शिक्षाशास्त्र

भारतीय भौतिकवाद और प्रकृतिवाद | भारतीय भौतिकवाद की प्रमुख विशेषताएँ | चार्वाक का अर्थ

भारतीय भौतिकवाद और प्रकृतिवाद | भारतीय भौतिकवाद की प्रमुख विशेषताएँ | चार्वाक का अर्थ

भारतीय भौतिकवाद और प्रकृतिवाद

भारतीय भौतिकवाद की प्रमुख विशेषताएँ-

भौतिकवाद भौतिक चीजों के अस्तित्व, उनकी उपयोगिता और उनसे प्राप्त होने वाले मानवीय सुख में विश्वास रखता है। भारतीय जीवन में भौतिकवाद का पर्याप्त प्रयोग किया जाता रहा है। ऐश्वर्य, धन, सुख, विलासिता, भोग पर सभी भौतिकवाद के मानने वाले बल देते रहे हैं। राजसी ठाट- बाट और आरामदेह जिन्दगी धनवानों के भाग्य में मिली और वे भोगवादी, सुखवादी या भौतिकवादी कहलाये। आधुनिक युग में भी अपने देश में भौतिकवादी दृष्टिकोण अधिकतर पाया जाता है। भ्रष्टाचार, कालाबाजार, तकनीकी प्रगति और उत्पादन, औद्योगिक विकास, नशाखोरी, नये फैशन की चीजों का अधिक प्रयोग, सजावट के सामानों की वृद्धि आदि भौतिकता के प्रमाण हैं। अपने देश में ऊँची तनख्वाहें, बोनस की माँग, आराम की सुविधाओं के उपयोग के लिए अधिक छुट्टियों और कम काम, विकास योजनाओं के लिए धन का संग्रह, सम्पत्ति की वृद्धि आदि सभी भौतिकता के उदाहरण हैं और आज के भारतीय जीवन, विचार और कर्म में भौतिकवादी तत्व बहुतायत से मिलते हैं। ये तत्व ही भौतिकवाद की प्रमुख विशेषताएँ हैं |

भारतीय चिन्तन के क्षेत्र में भौतिकवाद और प्रकृतिवाद प्राचीन काल से ही पाया जाता था। शिक्षा के क्षेत्र में यह एक नई चीज है। आज भी लोग इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। अपने पाठ्यक्रम की यह नवीनता है।

भारतीय भौतिकवाद और प्रकृतिवाद का अर्थ-

भारत में वैदिककाल में भौतिक और प्राकृतिक तत्वों में विश्वास किया गया। वैदिक काल में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश जैसे तत्वों को स्वीकार किया गया। ये सभी तत्व प्रकृति के अंग हैं। इस दृष्टि से ये भौतिक और प्राकृतिक तत्व हैं। इन्हीं का चिन्तन, मनन, और इनमें विश्वास ही भौतिकवाद और प्रकृतिवाद के रूप में विकसित हुआ है। अतएव भौतिकवाद वह दर्शन है जो भौतिक पदार्थ का अस्तित्व अपने आप में स्वीकार करता है न कि ईश्वर की रचना के रूप में। भौतिक तत्वों से जीवन का भी निर्माण है। निर्जीव पदार्थ में भौतिक शक्ति आने से उसमें जीवन होता है। आत्मा के कारण जीवन नहीं होता है। आत्मा स्वयमेव एक भौतिक तत्व है जो प्राणधारी की शक्ति मात्र है। इस प्रकार भौतिकवाद पदार्थों के गुणात्मक अस्तित्व को परिणामात्मक (स्थूल) अस्तित्व में बदल देता है। भौतिकवाद के अनुसार सार जगत परमाणुओं की गतिशीलता एवं परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया के कारण बना है।

प्रकृतिवाद का अर्थ है प्राकृतिक तत्वों, उनकी स्वाभाविक न स्वतत्र क्रियाशीलता और कारण परिणाम के नियम से सम्बन्धित होना है। सभी वस्तुओं एवं प्राणियों में यान्त्रिक रूप से स्वतः विकास होता है। आत्मा में जो ठेठ भौतिकवाद था वही आधुनिक समय में प्रकृतिवाद हो गया है। इसके अनुसार पदार्थ, जीवन और मन विकास की भिन्न मंजिलें हैं न कि निरपेक्ष सत्ता की छाया है।

भारतीय भौतिकवाद या चार्वाक दर्शन-

भौतिकवाद भारत एवं पाश्चात्य दोनों जगह सुखवादी दृष्टिकोण रखता रहा है। संसार की चीजें मानव सुख के लिए बनी है इनका उपयोग किया जाना चाहिए ऐसा दृष्टिकोण भौतिकवाद ही है। भारत में ऐसे दृष्टिकोण को चार्वाक दर्शन का नाम दिया गया है। यह काफी पुराना दार्शनिक सम्प्रदाय है और आज भी पाया जाता है। आज के जनतन्त्र में भौतिकवाद या चार्वाकवादी सिद्धान्त को मान्यता मिली है क्योंकि सभी व्यक्ति सुख और आराम की तलाश में है। आज जीवन का यही एकमात्र लक्ष्य हो गया है-सुखवाद या सुखोपभोग ।

चार्वाक का अर्थ:

चार्वाक शब्द ‘चर्’ धातु, ‘चारु’ शब्द से बना हुआ बताया जाता है। चर् धातु से उत्पन्न होने के कारण चार्वाक का अर्थ है “लोक में प्रचलित वाक् या वाणी या कयन” अर्थात् साधारण लोगों या साधारण तौर पर लोगों का प्रचलित मत या विश्वास । चारु शब्द से उत्पन्न होने के कारण चार्वाक का अर्थ हुआ ‘सुन्दर या प्रिय वाणी तथा ऐसी वाणी वाला व्यक्ति और उसका मत ।’ इसे लोकमत या लोकार्यातक मत भी कहा गया है जिसका आधार है खाओ, पियो और मौज उड़ावो। इसमें संसार साधारणतया लिप्त पाया जाता है। अतएव चावकि का अर्थ सुखवादी भावना, दृष्टिकोण और जीवन में विश्वास रखना है और साथ ही साथ इन्हें धारण करने वाला व्यक्ति भी है।

जीवन और विश्व पर चार्वाक का विचार

जीवन और विश्व के प्रति चार्वाक का विचार अन्य दार्शनिकों के विचार से विपरीत पाया जाता है। इसमें कतिपय विशेषताएँ हैं जिन्हें यहाँ दिया जाता है-

(i) नास्तिक विचार- चार्वाक लोग ईश्वर, वेद आदि का अस्तित्व नहीं मानते हैं। इसलिए जीवन और विश्व में इनका कोई महत्व नहीं है। धर्म-अधर्म का कोई ख्याल नहीं है। यह विश्व जड़ से चैतन्य हो गया है, जड़ या भौतिकता ही मूल है।

(ii) संसार के निर्माण का विचार-चार्वाक लोग अग्नि, जल, वायु और पृथ्वी से ही संसार का निर्माण मानते हैं जैसे पान, सुपाड़ी, कत्या और चूना के संयोग से लालिमा आती है। यह संसार चैतन्यपूर्ण है।

(iii) जीवन में सुख ही सुख है-जीवन में जो कुछ प्राप्त है उसी में सुख-आनन्द लेना चाहिए। यदि दुःख आवे तो उससे डरना नहीं चाहिए। सुख का त्याग जीवन की मूर्खता है इससे जीवन दुःखी होगा। प्रत्येक स्थिति में सुख भोगना चाहिए चाहे ऋण ही क्यों न लेना पड़े।

(iv) जीवन के दो पुरुषार्थ: अर्थ और काम- चार्वाक लोग जीवन को सुखी बनाने के विचार से केवल अर्थ और काम को ही पुरुषार्थ या महत्वपूर्ण चीज मानते हैं। अर्थ से कामतृप्ति और कामतृप्ति से सुख मिलता है।

(v) इन्द्रियानुभव व्यवहार का आधार- चार्वाक लोग इन्द्रियानुभव से प्राप्त सुखों को व्यवहार का आधार मानते हैं। इसीलिए तो चार्वाक तोग नैतिकता या धर्म में विश्वास नहीं रखते और जीवन में इनको कोई महत्व नहीं देते हैं।

(vi) परलोक, पुनर्जन्म, स्वर्ग आदि मे विश्वास नहीं- चार्वाक इसी वर्तमान विश्व या लोक में विश्वास रखते हैं न कि परलोक या स्वर्ग तोक में। इसके साथ वे वर्तमान जीवन को ही मानते हैं, पुनर्जन्म में कोई विश्वास नहीं, तभी तो वे कहते हैं कि सभी सुखों का भोग कर लेना चाहिए क्योंकि मरने के बाद कोई तौटता नहीं है कि उसे फिर से भोग करने को मिलेगा।

(vii) जीवन व विश्व में घनिष्ठ सम्बन्ध होना- चार्वाक लोगों का विचार है कि जीवन धारण करना विश्व का नियम है। हम जीवन धारण करके ही विश्व की चीजों का सुख-आनन्द ले सकते हैं। विश्व का अस्तित्व हमारे सुख के लिए है, हम नहीं तो विश्व का कोई महत्व नहीं है। यह सही विचार है।

चार्वाक दर्शन का शैक्षिक निहितार्थ

चार्वाक लोगों का दृष्टिकोण केवल सुखवादी ही नहीं था बल्कि चार्वाक दर्शन एक संयत नैतिक दर्शन के रूप में पाया जाता है। इस विचार से चार्वाक शिक्षा दर्शन भी बन पाया है। यहाँ हम चार्वाक दर्शन का शैक्षिक निहितार्य समझाने का प्रयत्न करेंगे।

(i) चार्वाक दर्शन के अनुसार शिक्षा का तात्पर्य- चार्वाक दर्शन के आदि विद्वान- प्रणेता आचार्य बृहस्पति के अनुसार शिक्षा का तात्पर्य जीवन में प्राप्त होने वाले उस ज्ञान से है जो इन्द्रिय जन्य होता है। इन लोकायतों के अनुसार शिक्षा जगत सम्बन्धी विद्या है जिससे जीवन के समस्त कार्य एवं व्यवहार अच्छी तरह सम्पादित होते हैं। इसके साथ ही साथ चार्वाक दर्शन अपनाने वाले शिक्षा को जीवन या जीविका का साधन भी मानते रहे हैं। आज यह प्रवृत्ति अपने देश में भी पाई जाती है कि लोग पढ़-लिखकर धन कमावें और सुखी जीवन बितावें।

(ii) चार्वाक दर्शन के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य- चार्वाक दर्शन में जो स्पष्ट उक्तियाँ मिलती हैं उनमें हमें शिक्षा का उद्देश्य ज्ञात होता है जिन्हें हम नीचे दे रहे हैं-

(क) वर्तमान जीवन को सुखी बनाने का उद्देश्य

चार्वाक लोगों की उक्ति है कि जब तक रहो सुख से जियो-‘यावज्जीवेत्सुखं जीवेत्’ क्योंकि मरने के बाद पुनः जन्म नहीं लेना है।

(ख) लोक व्यवहार की योग्यता प्रदान करने का उद्देश्य

चार्वाक शिक्षा का दूसरा उद्देश्य है। ‘लौकिको मार्गो अनुसतव्य’ इसका तात्पर्य है कि मनुष्य प्रचलित दंग का या प्रचलित ढंग से व्यवहार करे। इससे शिक्षा सामाजिक व्यवहार कुशलता प्रदान करने का साधन होती है।

(ग) अर्थोपार्जन का उद्देश्य

आधुनिक प्रवृत्ति के विचार से “शिक्षा अर्थकारी” हो गई है और इस विचार से शिक्षा व्यावसायिक क्षमता प्रदान करती है तथा छात्रों को आजीविका अर्जन करने में समर्थ बनाती है जिससे जीवन में सुख मिलना सम्भव होता है।

(iii) चार्वाक दर्शन के अनुसार पाठ्यक्रम- चार्वाक दर्शन व्यावहारिक, अर्थकरी एवं सुखानन्द देने वाली शिक्षा पर बल देता है। ऐसी दशा में शिक्षा का पाठ्यक्रम भी तद्नुकूल होता है। इस विचार से भाषा, साहित्य, काव्य, संगीत, मनोरंजन, व्यापार, उद्योग वाणिज्य विषय, प्रकृति विज्ञान, शरीर विज्ञान, विभिन्न कौशल के विषय, कृषि, कामशास्त्र, चौसठ कताएँ, भ्रमण-निरीक्षण की क्रियाएँ, खेलकूद की क्रियाएँ, राजनीति, अर्थशास्त्र के विषय रखे गए हैं।

चार्वाक दर्शन के अनुसार पाठ्यक्रम व्यापक, लचीला और व्यक्तिगत व सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला तथा सुखानन्द प्रदान करने वाला बताया गया है।

(v) चार्वाक दर्शन के अनुसार शिक्षा-विधि- चार्वाक लोगों की उक्तियों के अनुसार हम शिक्षा की विधियों पर भी विचार कर सकते हैं। निम्न विधियों पाई जाती है-

(क) इन्द्रिय प्रत्यक्ष की विधि जिनका प्रयोग विज्ञानों के अध्ययन में होता है।

(ख) प्रयोगात्मक व व्यावहारिक विधि जिन्हें कृषि, तकनीकी विषय-विज्ञान आदि को अध्यापन के काम में लाते हैं।

(ग) भ्रमण, निरीक्षण व क्रिया-विधि जो चार्वाक दर्शन की उक्तियों में प्रकट मिलती है। आचार्य बृहस्पति के सूत्र इस दिशा में देखने योग्य हैं।

(iv) भाषण व तर्क-विधि- इनका प्रयोग परम्पराओं के विरोध में पाया जाता है। अपने मत की पुष्टि में भाषण एक आवश्यक साधन है।

निष्कर्ष

चार्वाक दर्शन के सम्बन्ध में आधुनिक शिक्षाविदों का ध्यान नहीं गया है। अतएव आज शिक्षाविदों को चार्वाक शिक्षा दर्शन के सम्बन्ध भी खोज करना आवश्यक है तभी इसके साथ उचित न्याय हो सकेगा और अच्छा ज्ञान प्राप्त हो सकेगा।

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Pankaja Singh

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