छँटनी व्यूहरना | छँटनी से सम्बन्धित प्रावधान | छँटनी व्यूह रचना के प्रकार | पुनर्जीवन व्यूहरचना से आशय है

छँटनी व्यूहरना | छँटनी से सम्बन्धित प्रावधान | छँटनी व्यूह रचना के प्रकार | पुनर्जीवन व्यूहरचना से आशय है | Retrenchment Strategies in Hindi | Provisions related to retrenchment in Hindi | Sorting Array Types in Hindi | resuscitation strategy means in Hindi

छँटनी व्यूहरना (Retrenchment Strategies / Defensive Strategies )

प्रबन्धक के लिए यह अन्तिम व्यूहरचना होती है। एक कम्पनी या फर्म छँटनी व्यूहरचना का प्रयोग उन परिस्थितियों में करता है जब उस कम्पनी / फर्म की प्रतियोगितात्मक क्षमता कम हो जाती है। उदाहरण के लिए बिक्री में कमी होना, लाभार्जन शक्ति में गिरावट का होना, उत्पादन में खराब प्रदर्शन के कारण आदि। छंटनी के अन्तर्गत सेवायोजक द्वारा श्रमिक की सेवाएं समाप्त करने से है। औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1997 की धारा 2(000) के अनुसार “छँटनी से आशय अनुशासन सम्बन्धी दण्ड के अतिरिक्त किसी श्रमिक की नियोक्ता द्वारा सेवा समाप्त करने से है। छंटनी के प्रमुखकारण निम्नलिखित सेवा समाप्त करने से है। छँटनी के प्रमुख कारण निम्नलिखित है:

(i) आवश्यकता से अधिक कर्मचारियों का होना

(ii) कच्चे माल की कमी

(iii) यन्त्रों का आधुनिकीकरण

(iv) किसी विशिष्ट इकाई का बन्द हो जाना

(v) ले आफ

(vi) निरन्तर हानि

(vii) शक्ति के साधनों का अभाव

छँटनी से सम्बन्धित प्रावधान-

अधिनियम की धारा 25 (F) के अनुसार, किसी भी श्रमिक को जो किसी भी उद्योग में या किसी सेवायोजक के अधीन कम से कम 1 वर्ष तक लगातार कार्य करता रहा हो, छँटनी निम्न शर्तों के अधीन की जा सकती है।

(1) श्रमिक को एक माह की लिखित सूचना दी जाये अथवा नोटिस काल के लिए मजदूरी का भुगतान अग्रिम कर दिया जाय।

(2) कर्मचारी को पूर्ण वर्ष की सेवाओं के लिए प्रति पूर्णवर्ष 15 दिन का क्षतिपूर्ति वेतन दे दिया जाये।

(3) श्रमिक को नोटिस देने अथवा भुगतान करने की सूचना 3 दिन के अन्दर सरकार को भेज दी जाये।

(4) जिस श्रमिक ने एक पूर्ण वर्ष में 240 दिन तक कार्य कर लिया है, उसे एक वर्ष से सेवा में माना जायेगा।

छँटनी की कार्यविधि (Method of Retrenchment)- अधिनियम की धारा 25G के अनुसार, “यदि छंटनी के सम्बन्ध में श्रमिकों व सेवा योजकों के बीच कोई समझौता न हुआ हो तो सेवा योजक सबसे बाद में आने वाले व्यक्ति की छँटनी सबसे पहले करेगा। यदि सेवा योजक किसी दूसरे श्रमिक की छँटनी करता है तो उसे इसके लिखित कारण देने होगें।”

छँटनी किये गये श्रमिकों की पुनर्नियुक्ति- अधिनियम की धारा 25H के अनुसार छँटनी के उपरान्त जब कभी रिक्त स्थान घोषित किये जायंगे तो सेवायोजक छँटनी किये गये श्रमिकों को पुनः विनियोजित करने में प्राथमिकता प्रदान करेंगे।

छँटनी व्यूह रचना के प्रकार

(Types of Retrenchment Strategy)

छँटनी व्यूह रचना के प्रकार निम्नलिखित हैं।

(i) Turn around

(ii) Divestment

(iii) Bankruptcy

(iv) Liquidation

(i) पुनर्जीवन Turnaround- एक फर्म / कम्पनी तब बीमार (sick) कही जाती है जब उसे नकदी (cash) की बहुत अधिक समस्या हो जाती है अथवा संचालन लाभ में लगातार नकारात्मक झुकाव होता है। इस प्रकार की फर्मों दिवालिया हो जाती हैं यदि उनकी वित्तीय स्थिति को बदलने के लिए आन्तरिक एवं बाह्य परिस्थतियों में बदलाव नहीं किया जाता है। फर्म के पुन जीवन की इस प्रक्रिया को (Turnaround) व्यूह रचना कहते हैं।

(ii) अधिकार-हरण व्यूहरचना (Divistant Strategy)- छँटनी की प्रक्रिया का हक एक अन्य प्रकार है। इसके अन्तर्गत फर्म/कम्पनी अपने किसी विस्तृत व्यवसाय के एक भाग या या एक से अधिक भाग को बेच देती है जिससे प्राप्त नकदी से वह अपनी वित्तीय स्थिति को सुदृढ़ बनाती है। Divestment, विनियोग (investment) का विपरीतार्थक है। यह पद्धति ऋण की अदायगी करने, कम लाभदायक व्यावसायिक इकाई को बन्द करने, तथा अपने संसाधनों का अधिक लाभदायक प्रयोग करने हेतु किया जाता है। यह पद्धति (Turnaround) प्रक्रिया के असफल होने पर अपनायी जाती है। निम्नलिखित परिस्थितियों में यह पद्धति आवश्यक रूप से अपनायी जाती है:

(i) किसी एक डिवीजन (division) से लगातार नकदी प्रवाह नकारात्मक है।

(ii) फर्म / कम्पनी प्रतियोगिता का सामना करने में सक्षम है।

(iii) बृहत मात्रा में विभागीय हानि

(iv) विभागीय सामान्जस्य में कमी

(v) फर्म/कम्पनी का बाजार में कम भाग (Less share)

(vi) कानूनी दबाव (Legal Pressures)

उदाहरण- अधिकार हरण व्यूहरचना का सर्वोत्तम उदाहरण (Tata Communication) है। टाटा कम्यूनीकेशन ने अपने कर्ज दबाव को कम करने के लिए डाटा सेन्टर व्यवसाय को बेचना आरम्भ कर दिया है।

(iii) दिवालीयापन (Bankrupted)- यह एक प्रकार का सुरक्षात्मक दिवालियापन है। का सुरक्षात्क व्च्यूहरचना है। इसके अन्तर्गत संगठन फर्म को कानूनी संरक्षा प्राप्त हो रही। यदि फर्म या कम्पनी अपने ऋणों को चुकाने में असमर्थ रहती है। कोर्ट कम्पनी के ऋणों के क्लेम को निश्चित करती तथा निगम की शर्तों को पूरा करता है।

(iv) कम्पनी का समापन (Liquid ion of Company)- कम्पनी विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है। अतः इसका अन्त भी केवल विधान के अन्तर्गत दी हुई विधियों द्वारा ही हो सकता है। ‘समापन’ का आशय एक ऐसी कार्यवाही से है, जिसके द्वारा कम्पनी का व्यापार वन्द करा दिया जाता है, कम्पनी की सम्पत्तियाँ बेच दी जाती है तथा अन्य प्रकार से एकत्र हुए धन को लेनदारों का भुगतान करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यदि कम्पनी के पास विभिन्न प्रकार के भुगतान के बाद भी कुछ रकम शेष बच जाती है तो उसे अंशधारियों में अन्तर्नियमों के अनुसार बांट दिया जाता है। अर्थात कम्पनी के समापन का आशय उसके वैधानिक अस्तित्व को समाप्त कर देने से है।

Turnaround व्यूहरचना से आशय है

Turnaround strategy एक फर्म तब बीमार (sick) कही जाती है जब उसे नकदी (cash) की बहुत अधिक समस्या हो जाती है अथवा संचालन लाभ में लगातार नकारात्मक झुकाव होता है। इस प्रकार की फर्मे दिवालिया हो जाती हैं यदि उनकी वित्तीय स्थिति को बदलने के लिए आन्तरिक एवं बाह्य परिस्थितियों में बदलाव नहीं किया जाता है। पुनर्जीवन की इस प्रक्रिया को (Turnaround) व्यूहरचना कहते हैं। एक सफल (Turnaround) व्यूहरचना की तीन सफल चरण (phases) होते हैं:

(1) प्रथम चरण- चरण के अन्तर्गत फर्म की समस्याओं कठिनाइयों एवं चुनौतियों का विश्लेषण करना पड़ता है। फर्म या निगम के अलाभकारी होने के संकेत का लेखकों एवं शोधकर्ताओं द्वारा पता लगाया जाता है।

(2) द्वितीय चरण- इस चरण के अन्तर्गत फर्म के आलभकारी होने या बीमार होने के कारणों का पता लगाया जाता है तथा उसे पुनः लाभकारी बनाने का पूर्ण प्रयास किया जाता है। यह प्रक्रिया अल्पकाल एवं दीर्घकाल दोनों परिस्थितियां में अपनाया जाता है।

(3) तृतीय चरण- इस चरण के अन्तर्गत बदली (change) प्रक्रिया को अपनाकर फर्म पर नियन्त्रण स्थापित किया जाता है एवं उसका पर्यवेक्षण करके फर्म को लाभकारी बनाया जाता है।

Turn around कब आवश्यक हो जाता है? (When Turnaround/be comes necessary)

एक फर्म या कम्पनी धीरे-धीरे बीमार (sick) होती है। वह इस तथ्य को जान भी नहीं पाती है। अतः समय से निदान नहीं कर पाती है। यह आलभकारिता (sickness) विभिन्न कम्पनियों के लिए भिन्न-भिन्न होती है। फिर भी जॉन एम. हरीश (J.M. Harish) ने (Turnaround) बीमारी के निम्नलिखित कारणों का वर्णन किया है:

  1. कम्पनी के बाजार भाग में कमी- (Decreasing market share) कम्पनी के बीमार (sick) होने का एक महत्वपूर्ण लक्षण है। एक कंपनी यदि बाजार में अपने अंशों को कम मूल्य पर बेचती है तो उसका बाजार भाग कम हो जाता है। दूसरी ओर यदि कम्पनी अपने अंशों के मूल्य को नियन्त्रित करने में सक्षम हो जाती है तो उसके बाजार भाग में एवं प्रतियोगी फर्मों के बीच में अच्छी साख बन जाती है। यदि कम्पनी के बाजार भाग में कमी होती है तो फर्म/कम्पनी को सुधारात्मक कार्यवाही करनी चाहिए।
  2. विक्रय राशि में लगातार गिरावट (Decreasing constant rupee shales) – कम्पनी के विक्रय को मुद्रा प्रसार के साथ समाहित (Adjust) करना चाहिए। कम्पनी में विक्रय वृद्धि का काफी महत्वपूर्ण स्थान रहता है। यदि कम्पनी के विक्रय में लगातार कमी हो रही है तो एक खतरनाक संकेत माना जाता है। अतः विक्रय राशि में वृद्धि अपरिहार्य है।
  3. लाभ-दायकता में कमी (Decreasing Profitability)- फर्म के लाभ फर्म के स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। लाभदायकता अनुपात की उचित गणना की जानी चाहिए। जिससे कि कम्पनी के क्रियाओं पर बुरा प्रभाव न पड़े।
  4. ऋण पर अत्यधिक निर्भरता (Inversing dependence on debt)- यदि कम्पनी की पूंजी में ऋण का अनुपात अधिक है तो उसके पास बैंक से पूंजी प्राप्त करने का विकल्प नहीं रहता है। बैंक, वित्तीय संस्थाएं, फर्म की (Lower Ratin) होने पर क्रेडिट सुविधा नहीं दी जायेगी। जब बैंक द्वारा वित्तीय सुविधा नहीं दी जाती है तब फर्म क्रेडिट रेट में कमी हो जाती है और बैक नकदी की सुविधा नहीं प्रदान की जाती है।
  5. लाभांश पर रूकावट नीति (Restricted dividend policy)- कम्पनी द्वारा अपने अंशधारियों को लाभांश न देना भी कम्पनी के विकास पर गलत प्रभाव डालती है। प्रायः इन स्थितियों में कम्पनी पूर्व में अधिक लाभांश का भुगतान कर चुकी होती है। परन्तु वर्तमान में लाभांश भुगतान की असमर्थता कम्पनी के स्वास्थ पर बुरा प्रभाव डालती है।
  6. योजना में कमी (Lack of Planning) – विभिन्न कम्पनियों में जहाँ योजना की अवधारणा में कमी होती है उसकी क्रियाओं एवं परिणामों में सफलता नहीं मिल पाती है। साधारणतया ये कम्पनियां व्यक्तिगत उद्योगपतियों द्वारा स्थापित की गयी होती हैं।
  7. व्यवसाय में अधिक विनियोग की कमी (Lack to reinvest sufficiently) – ऐसी कम्पनियां जहां कि तेज विकास प्रतियोगिता आदि का लक्ष्य अपनाये हैं वहाँ पर मशीनरी प्लान्ट, रखरखाव आदि पर अत्यधिक विनियोग आवश्यक हो जाता है। ऐसी परिस्थितियों में नये विनियोग एवं पुनविर्नियोग हेतु ऋण अपरिहार्य हो जाता है। कम्पनियाँ जो अपने स्वयं के कोष (fund) का विनियोग करती हैं उनके विकास पर अवरोध लग जाता है।
व्यूहरचनात्मक प्रबंधन – महत्वपूर्ण लिंक

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