भारत में लोहे एवं इस्पात उद्योग की अवस्थिति | भारत में लोहे एवं इस्पात उद्योग का विकास
भारत में लोहे एवं इस्पात उद्योग की अवस्थिति
लोहा एवं इस्पात औद्योगिक मशीनरी, विद्युत मशीनरी, रक्षा उपकरणों, रेल लाइनों, रेल के इंजनों, डिब्बों, पुलों, बाँधों, जलपोतों, मोटरगाड़ियों तथा अनेक अन्य औद्योगिक तथा उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माण के लिए आवश्यक है। लोहा एवं इस्पात के पर्याप्त उत्पादन के बिना भारत जैसे कम विकसित देश के लिए अधिक तरक्की कर पाना सम्भव नहीं। स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले देश में लोहा और इस्पात का उत्पादन केवल तीन कंपनियाँ करती थीं- (1) जमशेदपुर में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लि. अथवा TISCO, (2) बर्नेपुर तथा कुल्टी में इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी अथवा TISCO तथा (3) भद्रावती में विश्वेशरैया आयरन एंड स्टील लिमिटेड अथवा VISL जिसे पहले मैसूर आयरन एंड स्टील लि. कहा जाता था। ये कंपनियाँ बहुत थोडी मात्रा में ही लोहे एवं इस्पात का उत्पादन करती थीं। 1947 में कच्चे लोहे का उत्पादन केवल 13.41 लाख टन तथा तैयार इस्पात का उत्पादन 9.17 लाख टन था।
स्वंत्रता के पश्चात इस्पात की भारी माँग थी। पंचवर्षीय योजनाओं में आरम्भ की गयी परियोजनाओं के लिए भारी मात्रा में इस्पात की आवश्यकता थी।
देश के औद्योगिक विकास में लोहे एवं इस्पात उद्योग के महत्व को समझे हुए न केवल पुराने लोहे एवं इस्पात कारखानों, जो स्वतन्त्रता से पूर्व स्थापित किये गये थे, जैसे-झारखण्ड में जमशेदपुर, पश्चिम बंगाल में वर्नपुर तथा कर्नाटक राज्य में भद्रावती की क्षमता को बढ़ाया गया, अपितु नये कारखानें भी स्थापित किये गये, जैसे कि पश्चिम बंगाल में दुर्गापुर, उड़ीसा में राउरकेला तथा छत्तीसगढ़ में भिलाई। ये नये कारखाने अन्य देशों के सहयोग से लगाये गये। दुर्गापुर, राउरकेला तथा भिलाई के लोहे एवं इस्पात के कारखाने 1955-59 के बीच लगाये गये। ये आधुनिक संपूर्ण इस्पात कारखाने हैं।
देश के सबसे बड़े कारखानों में एक झारखण्ड के बोकारों में स्थापित किया गया है। इसकी वार्षिक क्षमता 40 लाख टन इस्पात बनाने की है। पहले झोंक भट्टी 1972 में आरम्भ हुई। जब बोकारो इस्पात संयंत्र 1978 में चालू हुआ तो इसकी इस्पात सिल्लियों (Steel Ingots) की क्षमता 1.7 लाख टन थी।
तमिलनाडु में सलेम में भी एक संयन्त्र लगाया गया है जिसमें जंग रहित इस्पात की चादरों तथा कुडलियों का उत्पादन किया जायेगा।
दो अन्य इस्पात संयंत्र लगाये गये हैं, जो इस प्रकार है- (1) विशाखापट्टनम स्टील प्लांट 1992 में तथा (2) दैतार स्टील प्लांट। इन इस्पात संयंत्रों के अतिरिक्त कोठागुडम के निकट पार्लोचा में एक स्पंज लोहे संयंत्र भी लगाया गया है।
पुराने लोहा एवं इस्पात संयंत्रों की क्षमता बढ़ाने तथा नये संयन्त्रों केलगाने के बाद कच्चे लोहे तथा इस्पात के उत्पादन में 1947 के पश्चात् वृद्धि हुई है, किन्तु यह वृद्धि हमारे देश की लोहे एवं इस्पात की आवश्यकता को पूरी करने में असमर्थ है।
इस्पात के पिंडों को अलग-अलग आकार तथा प्रकार की वस्तुओं को तैयार करने के लिए इन्हें बेला जाता है। ये वस्तुएँ प्लेटें, चादरें, गर्डर, लठ्ठे इत्यादि हैं। इस्पात पिण्डों से बेलकर बनी विभिन्न वस्तुओं के रूप में इस्पात बिक्री योग्य इस्पात कहलाता है।
भारत में 1984-85 में कुल उत्पादित इस्पात के पिंडों की मात्रा 106.6 लाख टन थी। इसका 18.76 प्रतिशत भिलाई, 18.08 प्रतिशत बोकारो, 17.81 प्रतिशत टिस्को, 10.51 प्रतिशत राउरकेला, 7.14 प्रतिशत दुर्गापुर, 4.17 प्रतिशत इस्को तथा 21.8 प्रतिशत छोटे इस्पात संयन्त्री द्वारा उत्पादित किया गया है।
भद्रावती संयन्त्र को छोड़कर अन्य सभी लोहे एवं इस्पात के कारखाने प्रायद्वीपीय भारत के पठार के खनिज-संपन्न उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित हैं। इन लोहे एवं इस्पात कारखानों की स्थिति आदर्श है, क्योंकि इस उद्योग लिए आवश्यक कोयला, लौह-अयस्क, चूने का पत्थर, अग्निसह चीका मिट्टियाँ तथा मैंगनीज अयस्क इनके निकट ही मिलते हैं। जुलाई 1991 से पहले लोहे एवं इस्पात उद्योग को सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित किया हुआ था। किन्तु जुलाई, 1991 के पश्चात् औद्योगिक नीति में बड़े परिवर्तन किये गये। इस उंद्योग के लिए लाइसेंस करने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया। इससे व्यक्तिगत क्षेत्र को देश में लोहे एवं इस्पात के संयन्त्र लगाने के लिए प्रोत्साहन मिला। इनमें से कुछ संयन्त्र चालू हो चुके हैं तथा अन्य बनकर तैयार होने वाले हैं। पश्चिमी तटीय मैदान पर इस्पात का उत्पादन गुजरात में हजारी तथा महाराष्ट्र में डोलवी नामक स्थानों पर किया जाता है। आरम्भ में यहाँ पर गैस आधारित स्पंज लोहे का उत्पादन किया गया। स्पंह लोहे का निर्माण विद्युत आर्क भट्टियों में किया जाता है। कर्नाटक राज्यश्रके वेल्लारी-होसपेट क्षेत्र में भी इस्पात संयन्त्र स्थापित किये गये हैं। यह प्रदेश उच्च कोटि के लौह-अयस्क में संपन्न है। उड़ीसा की दैतारी-सुकिन्दा मेखला भी लौह-अयस्क की दृष्टि से धनी है तथा यहाँ लोहे एवं इस्पात उद्योग का एक बड़ा केन्द्र विकसित हो रहा है।
लघु इस्पात संयंत्र-उपर्युक्त दिये गये इस्पात उत्पादकों के अतिरिक्त विद्युत आर्क भट्टियाँ जिन्हें लघु इस्पात संयंत्र भी कहा जाता है, काफी मात्रा में इस्पात का उत्पादन करती है। 1989 में इस्पात संयंत्रों में 31.2 लाख टन बिक्री योग्य इस्पात का उत्पादन हुआ जिसमें मिश्र तथा विशेष इस्पात सम्मिलित थे। इस समय लगभग 206 छोटे तथा बड़े लघु इस्पात संयंत्र हैं। इनमें विशेष इस्पातों का निर्माण होता है। तथा ये मुख्यतः औद्योगिक नगरों में स्थित हैं। ये मुख्यतः रद्दी लोहे पर आधारित है। इनमें से कुछ स्पंज इस्पात पर भी आधारित हैं। ग्रेफाइट के इलेक्ट्रोड, जो अभी तक देश में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं थे, निकट भविष्य में प्रचुरता में उपलब्ध होंगे। रद्दी लोहे का निर्यात अब कम हो गया है तथा ग्रेफाइट के इलेक्ट्रोड देश में अधिक बनने लगे हैं। विद्युत शक्ति तथा रद्दी लोहे की कमी इन इकाइयों में इस्पात के उत्पादन पर बुरा प्रभाव डालती है। इन संयंत्रों का योगदान अब बहुत महत्वपूर्ण है।
लोहे एवं इस्पात उद्योग के विकास के आरम्भिक चरण में कच्चे लोहे तथा इस्पात का उत्पादन देश में इनकी बढ़ती हुई माँग पूरी नहीं कर पा रहा था। अत: इनके उत्पादन को बढ़ाने के लिए अनेक पग उठाये गये हैं। ऐसा लघु झोंका भट्टियों को कच्चे लोहे के उत्पादन के लिए तथा स्पंज लोहा संयंत्र इस्पात संयंत्रों के लिए स्पंह लोहे के लिए स्थापित करके किया गया।
ध्यातव्य है कि इस्पात संयंत्रों को नहरों, सागर इत्यादि द्वारा सस्ते परिवहन साधनों की सुविधाएं उपलब्ध नहीं है, क्योंकि इनकी स्थिति भारतयी पठार के आंतरिक भाग में हैं। आसानसोल तथा दुर्गापुर में स्थित इस्पात संयंत्र बंगाल के सघन जनसंख्या क्षेत्र में स्थित है।
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