड़क-भड़क पसन्द करने वाला है, धन की इच्छा करने वाला है। यह भौतिकवाद का प्रभाव है। अतएव शिक्षक पर भी दर्शन का प्रभाव दिखाई देता है।

(vi) दर्शन का शिक्षार्थी पर प्रभाव- दर्शन का प्रभाव शिक्षार्थी पर भी पड़ता है। आज राजनीति को शिक्षार्थी ने अपना व्यवसाय बना लिया है। उसमें असन्तोष है और विरोधी तत्व का वह प्रकाशन करता है। प्राचीन भारत का शिक्षार्थी एवं शिक्षक दोनों राजनीति से दूर रहते थे, शान्त जीवन में उन्हें सुख मिलता था और राजनीति के व्यवसाय का उन्हें कोई ज्ञान न था। दर्शन ने ही इस प्रकार का परिवर्तन ला दिया है यह आज सभी स्वीकार करते हैं।

(vi) दर्शन का अनुशासन पर प्रभाव- अनुशासन शिक्षक एवं शिक्षार्थी के परस्पर व्यवहार में पाया जाता है। शिक्षक और शिक्षार्थी प्राचीन काल में अनुदेशक और अनुपालक होते थे। आज शिक्षार्थी एवं शिक्षक दोनों में स्वतन्त्रता का दुरुपयोग होता है अतएव दोनों में संघर्ष हो रहा है। शिक्षार्थी शिक्षक के आदेश को स्वीकार नहीं करता है बल्कि अपने आप जो चाहता है करता है। स्वेच्छाचारिता आधुनिक जनतंत्रवादी दर्शन का प्रभाव है। नैतिकता भी अनुशासन का एक अंग है, आज भौतिकवाद तथा धर्म निरपेक्षवाद ने शिक्षार्थी को अनैतिक और धर्मविहीन बना दिया है। विद्यालय इनकी क्रियाओं के दुष्प्रभाव से अनुपयुक्त वातावरण से पूर्ण है। अब हमें दर्शन का साफ प्रभाव अनुशासन पर दिखाई दे रहा है।

(viii) दर्शन का विद्यालय पर प्रभाव- आज भारत में पार्टीवाद का बोलबाला है और लालफीतावाद भी दिखाई दे रहा है। पार्टीबाद (Partyism) के कारण विद्यालय विभिन्न सम्प्रदायों के द्वारा चलाये जा रहे हैं और इससे वहाँ का वातावरण भी वैसा ही रहता है, कहीं जातीयता है तो कहीं मत-विभिन्नता है। लाल फीताबाद (Red-Lapism) के कारण विद्यालयों पर उनकी क्रिया पर शासकों का रोब रहता है इससे शिक्षा का कार्य बहुत बंधा बंधाया रहता है प्रगति त एवं उच्च स्तर लाने में बाधा भी पड़ती है। आज के विद्यालय प्राचीन विद्यालयों से बिल्कुल भिन्न दर्शन के प्रभाव से भी हैं। भारत के विद्यालय अमरीका या रूरा के विद्यालय से दर्शन की भिन्नता के कारण अलग-अलग होते हैं। राष्ट्रीय दर्शन के प्रभावस्वरूप हरेक देश के विद्यालय अच्छी या दुरी दश में होते है समुदाय विद्यालय, बहुधंधी विद्यालय, क्रियात्मक विद्यालय, ग्रामी विद्यालय से यह दर्शन के प्रभाव को बताते हैं।

(ix) दर्शन का मूल्यांकन पर प्रभाव- मूल्यांकन के क्षेत्र में भी दर्शन का प्रभाव दिखाई पड़ता है। प्राचीन दृष्टिकोण के अनुसार निबन्धात्मक परीक्षा ली जाती थी, आज के दार्शनिक विचार से वस्तुनिष्ट परीक्षा ली जाती है जो शिक्षार्थी के सम्पूर्ण जीवन का एकअभिलेख रहता है। अमरीका के शिक्षाविदों ने ‘मापन या दर्शन’ तैयार किया। अस्तु जब मूल्यांकन, मापन, अंकन, मापनीकरण तथा श्रेणीकरण (Evaluation Measurement, Marking, Scaling ar. ! Grading) के सन्दर्भ में दर्शन दिखाई दे रहा है। यह सब उसके प्रभाव को बताते हैं।

प्रो० रस्क ने दर्शन का प्रभाव बताते हुए लिखा है कि “शिक्षा की समस्या के प्रत्येक कोण से इस प्रकार विषय के एक दार्शनिक आधार की माँग आती है।

इसके आगे प्रो० बटलर ने कहा है कि “दर्शन शैक्षिक अभ्यास के लिए एक है।”

इन कथनों से शिक्षा पर दर्शन किस प्रकार प्रभाव डालता है यह ज्ञात होता है।

दर्शन पर शिक्षा का प्रभाव

शिक्षाविदों ने दर्शन के प्रभाव को स्वीकार तो किया है लेकिन यह भी कहा है कि शिक्षा का प्रभाव दर्शन पर भी काफी पड़ता है। प्रो० रॉस ने लिखा है कि “शैक्षिक उद्देश्य और विधियाँ दार्शनिक सिद्धान्तों के सह-सम्बन्धी हैं।”

दर्शन एक नियामक विज्ञान है अतएव वह शिक्षा के लिए आदर्श एवं मानक प्रस्तुत करता है। परन्तु मनुष्य का विचार उसकी शिक्षा से भी प्रभावित होता है। अतएव दर्शन पर शिक्षा का प्रभाव पड़ता है।

(i) दर्शन की आधारशिला शिक्षा-शिक्षा ऐसी वस्तु है और उसका ऐसा क्षेत्र है जहाँ दर्शन को काम में लाने का प्रयत्न करते हैं। दर्शन का निर्माण और विकास शिक्षा के विभिन्न अंगों के निरीक्षण, चिन्तन एवं विचारीकरण के फलस्वरूप होता है। शिक्षा के द्वारा भाषा सीखी जाती है, भाषा के द्वारा चिन्तन होता है और परिणामस्वरूप दर्शन की प्राप्ति होती है। बिना शिक्षा के दर्शन की प्राप्ति नहीं होती है। इसलिए शिक्षा दर्शन की आधार शिला है, उसके निर्माण का साधन है। (Education is the foundation stone of philosophy, a means of its construction) |

(ii) दर्शन को जीवित रखना- शिक्षा ज्ञान-अनुभव है जो हम संसार के बारे में प्राप्त करते हैं। दर्शन ज्ञान की अन्तिम व्याख्या करता है, सिद्धान्त निर्धारित करता है परन्तु ये व्याख्या एवं सहायक सिद्धान्त बिना शिक्षा के सम्भव नहीं हो सकते। फलतः शिक्षा दर्शन को जीवित रखने में सक्षम एवं सहायक होती है।

(iii) दर्शन को मूर्त रूप देना- दर्शन संसार के सम्बन्ध में जो चीजें निश्चित करता है उसको मूर्त रूप शिक्षा ही देती है जैसा कि प्रो० ऐडम्स ने कहा है कि शिक्षा दार्शनिक विश्वास का सक्रिय पक्ष है। शिक्षा जीवन के आदर्शों को व्यावहारिक विधि से प्राप्त कराती है। अतएव स्पष्ट है कि शिक्षा दर्शन को साकार बनाती है। (Education gives philosophy a concrete shape) |

(iv) दर्शन को समाधान हेतु समस्या देना- शिक्षा का कार्य देश के दर्शन का पुनर्निर्माण तथा मूल्यों की पुनर्परिभाषा करना है जिससे कि वे हमारे बदलते जीवन और विचार की व्याख्या कर सके। (The task of education is to reconstruct the country’s philosophy and redefine values so that they interpret our changing life and thought.)

— Dr. K. L. Shrimali.

शिक्षा के द्वारा परिवर्तन होता है अतएव समस्याएँ उत्पन्न होती हैं और इनका समाधान दर्शन करता है। अतएव दर्शन को शिक्षा के द्वारा चिन्तन की सामग्री मिलती है। (Philosophy gets material for thinking from education) |

(v) दर्शन को गतिशील बनाना-चूँकि शिक्षा के द्वारा चिन्तन की सामग्री मिलती हैं और दर्शन उस पर चिन्तन-मनन करता है, उनका समाधान ढूँढता है अतएव शिक्षा दर्शन को गतिशील बनाती है (Education makes philosophy dynamic) । शिक्षा के द्वारा दर्शन प्रगति करता है (Philosophy is made progressive by education) । शिक्षा का ही यह परिणाम था कि विश्व में विभिन्न दर्शन बने और उनका विकास हुआ।

(vi) दर्शन को नये क्षेत्र मिलना-शिक्षा के कारण दर्शन को नये क्षेत्र मिले हैं। शिक्षा-दर्शन एक नया क्षेत्र है, ज्ञान तथा मूल्य-दर्शन दूसरा क्षेत्र है जिससे संबन्धित मूल्यांकन दर्शन भी बन गया है। इसी प्रकार से समाज-दर्शन भी मिलता है जो समाज की संस्थाओं पर विचार करता है और समाज की संस्था को शैक्षिक मूल्य प्रदान करता है। इसी तरह शिक्षण का दर्शन (Philosophy of Teaching) भी एक नया क्षेत्र है। सम्भवतः पाठ्यक्रम एवं शिक्षाविधि से सम्बन्धित दर्शन की पूर्वकल्पना शिक्षाशास्त्रियों के मस्तिष्क में है। अब हम कह सकते हैं कि शिक्षा के प्रभाव से दर्शन का क्षेत्र व्यापक हो गया। (The Scope of philosophy has widened because of the influence of education) |

  1. निष्कर्ष- दर्शन और शिक्षा में एक दूसरे के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। विद्वानों ने दो प्रकार के विचार दिए हैं-(1) दर्शन के बिना शिक्षा असम्भव है, तथा (2) शिक्षा के कारण ही दर्शन का निर्माण होता है।

“The process of education cannot go along right lines without the help of philosophy.”

Prof. Gentile.

“The task of education is to reconstruct the country’s philosophy.”

-Dr. K. L. Shrimali.

परन्तु यह एकांगी दृष्टिकोण जान पड़ते हैं। सही दृष्टिकोण अof philosophy. पारस्परिकता का है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि दर्शन विचारों की अभिव्यक्ति है और शिक्षा अभिव्यक्ति की क्रिया है और दोनों अनिवार्य हैं। शिक्षा अनुभव-ज्ञान देती है और ज्ञान के अन्तिम रूप को दर्शन की संज्ञा दी जाती है: ‘शिक्षा-अनुभव-ज्ञान-दर्शन’ यह क्रम होता है। दूसरी ओर दर्शन-ज्ञान- अनुभव-शिक्षा का क्रम होता है। अतएव दर्शन और शिक्षा सही-सही रूप में एक सिक्के के दो पहलू हैं। (Philosophy and Education are the two sides a coin) | एक को दूसरे से अलग रखना भूल है। अतः दोनों का साथ-साथ अध्ययन करना जरूरी है।

दर्शन लोगों को एक विचार-दृष्टि देता है। उदाहरण के लिए हमें जीवन में केवल रोटी कमाना है या और भी कुछ करना है? सारे जीवन में धन कमाते-कमाते जब आदमी कार्य-निवृत्त होता है तो ईश्वर भजन की ओर बढ़ता है। उस समय उसकी दृष्टि एक आध्यात्मिक ज्ञान अनुभव की ओर लगती है। एक दूसरा उदाहरण समाज सेवा और मानव-सेवा का है। स्वामी विवेकानन्द तथा स्वामी दयानन्द ने समाज को ऊँचा उठाने में अपना जीवन दे दिया। यहाँ भी तो उनकी विचार-दृष्टि या दूसरे शब्दों में उनका दर्शन ही तो है जिससे कि वे अपने मार्ग पर चल कर आखिरी मंजिल तक पहुँचे। यही सत्य शिक्षा के क्षेत्र में भी पाया जाता है। शिक्षा जीवन से संबंधित होती है, जीवन के समस्त अनुभव ज्ञान प्रदान करती है और मानव को पूर्णता की अनुभूति कराती है, समाज-सेवी, राष्ट्र-सेवी, मानव-सेवी बनाती है, आर्थिक, राजनीतिक, नैतिक, धार्मिक विकास एवं प्रगति में सहायता देती है। जिस क्षेत्र में मनुष्य क्रिया और प्रयत्न करता है वैसा ही दृष्टिकोण उसको बनाना पड़ता है। आर्थिक विकास के लिए आर्थिक दृष्टिकोण धार्मिक विकास के लिए धार्मिक क्या दृष्टिकोण होता है। ऐसा दृष्टिकोण चिन्तन-मन के फलस्वरूप बनता है। अब स्पष्ट है कि दशन मनुष्य को एक दृष्टिकोण प्रदान करता है और शिक्षा उस दृष्टिकोण के अनुकूल विकास करने और आगे बढ़ने के लिए प्रयत्नशील बनाती है, अथवा वे कहां कि व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में अपने दर्शन एवं दृष्टिकोण का व्यवहारिक रूप  प्रदान करता है प्रयोग करता है। इसलिए प्रो० फिश्टे ने बताया है, कि दर्शन के बिना शिक्षा की कला अतः पूर्णता को प्राप्त नहीं हो सकती है। ऐसी स्थिति हरेक देश और हरेक राज्य में पाये जाते हैं।

हम अपने देश की शिक्षा के इतिहास को याद देखें तो हमें स्पष्ट हो जायेगा कि प्राचीन काल में आदर्शवादी दर्शन तथा दृष्टिकोण और आधुनिक काल में भौतिकवादी दर्शन तथा दृष्टिकोण शिक्षा, शिक्षक, शिक्षार्थी एवं विद्यालय को प्रभाकिये हैं। आज के भारत की शिक्षा का आधार भौतिकवादी है और इसके फलस्वरूप हम व्यवसाय, विज्ञान, तकनीकी ज्ञान, हस्तकौशल पर ध्यान रखते हैं जिससे हम समृद्धशोल बनें, कोई बेकार न रहे सबको, खाना-पीना मिले, सब आराम से रहें। शिक्षा का पाठयक्रम इनसे सम्बन्धित विषयों शामिल करता है। अमरीकी सम्पर्क से आज हमारी शिक्षा का आधार प्रयोजनवादी भी कहा जाता है। अंग्रेजों के सम्पर्क ने देश में एक ऐसे आदर्शवाद- यथार्थवाद को शिक्षा में रखा जिससे कि हम एक ओर तो सैद्धान्तिक ज्ञान की ओर झुके और दूसरी ओर हममें सेवा-वृत्ति का भाव (Service mentality) बढ़ा जो आज तक हममें पाया जाता है और इसीलिए बी० ए०, एम० ए० पास करके हम नौकरी की तलाश करते हैं। समाज में काम का अभाव है यद्यपि हमने शिक्षा का व्यवसायीकरण किया है। कार्य-निहित शिक्षा (Job oriented Education) के लिए हम मांग करते है लेकिन काम करना कोई नहीं चाहता है। ऐसा दृष्टिकोण बन गया है। यह एक अद्भुत दर्शन है जिसे धारण करने का श्रेय हम लोगों को है। अतएव हमें शिक्षा के लिए निश्चित दृष्टिकोण एवं  दर्शन की आवश्यकता है।

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Pankaja Singh

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