भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की देन | भारतीय संस्कृति पर बौद्ध धर्म का प्रभाव | भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान

भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की देन | भारतीय संस्कृति पर बौद्ध धर्म का प्रभाव | भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान

भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की देन

बौद्ध धर्म का जन्म हुए, आज लगभग ढाई हजार वर्ष बीत चुके हैं तथापि भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता के अनेक अंगों पर इस धर्म की अमिट छाप है। कहते हैं कि वक्त सब कुछ मिटा देता है परन्तु भारतीय संस्कृति पर बौद्ध धर्म के प्रभाव पर वक्त भी कोई असर नहीं डाल सका है। प्रश्न उठता है कि इस बौद्ध धर्म की अद्भुत उपलब्धि के क्या कारण हैं? अपने उत्पत्ति काल से लेकर आज तक की भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की देन तथा प्रभाव का वर्णन निम्नलिखित है:-

(1) ब्राह्मण धर्म पर प्रभाव-

बौद्ध धर्म ने भारत के प्राचीनतम धर्म-यथा ब्राह्मण धर्म का आँखें खोल दीं। जिस समय वैदिक धर्म अपनी जटिलताओं तथा अनेकानेक अव्यावहारिकता के कारण समयानुकूलन नहीं कर पा रहा था उसी समय तथागत ने सरल, स्पष्ट तथा अतिव्यावहारिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन करके ब्राह्मण धर्म को अपना दृष्टिकोण बदलने के लिये विवश कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय संस्कृति में जो स्थिरता आ गई थी-वह पुनः क्रियाशील हो गई। यह भारतीय संस्कृति के लिये एक वरदान प्रमाणित हुआ।

(2) सरल, स्पष्ट तथा व्यावहारिक धर्म की स्थापना-

बौद्ध धर्म के सिद्धान्त तथा मान्यताएँ सरत, स्पष्ट तथा व्यावहारिक थीं। इससे पूर्व के धर्म में कतिपय जटिलताओं के कारण, जनसाधारण ने शीघ्र ही बौद्ध धर्म में घोर श्रद्धा व्यक्त करनी प्रारम्भ कर दी। ब्राह्मण व्यवस्थाकारों ने इस परिस्थिति को समझ कर अपनी वैचारिक तथा दार्शनिक पद्धतियों में जनसाधारण के हितों की ओर ध्यान दिया तथा उन अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया, जिनके आधार पर वे बौद्ध धर्म के बढ़ते हुए प्रभाव के समक्ष टिक सकें। इसका परिणाम यह हुआ कि लोगों का धर्म के प्रति दृष्टिकोण परिवर्तित हो गया। धर्म क्षेत्र में सरल, स्पष्ट, उदार तथा व्यावहारिकता के सिद्धान्तों को अपनाये जाने के कारण भारतीय संस्कृति ने अनेकानेक विशिष्टताएँ प्राप्त की।

(3) भारतीय दार्शनिक पद्धति पर प्रभाव-

भारतीय दार्शनिक पद्धति का मूल स्रोत वेद है। बौद्ध धर्म की उत्पत्ति होने तक भारतीय दर्शन पद्धति का कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं था। बौद्ध धर्म के विस्तार ने वैदिक दर्शन पद्धति में हलचल पैदा कर दी। परिणाम स्वरूप वैदिक दर्शन ने पुनः उन नवीन दर्शन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जिनके आधार पर वे बौद्ध मान्यताओं के समक्ष अपना अस्तित्व स्थिर रख पायें। इस प्रतियोगिता के कारण अनेक दार्शनिक मतों का जन्म हुआ। सांख्य दर्शन, अनीश्वरवादी मान्यता आदि विचार, बौद्ध दर्शन की ही देन हैं। बौद्ध दार्शनिक सिद्धान्तों की उत्पत्ति होने पर अनेक अन्य दार्शनिक सम्प्रदायों की भी उत्पत्ति हुई। इनमें समुत्यवाद, शून्यवाद, योगाचार, सर्वास्तवाद, सौत्रान्तिक तथा प्रतीत्य दार्शनिक सम्प्रदाय प्रमुख हैं।

(4) मूर्ति पूजा पद्धति का नवीन रूप-

कतिपय विद्वानों का विश्वास है कि भारत में मूर्ति पूजा का जन्म बौद्ध धर्म द्वारा हुआ था। परन्तु हम इस मत से सहमत नहीं हैं। मूर्ति पूजा का प्रचलन बौद्ध धर्म के उदय से पहले ही हो चुका था। सिन्धु घाटी से मूर्ति पूजा के अनेक प्रमाण मिलते हैं। बौद्ध धर्म ने मूर्ति पूजा को नवीन रूप दिया। महायान सम्प्रदाय ने तथागत को ईश्वर का अवतार मान कर उनकी मूर्तियों की विधिवत् उपासना प्रारम्भ की। इससे प्रभावित हो कर हिन्दू धर्मानुयायियों ने राम तथा कृष्ण को अवतार मान कर, उनकी मूर्तियों की उपासना प्रारम्भ कर दी। जब मूर्ति पूजा की यह नवीन पद्धति प्रारम्भ हुई तो कालान्तर में अनेकानेक मन्दिरों, मठों, विहारों आदि का निर्माण हुआ।

(5) धर्म प्रचार की नई पद्धति तथा शैली का विकास-

महात्मा बुद्ध ने धर्म प्रचार की नई शैली को जन्म दिया। उपदेश तथा प्रश्नोत्तर द्वारा जनसाधारण के मन-मस्तिष्क को प्रभावित करने के साथ-साथ, धर्म प्रचार के लिये विभिन्न नियम आदि भी बनाये गये। इससे पूर्व धर्म प्रचार की शैली पारस्परिक वाद-विवाद द्वारा विरोधी को परास्त कर देना मात्र थी। बौद्ध धर्म की नवीन शैली को ब्राह्मण धर्म के प्रचारकों ने भी अपनाया।

(6) धार्मिक संघों की स्थापना-

वैदिक काल में सन्यासी, परिव्राजक आदि एकान्तवास के लिये वनों, पर्वत कन्दराओं आदि में निवास करते थे। तब धर्म प्रचार तथा चिन्तन के लिये संगठन की व्यवस्था का जन्म नहीं हुआ था। बौद्ध धर्म को इस बात का श्रेय प्राप्त है कि उसने धार्मिक संगठन के लिये संघों की स्थापना की। कालान्तर में बौद्ध संघों की प्रणाली को लगभग सभी भारतीय धर्मा ने अपना लिया।

(7) धार्मिक अनुशासन-

बौद्ध धर्म ने अनुशासन पर विशेष बल दिया। श्री यदुनाथ सरकार ने धार्मिक अनुशासन का वर्णन करते हुए लिखा है-“बौद्ध धर्म की विशेषता यह थी कि उसके भिक्षु संघों के संगठनों में पूर्ण अनुशासन धा।” अनुशासन द्वारा बौद्ध धर्म ने जनसाधारण को भी अनुशासित होने का उपदेश दिया। यह बौद्ध धर्म की अति महान देन थी।

(8) एकता की स्थापना-

बौद्ध धर्म में एकता का अनुपम उदाहरण मिलता है। बौद्ध धर्म द्वारा प्रतिपादित एकता केवल धार्मिक जीवन से ही सम्बन्धित नहीं थी अपितु इसने जनसाधारण के सांस्कृतिक जीवन को भी एकता से युक्त कर दिया। देश की जातिगत, सामाजिक तथा राजनैतिक अनेकता को समाप्त करके भारतीय राष्ट्रीयता का अखण्ड दीप जलाने का श्रेय बौद्ध धर्म को ही दिया जाना चाहिये।

(9) साहित्यिक देंन-

बौद्ध धर्म ने भारतीय साहित्य को नया जीवन प्रदान किया। अपनी साहित्यिक उपलब्धियों द्वारा, इस धर्म ने विद्या तथा ज्ञान का प्रसार किया। चन्द्रगोविल का व्याकरण ग्रन्थ तथा अमरसिंह द्वारा रचित ‘अमरकोष’ बौद्ध साहित्यिक क्षमता की ही देन है। बौद्ध साहित्य की जातक कथाएँ तो विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। पाली भाषा में त्रिपिटक ग्रन्थों की रचना करके बौद्ध साहित्यकारों ने भारतीय साहित्य को धनी बना दिया।

(10) लोक भाषाओं का विकास-

बौद्ध धर्म के शीघ्र प्रसार का श्रेय, तथागत द्वारा लोक भाषाओं को अपनाया जाना है। लोक भाषा के रूप में पाली का बड़ा विकास हुआ।

(11) बौद्धिक स्वतन्त्रता का प्रतिष्ठापन-

महात्मा बुद्ध ने बौद्धिक स्वतन्त्रता पर विशेष बल दिया। वे कहा करते थे कि “तुम स्वयं के लिये दीपक बनो।’ उनका विश्वास था कि बौद्धिक स्वतन्त्रता की प्राप्ति स्वयं के चिन्तन द्वारा होती है। उन्होंने अन्धानुकरण का विरोध करके व्यक्तिगत चिन्तन तथा चेतना के विकास को महत्व प्रदान किया।

(12) भारतीय कला को देन-

बौद्ध धर्म ने भारतीय कलाकार के मस्तिष्क को बहुत प्रभावित किया। तथागत के जीवन के प्रसंगों का चित्रण करने में भारतीय कलाकारों ने अपनी कला के सजीव, सुन्दर, विशाल गुणों का परिचय दिया। साँची तथा भरहुत के स्तूप, गान्धार तथा मथुरा कलाकेन्द्र, अजन्ता तथा बाघ की चित्रकला आदि बौद्ध धर्म की ही देन हैं। कोहन महोदय के अनुसार, “यह स्पष्ट है कि बौद्ध कला हम सब के लिये एक गम्भीर अनुभव है। सभी क्षेत्रों में, यथा- स्थापत्य, चित्रकला, वास्तुकला तथा शिल्प में-बौद्ध धर्म ने ऐसी कलाकृतियों का निर्माण किया है जिनकी तुलना पाश्चात्य कला की श्रेष्ठतम कृतियों से की जा सकती है।”

(13) भारतीय संस्कृति का विदेशों में प्रसार-

बौद्ध धर्म ने भारतीय संस्कृति का विदेशों में प्रसार किया। इस विषय में श्री यदुनाथ सरकार ने लिखा है- “बौद्ध धर्म ने भारत तथा विदेशों के मध्य निकट सम्बन्ध स्थापित किये। यह देश का विश्वव्यापी आन्दोलन था तथा इसमें जाति एवं देश के बन्धनों को कोई स्थान प्राप्त नहीं था। सभी प्राचीन पूर्वी देशों ने इसे स्वतन्त्रतापूर्वक अपना लिया। ……..इस धर्म को मानने वाले विदेशी-भारत को पवित्र तीर्थ तथा अपने धर्म का मूल स्रोत मानने लगे और परिवार सहित भारत की यात्रा को तीर्थ यात्रा समझने लगे। बौद्ध धर्म द्वारा वैदेशिक सम्बन्धों की स्थापना का परिणाम यह हुआ कि भारतीय संस्कृति का रूप बृहद हो गया।

(14) सामाजिक समानता की स्थापना-

बौद्ध धर्म में सामाजिक समानता को सर्वोपरि महत्त्व प्राप्त था। तथागत ने अपने अनेक उपदेशों में वर्णव्यवस्था तथा जातिगत वैषम्यता को अनुचित तथा अप्राकृतिक बताया। बौद्ध धर्म के द्वार सभी के लिये खुले हुए थे। अपनी इस विशिष्टता के कारण बौद्ध धर्म ने भारतीय संस्कृति में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया।

निष्कर्ष

बौद्ध धर्म का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव तथा उसके योगदान के उपरोक्त विवरण द्वारा हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि भारतीय संस्कृति बौद्ध धर्म की बहुत आभारी है। यद्यपि अनेक कारणों से बौद्ध धर्म भारत की अपेक्षा विदेशों में अधिक प्रभावशाली हो गया तथापि भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति पर इस धर्म की अमिट छाप है। भारतीय धर्म, दर्शन, कला, साहित्य, जीवन प्रणाली तथा सोचने के ढंग पर आज भी इस धर्म का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। हमारी वैदेशिक नीति, शान्तिप्रियता तथा सद्भावना का आधार बौद्ध धर्म ही है।

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