अर्थशास्त्र

भारतीय वित्त आयोग एवं वित्तीय हस्तांतरण | दसवें वित्त आयोग की सिफारिश

भारतीय वित्त आयोग एवं वित्तीय हस्तांतरण | दसवें वित्त आयोग की सिफारिश

भारतीय वित्त आयोग एवं वित्तीय हस्तांतरण  

भारतीय संविधान की धारा 280 में वित्त आयोग के गठन की व्यवस्था है। इसके अनुसार राष्ट्रपति प्रत्येक पांच वर्ष के बाद या यदि आवश्यक हो तो इसके पूर्व वित्त आयोग का गठन करेंगे। 280 (3) के अन्तर्गत वित्त आयोग निम्नांकित बातों के सम्बन्ध में राष्ट्रपति को अपनी संस्तुति देगा।

(क) संविधान के अन्तर्गत केन्द्र तथा राज्यों के बीच वितरित किए जाने वाले या वितरित किए जा सकने वाले करों के निबल प्राप्ति के बंटवारे के सम्बन्ध में संस्तुति करना।

(ख) भारतीय संचित निधि (Consolidated Fund of India) में से राज्यों को दिए जाने वाली सहायता अनुदान के सिद्धान्त को तय करना।

(ग) सुदृढ़ वित्त के हित में अन्य विषय जिस पर राष्ट्रपति वित्त आयोग की संस्तुति प्राप्त करना चाहे, संस्तुति देना।

वित्त आयोग की नियुक्ति की शर्त में 280 (3) ग की व्यवस्था के कारण कुछ लचीलापन आ जाता है जिसके अनुसार उपर्युक्त शर्तों के अतिरिक्त कोई अन्य कार्य भी सुझाव के लिए वित्त आयोग को सौंपा जा सकता है। अब तक तेरह वित्त आयोगों की रिपोर्ट सरकार द्वारा स्वीकार की जा चुकी है। प्रथम वित्त आयोग की रिपोर्ट नवम्बर 1951 में आयी। सूचनार्थ 1951 से लेकर अब तक विभिन्न वित्त आयोगों के कार्यकाल तथा उनके अध्यक्षों का विवरण नीचे सारिणी में दिया गया है।

दसवें वित्त आयोग की रिपोर्ट में 1995 से 2000 के बीच केन्द्र तथा राज्यों के बीच संसाधनों के बंटवारे के सम्बन्ध में सुझाव दिए गये हैं। दसवें वित्त आयोग ने पांच वर्ष की अवधि के लिए 206344 करोड़ रूपये के कर आबंटन की सिफारिश की है जबकि नये वित्त आयोग ने मात्र 87882 करोड़ रूपये के ही आबंटन की सिफारिश की थी।

सारिणी

दसवाँ वित्त आयोग तथा राजस्व प्राप्ति के बंटवारे की वैकल्पिक योजना

(Alternative Scheme of Devolution)-

अपनी वैकल्पिक योजना में वित्त आयोग ने यह प्रस्ता रखा कि केन्द्र के कुल राजस्व का 29 प्रतिशत भाग यथोचित संवैधानिक संशोधन के द्वारा राज्यों को हिस्सा के रूप में दिया जाना चाहिए तथा इस अनुपात का पुनरावलोकन प्रत्येक 15 वर्ष पर होना चाहिए। आयोग ने सुझाये गये 29 प्रतिशत का आधार इस प्रकार स्पष्ट किया।

(क) 1979-95 के बीच जो आयकर, उत्पाद शुल्क तथा रेल यात्री भाड़े कर के बदले अनुदान का भाग राज्यों को हस्तान्तरित किया गया, कुल केन्द्रीय राजस्व प्राप्ति का करीब 24 प्रतिशत था।

(ख) 268 तथा 269 संशोधन के परिणामस्वरूप कर वसूली-क्षमता की वृद्धि को ध्यान में रखते हुए इसे 2 प्रतिशत और बढ़ाया जाना तर्कसंगत होगा।

उल्लेखनीय है कि प्रथम आयोग की नियुक्ति नवम्बर 1951 में हुयी। तीसरे वित्त आयोग की रिपोर्ट 4 वर्ष (1962-66) चौथे वित्त आयोग की रिपोर्ट तीन वर्ष (1966-69) तथा नवें वित्त आयोग की रिपोर्ट 1989-90 तथा 1990-95 तक लागू रही।

(ग) 1979-95 के बीच अतिरिक्त उत्पादन शुल्क में राज्यों का हिस्सा केन्द्र की कुल राजस्व प्राप्ति का लगभग 3 प्रतिशत रहा। इस प्रकार इन तीनों के योग (24+2+3) 29 प्रतिशत तक केन्द्रीय राजस्व प्राप्ति का राज्यों को हस्तान्तरण बिल्कुल ही उचित होगा।

आयोग ने सिफारिश की वैकल्पिक योजना को, संविधान में समुचित संशोधन के द्वारा 1996-97 से क्रियान्वित किया जाना चाहिए। पर संविधान में किस प्रकार का परिवर्तन आवश्यक होगा तथा भविष्य में वित्त आयोग की क्या भूमिका होगी, इसका उल्लेख रिपोर्ट में नहीं मिलता।

उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार ने वित्त आयोग की वैकल्पिक योजना को 17 जुलाई 1997 को अन्तर्राष्ट्रीय कौंसिल की मीटिंग में इसे इस संशोधन के साथ स्वीकार कर लिया कि 29% बँटवारें की व्यवस्था 15 वर्षों के लिए बिना परिवर्तित हुये लागू नहीं होगी जैसे-दसवें आयोग ने सुझाव दिया, बल्कि इस पर प्रत्येक वित्त आयोग द्वारा विचार होगा। इस सम्बन्ध में होने वाले संविधान सम्बन्धी संशोधन की बात को भी राज्यों ने मन्जूरी दे दी।

(ii) कर ढांचे में सुधार सम्बन्धी केन्द्र सरकार जो भी सुधार करती है उसके परिणामस्वरूप आयकर तथा केन्द्रीय उत्पादन शुल्क में कमी आती है, जिसके परिणामस्वरूप राज्यों को प्राप्त हिस्से में कमी आती है।

(iii) आयोग ने यह तर्क रखा कि वैकल्पिक योजना के लागू होने के बाद ऐसे करों की उत्प्लावकता (Buoyancy) के परिणामस्वरूप राज्य लाभान्वित होंगें जो अब तक विभाजन योग्य नहीं थे जैसे निगम कर।

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Pankaja Singh

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