भारत में कपास के उत्पादन एवं वितरण | भारत में कपास के उत्पादन की भौगोलिक दशाएँ
भारत में कपास के उत्पादन एवं वितरण
कपास का मूल स्थान भारत ही है क्योंकि ऋग्वेद तक में सूत के धागे का उल्लेख पाया जाता है। प्रागैतिहासिक काल में सूत के धागे से निर्मित यज्ञोपवीत ऋषि, और द्विज वर्ण के लोग पहनते थे। यूनानी यात्री हेरोडोटस ने अपनी यात्रा के विवरण में लिखा है कि भारत में एक ऐसा पौधा होता है जिसके फल से रेशे निकलते हैं जिनसे वस्त्र बुने जाते हैं। इन वस्त्रों का उपयोग भारतवासी करते हैं। इस लेख से यह भी प्रमाणित होता है कि भारत में प्राचीनकाल से ही कपास उत्पन्न की जाती रही है।
कपास के धागे से सूती कपड़ा, दरियाँ, सूती कालीन, आदि निर्मित किये जाते हैं। सिलाई के धागे भी इसी से बनते हैं। इसके अतिरिक्त कपास के बीज से प्राप्त बिनौलों से तेल निकाला जाता है। इसकी खली को जानवरों को खिलाया जाता है।
भारत में कपास के उत्पादन की भौगोलिक दशाएँ-
कपास मूल रूप से उष्ण कटिबंध का पौधा है तथापि इसकी कृषि शीतोष्ण कटिबंध के उष्ण भागों में भी की जाती है। इसकी वर्ष में कहीं-कहीं दो फसलें पैदा की जाती हैं। इसकी कृषि के लिए 20-30 सेग्रे तापमान की आवश्यकता होती है। इसके उगने का समय लंबा एवं गरम नम होना चाहिए। इसके रेशे में चमक तभी आती है जबकि मौसम प्रचंड धूपयुक्त हो। इसके पौधे थोड़े से पाले द्वारा मुरझा जाते हैं। अतः इसके लिए कम से कम सात माह पालारहित होना चाहिए।
कपास की कृषि के लिए वार्षिक वर्षा का औसत 50-100 सेंटीमीटर के आसपास होना चाहिए। परंतु वर्षा का वितरण समान होना चाहिए। अर्थात् वर्ष के किसी भी भाग में आवश्यकता से अधिक वर्षा नहीं होनी चाहिए। मेघाच्छन्न आकाश एवं अत्यधिक नमी इसके लिए हानिकारक होती है। वर्षा की कमी की पूर्ति सिंचाई द्वारा हो सकती है। वर्षा होने के तुरंत बाद धूप निकल आये तो अच्छा रहता है।
वैसे कपास कई प्रकार की उपजाऊ मिट्टियों में पैदा की जा सकती है किंतु हल्की एवं सुप्रवाहित मिट्टी इसकी कृषि के लिए विशेष रूप से उपादेय होती है। मिट्टी में चूकने के अंश की प्रचुरता कपास के उत्पादन की वृद्धि में सहायक होती है। दकन में पायी जाने वाली ज्वालामुखी जनति काली मिट्टी जिसमें चीका का अंश अधिक पाया जाता है, कपास के लिए काफी उपयुक्त समझी जाती है क्योंकि इसमें पानी को बनाए रखने या रोके रखने की क्षमता होती है।
उत्पादन एवं वितरण-
भारतीय कपास का 90 प्रतिशत भाग दक्षिण भारत में पैदा किया जाता है। जैसा कि निम्न तालिका से स्पष्ट है कि महाराष्ट्र एवं गुजरात समस्त भारत के उत्पादन का लगभग आधा प्रदान करते हैं।
कपास की कृषि में संलग्न अन्य राज्यों में पंजाब, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश आदि उल्लेखनीय हैं । स्वतंत्रता के बाद के वर्षों में देश में कपास के अंतर्गत क्षेत्रफल में लगभग 1.5 गुनी वृद्धि हुई है, फलस्वरूप उत्पादन में वृद्धि प्रथम योजना के प्रारंभ समय से लेकर वर्तमान समय तक लगभग दो गुनी हो गयी है जो कि निम्न तालिका से स्पष्ट है-
राज्य |
क्षेत्रफल (लाख हेक्टेअर में) |
उत्पादन (लाख गाँठों में) |
प्रति हेक्टेअर उत्पादन (किग्रा0 में) |
1950-51 |
58.82 |
30.39 |
86 |
1960-61 |
76.10 |
55.50 |
95 |
1970-71 |
76.05 |
47.63 |
106 |
1980-81 |
78.20 |
70.10 |
152 |
1990-91 |
74.40 |
98.42 |
225 |
1995-96 |
74.50 |
123.00 2 |
77 |
1996-97 |
91.21 |
142.31 |
265 |
1997-98 |
88.68 |
108.51 |
208 |
1998.99 |
93.42 |
122.87 |
224 |
1999-2000 |
87.59 |
116.44 |
226 |
2000-2001 |
82.21 |
158.00 |
327 |
2001-2002 |
– |
178.00 |
– |
भारतवर्ष में पैदा की जाने वाली कुल कपास का लगभग 17 प्रतिशत छोटे रेशे वाली, 42 प्रतिशत मध्यम रेशे वाली तथा 41 प्रतिशत लंबे रेशे वाली कपास होती है।
सन् 1947 के पूर्व विश्व के कपास-उत्पादक देशों में अविभाजित भारत का स्थान द्वितीय था परंतु विभाजन के उपरांत देश का अधिकांश कपास-उत्पादक क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया। अतः कपास उत्पादन में वृद्धि हेतु नवीन कपास उत्पादक क्षेत्रों की खोज करनी पड़ी। वर्तमान समय में कुल कपास उत्पादन का लगभग 90 प्रतिशत पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, हरियाणा, राजस्थान और आंध्र प्रदेश से प्राप्त होता है।
गुजरात- क्षेत्रफल की दृष्टि से एवं उत्पादन की दृष्टि से गुजरात का स्थान भारतवर्ष में द्वितीय है। संपूर्ण देश में कुल उत्पादन का लगभग 14 प्रतिशत इसी राज्य से प्राप्त होता है। यह लंबे रेशे की कपास का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। यहाँ भड़ौच, अहमदाबाद, बड़ौदा, सूरत, मेहसाना, वनासकाठा, गोहिलवाड़ी, पंचमहल आदि जनपद कपास की कृषि के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। भड़ौंच एवं सूरत में लंबे रेशे वाली उत्तम कपास पैदा की जाती है। यहाँ की कपास की कृषि अधिकांशतया प्राकृतिक वर्षा पर निर्भर है। प्रति हेक्टेयर उत्पादन 239 कि0ग्रा0 है।
महाराष्ट्र- क्षेत्रफल की दृष्टि से महाराष्ट्र का स्थान द्वितीय एवं कपास उत्पादन में तृतीय है। इस राज्य में लगभग 20 लाख हेक्टेयर भूमि पर प्रतिवर्ष 17 लाख गांठ कपास पैदा की जाती है। यहाँ पर कपास की खेती काली मिट्टी वाले क्षेत्र में की जाती है। कपास उत्पादक प्रमुख जनपद शोलापुर, अकोला, अमरावती, यवतमाल, नागपुर, बुल्ढाना नांदेण, धुलिया, बीड़, सांगली, अहमदनगर, पुणे एवं वर्धा हैं। यहाँ से भारतवर्ष की लगभग 16 प्रतिशत कपास प्राप्त होती है।
पंजाब- उत्पादन की दृष्टि से भारतवर्ष में इस राज्य का प्रथम स्थान हो गया है। प्रतिहेक्टेयर उत्पादन (475 किग्रा0) की दृष्टि से इस राज्य का प्रथम स्थान है क्योंकि यहाँ पर कपास की सघन कृषि की जाती है। कपास उत्पादक जनपदों में होशियारपुर, लुधियाना, पटियाला, संगरूर एवं जालंधर विशेष उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त भटिण्डा एवं फिरोजपुर जनपदों में भी कपस की कृषि होती है। यहाँ कुल कृषिगत भूमि के लगभग 1 प्रतिशत भाग पर कपास पैदा की जाती है।
कर्नाटक- मिट्टी एवं उपयुक्त जलवायु की सुविधा के कारण इस राज्य में लगभग 10 लाख हेक्टेयर भूमि में कपास की कृषि की जाती है। वार्षिक उत्पादन 8.73 लाख टन है। प्रति हैक्टेयर उपज 238 किग्रा है। कपास-उत्पादक प्रमुख जनपद बेलगाँव, धारवाड़, शिमोगा, वल्लारि, वेलारी, हसन, चिकमगलूर, चीतलदुर्ग, गुलबर्गा एवं रायचूर आदि हैं।
उत्तर प्रदेश- यहाँ मथुरा, आगरा, अलीगढ़, बुलंद शहर आदि जनपदों में कपास पैदा की जाती है।
भविष्य- भारत में कपास की माँग बहुत अधिक है। सूती कपड़े की मिलें बढ़ती जा रही हैं। यदि उत्तम कोटि की लंबे रेशेवाली कपास का उत्पादन बढ़ाया जाय तो इसका विकास बहुत हो सकता है। भारतीय केंद्रीय कपास समिति कपास के उत्तम बीज कृषकों को सुलभ कराने के लिए प्रयत्नशील है। कपास-विक्रय के लिए एक निगम की भी स्थापना की गयी।
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